कैसे शीतकालीन खरबूजे खेती करने | How to Cultivate Winter Melon (पेठा)? in Hindi.
पेठा की खेती अपेक्षाकृत छोटे स्तर पर उत्तरी भारत में की जाती है । इसके कच्चे फलों का उपयोग रायता बनाने में किया जाता है । इसका प्रयोग सब्जी के रूप में करने के साथ ही साथ पेठा नामक एक लोकप्रिय मिठाई बनाने में भी किया जाता है ।
आगरे का पेठा मशहूर है और आगरा तथा आस-पास के क्षेत्रों में इसकी खेती व्यापक स्तर पर की जाती है । पेठा विटामिन ए, बी और सी का एक अच्छा स्रोत है । इसके खाद्य भाग में 96 प्रतिशत जल, 32 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.1 प्रतिशत प्रोटीन तथा 0.3 प्रतिशत रेशा पाया जाता है । पेठा की तासीर ठंडी होती है । गर्मियों में इसका सेवन लाभकारी रहता है । इसके बीजों को भून कर खाया जाता है तथा उनसे तेल भी निकलता है । कमजोर तंत्रिका वाले रोगियों के लिए यह लाभकारी है ।
उन्नत किस्में:
ADVERTISEMENTS:
व्यावसायिक दृष्टि से पेठे की किस्मों को गोल तथा अंडाकार किस्मों में बाट दिया जाता है प्रायः सभी प्रकार की किस्मों के फल 4-10 कि॰ग्रा॰ भार तक के होते है ।
पेठे की कुछ अच्छी किस्में निम्न प्रकार हैं:
1. कोयम्बूटर:
यह मध्यम आकार वाले फल वाली एक अगेती किस्म है । फल गोलाकार, कम बीज और अधिक गूदे वाले तथा 5-6 किग्रा॰ औसत भार वाले होते हैं । फसल को तैयार होने में 140 दिन लगते हैं । इस किस्म की औसत उपज लगभग 200 क्विंटल फल प्रति हैक्टर है ।
ADVERTISEMENTS:
2. एस-1:
यह किस्म पंजाब के लिए संस्तुत है । इस किस्म के फल मध्यम आकार के हरे होते हैं ।
3. मुदलिपाद:
यह किस्म तमिलनाडु के लिए संस्तुत है । इसके फल बड़े, हल्के हरे रंग के होते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
जलवायु:
गर्म जलवायु की फसल होने के कारण इसकी खेती मैदानी तथा कम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है । पौधों की अच्छी बढ़वार और फलो की निमार्ण के लिए अनुकूल उच्चतम तापमान 2527 डिग्री से. है । नमी की अधिकता होने पर इसके फल पनीले हो जाते हैं और इसकी गुणवत्ता घट जाती है । बुआई के समय तापमान 15.5-18 डिग्री से॰ होने पर बीजों का अंकुरण एक सप्ताह में हो जाता है ।
भूमि तथा उसकी तैयारी:
पेठे की खेती बलुई से लेकर मध्यम भारी तक अनेक प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है । बशर्ते कि सिंचाई और जल-निकास की समुचित सुविधाएँ उपलब्ध हों । बलुई दोमट मृदाओं में इसकी उपज अधिक और अपेक्षाकृत जल्दी मिल जाती है । पेठे की फसल जलाक्रान्ति के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है ।
अतः इसके लिए ऐसे खेत चुनने चाहिए जो आस-पास की भूमि से कुछ अधिक ऊंचाई पर हो । बुआई से पूर्व 4-5 बार हैरो चलाकर खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है । मिट्टी में से ककड़-पत्थर और पिछली फसल के अवशेष निकाल दिए जाते हैं । बुआई से पूर्व समुचित दूरी पर गड्ढे बनाकर उनमें भली-भांति सड़ी हुई गोबर की खाद 15 किलोग्राम प्रति गड्ढा की दर से भर जाती है ।
बीज तथा बुआई:
i. बुआई का समय:
अगेती फसल के लिए बुआई फरवरी-मार्च में की जा सकती है परन्तु इसके लिए सिंचाई की समुचित सुविधाओं का होना आवश्यक है । मुख्य फसल जून के आरम्भ से जुलाई के अंत तक बोई जाती है ।
ii. बीज बर:
एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में बोने के लिए 6-10 कि॰ग्रा॰ बीज पर्याप्त होते हैं ।
iii. बुआई की विधि:
पेठे की खेती काफी अधिक खाद उर्वरक युक्त छोटे (30 सेमी॰ व्यास) और उठे हुए थालों में की जाती है । फरवरी-मार्च की बुआई के लिए ऐसे थाले 1.5 ×1 मीटर की दूरी पर और जून-जुलाई की बुआई के लिए 15 × 15 मीटर की दूरी पर बनाये जाते हैं । प्रत्येक थाले में 2.5-3 सेमी. की गहराई पर 4-5 बीज बोये जाते हैं ।
खाद तथा उर्वरक:
पेठे को खाद और उर्वरक सम्बन्धी आवश्यकता अधिक होती है । यह मात्रा मृदा के प्रकार जलवायु और किस्म पर निर्भर है । खेत की तैयारी के समय 150-175 क्विंटल भली-भांति सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलाई जाती है ।
इसके अतिरिक्त अधिक मात्रा के रूप में 40 किग्रा फॉस्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश युक्त उर्वरक भी खेत की तैयारी के समय मिलाये जाते हैं । खाद उर्वरकों को बुआई के लिए खोदे गये गड्ढों में देना अधिक किफायती रहता है । बुआई के 40 दिन बाद प्रति हैक्टर 25 किलोग्राम नाइट्रोजनधारी उर्वरक टॉप ड्रेसिंग विधि से दिया जाता है ।
सिंचाई तथा जल-निकास:
पेठे की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती । गर्मियों की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई की जरूरत पड़ती है । एक सिंचाई अंकुरण के तुरन्त बाद और फिर 8-10 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना पर्याप्त होता है तथापि इस फसल को जलाक्रान्ति से बचाना आवश्यक होता है । इसके लिए समुचित निकासी व्यवस्था विशेषकर बरसात में करना आवश्यक होता है ।
निराई-गुड़ाई:
बढ़वार की आरंभिक अवस्था में फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना लाभकारी रहता है इसके लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए । समय पर निराई-गुड़ाई करने से उपज तथा फलों के आकार दोनों में ही काफी वृद्धि होती है । बेलों के पूर्ण आकार का हो जाने पर निराई-गुड़ाई बन्द कर देनी चाहिए और बड़े आकार के खरपतवारों को समय-समय पर हाथों से खींच कर निकाल देना चाहिए ।
सहारा देना:
पेठा को सहारे की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती । केवल अधिक गीली भूमि के सम्पर्क में आने से फलों को बचाना चाहिए ।
फलों की तुड़ाई:
पेठा की फसल मुख्यतः मिठाई बनाने के लिए उगाई जाती है इसके लिए भली- भांति परिपक्व हल्के हरे या सफेद रंग के फल तोड़े जाते हैं । सब्जी अथवा रायता बनाने के लिए कच्चे हरे फल तोड़ सकते हैं फलों को किसी तेज धार वाले चाकू से तोड़ा या काटा जाता है ।
उपज:
पेठा की उपज 200-400 क्विंटल प्रति हैक्टर (औसत 250 क्विंटल) के बीच होती है । ग्रीष्मकालीन फसल जून माह में तैयार होती है और उस समय वर्षा आरम्भ हो जाने के कारण उसे तुरन्त बाजार भेजना जरूरी होता है ।
बाजार भेजने से पूर्व फलों को अच्छी तरह धोकर और सुखाकर बोरों में भरकर बांध दिया जाता है । बरसाती फसल सितम्बर-अक्टूबर में तैयार होती है अतः जाड़ों के दौरान किसी छायादार स्थान पर सामान्य तापमान पर रखा जा सकता है ।