दूध के सात प्राकृतिक अवरोधक पदार् | Read this article in Hindi to learn about the seven natural inhibitory substances of milk. The substances are:- 1. लैक्टोफैरिन (Lactoferrin) 2. लैक्टोप्रोक्सिडेज (Lactoperoxidase) 3. लाइसोजाईम (Lysozyme) 4. एन-ऐसिटाइल-बीटा-डी-ग्लूकोसामाइन (N-Acety-β-D-Glucosamine) 5. दुग्ध इम्यूनोग्लोब्यूलिन (Milk Immunoglobulin) 6. एन्टीमाइक्रोबियल पैप्टाइड (Antimicrobial Peptide) 7. वसा (Lipids).

मानव स्वास्थ्य पर दूध का लाभकारी प्रभाव प्राचीन काल से सर्वमान्य है । नवजातों की रोगरोधी क्षमता वृद्धि में खीस का अतुल्यनीय योगदान है । पिछले कुछ वर्षों से यह तथ्य भी प्रकाश में आया कि ताजे दूध की प्रोटीन तथा शर्करा में जीवाणु तथा वायरस को नष्ट (Antibacterial तथा Antiviral) करने का गुण पाया जाता है ।

यह गुण दूध में Lactoferrin, Lacto-peroxidase, Lipids, Lymphocyte-Anti-Adhesion Factor, Lysozyme तथा N-Acetyle-B-Glucosamine की उपस्थिति के कारण पाया जाता है ।

1. लैक्टोफैरिन (Lactoferrin):

लैक्टोफैरीन एक Glycoprotein है । इसमें जीवा-णुरोधी (Bacteriostatic) तथा जीवाणुघातक (Bactericidal) गुण पाया जाता है । यह प्रोटीन दूध के अतिरिक्त आंसू (Tears), लार (Saliva) तथा वीर्यद्रव (Seminal Fluid) में पाया जाता है । सामान्य दूध की अपेक्षा इसकी मात्रा मानव दूध तथा खीस में अधिक होती है ।

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पशु के शुष्क काल में अयन के द्रव में इसकी सान्द्रता अधिक रहती है । अतः वह उस समय में अयन को संक्रमण (Infection) से बचाता है । थनैला रोगाणु (Mastitis Pathogens) सहित अनेक जीवाणुओं के विरुद्ध यह तत्व कार्य करता है । इन जीवाणुओं में प्रमुखतः Coliform, Staphylococcus Aureus, Coastridium Spp., Bacillus Spp., Vibrio Chlorae तथा Listeria Monocytogenes है ।

यह तत्व रोगरोधी क्षमता वृद्धि कारक (Immunnostimulating Factor) भी है । लैक्टोफैरिन का 1 प्रतिशत घोल दूध, मांस एवं सब्जियों का संग्रह काल बढाता है । मानव खीस से प्रतिदिन 3 आम तथा पशुखीस से 1 ग्राम प्रतिलीटर लेडी-लिन तत्व प्राप्त होता है ।

2. लैक्टोपरोक्सीडेज (Lactoperoxidase):

यह दूध में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक एन्जाइम है । पशु के दूध में इसकी मात्रा लगभग 0.03 ग्राम प्रति लीटर पायी जाती है । मानव दूध में, पशु-दूध की अपेक्षा यह एन्जाईम लगभग 20 गुणा कम पाया जाता है । यह हाइड्रोजन प्रोक्साईड (H2O2) तथा थायोसाइनेट (Thiocynate) के साथ मिलकर जीवाणु-रोधी प्रणाली (Antibacterial System) विकसित करता है ।

यह आयोडीन के साथ मिलकर तथा की वृद्धि को भी रोकता है । लैक्टो परोक्सीडेज एन्जाईम Pseudomonas, Salmonelle, Shigella तथा Coliform के लिए जीवाणु घातक Bactericidal तथा Streptococcus, Staphylococcus, E.Coli एवं Lactobacillus के लिए जीवाणुरोधी (Bacteriostatic) के रूप में कार्य करता है ।

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दूध में B.Abortus तथा C.Bruneti की वृद्धि तथा विकास पर इस एन्जाईम का कोई ऋणात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है । दूध में थोड़ी मात्रा में Sodium Thiocynate तथा Sodium Percarbonate मिलाकर Lactoperoxidase System को क्रियाशील करके दूध के संग्रह काल में वृद्धि की जा सकती है ।

3. लाइसोजाईम (Lysozyme):

यह एन्जाइम प्रमुखतः मानव दूध में पाया जाता है जिसमें इसकी मात्रा लगभग 0.12 ग्राम प्रति लीटर होती है । खीस में इसकी सान्द्रता अधिक पायी जाती है यह जीवाणु घातक (Bactericidal) तत्व है । लाइसोजाइम प्रमुखतः E-Coli तथा Salmonella की वृद्धि को नियंत्रित करता है । यह दवा के रूप में सूजनरोधी (Anti-Inflammatory) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है । निरोगीकरण क्रिया द्वारा इसे लगभग 25% तक नष्ट किया जा सकता है ।

4. एन-ऐसिटाइल-बीटा-डी-ग्लूकोसामाइन (N-Acety-β-D-Glucosamine):

मध्य दुग्ध काल (Mid-Lactation) के दूध में इस एन्जाईम की मात्रा सर्वाधिक होती है । लैक्टोफैरिन के साथ यह मिलकर अयन संक्रमण (Mammary Infection) को कम करता है । इसमें जीवाणुरोधी (Bactericidal) गुण पाया जाता है तथा मूत्र तन्त्र (Urinary Tract) के रोगाणु जैसे Actinomyces Pyogens, Staphylococcus Aureus, S. Aglactiae तथा Pseudomonas Acrogenosa के विरुद्ध कार्य करता है ।

5. दुग्ध इम्यूनोग्लोब्यूलिन (Milk Immunoglobulin):

प्राचीन काल से सर्वविदित है कि मां अपने दूध द्वारा Immunoglobulin को बच्चे में भेज कर अपने नवजात शिशु की रक्षा प्रणाली (Passive Protection) को विकसित करती है । सन् 1950 में Immune विचारधारा प्रकाश में आयी । Immune Milk उत्पादन के लिए ग्याभिन तथा शुष्क गाय का Hyper Immunization करने के लिए Pathogenic Antigen का प्रयोग करते हैं ।

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इससे उसके खीस तथा दूध में Antigen Specific Antibodies की मात्रा बढ जाती है । दूध में अधिक मात्रा में Antibody प्राप्त करने के लिए उसे (गायकी) Intra Muscular तथा Intramammary रूप में Immunogen देते हैं ।

Immune Milk का उपयोग गले के रोगों, AIDS, तथा HIV संक्रमण में उत्साह- वर्धक परिणाम देने वाला सिद्ध हुआ है । इस प्रकार के दूध का प्रयोग विभिन्न रोगाणुओं के विरुद्ध सफलता पूर्वक किया जा सकता है ।

इन रोगाणुओं में मुख्य रूप से Entropathogenic, E.Coli, Rotavirus, Cryptosporidium Parvum, Shigella, Heliobacter Pylori Vibrio Cholrae तथा Streptococcus है । Immune Milk उपभोग से पाचनतन्त्र में लैक्टिक अम्ल उत्पादक जीवाणुओं की संख्या बढती है । अतः यह Gastro Intestinal Infections को रोकता है ।

6. एन्टीमाइक्रोबियल पैप्टाइड (Antimicrobial Peptide):

दूध में प्राकृतिक रूप में Antimicrobial Protein पायी जाती है । जो Broad Spectrum Bacteria को मारने में प्रभावी होती है । आहारनाल में भोज्य पदार्थों पर एन्जाइम की क्रिया द्वारा प्रोटीन, ग्लाइको प्रोटीन व लाइपोप्रोटीन का अपघटन होकर पैप्टाइड श्रृंखलाएँ बनती हैं । दुग्ध प्रोटीन का एन्जाइम द्वारा जल अपघटन से जैविक रूप से क्रियाशील पैप्टाइड बनते है ।

ये पैप्टाइड रोगरोधी प्रतिक्रिया (Immunological Responses) तथा कोशीय क्रिया (Cellular Function) को प्रभावित करता है । पशुओं के दूध में Immunologically Active Peptide पाये जाते हैं । जो दूध में जीवाणु घातक के रूप में कार्य करते हैं । ये केसीन के पैप्टाइडस, β-Lactoglobulin तथा Glycophospho-Peptides होते हैं ।

केसीन से बने पैप्टाइडस में α, s1 –Casein, β-Casein Le Lee K-Casein प्रमुख है । इने α, s1 –Casein Le Lee β-Casein पैप्टाईडस के जीवाणुरोधी गुणों का अध्ययन किया गया है । ये Klebriella Pneumonia, Staphylococcus Aureus तथा Candida Albicans के लिए रोधी का कार्य करते है ।

7. वसा (Lipids):

वसा साधारणतया ट्राईग्लिसराइडस तथा फोस्फोलिपिडस का मिश्रण है जिसमें लगभग 98% तक ट्राइग्लिराइडस पाये जाते हैं । लिपिडस के अपधटन से प्राप्त पदार्थ जीवाणुरोधी क्रिया दर्शाते है । फोस्कोलिपिडस, आन्तिक फोडा (Gastric Ulcers) में दवा का कार्य करते हैं ।

यह Heliobacter Pylori द्वारा होने वाली Gastritis को भी ठीक करता है । दूध में एक Anti-Adhesion Factor पाया जाता है जो शरीर में संक्रमण स्थान से Lymphocytes के Migration को रोकता है, फलस्वरूप सूजन नियन्त्रित होती है ।

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