दूध की प्रसंस्करण: 12 कदम | Read this article in Hindi to learn about the twelve main steps followed for processing milk. The steps are:- 1. दूध का शीतलन/अवशीतलन (Cooling/Chilling of Milk) 2. डेरी चबूतरे पर दूध प्राप्त करना (Receiving Milk at Dairy Platform) 3. दूध का तोलना (Weighing of Milk) 4. दूध का पूर्वतापन (Preheating of Milk) 5. दूध को छानना तथा स्वच्छीकरण (Filtration and Clarification of Milk) and a Few Others.
दूध का शीतलन/अवशीतलन, डेरी चबुतरे पर दूध प्राप्त करना, पूर्वतापन, छानना एवं स्वच्छी करण, समागीकरण, दुग्ध आपूर्ति को सुरक्षित बनाना, पास्तुरीकरण यू. एच. टी. उपचार, शून्यक पास्तुरीकरण, स्टेसेनाईजेशन, अपैराइजेशन, बैक्टोफ्यूगेशन तथा निर्जमीकरण, को सम्मिलित किया गया है ।
उत्पादन के तुरन्त बाद दूध को ठण्डा कर लेना चाहिए अन्यथा दूध संयंत्र में पहुंचने तक अम्लीय हो जायेगा । अम्लीय होने के साथ-साथ जीवाणु की संख्या भी अधिक हो जाएगी । यह भी सम्भव है कि इन जीवाणुओं में कुछ व्याधिजनक जीवाणु भी हो ।
सामान्य तापक्रम पर दूध को अधिक समय तक रखने से दूध के कुछ अव्यवो (Constituents) का विघटन (Decomposition) हो जाता है जिससे दूध का स्कन्दन भी सकता है । अतः दूध को पशु से दोहन के बाद यथाशीघ्र ठण्डा करना आवश्यक हो जाता है ।
Step # 1. दूध का शीतलन/अवशीतलन (Cooling/Chilling of Milk):
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दुग्ध मुख्यतया गाँवों में उत्पादित किया जाता है जबकि इसका उपभोग केन्द्र शहरी क्षेत्र में होता है । अतः यह आवश्यक है कि दूध को उत्पादन के तुरन्त बाद या तो उपभोक्ता तक पहुँचा दिया जाए या उसे ठण्डा किया जाए । परम्परागत तरीके से दूधिया कच्चे दूध को इसी अवस्था में शहरों में ले जाकर उसे वितरित करते है ।
अतः दूध की गुणवत्ता अच्छी नहीं रह पाती है । उपभोक्ताओं को अच्छा दूध प्रदान करने हेतु वर्तमान में देश के लगभग सभी शहरों में दुग्ध संघ चल रहे है । दूध प्रसंस्करण का कार्य कुछ एक घण्टों में पूरा नहीं होता है । अतः दूध को संयंत्र या अवशीतन केन्द्र (Chilling Centre) पर ठंडा किया जाता है । कुछ गांवों का एकत्रित दूध (Collected Milk) एक निश्चित स्थान पर संग्रह कर लिया जाता है जिसे Assembling Centre कहा जाता है ।
कुछ संग्रह केन्द्रों (Assembling Centres) का दूध एक स्थान पर एकत्र कर लिया जाता है जहाँ दूध को ठण्डा करने का संयंत्र भी लगा रहता है उसे केन्द्र को अवशीतन केन्द्र (Chilling Centre) कहा जाता है । यहाँ दूध को मशीन द्वारा 4.5०C तापमान तक ठण्डा किया जाता ।
अवशीतलन का अभिप्राय दूध को एक ऐसे तापमान तक ठण्डा करने से है कि उसमें उपस्थित पानी बर्फ में परिवर्तित न हो तथा जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाय (Milk has to be cooled to so low temperature which do not induce ice formation and check the microbial growth) ।
ADVERTISEMENTS:
अवशीतन केन्द्र पर दूध को ठण्डा करने के लिए वही यंत्र प्रयोग में लाया जाता है जो पास्तुरीकरण प्रक्रिया की ‘उच्च ताप कम समय’ (HTST) विधि में तापन के लिए प्रयोग किया जाता है ।
अन्तर यह है कि इस यन्त्र में पास्तुरीकरण के समय दूध के तापन के लिए गर्म पानी या भाप का प्रयोग करते हैं जबकि अवशीतन के समय शीतलन माध्यम के रूप में ब्राईन घोल (Brine Solution) का प्रयोग करते हैं । दूध को अवशीतित अवस्था में पास्तुरीकरण की प्रक्रिया में जाने तक रखा जाता है ।
अवशीतन केन्द्र के मुख्य उपकरण (Major Items/Equipments at Chilling Centre):
किसी अवशीतन केन्द्र पर निम्नलिखित उपकरण उपलब्ध होने चाहिए:
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1. दूध को तोलने/नापने के उपकरण (Milk Weigh Tank and Weighing Scale)
2. दूध इक्टठा करने के उपकरण (Drop/Dump Tank with Cover)
3. दूध के डिब्बों को धोने के उपकरण (Can Washer)
4. दुग्ध पम्प (Milk Pump)
5. सतही/प्लेट शीतक (Surface/Plate Cooler’s)
6. प्रशीतन इकाई (Refrigeration Unit)
7. शीत ग्रह (Cold Room)
8. दुग्ध परीक्षण इकाई (Milk Testing Unit)
9. अन्य आवश्यक उपकरण (Other Essential Equipments)
अवशीतन केन्द्र पर छोटे डेरी संयंत्र की तरह दूध को प्राप्त किया जाता है । खराब दूध आने की स्थिति में उसे अस्वीकार भी किया जा सकता है । स्वीकृत अर्थात् प्राप्त किये हुए दूध का श्रेणीकरण, तोलना, नमूना लेना तथा उसका परीक्षण करने के बाद ठण्डा करके कम ताप पर प्रसंस्करण संयन्त्र (Processing Plant) पर भेजने तक भंडारित किया जाता है ।
दूध को अवशीतित करने की विधियाँ (Methods of Cooling/Chilling of Milk):
उत्पादन तथा संग्रह केन्द्र पर दूध को विभिन्न विधियों का प्रयोग करके ठण्डा किया जाता है ।
जिनमें प्रमुख रूप से प्रयोग की जाने वाली विधियाँ निम्नलिखित हैं:
i. मशीन द्वारा गाय का दूध निकाल कर बन्द नलियों द्वारा प्रशीतन यंत्र (Refrigeration Plant) में ठण्डा करके बन्द नलियों द्वारा ही इसे भंडारण टैंकों में भेजा जाता है । यह दूध भडारण टैंकों तक पहुँचने में खुले वातावरण के सम्पर्क में नहीं आता है । अतः इसमें सूक्षम जीवाणुओं की संख्या बहुत कम होती है ।
ii. अवशीतन के लिए Ice Chambered Insulted का प्रयोग भी किया जाता है ।
iii. ताप अवरोधक (Insulated Tanks) टैंकों के ठण्डे पानी में दूध के डिब्बों को डुबो कर ठण्डा करना ।
iv. रोटोफ्रिज (Roto freeze) विधि में दूध के डिब्बों के ऊपर अवशीतित जल का फव्वारा चला कर डिब्बों को ठण्डा किया जाता है ।
v. अवशीतित पानी द्वारा ठण्डी हुई Coils से डिब्बों के अन्दर दूध को ठण्डा करना ।
vi. हवा से ठण्डी होने वाली इकाई (Condensing Unit) के प्रयोग द्वारा दूध में डूबने वाले शीतक (Immersion Cooler) का प्रयोग करके डिब्बों में दूध को ठण्डा करना ।
vii. टयूबयुक्त सतही शीतक (Tubular Surface Cooler):
इसमें सतही शीतक (Surface Cooler) के एक कक्ष में ठण्डे पानी की नलियां (Tubes) लगी होती हैं । कक्ष में से दूध प्रवाहित किया जाता है । जो नलिकाओं में से बहने वाले अवशीतित जल या बाईन के सम्पर्क में आकर ठण्डा होता है ।
दूध का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है जो नीचे आकर एक ट्रे में एकत्र होते हुए भंडारण टैंक में चला जाता है । शीतक दो भागों में बंटा होता है उपर अवशीतित जल की नलिकाएं तथा नीचे ब्राईन, अमोनिया या फ्रियोन गैस युक्त नलिकाएं (Coils) होती है ।
viii. प्लेट शीतक (Plate Coolers):
प्लेट शीतक का प्रयोग करके दूध को ठण्डा किया जाता है । इसमें प्लेटस (Plates) लगी होती हैं । एकान्तर (Alternate Plates) प्लेटों में ठण्डा पानी या प्रशीतक तथा बीच की दूसरी प्लेटों में दूध प्रवाहित होता है जो ठण्डी प्लेटों के सम्पर्क में आकर ठण्डा हो जाता है ।
ix. कैबिनेट शीतक (Cabinet Cooler):
कैबिनेट शीतक की कार्य क्षमता अधिक होती है । यह कई एक सतही शीतकों (Surface Coolers) को उदम (Vertical) स्थिति में संयुक्त करके कार्य में लिया जाता है । स्थान को कमी में कार्य करने के लिए यह विधि उपयुक्त है ।
Step # 2. डेरी चबूतरे पर दूध प्राप्त करना (Receiving Milk at Dairy Platform):
डेरी संपन्त्र (Dairy Plant) में चबूतरे (Platform) पर दूध के डिब्बों में या टैंकर्स (Cans or Tankers) में लाया जाता है ।
यहाँ पर दुग्ध प्राप्ति के लिए निम्नलिखित क्रियाएं (Operations) किये जाते हैं:
i. दूध उतारना (Milk Unloading):
दूध के डिब्बों को ट्रक या टैम्पू आदि वाहन से उतार लिया जाता है । इस कार्य में सुविधा के लिए प्लेटफार्म की ऊचाई ट्रक की फर्श की ऊँचाई के बराबर रखी जाती है । उतारे गये डिब्बों को श्रेणीकरण के लिए एकत्र कर लिया जाना है । यदि दूध को टैंकर्स में लाया गया है तो उसे सही स्थिति में खड़ा करके पाईप द्वारा जोड़ दिया जाता है ।
ii. श्रेणीकरण (Grading):
दूध के मूल्य भुगतान हेतु दूध को गुणों के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट लिया जाता है । यह सामान्यतया ज्ञानेन्द्रिय परीक्षण (Organoleptic Tests) के आधार पर किया जाता है । यहाँ दूध के वर्गीकरण करने वाला व्यक्ति (Milk) अनुभवी (Experienced) होने चाहिए ।
दूध का श्रेणीकरण प्लेटफार्म परीक्षणों के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है:
दुग्ध टैंकर्स (Milk Tankers) में आने वाले दूध का तापमान 5०C या इससे कम होना चाहिए । इसकी अपसुवास का पता लगाने (Off-Flavour Detection) के लिए दूध को कमरे के ताप (Room Temperature) तक गर्म कर ले तथा सूंघ (Smell) कर गन्ध का पता लगा सकते है ।
दूध का स्वरूप (Appearance) देख कर, यदि सुवास व स्वरूप उचित है तो दूध को आगे के परीक्षणों के लिए नमूना बोतल (Sample Bottle) में लेकर टैंकर्स को खाली करा लिया जाता है ।
iii. दूध परीक्षण (Milk Testing):
दुग्ध डिब्बों (Milk Cans) में आये दूध के श्रेणीकरण के लिए डिब्बे का ढक्कन खोल कर दूध का रूप, गन्ध, ताप तथा तलछट आदि का परीक्षण किया जाता है । दूध का मूल्य भुगतान वसा तथा वसा रहित ठोस एवं उपरोक्त सुग्राही परीक्षणों (Sensory Tests) के आधार पर किया जाता है । प्रयोगशाला परीक्षण के लिए दूध को मिला कर नमूना भर कर रख लिया जाता है तथा डिब्बों को खाली करा दिया जाता है ।
चबूतरा परीक्षण के प्रकार (Kinds of Platform Tests):
प्लेटफार्म पर होने वाले परीक्षणों को 2 वर्गों में बाँटा जा सकता है:
i. ज्ञानेन्द्रिय सुग्राही परीक्षण (Organoleptic Sensory Tests):
इन्हें सुग्राही (Sensory) या जल्दी होने वाले परीक्षण (Rapid Platform Tests) भी कहा जाता है । क्योंकि ये जल्दी सम्पन्न हो जाते है । इस वर्ग में आने वाले मुख्य परीक्षण गन्ध (Flavour), स्वरूप (Appearance), ताप (Temperature), तलछट (Sediment) तथा अम्लता प्रतिशत (Acidity Percentage) है । ये परीक्षण दूध को देख कर छू कर या सूँघ कर किये जा सकते है ।
ii. प्रयोगशाला परीक्षण (Laboratory Tests):
प्रयोगशाला में दूध का लैक्टोमीटर पाठयांक (Lactometer Reading) तथा वसा प्रतिशत (Fat Percentage) आदि का निर्धारण (Determination) किया जाता है ।
Step # 3. दूध का तोलना (Weighing of Milk):
दूध को प्राप्त करके उसका मूल्य भुगतान करने तथा बेचने के लिए दूध का भार ज्ञात करना आवश्यक होता है । डिब्बों का दूध Weigh Bowl में उडेलते है । दूध उडेलने से पूर्व बाऊल को पैमाने पर रख कर Scale Dial की सूई को शून्य पर स्थिर कर लेते है ।
अब उसमें दूध उडेल कर उसके वजन का सही पाठयांक पड़ लिया जाता है । Weigh Tank का निकास वाल्व बडा होना चाहिए । जिससे तोलने के बाद वाल्व खोलते ही नीचे रखे Dump Tank में दूध की पूर्ण मात्रा शीघ्रता से चली जाए । इस टैंक से दूध को पम्प द्वारा ऊँचाई पर रखे कच्चे दूध के भंडारण टैंक (Raw Milk Storage Tank) में भेजा जाता है ।
टैंकर्स के दूध का आयतन फ्लो मीटर द्वारा ज्ञात किया जाता है जिसे बाद में गणना द्वारा भार में परिवर्तित कर लिया जाता है । दूध का आयतन ज्ञात करने के लिए एक विशेष यंत्र, Flow Meter का प्रयोग किया जाता है । (भार = आयतन × आपेक्षिक घनत्व) ।
यदि टैंकर्स को Weigh Bridge पर तोलना है तो टैंकर को तोलने से पूर्व उस पर जमे बर्फ या कीचड़ आदि को धोकर साफ कर लेना चाहिए तथा दूध का शुद्ध भार ज्ञात किया जा सके ।
दूध के डिब्बे या टैंकर्स खाली करते ही तुरन्त धोकर साफ व स्वच्छ (Clean and Sanitize) कर देने चाहिए । दूध को डेरी पर आते ही प्राप्त कर ठण्डा करना आवश्यक होता है अन्यथा ताप बढने से दूध अम्लीय होकर खराब हो जायेगा तथा स्कन्दित भी सकता है । प्राप्त करते समय दूध को आयतन में नापने के स्थान पर तौलना अधिक उचित रहता है आयतन निकालने में झाग या हवा के बुलबुले आने के कारण कुछ त्रुटि (Error) रह जाती है ।
Step # 4. दूध का पूर्वतापन (Preheating of Milk):
दूध को प्राप्त कर तोलने के बाद भंडारण टैंकों में एकत्र कर लिया जाता है दूध को पास्तुरीकृत करने से पूर्व छाना जाता है । भंडारण टैंकों में दूध 5०C ताप पर ठण्डा रहता है । इस ताप पर दूध में वसा ठोस अवस्था में होती है तथा दूध की विस्कोसिटी (Viscosity) अधिक होती है ।
दूध को ठीक प्रकार से दक्षता पूर्वक (Efficiently) छानने के लिये उसका पूर्वतापन आवश्यक होता है । पूर्व तापन से दूध का वसा द्रव अवस्था (Liquid State) में आ जाता है तथा दूध की विस्कोसिटी भी कम हो जाती है अतः दूध की छनाई आसानी से हो सकती है । दूध को छानने से पूर्व 35 से 40०C ताप तक गर्म किया जाता है ।
इसके अतिरिक्त पूर्वतापन क्रिया के बाद दूध में भडारण के समय आने वाली स्थूलता (Age Thickening) भी नहीं आ पाती है तथा उसकी उष्मा के प्रति स्थिरता (Heat Stability) भी बढ़ जाती है । यदि पूर्वतापन के समय या इससे पूर्व थोडा सा सोडियम क्लोराईड (Sodium Chloride) या पोटेशियम क्लोराइड (Potassium Chloride) मिला दिया जाय तो उष्मा के प्रति स्थिरता (Heat Stability) और भी अधिक बढ जाती है ।
यही कारण है कि संघनित दूध या दुग्ध चूर्ण बनाने के लिए उच्चताप पर पूर्व तापन किया जाता है । इससे दूध में उपस्थित एन्जाईम (Enzymes) अक्रियाशील हो जाता है तथा काफी बडी संख्या में सूक्ष्म जीवाणु (Micro-Organism) भी नष्ट हो जाते हैं ।
Step # 5. दूध को छानना तथा स्वच्छीकरण (Filtration and Clarification of Milk):
दूध में से भूल आदि दूर करने के उद्देश्य से उसे 35-40०C तापमान तक गर्म करके छाना जाता है ।
दूध को छानने के विकल्प के रूप में उस का स्वच्छीकरण (Clarification) भी किया जा सकता है:
छानना (Filtration):
दूध को छानने के लिए कपड़ा या छोटे छिद्रयुक्त पैड का प्रयोग किया जाता है ।
एक अच्छे छनने की निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:
1. छिद्र इतने छोटे हो कि छोटे से छोटा धूल का कण भी पार न जा सके तथा छनने के ऊपर ही रुक जाए ।
2. कपड़ा या पैड को सहारा (Support) देने हेतु छनने को धातु के फ्रेम पर ठीक प्रकार से कसे, ताकि छनना दूध के दबाव के कारण फटे नहीं तथा छनने तथा फ्रेम के बीच से दूध न निकल सके ।
3. कपडे या पैड को सहारा देने हेतु धातु का छिद्र युक्त जाल या अन्य कुछ तार आदि लगा होना चाहिए जिससे दूध के दबाव के कारण छनना न फट सके ।
4. छने हुए तथा बिना छने दूध को अलग-अलग करने का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए तथा छने हुए दूध में बिना छना दूध न मिल पाये ।
5. दूध के छानने या छनने के धोने का समय बहाव का दबाव इतना रखा जाए ताकि वह टूट या फट न पाये ।
6. छनने की बनावट इस प्रकार की हो कि कपड़ा या पैड आसानी से बदला जा सके तथा उसके प्रत्येक हिस्से को साफ किया जा सके । ताकि लगातार कार्य करते समय पैड को बदलने में कोई परेशानी न हो ।
इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जब लगातार कार्य करना हो तो दो छनने प्रयोग किये जाए जिससे पैड बदलते समय कार्य में बाधा ना पड़े । एक पैड या कपड़े को केवल एक बार ही प्रयोग किया जाना उचित होगा । प्रयोग किये गये पैड या कपड़े को धोकर दुबारा प्रयोग करने से दूध में संक्रमण (Contamination) बढने की सम्भावना बढ जाती है ।
स्वच्छीकरण (Clarification):
स्वच्छीकरण के लिए एक मशीन का प्रयोग करते हैं जिसे स्वछीकारक (Clarifier) कहा जाता है । यह रूप तथा रचना में अपकेन्द्री क्रीम पृथक्कारक (Centrifugal Cream Separator) की तरह का होता है ।
दोनों में कुछ भिन्नताएँ निम्नलिखित प्रकार से है:
1. स्वच्छीकारक (Clarifier) में केवल एक निकास द्वारा (Outlet) होता है जबकि पृथक्कारक (Separator) में 2 निकास द्वार (Outlet) होते हैं ।
2. स्वच्छकारक के बाऊल की Disces व्यास में छोटी होती है जिससे कीचड (Sediment/Slime) के एकत्रीकरण के लिए बाऊल की परिधि पर पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो जाता है ।
3. क्लारीफर में दुग्ध वितरण केन्द्र Disces के बाह्य किनारे पर होता है जबकि पृथक्कारक में ये छिद्र केन्द्र में होते है ।
दूग्ध प्रसंस्करण के समय फिल्टर या क्लारीफर को पास्तुरीकरण मशीन में दूध के प्रवेश करने से पहले या पुनर्जनन भाग (Regeneration Section) के पास लगायी जाता है । क्लारीफर के उपयोग से दूध की गन्दगी को अधिक दक्षता के साथ निकल कर अलग किया जा सकता है जबकि फिल्टर मात्र धूल के छोटे कणों को ही निकालकर अलग करता है ।
क्लारीफर द्वारा दूध को साफ करते समय, उसके बाऊल में बाह्य पदार्थ जैसे दुख प्रोटीन, ल्युकोसाइट, अयन की दुग्थ कोशिकाएं, वसा, कैल्शियम फास्फेट, कुछ लवण, जीवाणु तथा कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाएं भी एकत्र हो जाते हैं । इन पदार्थों को चीकट या कीचड़ (Clarifier Slime) कहा जाता है । इसके संगठन में काफी भिन्नता पायी जाती है । Clarifier Slime तथा Separator Slime का संगठन लगभग समान होता है ।
Step # 6. दूध का समांगीकरण (Homogenization of Milk):
दूध को यदि किसी बर्तन में बिना हिलाये रख दिया उपस्थित वसा ऊपरी सतह पर क्रीम के रूप में एकत्र हो जाती है । स्प्रेटा दूध गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण नीचे बैठ जाता है । वसा कणों का आकार बढ्ने के साथ-साथ वसा की, उपरी सतह पर एकत्र होने की प्रवृति भी बढ जाती है ।
दूध को प्रसंस्करण के बाद काफी समय तक भंडारित करना समय परिवहन में दूध हिलता भी है । दूध के हिलने से भी वसा बड़े कणों के रूप में एकत्र हो जाती हैं । इस प्रकार दूध की वसा तथा स्प्रेटा दूध अलग-अलग होने से पूर्ण दूध की गुणवत्ता पर खराब प्रभाव पड़ता है ।
वसा के पृथक्कीकरण को रेकने के लिए आवश्यक है कि दूध में वसा कणों को तोड़ कर इतना छोटा कर दिया जाए कि उसकी ऊपर उठने की प्रवृत्ति कम से कम रह जाए तथा दूध एक समांग विलयन (Homogeneous Solution) के रूप में बना रहे ।
इस प्रकार ”दूध में उपस्थित वसा कणों को तोड़ कर छोटा करने की किया समांगीकरण (Homogenization) कहलाती है ।” दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते है- ”समांगीकरण वह किया है जिसके द्वारा दूध की वसा गोलिकाओं को छोटी-छोटी गोलिकाओं में विभाजित किया जाता है ताकि दूध के भंडारण के समय उसके ऊपर क्रीम की पर्त (Cream Layer) सदा के रूप में वसा का एकत्रीकरण न हों तथा वसा दूध के समस्त आपतन में समान रूप में उपस्थित एवं वितरित रह सकें ।”
समांगीकरण यन्त्र (Homogenizer):
यह एक मशीन होती है जो वसा गोलिकाओं को छोटे-छोटे कणों में विभक्त करती है । इसमें एक उच्च दबाव वाला Piston Pump लगा होता है जो दूध को उच्च दाब पर समांगीकरण वाल्व तथा इसकी सीट (Seat) के मध्य एक संकरे छिद्र से दाब द्वारा निकालता है ।
इस संकरे रास्ते में से होकर दबाव के साथ दूध के आने के कारण यह बहुत तेज गति से बहता है । फलस्वरूप वसा गोलिकाएं आपस में रगड कर तथा टकरा कर छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाती है । जिस प्रकार से एक तेज गति से बहने वाली नदी में पत्थर टूट कर तथा रगड कर छोटे-छोटे आकार के हो जाते है ।
ठीक उसी प्रकार से इस यन्त्र के अन्दर वसा की बडी गोलिकाएं छोटी-छोटी गोलिकाओं में परिवर्तित हो जाता है । यन्त्र का वाल्व तथा Seat कठोर धात्वीय पदार्थ के बने होते है । ये यन्त्र एकल वाल्वयुक्त (Single Stage Homogenizer) एकल अवस्था वारने या दो वाल्व युक्त (Double Stage Homogenizer) द्वि अवस्था वाले हो सकते है ।
इस यन्त्र से मिलता जुलता एक दूसरा यन्त्र Viscolizer भी होता है । जो कम दाब पर कार्य करता है । एक अन्य यन्त्र जिसे Clarifixator कहा जाता है, दूध को स्वच्छ करने के साथ-साथ उसका समांगीकरण भी करता है ।
Step # 7. दुग्ध आपूर्ति को सुरक्षित बनाना (Safeguarding the Milk Supply):
दूध की स्वच्छता (Milk Cleanliness) उसमें बाह्य पदार्थों की अनुपस्थिति को दर्शाती है जबकि दुग्ध सुरक्षितिकरण (Safeguarding) का अर्थ दूध को व्याधिजनक जीवाणुओं से मुक्त करना दर्शाता है । यह आवश्यक नहीं है कि साफ व स्वच्छ दूध उपभोग के लिए सुरक्षित भी होगा परन्तु सुरक्षित (Safe Milk) दूध हमेशा साफ व स्वच्छ ही होता है । मानव उपभोग के लिए दूध हमेशा साफ, स्वच्छ तथा सुरक्षित होना आवश्यक होता है ।
दूध को सुरक्षित रखने की दो विधियाँ होती हैं:
A. स्वच्छ उत्पादन एवं स्वच्छतापूर्वक रख-रखाव के द्वारा:
1. दूध का उत्पादन बिल्कुल स्वस्थ पशु से स्वच्छतापूर्वक कराया जाए ।
2. दूध से सम्बन्धित कार्य में लगे व्यक्ति पूर्णतया साफ, स्वच्छ व स्वस्थ हो ।
3. दूध के बर्तन धोने में व प्रसंस्करण में निर्जमीकृत पानी का प्रयोग किया जाए ।
4. मक्खियों आदि पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए ।
B. दुग्ध पास्तुरीकरण द्वारा:
दूध को साफ व स्वच्छ करके एक निश्चित ताप पर उतने समय के लिए रखे कि उसमें उपस्थित सभी व्याधिजनक जीवाणु समाप्त हो जाए तथा पास्तुरीकृत दूध में अपास्तुरीकृत दूध का संक्रमण (Contamination) न हो ।
Step # 8. दूध का पास्तुरीकरण (Pasteurization of Milk):
पास्तुरीकरण की विधि सर्वप्रथम Louis Pasteur ने 1860-64 में मध्य शराब को 122 से 140०F तापमान पर गर्म करके खराब होने से बचाने के लिए प्रयोग की । उसी समय से खाद्य पदार्थों को गर्म करके सुरक्षित करने की इस विधि को पास्तुरीकरण (Pasteurization) के नाम से जाना गया ।
सन् 1886 ई. में Soxhlet ने यूरोप में इस विधि का प्रयोग दूध के परिरक्षण के लिए किया । सन् 1899 ई. में Theobald Smith ने T.B. पैदा करने वाले जीवाणुओं को समाप्त करने का तापक्रम (140०F) तथा समय (15 मिनट) ज्ञात किया । इसी आधार पर 1910 में न्यूयार्क सरकार ने एक अधिनियम के अन्तर्गत पास्तुरीकरण विधि के लिए तापमान एवं समय का निर्धारण किया ।
Step # 9. दूध का स्टेसेनाईजेशन (Stassanization of Milk):
फ्रांस के हैनरी स्टैसैनी द्वारा प्रतिपादिन दुग्ध पास्तुरीकरण की इस विधि में दूध को एक दूसरे के अन्दर लगी तीन पाइपो की लाईन के मध्य वाले पाइपों के बीच रिक्त स्थान में 0.6 से 0.8 mm की परत के रूप में ऊपर तथा नीचे से 7 सैकिंड के लिए 74०C तापमान पर गर्म करके तुरन्त ठण्डा करते है । इसमें एक के अन्दर एक पाईप लगे रहते हैं ।
इस प्रकार ऊपर नीचे लगातार तीन पाईप होते हैं । सबसे अन्दर ब सबसे बाहर के पाईप में गर्म पानी तथा बीच वाले पाईप में दूध बहता है । गर्म पानी का तापमान से 74.8 से 75.5०C रखते है । इस विधि से दूध के पोषार्ध पर कोई प्रभाव नहीं पडता है । इस विधि द्वारा लगभग सभी जीवाणु समाप्त हो जाते है । इस विधि द्वारा पास्तुरीकरण अन्य विधियों की अपेक्षा सस्ता पडता है ।
Step # 10. दूध का अपेराईजेशन (Uperization of Milk):
यह Ultra Pasteurization विधि का छोटा नाम है । इस विधि में दूध को सीधा भाप द्वारा 150०C तापमान पर एक सैकिंड के लिए या इससे भी कम समय के लिए गर्म किया जाता है । यह एक सतत विधि है । इसका अविष्कार तथा प्रथम प्रयोग Switzerland में हुआ था । यह पदार्थ को उच्च ताप उपचार देने की विधि है । इस विधि द्वारा पदार्थ का निर्जमीकरण हो जाता है ।
विधि:
इसमें दूध को 150०C तापमान तक भाप द्वारा गर्म किया जाता है । भाप के रूप में पदार्थ में मिले पानी को निकालने के लिए पदार्थ को निर्वात में ठण्डा किया जाता है ।
Uperization के निम्नलिखित तीन प्रमुख भाग होते हैं:
1. द्वि अवस्था प्राथमिक उष्मक (Two Stage Preliminary Heater)
2. डिएरियेटिंग इकाई (Deaerating Unit)
3. उच्च ताप उपचार इकाई (High Temperature Treatment Unit)
उच्च गुणवत्ता वाले दूध के प्राप्ति के तुरन्त बाद स्वच्छ करके अवशीतित अवस्था में एकत्र किया जाता है । Uperization की प्रथम इकाई में 50०C ताप पर दूध का Forewarming किया जाता है । निर्वात उपचार (Vacuum Treatment) द्वारा दूध में घुली हुई आक्सीजन आदि गैस तथा अन्य वाष्पशील अपसुवास निकाली जाती है । इस प्रक्रिया के दूसरे भाग में पहले दूध का 80-90०C तापमान तक पूर्वतापन किया जाता है फिर Uperization Chamber में उच्च दाबयुक्त भाप द्वारा 1/3 से 3/4 सैकिंड के समय के लिए दूध को 150०C ताप पर गर्म किया जाता है ।
इसके बाद दूध एक Expansion Chamber में लगभग वातावरणीय दबाव पर आता है जहाँ कुछ नमी का वाष्पीकरण हो जाता है । अब दूध को ठण्डा होने के लिए शीतक (Cooler) में भेजते है । जहाँ ठण्डा होने के उपरान्त सयह कक्ष में चला जाता है ।
अपेराईजेशन के लाभ (Advantages of Uperization):
i. पदार्थ की संग्रह क्षमता में वृद्धि हो जाती है ।
ii. पदार्थ से चारे या अन्य सभी प्रकार की अपसुवास निकल जाती है ।
iii. दूध में समांगीकरण प्रभाव अच्छी प्रकार से परिलक्षित होता है ।
iv. दुधारू में काफी कमी आ जाती है ।
v. सूक्ष्म जीवाणु (Micro Organism) अधिक दक्षतापूर्वक नष्ट किये जा सकते हैं ।
vi. दूध की पोषक महत्वता तथा उसके अन्य गुण पास्तुरीकरण की अपेक्षा अधिक प्रभावित नहीं होते हैं । अर्थात् इन गुणों पर उतना ही प्रभाव पडता है जितना सामान्य पास्तुरीकरण में ।
Step # 11. दूध का बैक्टोफ्यूगेशन (Bactofugation of Milk):
इस विधि में सूक्ष्म जीवाणुओं के आपेक्षिक घनत्व (1.01 से 1.13) तथा मखनिया दूध के आपेक्षिक घनत्व (1.036 से 1.040) में अन्तर होने के कारण दूध को अपकेन्द्रिकरण कर के उसमें उपस्थित 99 प्रतिशत जीवाणु दूध से पृथक हो जाते हैं । दूध का Bactofugation दो उपकेन्द्री स्वच्छक (Centrifugal Clarifiers) को एक श्रेणी क्रम (Series) में लगा कर, उन्हें अधिक तेज (20,000 चक्र प्रति मिनट, RPM) गति से चला कर किया जाता है ।
विधि (Procedure):
सर्व प्रथम दूध को 75०C ताप पर गर्म करके क्रमशः दो तेज चलने वाली अपकेन्द्री मशीनों से निकाला जाता है । कार्य प्रारम्भ करने के 15-20 मिनट बाद यन्त्र की क्षमता कम हो जाती है । इसका मुख्य कारण मशीन में चीकट जमा हो जाना है ।
अतः यन्त्र की कार्यक्षमता को उचित तथा सामान्य बनाये रखने हेतु बाऊल में छेद कर दिये जाते है । इन छेदों से कुछ थोडी मात्रा में दूध के साथ चीकट बाहर निकलता रहता है तथा बाऊल साफ बना रहता है । परिणामत मशीन दक्षतापूर्वक कार्य करती रहती है ।
Step # 12. दूध का निर्जमीकरण (Sterilization of Milk):
”वह दूध जो 100०C या अधिक तापमान पर उतने समय के लिए गर्म किया जाए कि सामान्य ताप पर कम से कम 7 दिन तक उपभोग के लिए उपयुक्त अवस्था में रखा जा सके, निर्जमीकृत दूध कहलाता है ।”
इस क्रिया को निर्जमीकरण (Sterilization) कहा जाता है व्यवसायिक रूप में निर्जमीकृत दूध पूर्ण रूप से जीवाणु विहीन (Sterile) नहीं होता है क्योंकि इस तापमान एवं समय के संयोग पर स्पोर्स (Spores) बनाने वाले जीवाणु स्पोर अवस्था (Spore Form) में जीवित बने रहते हैं जो बाद में भंडरण के समय उपयुक्त दशायें मिलने पर वृद्धि (Growth) करके दूध को खराब कर देते है यदि इन स्पोर्स को नष्ट करने हेतु ताप या समय बढाया जाये तो दूध के सामान्य गुणों विशेष रूप से रंग व गंध पर विपरीत प्रभाव पडता है । फलस्वरूप पदार्थ की व्यवसायिक माँग धट जाती है ।