गन्ना फसल कैसे करें? | Read this article in Hindi to learn about how to cultivate sugarcane.

गन्ने के लिए गहरी व उपजाऊ जमीन की दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक तत्व 0.5-0.6 प्रतिशत तथा पी.एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो, उपयुक्त रहती है । मृदा की दानेदार संरचना में कर्षण क्रियाएँ सुचारु रूप से संपादित होती हैं तथा पौधों की अच्छी वृद्धि होती है ।

जल भराव या क्षारीय मृदा वाली भूमि में गन्ने की पैदावार अच्छी नहीं होती । गन्ने की अच्छी उपज प्राप्त करने में खेत की तैयारी, बुआई का समय, विधियाँ तथा बीज दर अहम् भूमिका निभाते हैं । विभिन्न भूमि तथा जलवायु वाले क्षेत्रों में बुआई की विधियों में बदलाव के द्वारा प्रति इकाई क्षेत्रफल में ब्यांत की सघनता, किल्लों के मरने में कमी एवं पेराई योग्य गन्नों की संख्या व वजन में वृद्धि संभव होने के कारण अच्छी उपज के आंकडे प्राप्त हुए हैं ।

खेत की तैयारी:

खेत की तैयारी से तात्पर्य गन्ना बुआई हेतु मृदा की भौतिक दशाओं में बीज गन्ना के अंकुरण तथा उसके पश्चात् पादप वृद्धि से लेकर फसल कटने तक अनुकूल वातावरण तैयार करना है । गन्ने के उपयुक्त जमाव हेतु मृदा में लगभग 25 प्रतिशत प्राप्य नमी की मात्रा आवश्यक है । इसलिए खेत में पलेवा करके ओट आने पर एक गहरी जुताई तथा हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 बार उथली जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए । खेत का समतल होना अत्यावश्यक है ।

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खेत की जुताई के समय ही 20-25 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद अथवा उपलब्ध प्रेसमड डालकर मिला देना चाहिए । हरी खाद को सडने के लिए कम से कम 4-6 सप्ताह का समय चाहिए । खेत की जुताई करके बिजाई हेतु तैयारी में 1-2 दिन से अधिक समय नहीं लगना चाहिए, जिससे मृदा नमी संरक्षित रहे ।

बुआई का समय:

गन्ने की आंख के शीघ्र एवं प्रभावी अंकुरण हेतु गर्म एवं नमी युक्त भूमि एवं वातावरण का तापमान अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है जो 26 से 30 से. के मध्य अनुकूलतम पाया गया है । तापक्रम की यह अवस्था उपोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में सितम्बर-अक्तूबर और पुन फरवरी-मार्च में मिलती है । उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में तापक्रम की यह अवस्था लगभग पूरे वर्ष बनी रहती है ।

तापक्रम का उतार-चढ़ाव, प्रकाश की तीव्रता एवं नमी गन्ने के जमाव, फुटाव एवं बढ़वार हेतु प्रभावशाली कारक हैं । इन कारकों को ध्यान में रखकर ही बुआई हेतु उपयुक्त समय का निर्धारण करना चाहिए । शरद ऋतु में बोये गये गन्ने की बढ़वार एवं मिल योग्य गन्नों की संख्या सर्वाधिक होने के कारण इससे अधिक उपज प्राप्त होती है ।

बुआई की विधियां:

विभिन्न सस्य तकनीकों में गन्ना बुआई की विधियों तथा बीज दर का गन्ने की उत्पादकता पर प्रत्यक्ष प्रभाव पडता है । उपयुक्त विधि अपनाकर गन्ना उपज में डेढ से दो गुना वृद्धि की जा सकती है ।

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प्रमुख विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:

1. समतल विधि:

सामान्य रूप से शरदकालीन गन्ने में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सें.मी. बसंतकालीन में 75 सें.मी. और ग्रीष्मकालीन गन्ने में 60 सें.मी. रखी जाती है । इस विधि में तैयार खेत में समुचित पंक्ति दूरी पर रस्सी से लाइनें बना ली जाती हैं । इन लाइनों पर देशी हल से कुंड निकाल लिए जाते हैं ।

कुंड ट्रैक्टर के द्वारा भी निकाला जा सकता है । कुंड़ों की गहराई 7-10 सें.मी. होनी चाहिए । नाइट्रोजन उर्वरक की एक तिहाई मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा कुंड में डालकर पैरों से मिट्टी में मिला दिया जाता है । इसके बाद फफूंदनाशक दवाई में शोधित गन्ने के तीन आँखों वाले टुकडों को सिरे से सिरा मिलाकर इस प्रकार डालते हैं कि प्रति मीटर कुंड लंबाई में 3.5 टुकडे आ सकें ।

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बुआई के बाद कुंडों में बोए गए टुकड़ों के ऊपर क्लोरपाइरीफास की 1 ली. सक्रिय तत्व मात्रा को 1000 ली. पानी में घोल बनाकर हजारे से प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव कर देते हैं । इसके बाद कड़ी को देशी हल या कुदाली से ढककर पाटा चला देते हैं ।

समतल विधि में गन्ने की बुआई देशी हल, गन्ना बोने के लिए बनाये गये विशेष हल, ट्रैक्टर चालित नाली खोलने वाला हल अथवा ट्रैक्टर चालित कटर प्लांटर से बुआई करते हैं । दोहरी पंक्ति बुआई विधि में शरद, बसंत, एवं ग्रीष्मकालीन बुआई में पंक्तियां क्रमशः 90:30:90, 60:30:60 तथा 45:30:45 सें.मी. रखते हैं । समतल विधि में बुआई के बाद मृदा तथा बोए गए गन्ने के टुकडों से नमी का हास तेजी से होता है और इसका जमाव पर प्रतिकूल असर पडता है ।

बीज दर:

सामान्य रूप से 90 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर समतल विधि में गन्ना बोने पर प्रति हैक्टर 38-40 हजार तीन आंख के टुकडों की जरूरत पडती है जिसका वजन लगभग 6 टन होता है । पंक्ति से पंक्ति की दूरी बीज गन्ना दर को निर्धारित करती है । अतः विभिन्न दूरी पर सारणी-5.3 के अनुसार बीज दर रखना चाहिए ।

2. बुआई की गोल गड्‌ढा विधि:

उपोष्ण क्षेत्रों में गन्ना जमाव प्रतिशत बढाने के अनुसंधान प्रयासों में जब आशातीत सफलता नहीं मिली तब यह तय किया गया कि अवांछित किल्लों के प्रस्फुटन स्वरूप होने वाली जैविक हानि को रोकने के लिए प्रति इकाई बीज की मात्रा में बढोत्तरी कर दी जाये इसके लिए गोल गड्‌ढा विधि अधिक बीज दर को समायोजित करने एवं मातृ पौधों की मिल योग्य संख्या अधिक प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त पाई गई ।

उत्तर भारत में गन्ने का जमाव लगभग 30 से 35 प्रतिशत के मध्य होता है, इसीलिए तीन आंख वाले 40,000 टुकड़ों से प्रति हैक्टर लगभग 40,000 ही मातृ पौधे प्राप्त होते हैं, जिनसे एक लाख गन्ने मिल योग्य बन पाते हैं । इस प्रकार प्रति हैक्टर 60,000 गन्ने कि से प्राप्त होते हैं ।

इसके विपरीत उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 80,000 मातृ पौधों एवं शेष 20,000 किल्लों से एक लाख मिल योग्य गन्ने प्राप्त हो जाते हैं । संभवतः अन्य कारणों के अतिरिक्त दोनों खंडों की उपज में अतर का यह भी एक मुख्य कारण है ।

इस दृष्टिकोण से प्रति इकाई मातृ पौधों की संख्या में वृद्धि हेतु गड्‌ढा विधि का विकास किया गया, जिससे प्रति हैक्टर लगभग 180 से 190 टन उपज प्राप्त हो जाती है इस विधि का प्रयोग प्रतिकूल दशाओं में भी गन्ने की भरपूर उपज के लिए किया जा सकता है । यदि भूमि एक प्रतिशत से ज्यादा ढालू है तो भी गड्‌ढा विधि का प्रयोग किया जा सकता है ।

इस विधि में सर्वप्रथम खेत में लंबी रस्सी के द्वारा 120 सें.मी. की नियमित दूरी पर दोनों ओर से चिन्ह लगा लेते हैं । दोनों पंक्तियों के कटान बिन्दु पर 90 सें.मी. व्यास का 45 सें.मी. गहरा गड्‌ढा खोदकर इसके अन्दर 5-8 कि.ग्रा. गोबर की खाद/कम्पोस्ट/प्रेसमड डालकर अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए ।

दीमक की रोकथाम के लिए 5 ग्रा. एल्ड्रिन अथवा 5 या 10 प्रतिशत बी. एच. सी. धूल भी मिलायें । इसके अतिरिक्त 40 ग्रा. यूरिया तथा 10 ग्रा. फास्फोरस एवं पोटैशियम भी मिला दें । जमाव के 30 दिन पश्चात 20 ग्रा. यूरिया का अतिरिक्त छिडकाव करना चाहिए ।

रोग जनकों से मुक्त बीज गन्ना के तीन आंख वाले टुकडों को एरेटान या एगलाल विलयन में 10 मिनट तक डुबोते हैं । जमाव के पश्चात जैसे-जैसे गन्ना बढता है उसी के अनुसार गड्‌ढे के आसपास की मिट्टी गड्‌ढों में भरते जाते हैं । इस प्रकार प्रत्येक गड्‌ढे से 25 मिल योग्य मातृ पौधे प्राप्त हो जाते हैं एवं प्रति हैक्टर लगभग 180-190 टन उपज मिलती है ।

3. बुआई की अन्तरालित प्रतिरोपण तकनीक (एस.टी.पी.):

यह विधि एक विशेष तकनीक है जिसे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में विकसित किया गया है । इसे देर से गन्ना बुआई की स्थिति में भी प्रयोग किया जा सकता है साथ ही अंतरालों को भरने और बीज गन्ने को बढाने में भी यह विधि अत्यंत सहायक है ।

इसमें लगभग 30,000 एक आंख वाली गेडियों को उर्ध्वाधर स्थिति में 50 वर्ग मी. के नर्सरी क्षेत्रफल में रोपित किया जाता है जो कि 1 हैक्टर भूमि में 60×30 सें.मी. अंतराल पर रोपण के लिए पर्याप्त होते हैं । नर्सरी में उगी हुई एक माह पुरानी पौध को प्रतिरोपण हेतु संस्तुत किया जाता है ।

इसका विवरण निम्नवत है:

(i) पौध तैयार करना:

वास्तविक प्रतिरोपण से एक माह पूर्व गन्ने की नर्सरी एक छोटे से क्षेत्र (5 मी. ×10 मी.) अर्थात् 50 वर्ग मीटर में उस खेत के निकट तैयार की जाती है, जिसमें प्रतिरोपण किया जाना है । भूमि की तैयारी 15 सें.मी. गहरी जुताई करके मृदा को भुरभुरी बनाने के पश्चात इसमें गामा एच.सी.एच 1 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से डाल दी जाती है ।

एक-एक वर्ग मी. की क्यारियां बनाकर एक आंख की गेडियों को भूमि में छेद करके दबा देते हैं । गन्ने के ऊपरी आधे भाग से एक आंख की गेडिया काटी जाती हैं । गेडियों को वृद्धि वलय के ठीक ऊपर इस प्रकार काटते हैं कि आंख के नीचे अंतः संधि का 9-10 सें.मी. भाग छूट जाए । नाशीकीटों से ग्रस्त और रोगों से संक्रमित गेडियों को प्रयोग में नहीं लाते हैं ।

इन्हें 0.1 प्रतिशत बैवस्टीन में 10 मिनट तक डुबोते हैं । गेडियों को मिट्टी में छेद करके अंगूठे से दबा कर इस प्रकार लगाते हैं, कि जड क्षेत्र मिट्टी की सतह के ऊपर रहे । गन्ने की मोटाई के अनुसार 600-800 गेडियों को लगाने के उपरांत गन्ने की सूखी पत्तियां या धान की पुआल फैला दी जाती है तथा इस पर सूखी भुरभुरी मिट्टी फैला देते हैं ।

अधिकांश आंखों से अंकुर फूट जाते हैं, तथा तीन-चार सप्ताह में 3-4 हरी पत्तियां निकल आती हैं । गन्ने की पौध (सेटलिंग) को इस अवस्था में प्रतिरोपित करने पर इसके जीवित बने रहने की प्रबल संभावना रहती है एवं अच्छे किल्लें भी बनते हैं ।

(ii) खेत में प्रतिरोपण:

भूमि की तैयारी सामान्य विधि से की जाती है । तैयार सेटलिंग को सावधानीपूर्वक उठाकर उसकी पत्ती को बालू अथवा कैंची से काट देते हैं । इन्हें बैवस्टीन 0.1 प्रतिशत विलयन में डुबोकर तुरत निकाल लेते हैं । सेटलिंग की कुछ मात्रा (लगभग 2000-2500 सेटलिंग) को नर्सरी में सुरक्षित रख लेते हैं ताकि आवश्यकता पडने पर खाली स्थानों को भरने में इनका प्रयोग किया जा सके ।

पौध प्रतिरोपण जमीन में नाली बनाकर अथवा समतल भूमि में किया जा सकता है । गन्ने की बुआई हेतु पंक्तियाँ बना ली जाती हैं तथा उसमें सेटलिंग को प्रतिरोपित कर देते हैं । 90×60 सें.मी. पंक्ति अंतराल के लिए 19,000 सेटलिंग तथा 75×45 सें.मी. पंक्ति अंतराल हेतु 29,000 सेटलिंग की आवश्यकता पडती है ।

सेटलिंग को मिट्टी में छेद करके अगले से छेद में दबा देते हैं तथा उस पर इस प्रकार मिट्टी ढक देते हैं कि उसका तने वाला 5 सें.मी. भाग जमीन के ऊपर रहे और इसके तुरत बाद पानी लगा देते हैं । प्रतिरोपण के 10 दिनों के पश्चात यदि कोई स्थान खाली दिखाई पडे तो उसे सुरक्षित नर्सरी से सेटलिंग लेकर भर देते हैं ।

(iii) फसल प्रबंध:

(a) क्षेत्र विशेष के लिए संस्तुत की गयी सुरक्षा विधियाँ अपनायी जानी चाहिए ।

(b) सूखी पत्तियों को निकालते रहना चाहिए क्योंकि इससे नाशीकीट का प्रकोप कम होता है साथ ही गन्ने को भी गिरने से रोका जा सकता है ।

(c) समय से मिट्टी चढाने से बधाई में आने वाली लागत को बचाया जा सकता है ।

(iv) अंतरालित प्रतिरोपण विधि (एस.टी.पी.) का प्रभाव:

(a) इस तकनीक से 4 टन बीज गन्ने (लगभग 70 प्रतिशत) की बचत होती है ।

(b) मिल योग्य गन्नों की संख्या 12 लाख गन्ना/हैक्टर प्राप्त हो जाती है ।

(c) एक ही आकार वाली समरूपी गन्ने की फसल तैयार होती है तथा औसत गन्ना भार अधिक होता है ।

(d) नाशीकीटों का प्रकोप और रोगों के संक्रमण की तथा गन्ना गिरने की आशंका कम हो जाती है ।

(e) गन्ने की उपज में सुधार (वृद्धि) । यह वृद्धि भारत के उष्णकटिबंधीय भाग में 40-50 प्रतिशत तथा उपोष्ण भाग में 20-25 प्रतिशत होती है ।

(f) बीज गन्ने और निर्मित गन्ने का अनुपात 1:10 से 1:40 तक बढ जाता है तथा आँख से आँख का अनुपात 1:40-1 : 60 से 1 : 50-1 : 200 तक बढ जाता है ।

(g) रोपण विधि से प्राप्त उपज की अपेक्षा अंतरालित प्रतिरोपण विधि से पेडी लेने पर उसकी उपज अच्छी होती है । अंतरालित प्रतिरोपण विधि (एस.टी.पी.) त्वरित बीज गन्नों की संख्या वृद्धि में अत्यंत सहायक एवं प्रभावशाली सिद्ध हुई है । यह त्रिस्तरीय बीज कार्यक्रम का अभिन्न अंग है । इस तकनीक का उपयोग कई अन्य देशों में भी किया जा रहा है ।

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