Read this article in Hindi to learn about the production of butter. Also learn about the causes of defects in butter with its prevention.
बटर उत्पादन विधि (Production of Butter):
(1) दूध या क्रीम की प्राप्ति (Receiving Milk or Cream):
डेरी प्लेटफार्म पर प्राप्त दूध या क्रीम का सर्वप्रथम परीक्षण कर उसका श्रेणीकरण (Grading) कर लिया जाता है ।
इसके लिए डिब्बे का ढक्कन खोलकर उसकी गन्ध तापक्रम, बाह्य पदार्थों की उपस्थिति तथा रंग आदि देखते हैं तथा क्रीम को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटते हैं:
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1. प्रथम श्रेणी क्रीम-मीठी या थोड़ी सी खट्टी क्रीम ।
2. द्वितीय श्रेणी क्रीम-खट्टी या फटी हुई क्रीम ।
3. अस्वीकृत क्रीम-अधिक खट्टी या किण्वित क्रीम ।
परीक्षण के आधार पर दूध या क्रीम को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं तथा स्वीकृत पदार्थ का भुगतान किया जाता है । इसके बाद क्रीम को, रासायनिक परीक्षण के लिए नमूना रख कर, तोल लेते हैं । अब प्राप्त क्रीम की 5°C तापक्रम पर ठण्डा करके प्रसंस्करण (Processing) तक भंडारित करते हैं ।
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यदि डेरी पर दूध प्राप्त किया गया है तो दूध को 35-40°C तापक्रम तक गर्म करके अपकेन्द्री विधि (Centrifugal Method) द्वारा उससे क्रीम निकाल ली जाती है ।
(2) क्रीम उदासीनीकरण (Cream Neutralization):
इसके लिए सर्वप्रथम क्रीम का अम्लता परीक्षण करते हैं । यदि अम्लता 0.20 प्रतिशत से अधिक है तो उसे क्रीम के सुरक्षित पास्तुरीकरण के लिए 0.14 से 0.16% अनुमापनीय अम्लता तक उदासीन किया जाता है ।
अधिक खट्टी क्रीम का प्रयोग करने से- (i) केसीन के फटने के कारण मट्ठा में वसा की हानि अधिक होती है, (ii) मक्खन में एक खट्टी, खराब व अनचाही गन्ध आ जाती है तथा (iii) मक्खन में नमक मिला कर शीतगृह में संग्रह करने से उसमें मछली जैसी गन्ध उत्पन्न हो जाती है ।
ADVERTISEMENTS:
Procedure:
उदासीनीकरण का उचित लाभ प्राप्त करने के लिए ठीक विधि का प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है । इसके लिए क्रीम की अम्लता, सुरक्षित पास्तुरीकरण की अम्लता का स्तर, उदासीनकारी का प्रकार, मात्रा तथा मिलाने की विधि का ठीक-ठीक ज्ञान होना अनिवार्य होता है ।
क्रीम को उदामीन करने के लिए प्रायः चूना Calcium Hydroxide, Magnesium Hydroxide तथा सोडा (Caustic Soda, Sodium Carbonate, Sodiumbi-car-Bonate and Sodium Sesqui Carbonate) का प्रयोग किया जाता है ।
उदासीनकारी कारक (Neutralizer Factor-N.F):
एक इकाई लक्टिक अम्ल को उदासीन करने के लिए प्रयुक्त उदासीनकारी की उसी इकाई में आवश्यक मात्रा को, उस उदासीनकारी पदार्थ का उदासीनकारी कारक कहते हैं ।
दुःख उद्योग में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न उदासीनकारियों के लिए उनके उदासीनकारी कारको को गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है:
निम्नलिखित अभिक्रियाएँ क्रीम की उदासीनीकरण को प्रदर्शित करती है तथा इनका उपयोग करके उदासीनकारी कारक की गणना की जाती है:
i. सोडियम-बाई-कार्बोनेट:
ii. सोडियम कार्बोनेट:
iii. सोडियम हाइड्रोक्साईड:
iv. कैल्शियम हाइड्रोक्साईड:
v. मैग्निशियम हाइड्रोक्साईड:
अभिक्रिया (1) से हम देखते हैं कि 84 ग्राम सोडा 90 ग्राम लैक्टिक अम्ल को उदासीन करता है इसी प्रकार से अभिक्रिया 4 में 74 ग्राम चूना 180 ग्राम लैक्टिक अम्ल को उदासीन वारता है । इस प्रकार से 1 ग्राम लैक्टिक अम्ल को उदासीन करने के लिए क्रमश: 0.93 ग्राम सोडा तथा 0.41 चूना की आवश्यकता होगी । ये मात्रायें इन उदासीनकारियों का उदासीनकारी कारक (Neutralizer Factor) कहलाती हैं ।
क्रीम में अम्लता का वर्गीकरण:
क्रीम में पायी जाने वाली अम्लता को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:
a. क्रीम अम्लता (Cream Acidity),
b. सीरम अम्लता (Serum Acidity) ।
क्रीम की अम्लता केवल सीरम (वसा रहित पदार्थ) में होती है । अत: क्रीम की वसा प्रतिशत में परिवर्तन होने का सीधा प्रभाव सीरम तथा क्रीम की अम्लता पर पड़ता है ।
क्रीम अम्लता तथा क्रीम सीरम अम्लता में निम्नलिखित सूत्र द्वारा सम्बन्ध दर्शाया जा सकता है:
Percent Cream Acidity/Percent Cream Serum Acidity = 100 – Percent Fat in Cream/100
क्रीम की अम्लता ज्ञात करने के लिए ताजी क्रीम के नमूने को उबालते हैं । यदि क्रीम खट्टी है तो उसमें उदासीनकारी की ज्ञात मात्रा मिलाकर उबालते हैं जिससे वह फटने न पाये । उबालने से नमूने में उपस्थित CO2 निकल जाती है । अन्यथा यह Carbonic Acid के रूप में NaOH से क्रिया करके Titrable Acidity बढ़ा देती है ।
CO2, Sodium Bicarbonate Neutralizer के साथ कोई क्रिया नहीं करती । फलस्वरूप Over Neutralization हो जोता है । अम्लता ज्ञात करने के लिए NaOH उदासीनकारी तथा Phenolphthalein सूचक का प्रयोग करते हैं ।
क्रीम की अम्लता सही-सही मालूम करके निम्नलिखित सूत्र द्वारा उदासीनकारी की मात्रा ज्ञात कर लेते हैं:
उदासीनकारी का मिलाना:
उदासीनकारी की मात्रा ज्ञात करके उसे क्रीम में मिलाया जाता है । परन्तु उदासीनकारी को कभी भी सूखा नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा वह मिल नहीं पायेगा । इसके लिए उदासीनकारी की ठीक मात्रा तोल कर, 10-15 गुने साफ पानी में घोल लिया जाता है ।
इस विलयन को क्रीम में इस प्रकार मिलाते हैं कि वह जितना जल्दी हो सके क्रीम के साथ मिल जाये । इसके लिए विलयन मिलाते समय क्रीम को अच्छी प्रकार जोर-जोर से चलाते रहते हैं ।
दोहरा उदासीनीकरण (Double Neutralization):
क्रीम में अधिक अम्लता होने पर उसमें उदासीनकारी की अधिक मात्रा मिलाने की आवश्यकता होती है, अत: क्रीम में उस विशिष्ट उदासीनकारी की गन्ध उत्पन्न हो जाती है । अत: अधिक खट्टी क्रीम को उदासीन करने के लिए चूना तथा सोडा दोनों का प्रयोग करते हैं ।
दोनों वर्गों के उदासीनकारियों के प्रयोग करने की यह विधि दोहरा उदासीनीकरण कहलाती है । इस विधि में पहले चूना उदासीनकारी का प्रयोग 0.3 से 0.4 प्रतिशत तक क्रीम अम्लता को कम करने में करते हैं ।
इसके बाद में थोड़ी मात्रा में अम्लता के इच्छित स्तर तक उदासीन करने के लिए सोडा का प्रयोग किया जाना है । यदि पहले अधिक मात्रा में सोडा मिलाया जाये तो अधिक CO2 का उत्पादन होता है । इसे कम रखने हेतु सोडा बाद में कम मात्रा में मिलाया जाता है ।
(3) क्रीम का मानकीकरण (Cream Standardization):
मक्खन बनाने के लिए क्रीम में 35-40 प्रतिशत वसा उचित रहता है । अत: अधिक वसा युक्त क्रीम में स्वच्छ तथा ताजा पानी या सप्रेटा दूध मिलाकर वसा प्रतिशत इच्छित स्तर तक कम कर लेते हैं । क्रीम का यह मानकीकरण Pearson’s Square विधि से किया जाता है ।
यहां इसका एक उदाहरण दिया गया है:
उदाहरण:
1,000 कि.ग्रा. 60% वसा युक्त क्रीम को 35% वसा युक्त क्रीम पर मानकीकृत कीजिये तथा मिलाये गये सप्रेटा दूध की मात्रा भी बताईये ।
Solution:
Amount of Cream = 1000 kg
Fat % in Cream = 60%
Fat in Standardized Cream = 35%
Fat in Separated Milk = 0%
इस प्रकार भार के अनुसार 35 भाग क्रीम तथा 25 भाग S.M. मिलाने पर प्राप्त क्रीम विलयम में 35% वसा होगा ।
S.M. की मात्रा ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं:
अत: 60% वसा युक्त 1000 कि.ग्रा. क्रीम को 35% वसा पर मानकीकृत करने के लिए 714.8 कि.ग्रा. S.M. मिलाना होगा तथा मानकीकृत क्रीम की कुल मात्रा 1714.28 कि.ग्रा. होगी ।
(4) पास्तुरीकरण (Pasteurization):
क्रीम में उपस्थित रोगाणुओं को नष्ट करने, एन्जाईम्स को अक्रियाशील बनाने तथा वाष्पशील अपसुवास समाप्त करने हेतु क्रीम को निश्चित तापक्रम पर निश्चित समय के लिए गर्म करते हैं ।
इसकी 3 विधियां हैं:
i. Holding Method- क्रीम को 20 मिनट के लिए 71°C ताप पर गर्म करके तुरन्त ठण्डा करते हैं ।
ii. HTST (Plate) Method- क्रीम को 15-16 सैकिण्ड के लिए 95-100°C तापक्रम पर गर्म करके तुरन्त ठण्डा करते हैं ।
iii. Vacreation- क्रीम को 6-8% वसा स्तर तक पलता करके Vacreator से गुजारते हैं । इस विधि में क्रीम में उपस्थिति सभी वाष्पशील अपसुवास समाप्त हो जाती है ।
(5) ठण्डा तथा ठण्डे ताप पर रखने (Cooling and Ageing):
पास्तुरीकरण के बाद क्रीम को 5-10°C तापक्रम पर ठण्डा करके 2 से 4 घन्टे तक रखते हैं । इस क्रिया में वसा कण ठोस हो जाते हैं तथा मखनिया दूध में वसा की हानि कम होती है । क्रीम को शीघ्रता से ठण्डा (Shock Cooling) करने से बनाये गये मक्खन का गठन (Body) ढीला (Weak) बनता है । ठण्डे ताप पर रखने (Ageing) से मथने की क्रिया आसान तथा जल्दी हो जाती है ।
(6) क्रीम का किण्वन (Ripening of Cream):
इच्छित सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा क्रीम का किण्वन पकाना (Fermentation) पकाना (Ripening) कहलाता है । पकाने की क्रिया में जीवाणुओं द्वारा क्रीम में उपस्थित लक्टोज किण्वित (Fermented) होकर लौक्टीक अम्ल में विघटित हो जाता है । यह किण्वन Lactococcus Lactis तथा Lactococcus Cremoris द्वारा होता है ।
मक्खन में सुवास सिट्रिक अम्ल का किण्वन होकर Diacetyle, Acetyle Methyl Carbinol तथा β-Butylene Glycol के बनने से होती है । सिट्रिक अम्ल का किण्वन Leuconostoc Citrovorum तथा Lenc. Dextranicum द्वारा होता है । अत: अच्छी Ripening के लिए जामन में अम्लोत्पादक तथा सुरभिउत्पादक, दोनों प्रकार के जीवाणु उपस्थित होने चाहिए ।
Diacetyle का 0.7 से 1.5 Parts Per Million उचित गन्ध (Flavour) के लिए मक्खन में पर्याप्त होता है । यह सुरभिकारक ताजी क्रीम में नहीं होता है । अत: ताजी क्रीम से मक्खन बनाने के लिए संश्लेषित गन्ध (Synthetic Flavour) का प्रयोग किया जाता है ।
क्रीम को पकाने के लिए उपर्युक्त जीवाणुओं युक्त जामन क्रीम की मात्रा का लगभग 0.5 से 2.0% क्रीम में मिलाकर 20-22°C तापक्रम पर 15-16 घन्टे के लिए रख देते हैं । सामान्य रूप से पकी क्रीम में केसीन का स्कंन्दन हो जाता है तथा लगभग 2.5 PPM Diacetyle बनता है । पकने के समय Diacetyle के साथ थोड़ी मात्रा में एसीटिक तथा प्रोपियोनिक अम्ल भी बनते हैं ।
(7) मथने (Churning):
मथने से अभिप्राय: क्रीम को उचित तापक्रम पर हिलाकर, उसमें उपस्थित वसा कणों को मक्खन के रूप में अलग करने से होता है ।
क्रीम को मथने के तीन सिद्धान्त हैं:
(i) Foam Theory:
मथने के समय झाग (Foam) बनते हैं जिनकी सतह पर वसा के कण एकत्र होते रहते हैं तथा झाग के फूटने पर ये वसा कण आपस में चिपक कर मक्खन कण बना लेते हैं । यह इस बात से सिद्ध होता है कि झागों में वसा की सान्द्रता शेष क्रीम की वसा सान्द्रता में से अधिक होती है ।
परन्तु सोमर के अनुसार झागों में अधिक वसा, झाग बनने के कारण नहीं बल्कि भारी क्रीम में वसा कणों के नीचे वायूकोशिका निर्मित होने से हल्का होने के कारण वसा कणो के ऊपर उठने से होती है ।
क्रीम को लगातार हिलाते रहने से एक समरूप मिश्रण बनता है । कुछ परीक्षणों में जैसा कि मक्खन बनाने की सतत विधि में झाग बिलकुल नहीं बनते हैं । अत: यह सिद्धान्त सर्वमान्य नहीं है ।
(ii) Phase-Reversal Theory (1917):
क्रीम को हिलाते रहने से उसमें उपस्थित वसा कण आपस में टकराकर समाचयित (Coalesce होकर गुच्छे के रूप में बढ़ते रहते हैं जिसके कारण वसा कणों का कुल Surface Area इतना छोटा हो जाता है कि वे मखनिया दूध में स्थिर अवस्था में नहीं रह पाते तथा अलग होने लगते हैं ।
इस अवस्था को Breaking Stage कहा जाता है तथा इस अवस्था पर Fat-in-Water Emulsion अचानक Water-in-Fat-Emulsion में बदल जाता है । चूंकि मक्खन वास्तविक Water-in-Fat-Emulsion नहीं है, अत: यह सिद्धान्त भी सर्वमान्य नहीं है ।
(iii) King’s Modern Theory:
मक्खन बनाने के सिद्धान्त की वास्तविक व्याख्या उपरोक्त दोनों सिद्धान्तों को मिलाकर निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है:
(a) कम ताप (9-11°C) पर क्रीम में उपस्थित वसा कण गुच्छों के रूप में एकत्रित हो जाते हैं ।
(b) मथते समय ये गुच्छे टूटते हैं, हीलने से झाग बनते हैं तथा वसा कण झाग में उपस्थित हवा के बुलबुले को सतह पर एकत्र हो जाते हैं ।
(c) बुलबुले की सतह पर वसा कणों का एक दूसरे के ऊपर रगड़ने तथा गति करने से उनकी Phospho-Lipid-Protein Complex की बनी Emulsion Protecting सतह टूट जाती है । जिससे ये कण चिपक कर बड़े-बड़े कण बनाते हैं जो मक्खन कणों के रूप में दखाई देने लगते हैं ।
(d) वर्किंग के समय वसा कणों के एक दूसरे के ऊपर रगड़ने से उत्पन्न घर्षण तथा दबाव के कारण कुछ तरल वसा निकलती हैं तथा कुछ ठोस वसा कण टूटते है जो छोटी-छोटी पानी की बूदों, हवा के छोटे बुलबुलों तथा अनछुए वसा को लपेट कर अपने आप में बांध लेते हैं ।
चर्न (Churn):
क्रीम को एक ढोलनुमा बर्तन में मथा जाता है जिसे चर्नर कहते हैं ।
चर्न 2 प्रकार के होते हैं:
A. Rotating Churn:
ये घुमाये जाते हैं तथा इस वर्ग के चर्न भी 2 प्रकार के होते हैं:
(i) Barrel Churn- ये लकड़ी के बने होते हैं । एक स्टेंड पर कसे रहते हैं तथा हैडिल से घुमाया जाता है । ये क्रीम की अधिक मात्रा के लिए प्रयोग होते हैं ।
(ii) Alfa-Steel Churn- यह स्टील का बना होता है । घुमाते समय एक स्थान पर स्थिर रखने हेतु इसमें एक डैशर फिट रहता है ।
B. Dash Churn:
ये एक स्थान पर स्थिर रहते हैं तथा पूरे घुमाये नहीं जा सकते । इनके अन्दर लगे डैशर की सहायता से मथने की क्रिया की जा सकती है ।
ये भी 2 प्रकार के होते हैं:
(i) Hildesheim Plunger Churn- धातु के बने इस चर्न में लगे एक Plunger को चलाकर क्रीम को मथा जाता है ।
(ii) Dazey Glass Churn- कांच के बने इस चर्न के अन्दर एक डैशर लगा होता है जिसे हैंडिल की सहायता से घुमा कर क्रीम को मथा जाता है ।
चर्न तथा वर्कर की तैयारी:
चर्म को पहले ठण्डे पानी से धोकर, सोडा मिले गर्म पानी से साफ करना चाहिए । अब चर्न को उबलते गर्म पानी से ब्रुश द्वारा साफ करके फिर ठण्डे पानी से धोएं । अब चर्न को ठण्डा करने हेतु उसमें बर्फ का पानी भरकर छोड़ दें ।
वर्कर को ठण्डे पानी से धोकर उस पर नमक रगड़ना चाहिए । जिससे कार्य के समय मक्खन लकड़ी से नहीं चिपकेगा । फिर क्रमश: सोडे का पानी, उबलता पानी तथा ठण्डा पानी धोने के लिए प्रयोग करें ।
बाद में इसमें भी बर्फ का पानी, ठण्डा करने के लिए, भर कर छोड़ दें । चर्न तथा वर्कर के लिए उबलता पानी उपलब्ध न होने पर क्लोरीन के प्रयोग के बाद दोनों सायन्त्रों को ठंडे स्वच्छ जल से अवश्य धोयें जिससे क्लोरीन का प्रभाव समाप्त हो जाता है ।
चर्न में क्रीम भरना:
क्रीम को 1/15 से 1/30” व्यास के छिद्रों वाली छलनी से छानकर स्वच्छता के साथ चर्न में उसके 1/3 से 1/2 भाग तक भरा जाता है क्रीम में वसा प्रतिशत 30-35 उपयुक्त होती है । मथना शुरू करने से पूर्व क्रीम में 0 से 250 ml या अधिक प्रति 100 कि.ग्रा. मक्खन वसा की दर से मक्खन रंग (Annatto) मिला लेना चाहिए । मक्खन रंग, मक्खन में आकर्षक पीला रंग उत्पन्न करता है ।
बाजार में 2 तरह के मक्खन रंग उपलब्ध हैं:
A. Butter Colour of Vegetable Origin:
(1) Annatto तथा
(2) Carotene
B. Butter Colour of Mineral Origin:
(1) Yellow AB (Benzene Azo-B-Naphthyl-Amine) तथा
(2) Yellow OB (Ortho Toluene Azo-B-Napgtyl-Anime) ।
ये तेल में घुलनशील Coal Tar Dyes होते हैं जिन्हें तेल में उबाल कर छान कर वानस्पतिक रंगों की भांति प्रयोग करते हैं । खनिज रंग वानस्पतिक रंगों से अधिक स्थायी होते हैं ।
चर्न का संचालन (Operating the Churn):
क्रीम को मथने के लिए उचित तापक्रम 9-11°C होता है । चर्न में क्रीम का ताप स्थिर करके 5-10 मिनट तक घुमा कर उसमें एकत्र हुई गैसों को टोटी खोल कर बाहर निकाल दिया जाता है । मथने के समय अन्दर का तापमान 1-3°C तक बढ़ जाता है ।
अत: Breaking Stage (जब Spy Glass साफ हो जाये) आने पर चर्न में ठण्डा पानी ताप कम करने के लिए मिलाया जाता है, इसे Break Water कहा जाता है । अब क्रीम को मथना तब तक जारी रखते हैं, जब तक कि मक्खन के कण मटर के दाने के बराबर न हो जाये ।
क्रीम मथने में कभी-कभी कुछ कठिनाइयां आ जाती हैं जिनके प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
(a) वसा गोलिकाओं की अधिक कठोरता ।
(b) वसा गोलिकाओं का छोटा आकार ।
(c) क्रीम में वसा प्रतिशत का अधिक कम होना ।
(d) चर्न को क्षमता से अधिक भरना ।
(e) चर्न में अधिक कम तापक्रम होना ।
(f) क्रीम में लाईपेज एन्जाईम की अधिक मात्रा होना ।
कभी-कभी मखनिया दूध में वसा की हानि निम्नलिखित कारणों से अधिक होती हैं:
(a) क्रीम में वसा प्रतिशत अधिक कम होना ।
(b) वसा कणों का अधिक छोटे आकार का होना ।
(c) क्रीम अम्लता कम या अधिक होना ।
(d) वसा का मुलायम होना ।
(e) क्रीम को मथने से पहले ठण्डा करके न रखना ।
(f) चर्न का अधिक या कम भरना ।
जहां तक सम्भव हो सके मथते समय उपरोक्त सभी कारणों को दूर करना चाहिए जिससे क्रीम ठीक समय (30 से 60 मिनट) में बिना किसी कठिनाई के मथी जा सके तथा मखनिया दूध में भी वसा की हानि न होवे ।
(8) धुलाई (Washing):
मक्खन के कण मटर के दाने के आकार के होने पर मथना बन्द करके टोटी खोल कर मखनियां दूध निकाल लेते हैं । चर्न में मखनिया दूध के आयतन के बराबर 7-8°C तापक्रम का पानी डाल कर चर्न को चलाते है तथा 5 से 7 मिनट तक चर्न को चलाकर पानी भी निकाल दिया जाता है । सामान्यतया एक बार की धुलाई काफी होती है । धुलाई न करने से मक्खन में मखनिया दूध रह जाता है । इसके विपरीत अधिक धुलाई के कारण मक्खन का सुवास तथा रंग कम हो जाता है ।
(9) नमक तथा कार्य (Salting and Working):
मक्खन का संचयी गुण (Keeping Quality), स्वाद तथा Over Run बढ़ाने के लिए, मक्खन में वसा का 2 से 2.5% तक नमक मिलाया जाता है । अच्छी गुणवत्ता वाला नमक मक्खन में सुखा, गीला या विलयन (Brine) के रूप में मिलाया जा सकता है ।
सुखा या गीला नमक मक्खन को वर्कर पर लाने के बाद मिलाया जाता है । नमक मिलाते समय रोलर चलाते रहे । नमक को मक्खन में रोलर के नीचे 3 बार में मिलाना चाहिए । इससे नमक सामान रूप से मिल जाता है ।
वर्किंग, मक्खन से पानी की अधिक मात्रा निकालने, नमक ठीक प्रकार मिलाने, मक्खन के बदन को सुधारने तथा उसमें सुवास बनाये रखने के लिए किया जाता है । वर्कर का तापक्रम मक्खन से 2-3°C कम होना चाहिए । अधिक ताप पर मक्खन वर्कर से चिपक जाता है ।
वर्किंग कम या अधिक दोनों ही हानिकारक होते हैं । कम वर्किंग से नमक ठीक से नहीं मिल पाता, नमी अधिक रह जाती है जबकि अधिक वर्किंग होने पर मक्खन के कण नष्ट हो कर वह ग्रीस जैसा बन जाता है । साथ ही नमी अधिक निकल जाने से ओवर रन कम होता है तथा सुवास भी कम हो जाता है ।
वर्किंग के समय मक्खन में हवा प्रवेश कर जाती है जिसके कारण उसका रंग हल्का पड़ जाता है । वर्किंग किये हुए मक्खन में सामान्यतया 0.5 से 10 ml/100 gm Butter तक हवा होती है ।
(10) बटर पैकिंग (Packaging of Butter):
वर्किंग के बाद बटर प्रिंट के द्वारा मक्खन की 25, 50, 100, 200 या 500 ग्राम की टिकिया बना कर बटर पेपर में लपेट दी जाती है । ये प्राय: आयताकार होती है । बटर पैकिंग के लिए अब Semi-Automatic या Fully Automatic Machines भी आ गयी । इनमें Benhil and Kustner (जर्मन) तथा SIG (Swiss) प्रमुख है ।
(11) संग्रह (Storage):
इन छोटे पैकेटस को बड़े डिब्बों में पैक करके शीत यह में -23 से -29°C तापक्रम पर संग्रह किया जाता है । अधिक लम्बे समय तक संग्रह करने से मछली जैसी गन्ध उत्पन्न हो जाती है ।
(12) Yield of Butter:
यह क्रीम में उपस्थित वसा तथा मक्खन में उपस्थित नमी की मात्रा पर निर्भर करती है ।
मक्खन की पैदावार को निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:
मक्खन (कि.ग्रा.) = क्रीम में वसा की मात्रा × (100 + मक्खन में प्रतिशत ओवरन)/100
यदि मक्खन में ओवर रन 20 प्रतिशत तथा चर्न में 400 kg. वसा हो तो उत्पादित मक्खन की मात्रा = 400 × 120/100 = 480 kg.
मक्खन की पैदावार, (y = F × 1.2) द्वारा भी ज्ञात की जा सकती है यदि मक्खन में ओवर रन 20 प्रतिशत निश्चित हो ।
(13) Over Run in Butter:
मक्खन की वह मात्रा जो खरीदे गये वसा से अधिक बनती है ओवर रन कहलाती है । इसमें वसा के अतिरिक्त सभी पदार्थ आते हैं ।
इसे निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके प्रतिशत में निकाला जाता है:
Percent Over Run = Amount of Butter (kg.) Made – Amount of Fat (kg) in Churn/Amount of Fat (kg) in Churn × 100
(14) Judging and Grading of Butter:
मक्खन का मूल्यांकन साफ, हवादार प्रकाशयुक्त तथा स्वच्छ कमरे में करना चाहिए । कमरे का तापक्रम 16°C तथा वह किसी भी प्रकार की बाह्य गन्ध से मुक्त होना चाहिए । मक्खन के मूल्यांकन से पूर्व उसका Tempering करना चाहिए अर्थात शीतग्रह में से निकाल कर कमरे से उचित ताप तक आने के लिए रख देते हैं ।
Tempering के बाद मक्खन की टिक्की के लगभग केन्द्र से Butter Trier की सहायता से नमूना लेते हैं । नमूने को सर्वप्रथम सूंघ कर उसकी गंध देखते हैं । मक्खन के एक टुकड़े को अंगूठे तथा अंगुली के बीच घुमाकर दबाते हुए उसका बदन तथा गठन का मूल्यांकन करते हैं ।
इसी समय मक्खन के रंग का परीक्षण भी कर लेते हैं । एक टुकड़ा मुख में डाल कर, धीरे-धीरे चबाते हुए मक्खन का पिघलने का ढंग तथा अघुलनशील नमक की उपस्थिति का मूल्यांकन करते हैं । इसी समय मक्खन का स्वाद तथा गन्ध भी नोट कर लेते हैं ।
हर एक नमूने के परीक्षण के उपरान्त 1 प्रतिशत थोड़े गर्म नमकीन घोल से कुल्ला करके मुंह को साफ कर लेना चाहिए । अच्छे मक्खन का पैकिंग साफ-स्वच्छ तथा आकर्षक होना चाहिए ।
नमक ठीक प्रकार से घुला हुआ तथा रंग पूरे मक्खन में एकसार हो । Body सरल व मोम जैसी चिकनी, Texture सघन जालनुमा होना चाहिए । Texture में दानों के मध्य पानी दिखाई नहीं देना चाहिए । सुवास हल्की मीठी साफ तथा सुहावनी होनी चाहिए ।
मक्खन की कमियां-कारण तथा निवारण (Defects in Butter-Causes and Prevention):
मक्खन के बनाते समय या बाद में कुछ कमियां रह जाती हैं ।
जिनका कारण तथा निवारण तालिका के रूप में निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया गया है:
तालिका : मक्खन की कमियां व उनका निवारण:
A. सुवास क दोष:
i. अम्लीय या खट्टा (Sour):
कमियां:
1. खट्टी क्रीम का प्रयोग ।
2. क्रीम का कम उदासीनीकरण ।
निवारण:
1. कम खट्टी क्रीम का प्रयोग करें ।
2 क्रीम को ठीक से उदासीन करें ।
ii. क्षारीय (Neutralizer or Alkaline):
कमियां:
1. क्रीम का अधिक उदासीनीकरण ।
निवारण:
1. सामान्य उदासीनीकरण ।
iii. तीखा (Bitter):
कमियां:
1. दुग्ध पशुओं को तीखा घास खिलाना ।
2. क्रीम प्रथक्कीकरण के समय लाईपेज की क्रिया ।
3. क्रीम में Proteolytic Bacteria की वृद्धि ।
निवारण:
1. तीखे घास न खिलाना ।
2. क्रीम पृथक्कीकरण के समय ताप 100-120°F से कम या अधिक रख के लाईपेज की क्रिया को रोकना ।
3. क्रीम संग्रह 5°C से कम ताप पर करके इनकी वृद्धि को रोकना ।
iv. पनीरीय (Cheesy):
कमियां:
1. Proteolytic Bacteria की वृद्धि तथा उनके द्वारा Casein का तोड़ना ।
निवारण:
1. इस जीवाणुओं की वृद्धि को रोकना ।
v. जली गन्ध (Cooked):
कमियां:
1. पास्तुरीकरण के समय क्रीम को अधिक तापक्रम पर गर्म करना ।
निवारण:
1. सामान्य पास्तुरीकरण ।
vi. चारे व घास की गन्ध (Feed & Weed Flavour):
कमियां:
1. दूध निकालने के 2-3 घन्टे पहले पशु को Milk Tainting चारा खिलाना ।
निवारण:
1. ऐसा चारा न खिलाए यदि खिलाना ही पड़े तो दुग्ध दोहन के तुरन्त बाद
खिलाए ।
2. क्रीम का Vacuum Pasteurization करें ।
vii. मत्सीय (Fishy):
कमियां:
1. अम्लीय नमकीन मक्खन के सम्पर्क में लोहा या तांबा का होना ।
निवारण:
1. संग्रहालय में बगैर नमक का मक्खन रखे ।
viii. स्वाद हीनता (Flat):
कमियां:
1. मक्खन में नमक तथा डाईएसीटाइल की कम मात्रा का होना ।
निवारण:
1. संग्रहालय में बगैर नमक का मक्खन रखे ।
viii. स्वाद हीनता (Flat):
कमियां:
1. मक्खन में नमक तथा डाईएसीटाइल की कम मात्रा का होना ।
निवारण:
1. उचित पास्तुरीकरण द्वारा लाईपेज को अक्रियाशील बनाना ।
ix. विकृतगन्ध (Rancid):
कमियां:
1. दुग्ध वसा का लाइपेज द्वारा जल अपघटन ।
निवारण:
1. उचित पास्तुरीकरण द्वारा लाइपेज को अक्रियाशील बनाना ।
x. आक्सीकृत/वसीय/धात्विक (Oxidized/Oily/Metallic):
कमियां:
1. प्रकाश की उपस्थिति में दुग्ध वसा का लोहा तथा तांबा के साथ सम्पर्क में आना ।
निवारण:
1. मक्खन को उचित धातु के बर्तन में संग्रह करना ।
2. क्रीम का Vacuum Pasteurization.
xi. बासी (Stale):
कमियां:
1. निम्न गुण युक्त क्रीम को मथने से पहले लम्बे समय तक रखना ।
2. मक्खन को अपर्याप्त कम ताप पर लम्बे समय तक संग्रह करना ।
निवारण:
1. कम समय तक संग्रह ।
2. संग्रहण का ठीक तापक्रम रखना ।
xii. खमीरी (Yeasty):
कमियां:
1. बासी तथा Yeasty Cream से मक्खन बनाना ।
निवारण:
1. मथने के लिए अच्छी कौम का उपयोग ।
B. स्वरूप तथा गठन के दोष (Body and Texture Defects):
i. मृदुकण (Crumbly):
कमियां:
1. कम वर्किंग ।
2. वसा संगठन पर मौसमी प्रभाव ।
3. क्रीम को उत्पादन के बाद तुरन्त ठंडा करना ।
निवारण:
1. पर्याप्त वर्किंग ।
2. संसाधन में ताप नियन्त्रण ।
3. क्रीम या मक्खन का Shock Cooling न होने दें ।
ii. ग्रीसी (Greasy):
कमियां:
1. अधिक वर्किंग ।
2. धोने के पानी का अधिक तापमान ।
निवारण:
1. प्रयाप्त वर्किंग ।
2. धोने का पानी ठण्डा रखे ।
iii. लेही (Gummy):
कमियां:
1. उच्च गलनांक वाली अधिक वसा होना ।
निवारण:
1. पशुओं को वे चारे न खिलाये जिनमें उच्च गलनांक वाली वसा अधिक हो ।
iv. स्रावी (Leaky):
कमियां:
1. कम वर्किंग ।
2. मथने के समय अधिक तापक्रम ।
3. मक्खन का अधिक मथना ।
4. क्रीम का Cooling तथा Ageing अप्रयाप्त ।
5. धुलाई के पानी का अधिक तापमान ।
निवारण:
1. पर्याप्त वर्किंग ।
2. ताप उचित (9-11°C) रखा जाये ।
3. उचित मथा जाये ।
4. पर्याप्त Cooling तथा Ageing ।
5. उचित ठण्डा पानी प्रयोग करें ।
v. चूर्णी (Mealy):
कमियां:
1. खट्टी क्रीम का चूने से ठीक से उदासीन न होना ।
निवारण:
1. उचित उदासीनीकरण ।
vi. स्पंजी (Spongy):
कमियां:
1. क्रीम को ठीक से Cooling & Ageing न करना ।
2. क्रीम को अधिक तापमान पर मथना ।
3. कम गलनांक युक्त वसा का अधिक अनुपात ।
निवारण:
1. Cooling तथा Ageing उचित होना चाहिए ।
2. मथते समय उचित ताप रखे ।
3. मथने की दशाओं में समायोजन ।
vii. चिपचिपा (Sticky):
कमियां:
1. अधिक वर्किंग ।
निवारण:
1. उचित वर्किंग ।
viii. किरकिरा (Gritty):
कमियां:
1. मक्खन में बिना घुला मोटा नमक ।
2. नमक का सही मात्रा में न होना ।
निवारण:
1. नमक को मक्खन में ठीक से मिलाना ।
2. नमकी की उचित मात्रा मिलाना ।
C. रंग के दोष (Colour Defects):
i. चित्तकबरा (Mottled):
कमियां:
1. मक्खन का ठीक न घुलना ।
2. नमक का ठीक से न मिलना ।
3. अपर्याप्त वर्किंग ।
निवारण:
1. उचित धुलाई ।
2. नमक ठीक प्रकार से मिलाना ।
3. वर्किंग पर्याप्त करें ।
ii. धारीदार (Steaky):
कमियां:
1. ठीक से वर्किंग न होना ।
2. अपर्याप्त वर्किंग ।
निवारण:
1. वर्किंग पूरे मक्खन पर समान रूप से होना चाहिए ।
2. प्रयाप्त वर्किंग होना ।
iii. धुंधला पीला (Dull Pale):
कमियां:
1. मक्खन का अधिक वर्किंग ।
निवारण:
1. उचित वर्किंग ।