गोल तरबूज कैसे खेती करें | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate round melon.

टिन्डा कददूवर्गीय सब्जियों के अंतर्गत प्रमुख सब्जी है । इसकी खेती संपूर्ण भारतवर्ष में की जाती है । जिसमें प्रमुख रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में यह गर्मियों की एक प्रमुख सब्जी है एवं उगाई जाती है । उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ एवं बुलंदशहर जिले में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है ।

सब्जी बनाने के लिए टिन्डे के कच्चे फलों का प्रयोग किया जाता है । यदि बीज कड़े हो जाएँ गूंदा नरम हो तो भी इसके फलों का प्रयोग कर सकते हैं, इसके बीज निकालकर सब्जी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है । इसकी सब्जी चना, मसूर एवं मूंग जैसी दालों के साथ मिलाकर भी बनाई जा सकती है ।

टिन्डे का उपयोग आचार बनाने में भी किया जाता है । टिन्डे के फल में अनेक प्रकार के खाद्यय पदार्थ पाए जाते हैं- इनमें विभिन्न अव्यवों की मात्रा निम्नलिखित हैं – जल 92.3 प्रतिशत, प्रोटीन 1.7 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 5.3 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत । खनिज 0.6 प्रतिशत एवं विटामिन ए की प्रचुर मात्रा पाई जाती है ।

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टिन्डे का पौधा एक शाकीय एवं एक वर्षीय लता होती है । इसकी पत्तियाँ गहरे अथवा हल्के हरे रंग की तथा रोयेंदार होती है । टिन्डे के फल आकार में गोल होते हैं एवं उन पर हल्के-हल्के रोये पाये जाते हैं । कभी-कभार इसके फल चिकने भी होते हैं ।

प्रमुख किस्में:

टिन्डे की उन्नत किस्मों का विकास कम हुआ है, परिणामस्वरूप जहाँ पर टिन्डे की अनेक स्थानीय किस्में सुलभ हैं, वहाँ पर उन्नत किस्में बहुत कम उपलब्ध हैं ।

यहाँ पर इसका वर्णन निम्नलिखित है:

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1. सफेद हरा टिन्डा:

इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं एवं सफेद हरे या हल्के हरे रंग के होते हैं । ये बुआई के 50-55 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं । इस किस्म की पत्तियों का रंग भी हल्का हरा होता है । इस किस्म की उत्पादन क्षमता 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है ।

2. अर्का टिन्डा:

यह एक अगेती किस्म है जो 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है । इसके फल गोल हल्के हरे, कोमल रोयें एवं कोमल गूदे वाले होते हैं । इस किस्म की एक विशेषता यह है कि यह फलों की मक्खी की प्रतिरोधी किस्म है एवं फल में बीज भी बहुत कम होते हैं । इस किस्म की उत्पादन क्षमता 90-100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है । इसकी औसत तोडाई 8-10 बार तक की जाती है ।

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3. टिन्डा एस-48:

यह एक अगेती प्रकार की किस्म है । बीज की बुआई के 60 दिनों बाद फलों की तोड़ाई करने के लिए तैयार हो जाते हैं । इसके फल गोल, हल्के हरे रंग के एवं चमकीले होते हैं । फल में बीज कम गूदा सफेद कोमल एवं खाने में स्वादिष्ट होते हैं । इसकी प्रत्येक लता पर 8-10 फल लगते हैं । इसकी उत्पादन क्षमता 60-70 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है ।

4. गहरा हरा टिन्डा:

इस किस्म के फल मध्यम आकार के एवं गहरे हरे या कालापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं । यह किस्म बुआई के 55-60 दिन बाद फल तैयार होने लगती हैं । इस किस्म की पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती है । इसका औसत उत्पादन 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होता है ।

 

5. बीकानेरी ग्रीन:

इस किस्म के फल बीज बोने के 65-70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं । इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं जिन पर रोए पाए जाते हैं । इस किस्म के पौधे सामान्य रूप से फैलते हैं । इसके फल आकार में बड़े होते हैं एवं लता की पाँचवीं गाँठ से बनना प्रारम्भ होते हैं । इस किस्म को मिलवा फसल के रूप में भी उगा सकते हैं । इस किस्म की उत्पादन क्षमता 60-75 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती हैं ।

6. तमिलनाडु चयन:

इस किस्म के पौधे ओजस्वी चौड़े एवं पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती है जब फल पकने के करीब होते है तब सपाट हो जाते हैं । इस किस्म को ग्रीष्मकाल एवं वर्षाकाल दोनों मौसमों में उगा सकते हैं ।

7. हिसार चयन:

इस किस्म के फल गोल, हरे एवं देखने में आकर्षक होते हैं ।

8. एस-22:

इस किस्म का विकास पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा किया गया है । यह अधिक उपज देने वाली किस्म है । इसके फल गोल, हरे एवं रोएदार होते हैं ।

भूमि एवं भूमि की तैयारी:

टिंडे को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है परंतु इससे भरपूर उपज लेने हेतु प्रचुर मात्रा वाली जीवांशयुक्त रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है । दियारा क्षेत्रों में इसकी उत्पादन क्षमता अधिक होती है । भूमि का पी॰एच॰ मान 6-7 सर्वोत्तम माना जाता है । भूमि में उचित जल निकास का प्रबन्ध अवश्य होना चाहिए ।

जलवायु:

टिंडा गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में भलीभाँति उगता है, परंतु इसको गर्म एवं मृदु जलवायु में भी आसानी से उगाया जा सकता है । इससे जमाव हेतु 27-30 से॰ ग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है । निम्न तापमान पर इसके बीज अंकुरित नहीं होते हैं अतः कम तापमान वाले क्षेत्रों में इसको नहीं उगाया जा सकता है ।

खाद एवं उर्वरक:

टिंडे की भरपूर उपज लेने हेतु उचित मात्रा में गोबर की सड़ी हुई खाद करीब 20-25 टन प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में अंतिम जुताई के समय भली प्रकार से मिला दें, साथ में नत्रजन 100 किलोग्राम फॉस्फोरस 100 किलोग्राम एवं पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालें । नत्रजन की आधी मात्रा को भी बेसल डोज के रूप में खेत की तैयारी के समय डाल देना चाहिए । शेष नाइट्रोजन की मात्रा को बीज बोने के 40-50 दिनों बाद खड़ी फसल के रूप में टॉप ड्रेसिंग के रूप में डाल देना चाहिए ।

बोआई:

उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसको दो मौसमों में लगाया जाता है । पहली बोआई मध्य फरवरी से अप्रैल तक करनी चाहिए एवं दूसरी बोआई जून-जुलाई में करनी चाहिए ।

बीज बर:

टिंडे की खेती में बीज की मात्रा 4-5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक होनी चाहिए ।

बोने की विधि:

टिंडे की बोआई थालों में करते हैं जिन्हें 60 सेमी॰ चौड़ी नालियों में बनाते हैं । पंक्ति से पंक्ति की दूरी 2.0-2.5 मीटर एवं थालों से थालों की दूरी 90-120 से.मी. तक रखते है । प्रत्येक थाले में 3-5 बीज बोते हैं बाद में उनमें केवल दो पौधे रहने देते हैं ।

सिंचाई:

टिंडे के बीज को बोआई से पहले पानी में 24 घंटे भिगोने से 56 दिनों में बीज अंकुरित हो जाते हैं, प्रथम सिंचाई बीज के अंकुरण के समय देना चाहिए । बाद में 5-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए । अन्य कद्‌दूवर्गीय सब्जियों की तुलना में टिंडे में सिंचाई जल्दी-जल्दी करनी पड़ती है । क्योंकि यह उथली जड वाली सब्जी है । वर्षा ऋतु में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ।

खरपतवार नियंत्रण:

प्रथम निराई गुड़ाई बीज बोने के 15-20 दिन बाद करना चाहिए । इसके बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुडाई करनी चाहिए । काली पॉलीथीन का उपयोग भी किया जा सकता है । इससे न केवल खरपतवारों का नियंत्रण होगा बल्कि नमी का संरक्षण भी होगा । नाइट्रोजन (1.25 लीटर/हे॰) एवं एलाक्लोर 2.5 लीटर/हे. का उपयोग करके खरपतवारों पर नियंत्रण किया जा सकता है ।

फलों की तोड़ाई:

टिंडे की अधिकांश किस्में बीज बोने के 60-90 दिनों के बाद प्रथम तोड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं । फल बनने के 6-8 दिन बाद फल तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं । टिंडे को उस समय तोडना चाहिए जब वे छोटे एवं कोमल हो अन्यथा बड़े होने पर फल सब्जी बनाने योग्य नहीं रहते हैं । टिंडे 3-4 दिनों के अंतराल में तोडते रहने चाहिए ।

उपज:

टिंडे की उपज कई बातों पर निर्भर करती है जिनमें प्रमुख रूप से भूमि की उर्वराशक्ति उगाई जाने वाली किस्म एवं फसल की देखभाल प्रमुख है । प्रति हैक्टेयर 80-120 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है । यदि मैलिक हाइड्राजाइड का 50 पी॰पी॰एम॰ घोल का 2-4 सच्ची पत्तियों की अवस्था में छिडकाव कर दिया जाये तो उपज में 50-60 प्रतिशत तक ज्यादा वृद्धि होती है ।

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