डेयरी बर्तन: धोने, सफाई और स्टेरलाइजेशन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. डेरी बर्तनों व यन्त्रों का धावन सिद्धान्त (Principle of Washing Dairy Utensils)  2. डेरी बर्तनों की सी. आई. पी. विधि (Cleaning-In-Place Method of Dairy Utensils) 3. सफाई विधि (Sanitation).

डेरी बर्तनों की सफाई (Sanitation) का अर्थ है उनकी सतह पर जमे दुग्ध ठोस पदार्थों को हटा कर, सतह को जीवाणु राहत करना तथा सुखाना । यह कार्य डेरी उद्योग में कार्य समाप्ति के बाद प्रतिदिन करना आवश्यक होता है । धुलाई (Washing) से तात्पर्य है कि बर्तन में दिखाई देने वाली गन्दगी ना रहे ।

Washing तथा Cleaning शब्द लगभग समान अर्थों में प्रयोग होते है । Cleaning का अर्थ है गन्दगी को हटाना जबकि Disinfection का अर्थ सतह पर से सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट करना है ।

डेरी बर्तनों व यन्त्रों का धावन सिद्धान्त (Principle of Washing Dairy Utensils):

डेरी में बर्तनों व यन्त्रों की सफाई का सिद्धान्त निम्नवत है:

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1. प्रथम चरण (1st Step):

सर्वप्रथम डेरी बर्तनों को साधारण तथा स्वच्छ जल से धोयें ।

2. द्वितीय चरण (2nd Step):

सोडे के गर्म (50C ताप के) 2% विलयन का प्रयोग करते हुए ब्रूश से रगड़ कर साफ करना तथा दूध के दिखाई देने वाले कणों को सतह से हटाना है ।

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3. तृतीय चरण (3rd Step):

बर्तनों को गर्म सोडा विलयन से धुलाई उपरान्त, उसकी सतह से दूध के अवशेष तथा चिपके महीन कणों तथा सोडा विलयन के अवशेष को सतह से धोने के उद्देश्य से 85-90C तापमान के गर्म जल से धोया जाता है ।

4. चतुर्थ चरण (4th Step):

अन्तिम चरण में बर्तनों व यन्त्रों का निर्जमीकरण (Sterilization) किया जाता है । इसके लिए 5 मिनट तक उबलते पानी में डाल कर या भाप द्वारा या 200 PPM सान्द्रता के क्लोरीन विलयन का प्रयोग करते है ।

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धोने के सिद्धान्त की व्याख्या:

प्रथम चरण का उद्देश्य ठण्डे पानी के प्रयोग से सतह पर हलके रूप में चिपके दुग्ध ठोस कणो को हटाना होता है । इस अवस्था पर यदि गर्म पानी प्रयोग किया जाए तो दुग्ध प्रोटीन स्कन्दित होकर सतह से कठोरता के साथ चिपक जायेगी जो धीरे-धीरे पानी के लवणों तथा धावन विलयन से क्रिया करके Milk Stone का रूप धारण कर लेगी । सोडा का गर्म विलयन सतह पर जमे लैक्टिक अम्ल को उदासीन कर हटाता है ।

सतह पर चिपके वसा कणों को अलग करना तथा ब्रुश की रगडाई द्वारा सतह साफ करने के लिए ही गर्म पानी (85-90C) का प्रयोग करते हैं । इसके पश्चात सतह पर चिपके जीवाणुओं की समाप्ति के उद्देश्य से उबलते पानी, भाप या क्लोरीन विलयन का प्रयोग किया जाता है ।

यदि बर्तनों में दुग्ध स्टोन बन गया है तो दुर्बल अम्लों के तनु विलयन का प्रयोग करके उसे हटाया जा सकता है । इन अम्लों में ऐसिटिक अम्ल अधिक उपयोगी है । इस कार्य हेतु 0.5 से 1.0 प्रतिशत सान्द्रता युक्त सल्फ़्यूरिक अम्ल भी प्रयोग किया जा सकता है ।

ऐल्युमिनियम धातु से बने बर्तनों में अम्लीय धावन का प्रयोग न करें क्योंकि यह धातु अम्लीय विलयन से घुलनशील है । अम्लीय विलयन से धुलाई उपरान्त क्षारीय विलयन से धुलाई अवश्य करें ताकि बर्तन की सतह पर लगा अम्ल उदासीन हो जाए नहीं हो वह सतह पर कटाव (Corrosion) कर देगा तथा प्रसंस्करण के समय दूध के सम्पर्क में आकर दूध को स्कन्दित कर देगा ।

धोवन पानी की गुणवत्ता (Quality of Washing Water):

बर्तनों तथा यन्त्रों की धुलाई के लिए मृदु (Soft) पानी का प्रयोग करें । कटोर जल (Hard Water) के प्रयोग से Milk Stone बनने की सम्भावना अधिक रहती है । कठोर जल में घुले लवणों के कारण धोवन विलयन की सफाई करने की क्षमता भी कम हो जाती है । पानी में यह कठोरता उसमें घुले कैल्शियम तथा मैंग्निशियम के लवणों के कारण होती है । कठोर जल में Ca(HCO3)2 तथा CaSO4 प्रमुखतः पाये जाते हैं । ये अपमार्जक के NaCO3 के साथ प्रतिक्रिया करके अपमार्जक विलयन की क्षमता घटाते हैं ।

पानी की अस्थायी कठोरता को उसे उबालने की प्रक्रिया द्वारा दूर किया जा सकता है:

पानी में स्थायी कठोरता को दूर करने के लिए जियोलाइट विधि का प्रयोग करते हैं ।

कठोर जल के लवण अपमार्जक के निम्न प्रतिक्रिया करते हैं:

NA2CO3 + Ca (HCO3)2 → CaCo3 + 2Na HCO3

NA2CO3 + CaSO4 → CaCO3 + Na2 SO4

इनमें CaCO3 अवक्षेपित होकर बर्तन की दिवार के साथ चिपक जाता है अपमार्जक मिश्रण में Sodium Phosphate तथा Silicate की उपस्थिति CaCO3 के कठोर परत बनने में रोकती है तथा गुच्छे (Flocculent) के रूप में एकत्र कर देता है जिसे आसानी से निकाला जा सकता है ।

डेरी-अपमार्जक (Dairy Detergents):

वे रासायनिक पदार्थ जो डेरी बर्तनों या यंत्रों को साफ करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं, उन्हें डेरी अपमार्जक कहा जाता है । इनमें Soaps, Caustic Soda, Sodium Silicate, Carbonates तथा Phosphates प्रमुख हैं ।

इन्हें चार वर्गों में बाटा जा सकता है:

1. क्षारीय धोवक (Alkali Cleaners)

2. अम्लीय धोवक (Acid Cleaners)

3. जटिल फोस्फेटस (Complex Phosphates)

4. आर्द्रक धोवक (Wetting Agents)

1. क्षारीय धावक (Alkali Cleaners):

इनमें शक्तिशाली धोवकों का प्रयोग वसा के साबुनीकरण के उद्देश्य से जबकि दुर्बल क्षारीय धोवकों का प्रयोग प्रोटीन को धोलने के उद्देश्य से किया जाता है । इनका एक या दो प्रतिशत सान्द्रना का घोल प्रयोग करते है । जिसकी पी. एच. 9.8 से 12.2 तक रखी जाती है ।

इनमें कास्टिक सोडा (KOH) तथा ट्राईसोडियम फोस्फेट का प्रयोग शक्तिशाली धोवक के रूप में तथा सोडियम के रूप मैं तथा सोडियम Sesquicarbonate, Soda Ash (Na2CO3), Sodium-Bi-Carbonate (NaHCO3) का प्रयोग दुर्बल क्षारीय धोवकों के रूप में करते हैं ।

कास्टिक सोडा का प्रयोग काँच के बर्तन धोने के लिए, Sodium Sesquicarbonate का उपयोग मशीनों, रबड की वस्तुओं तथा दूध के डिब्बों को धोने में, Soda Ash का प्रयोग Tinned Steel तथा Tinned Iron Milk Can को धोने में होता है । हाथ से धोने वाले बर्तनों की सफाई के लिए Sodium Metasilicate का प्रयोग करते हैं । यह Wetting Agent बर्तन की सतह पर फैल जाता है ।

2. अम्ल धोवक (Acid Cleaners):

प्रायः मन्द अम्लों का प्रयोग बर्तन धोने के लिए किया जाता है । इनमें Gluconic, Citric, Phosphoric तथा Acetic Acid सामान्यतया उपयोग किये जाते है । इनका 0.1% घोल Plate Pasteurizer और Milk Cans की धुलाई में प्रयोग किये जाते है ।

Milk Stones को दूर करने के लिए इनका उपयोग Wetting Agent के साथ मिला कर किया जाता है । इन अम्लों का एक प्रतिशत तक का घोल प्रयोग कर सकते है जिनका pH Value 6.5 से 6.8 तक हो ।

3. जटिल फोस्फेटस (Complex Phosphates):

डेरी बर्तनों की धुलाई के लिए कठोर जल उपलब्ध होने की बाध्यता होने की स्थिति में जटिल फोस्फेटस धोवक (Complex Phosphates Cleaners) प्रयोग किये जाते है ।

इनमें:

1. सोडियम हैक्मा मैटाफोस्फेटस (Sodium Hexameta Phosphates)

2. सोडियम टैट्रा मैटाफोस्फेटस (Sodium Tetra Meta Phosphates)

3. सोडियम ट्राईपीली फोस्फेटस (Sodium Tri-Poly Phosphates)

प्रमुखतया डेरी उद्योग में धोवक के रूप में प्रयोग किये जाते हैं । इनके विलयन में रसायन की सान्द्रता 1 से 2 प्रतिशत तथा इनका स मान 7.5 रखा जाता है ।

4. आर्द्रक धोवक (Wetting Agent):

सामान्य आर्द्रक धोवकों में टीपोल तथा साधारण धुलाई के साबुन हैं इनका प्रयोग बर्तनों में चिपके हुए वसा कणों को हटाने में प्रयोग होता है । ये बर्तन तथा यंत्रों की सतह पर समान रूप से व पूरी तरह से फैल जाते हैं । ये वसा कणों को Emulsify तथा Deflocculates करने में सहायता करते हैं । ये धोवक प्रोटीन को घोलने का कार्य भी करते हैं ।

डेरी बर्तनों की हाथ द्वारा धुलाई (Handwashing of Dairy Utensils):

डेरी बर्तनों की हाथ द्वारा बुलाई के लिए प्रयोग किये जाने वाले अपमार्जको में निम्नलिखित गुण उपस्थित होने चाहिए:

1. दनका त्वचा पर कोई गम्भीर प्रभाव नहीं होना चाहिए ।

2. इनमें ऐसे कोई अवयव न हो जिसकी प्रतिक्रिया तीव्र क्षारीय हो ।

3. इनमें जीवाणु घातक क्षमता होनी चाहिए ।

4. इनमें क्षारीयता न्यूनतम रहनी चाहिए ।

5. इनमें पायासीकरण शक्ति अधिक होनी चाहिए ।

6. इनमें Rinsing Power भी अच्छी हो ।

7. इनमें अधिक अच्छी परिशोधन क्षमता होनी चाहिए ।

8. यह बर्तन पर परत के रूप में जमने वाला न हो ।

9. अच्छी आर्द्रता शक्ति मुक्त हो ।

10. दुग्ध ठोस पदार्थों को घोलने की इनमें अच्छी क्षमता होनी चाहिए ।

11. ये स्पर्श में चिकनाईयुक्त (Lubrication Power) होनी चाहिए ।

दूध के बर्तनों को धोने में साबुन का प्रयोग सुविधाजनक नहीं रहता है क्योंकि कठोर जल की उपस्थिति में यह चिपचिपा (Sticky) तथा गोंद-सा (Gummy) पदार्थ बनातें हैं जो पानी में आधुलनशील होता है । साबुन के सोडियम आयन, कठोर जल के कैल्शियम आयन तथा मैग्निशियम आयन द्वारा प्रतिस्थापित होकर चिपचिपा गोंद जैसा पदार्थ बनाते हैं ।

डेरी में बर्तनों तथा उपकरणों की सफाई के लिए निम्नलिखित उपमार्जक मिश्रणों में से किसी एक का 50C ताप में 0.8 से 1.0 प्रतिशत सान्द्रता का विलयन बना कर उपयोग करते हैं:

मिश्रण – A. सामान्य उपयोग के लिए:

1. Trisodium Phosphate – 850 gm

2. Wetting Agent – 150 gm

मिश्रण – B. एल्यूमिनियम से बने बर्तनों के लिए:

1. Tri Sodium Phosphate – 650 gm

2. Sodium Metasilicate – 200 gm

3. Wetting Agent – 150 gm

मिश्रण – B. टिन से बनी सतह के बर्तनों के लिए:

1. Tri Sodium Phosphate – 750 gm

2. Sodium Metasilicate – 100 gm

3. Wetting Agent – 150 gm

साधारण जल द्वारा बर्तनों को अच्छी प्रकार धोकर सफाई के लिए अपमार्जक विलयन एवं गुल्मक (Brush) का प्रयोग करें । तत्पश्चात ठण्डे पानी के साथ ब्रुश का प्रयोग करें । अन्त में बर्तनों का परिशोधन करके तथा सूखा कर उपयोग करें ।

डेरी बर्तनों की मशीन द्वारा धुलाई (Mechanical Washing of Dairy Utensils):

यान्त्रिक विधि में धुलाई की विधि चरणवार निम्नवत है:

1. सर्वप्रथम बर्तनों को निचोड़ें (Drainage) ।

2. सामान्य ताप के पानी से 3-6 सैकिण्ड तक धोयें ।

3. बर्तनों को उल्टा करके निचोडें ।

4. कास्टिक सोडा विलयन को 65C ताप पर गर्म करके जैटपम्प द्वारा बर्तनों की 9-18 सैकिंड तक धुलाई करें ।

5. सोडा विलयन को बर्तन की सतह से निचोड़ें ।

6. गर्म पानी (88 से 90C) जैट पम्प के प्रयोग द्वारा बर्तनों को 12 सैकैंड तक धोवें ।

7. वर्तनों के परिशोधन के लिए 90 से 100C ताप की भाप का उपयोग 5 से 10 सैकेंड तक उपयोग करें ।

8. बर्तनों की 95 से 115C ताप पर गर्म हवा का प्रयोग करके 12-18 सैकिंड तक सुखावें ।

9. गर्म बर्तनों को 12 सैकिंड तक 20C पर ठंडा करें ।

अच्छे धोवक विलयन की वांछित विशेषताएं (Desired Characteristics of a Good Washing Solution):

अच्छे धोवन विलयन में निम्नलिखित गुण विद्यमान होने आवश्यक हैं:

1. आर्द्रक शक्ति (Wetting Power):

धोवक विलयन बर्तन या यन्त्र की सतह के सम्पर्क में आते ही सतह पर फैल जाना चाहिए जिससे पूरी सतह की सफाई समुचित रूप में हो सके ।

2. पायसीकरण शक्ति (Emulsification Power):

उनमें वसा का पायस (Emulsion) बना कर धोलने की पर्याप्त शक्ति होनी चाहिए ताकि सतह पर चिपकी वसा को घोल कर धोवन विलयन उसे सतह से छुडा दें ।

3. विउर्णीपिंडन शक्ति (Deflocculation):

प्रोटीन कणों को घोलने की क्षमता युक्त धोवक विलयन अच्छा होता है । ताकि सतह पर चिपके प्रत्येक कण को हटा कर सतह को साफ कर सके । इनमें Peptising गुण पाया जाना चाहिए जिसमें प्रोटीन टूट कर विलेय में जाए ।

4. वेधन शक्ति (Penetration Power):

बर्तनों की सतह पर चिपकी गन्दगी के अन्दर तक पहुँचने की शक्तियुक्त धोवक विलयन अच्छा होता है । ऐसा विलयन गन्दगी में अन्दर तक घुस कर उसे गीला करके छुडा देता है ।

5. घोलन शक्ति (Dissolving Power):

धोवक विलयन अच्छा घोलक होना चाहिए ताकि सफाई के समय बर्तन की सतह पर लगे प्रेत्येक कण को घोलकर निकालने में समर्थ हो ।

6. प्रतिरोधक क्षमता (Buffering Capacity):

विलयन का उचित pH मान स्थिर रखने के लिए धोवक विलयन में अच्छी प्रतिरोधक क्षमता का पाया जाना अति आवश्यक होता है ।

7. जीवाणुघातक क्षमता (Germicidal Capacity):

धोवक विलयन में जीवन नाशन क्षमता का पाया जाना अति आवश्यक होता है ।

8. धातुओं के लिए सुरक्षित (Non-Corrosive):

धोवक, बर्तनों व यन्त्रों की धातु के साथ प्रतिक्रिया न करता हो । प्रयोग के समय धातु की सतह सुरक्षित रहनी आवश्यक होती है ।

9. उपयोग में सुविधा (Convenient to Handle):

उपयोग करने में सरल तथा सुविधाजनक होना चाहिए । इसके प्रयोग में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आनी चाहिए ।

10. कम कीमत (Cheapness):

धोवक के रूप में प्रयोग होने वाला रसायन सस्ता होना चाहिए तथा आसानी से सर्वत्र उपलब्ध होना भी आवश्यक है । महंगा होने पर खर्च बढ जाता है ।

11. जल मृदुकरण गुण (Water Softening Ability):

कठोर जल के लवणों को निकालना या अक्रियाशील करने का गुण पाया जाना चाहिए । इस गुण को Sequestering कहा जाता है । कार्बनिक जल मृदुकरण की स्थिति में इसे Chelation कहते हैं ।

डेरी बर्तनों की सी. आई. पी. विधि (Cleaning-In-Place Method of Dairy Utensils):

यह विधि डेरी यन्त्रों को बिना खोले यथास्थान साफ करने में प्रयोग की जाती है ।

एक पास्तुरीकरण यन्त्र के लिए C.I.P. प्रोग्राम में निम्नलिखित पद (Stages) सम्मिलित है:

1. खंगलायी (Rinsing):

मशीन में 8 मिनट तक या दूसरी तरफ निकास द्वार से साफ पानी निकलने तक सादा पानी बहाया जाता है ।

2. अपमार्जक धुलाई (Detergent Washing):

मशीन में 20 मिनट तक 75C ताप का 0.15 से 0.60 प्रतिशत क्षारियतायुक्त अपमार्जक विलयन बहाते है ।

3. खंगलायी (Rinsing):

क्षारियता युक्त विलयन की धुलाई के बाद मशीन में चिपके अपमार्जक विलयन के अवशेष की सफाई के लिए मशीन में सादा पानी बहाते है जब तक की दूसरी तरफ साफ पानी निकलना प्रारम्भ न हो जाए ।

4. अम्ल धुलाई (Acid Washing):

दुग्ध पाइपों से दुग्ध स्टोन आदि को साफ करने के लिए अम्लीय विलयन से मशीनों की धुलाई की जाती है । इसके लिए नाईट्रिक अम्ल या फोस्फोरिक अम्ल के 0.15 से 0.60 प्रतिशत अम्लता का सादे पानी में विलयन मशीनों में प्रवाहित करते है । तत्पश्चात गर्म अम्लीय विलयन को 65-71C ताप पर मशीन में पुन: 20-30 मिनट तक प्रवाहित किया जाता है ।

5. निचोड़ना (Draining):

अम्लीय विलयन से धुलाई पश्चात इसके प्रवाह को बन्द करके अवशेष अम्लीय विलयन निचड कर बाहर आ जाने देते है ।

6. उष्ण जल से खंगलाई (Hot Water Washing):

जब मशीनों से अम्लीय विलयन टपकना बन्द हो जाये तो 6 मिनट तक 75C ताप का गर्म पानी प्रवाहित करते हैं ।

7. संक्रमणनाशन (Disinfection):

यन्त्रों में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए मशीन में 80 मिनट तक धीरे-धीरे ताप का पानी प्रवाहित करते हैं ।

8. शीतलन (Cooling):

अन्तिम अवस्था में मशीनों को 80 मिनट तक धीरे-धीरे ठण्डे पानी प्रवाह द्वारा ठण्डा किया जाता है ।

डेरी बर्तनों की सफाई विधि (Sanitation of Dairy Utensils):

डेरी उद्योग में बर्तनों या यत्नों की सफाई 6 चरणों में पूरी होती है:

1. निकासी या निचड़ना (Draining):

खाली किये गये डेरी बर्तनों में हल्के रूप में लगे दूध को निचोड़ने के लिए निकासी (Draining) किया जाता है । इसके लिए बर्तन को खोल कर उल्टा करके रखते है ताकि गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा बर्तन की सतह पर चिपका गीला दूध निचढ़ कर बाहर आ जावे ।

2. खंगालना (Rinsing):

निकासी के बाद बर्तन को सामान्य ताप के पानी की तेज धार द्वारा सतह पर चिपके दुग्ध कणों या अन्य पदार्थों को अलग किया जाता है । यह कार्य बर्तन में पानी डाल कर तेजी से हिला कर भी किया जा सकता है ।

3. गर्म (कोष्ण) अपमार्जक द्वारा धुलाई (Warm to Hot Detergent Washing):

उपमार्जक के 0.15 से 0.60% सान्द्रता युक्त क्षारीय विलयन को 50C ताप पर गर्म करके बर्तनों व यन्त्रों की सफाई के लिए प्रयोग करते है । इस धुलाई में ब्रुश का उपयोग भी किया जाना अपेक्षित है ।

4. उष्ण जल से खँगालना (Hot Water Rinsing):

गर्म अपमार्जक की धुलाई के उपरान्त बर्तन की सतह पर चिपके अपमार्जक विलयन के अवशेष को छुडाने के लिए बर्तनों को गर्म पानी में खँगालते हैं ।

5. परिशोधन (Sanitation):

बर्तनों से सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट करने के उद्देश्य से बर्तनों का परिशोधन किया जाता है । डेरी उद्योग में प्रयोग होने वाले परिशोधकों (Sanitizers) में उष्मा, क्लोरीन विलयन या धूप प्रमुख है । इनमें उष्मा (वाष्प) अधिक विश्वसनीय परिशोधक अभिकारक है ।

बर्तन या यन्त्र की सतह के परिशोधन के लिए सतह को 5 मिनट के लिए 15 PSI दाब की भाप या 15 मिनट के लिए OPSI दाब की भाप या 10 मिनट तक 90-95C ताप के गर्म (Scalding) पानी के सम्पर्क में रखना पर्याप्त होता है ।

परिशोधन प्रक्रिया के लिए 200 to 500 PPM सान्द्रता में उपलब्धता क्लोरीन विलयन का 15-20C ताप पर उपयोग निर्धावन (Flushing), कोहरा करण (Fogging), फुहारा (Spraying), जल मग्नता (Submergence) तथा गुल्मकीकरण (Brushing) विधि द्वारा करना चाहिए ।

इसका सम्पर्क समय 1 से 2 मिनट पर्याप्त है । क्लोरीन विलयन, क्लोरीन गैस, कैल्शियम हाइपोक्लोराइट, सोडियम हाइपोक्लोराईट तथा क्लोरोमाईन-टी-यौगिक के प्रयोग से तैयार किया जाता है । क्लोरीन का उपयोग मशीन के उपयोग करने से तुरन्त पहले किया जाता है ।

क्लोरीन धातु के साथ अधिक समय सम्पर्क में रहने पर संक्षारक (Corrasive) हो सकता है । क्लोरीन द्वारा होने वाले संक्षारण को कम करने के लिए Sodium Sulphite (टीनयुक्त सतह के लिए) तथा Sodium Silicate (एल्यूमिनियम की सतह होने पर) मिला विलयन परिशोधन के लिए प्रयोग किया जाता है ।

विशिष्ट परिस्थितियों में परिशोधन के लिए 12.5 से 100 PPM उपलब्ध आयोडीन विलयन या Quaternary Ammonia यौगिक का विलयन जिसमें 200-400 PPM क्रियाशील परिशोधक उपलब्ध हो, का प्रयोग भी किया जा सकता है । डेरी उद्योग से केवल Sodium Hypochlorite ही अधिक उपयुक्त परिशोधक है । Calcium Hypochlorite प्रयोग में Bleaching Agent के साथ-साथ Oxidizing Agent के रूप में भी कार्य करता है ।

6. अन्तिम निकासी तथा सुखाई (Final Draining and Drying):

सफाई का कार्य पूरा होने पर जीवाणु वृद्धि तथा संक्षारण रोकने के लिए बर्तनों को निचोड कर सुखा कर रखा जाता है । यदि बर्तन में सफाई के बाद तुरन्त दुग्ध पदार्थ भरना हो तो सुखाने की आवश्यकता नहीं होती है ।

डेरी संयन्त्र का परिशोधन (Sanitization of Dairy Plants):

डेरी संयन्त्रों में प्रयुक्त पाईप, टैंक एवं अन्य उपकरणों की सफाई के लिए-निम्नलिखित प्रोग्राम अपनाते हैं:

1. शीतल जल से खंगलाई (Cold Water Rinsing):

सर्वप्रथम कम से कम तीन मिनट तक ठंडे पानी को मशीनों में से प्रवाहित करते है ताकि उनमें अन्दर हल्के रूप में चिपकी दूध की बूँदें व कण पानी के साथ वह जाय ।

2. क्षारीय विलयन से धुलाई (Alkali Washing):

मशीन से दूध के चिपके कणों या बूँदों को बहाने के बाद 0.35 से 0.50 प्रतिशत शक्ति का विलयन 71C ताप पर 15-20 मिनट तक बहाते है ।

क्षारीय विलयन निर्माण हेतु:

(i) Sodium Hydroxide – 90 Parts

(ii) Sodium Thiosulphate – 9 Parts

(iii) Wetting Agent – 1 Parts

प्रयोग करते हैं ।

3. अम्लीय विलयन द्वारा धुलाई (Acid Washing):

 

सप्ताह में एक या दो बार फोस्फोरिक अम्ल या नाईट्रिक अम्लके विलयन को प्रवाहित करते है । अम्लीय विलयन के प्रवाह उपरान्त, यन्त्र की सतह पर से अम्ल का प्रभाव समाप्त करने के लिए मशीन में से क्षारीय विलयन प्रवाहित करते है ।

4. निचोडना (Draining):

यन्त्रों में से अवशेष क्षारीप विलयन को निकालने के लिए कुछ समय तक छोड देते हैं । जिससे अवशेष विलयन मूढ़-कूद करने बाहर निकल जाना है ।

5. गर्म पानी द्वारा खंगलायी (Hot Water Rinsing):

धोवन विलयन निचडने के उपरान्त न मिनट तक 90C ताप का पानी प्रवाहित करते हैं ।

6. निचोड़ना (Draining):

गर्म पानी प्रवाह के उपरान्त 3 से 5 मिनट तक मशीन में से गर्म पानी को निचडने के लिए छोडते हैं ।

7. परिशोधन (Sanitation):

यन्त्रों की सतह को जीवाणुरहित करने के लिए सतह को 2-3 मिनट तक 90C तापमान के पानी के सम्पर्क में रखने है । पानी के स्थान पर क्लोरीन विलयन का प्रयोग भी कर सकते हैं । इसके लिए 1 से 2 मिनट तक 150 से 200 PPM

सांद्रता के मादे जलीय (15-20C) विलयन के सम्पर्क में सतह को रखा जाता है । क्लोरीन विलयन का उपयोग यन्त्रों के उपयोग करने के तुरंत पहले करते है ।

8. निचोडना (Draining):

क्लोरीन जल द्वारा परिशोधन के उपरान्त 3 से 5 मिनट तक यन्त्र को निचड़ने देते हैं ।

9. सुखाना (Draying):

यन्त्रों से जब पानी टपकना बन्द हो जाय तो 1 से 2 मिनट तक उनमें गर्म हवा प्रवाहित करके उन्हें सुखाते हैं ।

धात्विक संक्षारण (Metallic Corrosion):

धात्विय संक्षारण धातु तथा उसके वातावरण के मध्य विद्युतीय-रासायनिक प्रतिक्रिया (Electro-Chemical Reaction) है जिसके परिणामस्वरूप धातु में कटान होकर वह कमजोर हो जाती है ।

डेरी यंत्रों में तीन प्रकार का धात्विय संक्षारण होता है:

i. संक्षारण द्वारा छिद्र बनना (Pitting Corrosion):

धोवक के विलयन में धातु के क्लोराईड उपस्थित होने पर एल्युमिनियम या जंगमुक्त स्पात मिश्रधातु (S.S. Alloy) पर सूक्ष्म बन जाते हैं । इसके बचाव के लिए धातू संक्षारणरोधी पदार्थ जैसे Sodium Dichromate का बाईन घोल में प्रयोग किया जा सकता है ।

ii. अन्त: कणीय संक्षारण (Intergranular Corrosion):

मिश्र धातुओं में विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं जिनका Electrical Potential भिन्न-भिन्न होता है । विभिन्न धातुओं की Potential में भिन्नता होने के कारण संक्षारण प्रक्रिया प्रारम्भ होकर दरार (Cracks) उत्पन्न कर देती है । इस तरह का संक्षारण सामान्यतया Welding पर होता है ।

iii. अपरदन संक्षारण (Erosion Corrosion):

यह द्रव पदार्थों के अधिक तेज गति से बहने के कारण यन्त्र या बर्तन की सतह पर से रक्षात्मक परत (Protective Coating) उखाड़ जाने के कारण होता है । बहने वाले द्रव में निलम्बित (Suspended) कणों की उपस्थिती इम प्रकार के संक्षारण में वृद्धि करती है ।

दूध की धातु के साथ प्रतिक्रिया (Reaction of Milk with Metal):

कुछ धातुएँ दूध के कुछ अव्यवों के साथ प्रतिक्रिया करके दूध में धात्वीय लवणों (Metallic Salt) के रूप में घुल जाती है । फलस्वरूप दूध में धातु का सा स्वाद (Metallic Taste) जाता है । इस धात्वीय लवण युक्त दूध को Trainted Milk कहा जाता है । कुछ धात्वीय लवण वसा के आक्सीकरण को उत्प्रेरित करते है जिनसे दूध में Oxidized Flavour बन जाती है ।

दुग्ध उद्योग के लिए Corrosion तथा अवांछनीय सुवास वृद्धि को रोकने वर्तमान में 18:8 Stainless Steel तथा Aluminum Alloy अधिक सन्तुष्टि कारक होती है ।

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