दूध का प्रशीतन: सिद्धांत और गुण | Read this article in Hindi to learn about the principle and merits of refrigeration of milk.

प्रशीतन के सिद्धान्त (Principle of Refrigeration of Milk):

दूध एवं दुग्ध पदार्थ सामान्य तापमान पर कुछ अधिक समय के लिए संग्रहित करने से शीघ्र ही खराब हो जाते हैं इसका मुख्य कारण दूध में सन्तुलित मात्रा में पाये जाने वाले पोषक तत्व है इन पोषक तत्वों की सन्तुलित मात्रा में उपस्थिति के कारण सूक्ष्म जीवाणु दूध में सामान्य तापमान पर अधिक तेजी से वृद्धि करते है ।

ये जीवाणु कुछ रासायनिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं जिनकी उपस्थिति के कारण दूध या दुग्ध पदार्थ खराब हो जाते है तथा वे उपभोग के योग्य नहीं रहते है अतः इन पदार्थों को उपभोग के लिए उपयुक्त अवस्था में बनाये रखने के लिए कम तापमान पर संग्रहित करना आवश्यक होता है क्योंकि कम तापमान पर इन जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाती है तथा पदार्थ खराब होने से बच जाते है । विभिन्न खाद्य पदार्थों को कम तापमान पर रखने की प्रक्रिया को ही प्रशीतन (Refrigeration) के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं ।

”प्रशीतन (Refrigeration) वह प्रक्रिया है जिसमें नियन्त्रित दशाओं में किसी पदार्थ से ऊर्जा निकाली जाती है, फलस्वरूप वह पदार्थ ठण्डा हो जाता है ।”

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इस विधि का सिद्धान्त यह है कि जब कोई अधिक ताप वाली वस्तु कम ताप वाली वस्तु के सम्पर्क में आती है तो कम तापक्रम वाली वस्तु अधिक तापक्रम वाली वस्तु से ताप शोषण करती रहती है तथा यह ताप का आदान-प्रदान तब तक चलता रहता है जब तक कि दोनों वस्तुओं का तापमान समान नहीं हो जाता है ।

इस प्रक्रिया का एक साधारण सा उदाहरण गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े में पानी का ठण्डा हो जाना है । मिट्टी के घड़े के महीन छिद्रों से पानी बाहर आकर घड़े के अन्दर के पानी से गुप्त ऊष्मा लेकर घड़े की सतह पर वातावरण की गर्मी के कारण वाष्पीकृत होता रहता है । अतः अन्दर का पानी ऊष्मा निकलने के कारण ठण्डा हो जाता है । इसके विपरीत धातु के बने घड़े में यह क्रिया नहीं हो पाती अतः पानी वातावरण की गर्मी से गर्मी (ऊष्मा) का शोषण करके गर्म हो जाता है ।

दूध उत्पादन से लेकर वितरण तक प्रशीतित अवस्था में रहना चाहिए जिससे किसी भी स्तर पर खराब न हो ।

दुग्ध उद्योग में प्रशीतन के निम्नलिखित प्रमुख उपयोग है:

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1. उत्पादन केन्द्र पर दूध को निकालने के बाद तुरन्त ठण्डा करना तथा पास्तुरीकृत होने तक ठण्डा बनाये रखना ।

2. कम ताप पर दूध का परिवहन करना ।

3. प्रसंस्करण केन्द्र पर पास्तुरीकरण के बाद दूध को ठण्डा करना, शीतग्रह में पदार्थ रखने के लिए, वातानुकूलित कमरों में, मक्खन एवं हिमीकृत पदार्थों के निर्माण में एवं हिमीकृत पदार्थों के वितरण में प्रशीतन का प्रयोग होता है ।

प्रशीतन के लाभ (Merits of Refrigeration of Milk):

प्रशीतन के तीन मुख्य लाभ हैं:

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1. दूध एवं दूध के बने पदार्थों को मानव उपभोग के लिए अधिक समय तक खाने योग्य रखा जा सकता है ।

2. पदार्थ अधिक समय तक ताजा बना रहता है तथा उसका सुवास भी अच्छा बना रहता है ।

3. अधिक उपलब्धता के समय (Flush Season) में दूध से पदार्थों को बना कर भडारित (Storage) किया जा सकता है जिनका उपयोग कमी के मौसम (Lean Season) में किया जा सकता है । इस प्रकार दुग्ध पदार्थों का संग्रहण प्रशीतन सुविधा उपलब्ध होने पर ही सम्भव है ।

दुग्ध उद्योग में प्रशीतन का प्रयोग एवं तापमान निम्नलिखित प्रकार से हैं:

1. Chilling of Milk – 4.4°C

2. Refrigeration in Transportation of Tanks/Van – 7.2°C

3. Long Distant Shipment of Butter – (-) 11°C

4. Long Distant Shipment of Cheese – 10°C

5. Long Distant Shipment of Frozen Milk – (-) 12°C

6. Chilling of Cream – 4.4°C

7. Ice Production – 0°C

8. Frozen Milk Production – (-) 11°C

9. Ice Cream Production – (-) 3°C

10. Cold Storage of:

a. Milk – 4.4°C

b. Cheese – 10.0°C

c. Cream – 0°C

d. Butter — 0°C

e. Ice Cream – (-) 28.3°C

f. Frozen Milk 12.0 – (-) 12.0°

11. Air Conditioning – 19 to 22°C

यह बात ध्यान देने योग्य हे कि हर पदार्थ पूर्ण शून्य (Absolute Zero (-) 273.33C) से अधिक ताप (Temperature) पर कुछ न कुछ ऊष्मा (Heat) रखता है । ऊष्मा शक्ति का ही एक पदार्थ के अन्दर अणुओं के आपस में टकराने से उत्पन्न होता है ।

पूर्ण शून्य की तरफ तापमान के जाने से पदार्थ के अणुओं की क्रियाशीलता कम होती जाती है तथा (-) 273.33C या (-) 460F तक पहुँचने पर अणु पूर्णतया अक्रियाशील हो जाते है । अतः इस तापमान पर पदार्थ में बिल्कुल भी ऊष्मा (Heat) नहीं होती है ।

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