आलू के बीज कैसे बोएं? | Read this article in Hindi to learn about how to sow potato seeds.

किसान भाइयों के अथक परिश्रम समुचित पूंजी लगाने के बाद भी कई बार आलू की अच्छी फसल नहीं हो पाती है । इसमें दो राय नहीं है कि समय पर बुआई, सिंचाई, संतुलित उर्वरक, पौध संरक्षण दवाओं का छिड़काव इत्यादि आलू की खेती में अपना विशेष महत्व रखते है परन्तु किसान भाईयों को यह नहीं भूलना चहिए कि रोग मुक्त स्वस्थ बीज आलू की अधिकतम पैदावार के लिए अतिआवश्यक है ।

भारत में आलू के उत्पादन और उत्पादकता में कमी होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि देश में कृषि विभाग कृषि विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान केन्द्र एवं अन्य अनुसंधान संस्थान द्वारा बहुत ही सीमित मात्रा (16 प्रतिशत) में रोग मुक्त आलू के बीज उपलब्ध कराया जाता है ।

परिणामतः अधिकतर किसानों को अपने उगाये हुये आलू के बीज पर ही निर्भर रहना पड़ता है या बाजार अथवा शीत भण्डार से खरीदना पड़ता है । इसलिए किसानों को यदि आलू बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक की पूरी जानकारी दिया जाय तो किसान स्वयं अपना बीज उत्पादन कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति के साथ-साथ उत्पादन लागत को निम्नतम कर सकते हैं ।

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खेत का चयन:

आलू बीज की खेती के लिए ऊंची व मध्यम उँचाई वाले खेत उपयुक्त होते है । अच्छी जल निकास वाली बलूई दोमट या दोमट मिट्‌टी जिसका पी० एच० मान 5.2 – 6.5 हो, आलू बीज के लिए उपयुक्त रहती है । खेत में सिंचाई एवं जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए । अधिक गीली जमीन और पानी निकास की उचित व्यवस्था न होने पर का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता है ।

उपयुक्त फसल-चक्र का चयन:

सही फसल चक्र बीमारियों के नियंत्रण च मदद करता है जो पौधों और खरपतवारों द्वारा फैलती है । सबसे पहले गर्मियों के महीनों (अप्रैल-जून) के दौरान मिट्‌टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी (6 – 8 ईंच) जुताई कर दें तथा 10 – 15 दिन के अन्तराल पर दो बार जुताई कर खेत को खाली छोड़ दें । ऐसा करने से मिट्‌टी एवं खरपतवार जनित रोगों के प्रकोप को कम करने तथा चिरस्थाई खरपतवारों के नियंत्रण में सहायक होते हैं ।

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मानसून आने से पहले जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह में खेत में ढैंचा या अन्य हरी खाद वाली फसलों की बुआई कर दें । 15 अगस्त के बाद हल चलाकर इन्हें खेतों में दबा दें । ऊंचा या हरी खाद वाली फसलें दो दृष्टियों से लाभप्रद होती है एक तो ये मिट्‌टी की भौतिक दशा को सुधारते हैं. दूसरे आलू की फसल में उपस्थित पोषक तत्वों की प्राप्ति को भी बढ़ाते है । आलू फसल से पहले कम अवधि की धान फसल का भी उत्पादन कर सकते हैं ।

अनुशंसित प्रजाति:

अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग किस्मों की सिफारिश की जाती है । विशिष्ट क्षेत्रों में आलू की सही किस्म लगाने से अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है । इसके अतिरिक्त कुछ किस्में कम समय में ही पक कर तैयार हो जाती है और पूरी फसल देती है, जबकि कुछ अधिक समय लेती है ।

इस आधार पर किस्मों को तीन समूहों में बांटा गया है जो निम्न प्रकार से है:

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खेत की तैयारी:

पहले खेत को समतल करके सिंचाई कर दें । बुआई से पूर्व खेत में एक से दो बार गहरी जुताई मोल्डबोर्ड हल या डिस्क हरों से करें । इसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन से तीन बार खेत की जुताई करें । प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें ।

बीज का स्रोत:

इस बात का ध्यान रहे कि आलू का बीज राज्य के कृषि/बागवानी विभाग, राष्ट्रीय या राज्य बीज निगम, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान से ही लिया जाए । केवल आधार या प्रमाणित बीज का ही उपयोग आगे की वृद्धि के लिए किया जाना चाहिए । यदि किसान स्वयं उत्पादित बीज का प्रयोग करते हों तो प्रत्येक 3-4 वर्षों के बाद आलू का बीज बदल लिया जाए ।

बीज का आकार:

पूर्ण रूप से अंकुरित लगभग 40-50 ग्राम भार/वजन वाले कन्द ही आलू बीज के रूप में बुआई के लिए प्रयोग करना चाहिए । अनेक आँख वाले पूर्ण रूप से अंकुरित कंद के बीज से हमें अधिक संख्या में बीज आकार के आलू प्राप्त हो सकेंगें । आलू बीज की फसल लेने के लिए आलू के बीज को काट कर कभी भी न लगायें । बल्कि सम्पूर्ण कंद का इस्तेमाल करें ।

कंद के वजन के अनुसार कतार से कतार तथा पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी सारणी- 1 में प्रस्तुत की गई है:

 

इस प्रकार 40–50 ग्राम के कन्दों का 60×20 सें०मी० तथा 50-60 ग्राम के कन्दों को 60×30 सें०मी० की दूरी पर लगायें और अगर कन्द इससे भी बड़े हों तो इसी अनुपात में सारणी-1 के अनुसार दूरी को बढ़ा सकते हैं ।

बीज की तैयारी:

फसल बुआई से कम से कम 10 दिन पहले बीज कन्दों को शीत भण्डार से निकाल लें और फिर कम से कम 24 घंटे के लिए अभिशीतन कक्ष में ही रखें । बीज कन्दों के बोस का शीतभण्डार से निकालते ही सीधे बाहर खुले स्थानों में न लायें अन्यथा तापमान की अधिकता के कारण उनके सड़ने का अंदेशा रहेगा । बीज कन्दों के बोरों को सूर्य के सीधे प्रकाश में न रखा जाए बल्कि आलू को बौरे से निकालकर किसी छायादार एवं हवादार ठंडे स्थान में अच्छे अंकुरण के लिए फैला दें ।

फसल की बुआई कब और कैसे ?

बुआई अकबर के अंतिम सप्ताह या नवम्बर के प्रथम सप्ताह में की जानी चाहिए । समय से पहले बुआई न करें अन्यथा पौधे का डंठल पतला और पत्तियां अटपटी रहेगी । बुआई के लिए 12 सें०मी० गहरी नालियां बना लें । इन नालियों में खाद डालने के उपरान्त 3-4 सें०मी० मोटी मिट्‌टी की परत से ढक दें फिर उसके उपर आलू रख कर रिजर या कुदाल से मिट्‌टी चढ़ाने का कार्य कर ।

आलू की ढकने के लिए 8–10 सें०मी० ऊंची मेड बनायें । कतार से कतार की दूरी 60 सें०मी० तथा बीज से बीज की दूरी आलू के भार के अनुसार (सारणी- 1) रखें । आलू को मेंड़ों पर डिबल (गाड़) करके भी बोया जा सकता है ।

इसके लिए 60 सें०मी० की दूरी पर खुली नालियां पतली कुदाल से पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बनायें तथा मिट्‌टी को दक्षिण दिशा में रखकर मेड बनायें । खाद की मेड के उत्तर की ओर रखें तथा इन्हें 3-4 सें०मी० ऊंची मिट्‌टी की तह से ढंकें । अब बीज आलूओं को खुरपी द्वारा भेड़ों पर 20 सें०मी० की दूरी पर और 5-6 सें०मी० की गहराई पर रखें ।

खाद एवं उर्वरक कब और कैसे ?

(क) यदि खेत में ढैंचा या हरी खाद वाली अन्य फसलें न लगाई गई हो तो इस अवस्था में गोबर की अच्छी सड़ी खाद या कम्पोस्ट की 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय समान रूप से विखेर कर मिट्‌टी में मीला दें ।

(ख) रासायनिक उर्वरकों की उपयुक्त मात्रा काफी हद तक मिट्‌टी का प्रकार, मिट्‌टी की उर्वरता, फसल-चक्र तथा अन्य संबंधित बातों पर निर्भर करता है । वैसे आमतौर पर आलू का बीज उत्पादन के लिए 100 कि०ग्रा० नेत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्पोरस एवं 100 कि०ग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय तथा नेत्रजन 50 कि०ग्रा०/हे० की दर से मिट्‌टी के चढ़ाते समय देना चाहिए ।

परन्तु इस बात का ध्यान रहे कि खेत में नत्रजन उर्वरकों की अधिकता न होने पाये अन्यथा एक तो लाही एवं जैसिड कीटों का अधिक आक्रमण की आशंका कं साथ-साथ रोगी पौधों को निकालना मुश्किल हो जाएगा. दूसरे इसके द्वारा अधिक संख्या में बडे आकार के कंद प्राप्त होंगे लेकिन बीज आकार के आलूओं की संख्या में कमी हो जाएगी ।

उर्वरकों का प्रयोग केवल नालियों में ही कर और इन्हें हमेशा 3-4 सें०मी० मोटी मिट्‌टी की परत से ढक दें । इससे बीज के कंद सीधे उर्वरकों के सम्पर्क में आने से बच जाते हैं ।

निराई-गुड़ाई कब और कैसे ?

फसल बुआई के 20-30 दिन बाद जब पौधों की उँचाई 8-10 सें०मी० तक हो जाए तो ट्रैक्टर चालित स्प्रिंग टाइन कल्टीवेटर की सहायता से कतारों के बीज से खरपतवार हटा लें या खुरपी की सहायता से यह कार्य आसानी से किया जा सकता है । ऑक्सीफलोरफेन आधा लीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव आलू लगाने के दो से तीन दिन के अंदर करने से खरपतवार का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाता है ।

निराई-गुड़ाई के बाद नत्रजन की शेष आधी मात्रा (50 कि०ग्रा०/हे०) भी खेत में डाल दें । इसके बाद ट्रैक्टर चालित पोटैटो रिजर से अथवा कुदार से मोटी मेड़ बना दें । खरपतवार के नियंत्रण के लिए निहाई-गुड़ाई के समय ध्यान रहे कि आलू के पौधों को नुकसान न हो ।

सिचाई कब, कितनी और कैसे ?

एक समान अंकुरण के लिए बुआई से पहले सिंचाई करना उत्तम रहता है । यदि ऐसा नहीं किया गया हो तो बुआई के दुसरे दिन सिंचाई अवश्य कर दें । यह सिंचाई हल्की होनी चाहिए ।

बाद की सिंचाई बलूई दोमट मिट्‌टी में आवश्यकतानुसार 6-10 दिन के अन्तराल पर करें । साधारणतः मिट्‌टी में नमी रहनी चाहिए परंतु इतनी अधिक सिंचाई भी न की जाए कि जमीन काफी गीली रहे ।

इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि सिंचाई के पानी से मेड़ें न डुबे । पहली सिंचाई के बाद की सिंचाई में इस बात का ध्यान रहे कि नालियों में इतना पानी रहें जिससे भेड़ों का आधा से दो तिहाई हिस्सा ही पानी से डूबे । खुदाई के 10 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें ।

फसल सुरक्षा (कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण):

वायरस रोग वाहक लाही व जैसीड कीड़ों के नियंत्रण के लिए खेत में फोरेट (10 जी) या केलडान (4जी) की 10 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय प्रयोग करें । लाही कीट आमतौर पर दिसम्बर के अंत में प्रकट होते है ।

इस कीड़े के प्रकट होने का सही समय वातावरण का तापक्रम एवं आर्द्रता पर निर्भर करता है । इनकी रोकथाम के लिए डाइमेथोएट (30 ई०सी०) 2 मि०ली० या इमेंडाक्लोप्रीड (17.8 एस०एल०) 0.25 मि०ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए । आवश्यकतानुसार 10 दिन के अन्तराल पर पुन: दूसरा छिड़काव करें ।

यदि फसलों पर पत्ती भक्षक कीटों का आक्रमण हो जाय तो फसलों पर कार्बारिल (50 डब्लू० पी०) 2 ग्राम या क्वीनालफास (25 ई०सी०) 1.25 मि०ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें । यदि कटवा कीटों का प्रकोप हो तो पेड़ों पर क्लोरपायरीफास (20 ई०सी०) 2.5 मि०ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें ।

आमतौर पर फसल में अगेती झुलसा, फोमा पर्ण धब्बा तथा पिछेती झुलसा का आक्रमण दिसम्बर माह से शुरू होता है इनके नियंत्रण के लिए मैनकोजैव (75 डब्लू० पी०) या प्रोपीनेव (75 डबलू०पी०) या रिडोमिल (एम जेड 72) 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव 10 – 15 दिन के अन्तराल पर करें । छिड़काव करते समय यह ध्यान रहे कि पत्तियों की निचली सतह भी घोल से पूरी तरह भींग जाय ।

रोगिंग कब करें ?

आलू की बुआई के तीस दिन बाद से ही रोगिंग सबसे महत्वपूर्ण है । आलू की बुआई के तीस दिन बाद से रोगग्रस्त और विजातिय पौधा को निकालने के लिए तीन बार फसल का निरीक्षण और रीगिंग अवश्य करना चाहिए । पहली रागिंग बुआई के 20 से 30 दिन बाद मिट्‌टी चढ़ाने से पूर्व करनी चाहिए । दूसरी बार यह कार्य बुआई के 40 से 50 दिन बाद जबकि दो कतारों के पौधे एक-दूसरे को न छू रहे हों, करना चाहिए । तीसरी बार यह कार्य डंठल की कटाई के तीन चार दिन पहले करना चाहिए ।

सवंप्रथम आलू की जिस प्रजाति की खेती की जा रही हो उस प्रजाति के पौधा की छोड्‌कर आलू के दूसरे प्रजाति के पौधे अगर खेत में दिखाई दे तो उन्हें बाहर निकाल दें अन्यथा प्रजाति की पवित्रता नहीं रहेगी और मिश्रण हो जायेगा । किसी भी तरह के बीमार पौधे जिन पर चित्ती, मोजेक, शिरा गलन, पत्ती मोड़क आदि लक्षण दिखाई पडे तो उन्हें तत्काल निकाल दें ।

यह भी ध्यान रहे कि निकासी किये गये रोगी और विजातीय पौधों के साथ-साथ उनके कंद भी निकाल दिये जाय । इस तरह से निकाल गये पौधों और कंदों को खेत से ले जाकर मिटटी में गाडकर अथवा जलाकर नष्ट कर दें ।

डंठल की कटाई:

आलू का बीज तैयार करते समय सधारणतया लत्तर अथवा डंठल को काट दिया जाता है और आलू की मिट्‌टी के अन्दर छोड़ दिया जाता हैं । ऐसा करने से लाही कीड़ों द्वारा वायरस का संक्रमण पौधे से कंदों तक नहीं पहुँच पाता है । डंठल की काटने से 7–10 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें ।

जब लाही कीटों की संख्या तीन से चार कीट प्रति 100 संयुक्त पत्तियों पर दिखाई दें तो डंठल को काट दें । यह कार्य 15-20 जनवरी के बीज अवश्य कर लें । डंठल का जमीन की सतह से ही काटे ताकि वे पुन: न निकलने पाये ।

खुदाई एवं छंटाई:

डंठलों की कटाई के एक पखवाड़े के बाद जब कंदों के छिलके सख्त हो जाय तो फसल की खुदाई कर लें । यह कार्य 15 फरवरी तक पूरा कर ले । परन्तु 20 फरवरी के बाद खुदाई करना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे संभवत: कंद काला गलन रोग से प्रभावित हो सकता है ।

खुदाई का कार्य ट्रक्टर चालित अथवा बैलों द्वारा खींच जाने वाले पोटेटो डिगर द्वारा करें इससे आलू के कन्द कम खराब होते है, खुरपी से खुदाई करने की तुलना में । खुदाई के बाद कन्द को किसी छायादार ठण्डी जगह पर उनकी सतह को सुखने के लिए ढेरियों में रखे ।

इन्हें 10 – 15 दिनों तक ढेरियों में ही रख ताकि उनके छिलके सख्त हो जाय । ढेरियों की उँचाई एक मीटर से अधिक न है । आलू की छंटाई से पहले करे-सड़े कदा का अलग कर दें । उसके बाद उनकी चार श्रेणियों में छंटाई कर लें छोटा आकर 25 ग्राम से कम, मध्यम आकार 25-50 ग्राम, बड़ा 50 – 75 ग्राम तथा अधिक बडा 75 ग्राम से अधिक रखें ।

बीज उपचार:

कंदों को साफ पानी से धोने के बाद 2 प्रतिशत बोरिक अम्ल के घोल में 15 मिनट तक डूबायें । इसके बाद कंदों को छायादार स्थान में फैला दें । साथ ही विक्री के लिए तथा शीत भण्डार में भेजने के लिए बोरे पर रासायनिक उपचार का लेवल लगा दें । इन आलूओं का प्रयोग खाने के लिए न करें ।

बीज भण्डारण:

आलू बीज का भण्डारण शीत भण्डार में करें । आलू के बोरों पर विष का लेबल लगवा लें । भण्डार में आलू 15 मार्च तक अवश्य ही भेज दें । शीत भण्डार में रखने से पहले बोरों को अभिशीतन कक्ष में 24 घंटे तक रखें । शीत भण्डार का तापमान 2-4 डिग्री सेन्टीग्रेड रहना चाहिए । आलूओं का समय-समय पर निरीक्षण करते रहें तथा उन्हें पलटते भी रहें ।

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