दूध में मौजूद बैक्टीरिया का वर्गीकरण | Read this article in Hindi to learn about the classification of bacteria present in milk.
1. वृद्धि तापमान के आधार पर वर्गीकरण (Classification Based on Growth Temperature):
जीवाणुओं की वृद्धि हेतु उपयुक्त तापमान की आवश्यकता के आधार पर उन्हें चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:
i. शीतप्रिय जीवाणु (Psychrophilic Bacteria):
ये जीवाणु 3 से 20०C तापमान पर सामान्य वृद्धि एवं विकास करते है । इनमें Pseudomonas Fragi तथा Pseudomonas Florescence आदि । ये अधिक ताप पर नष्ट हो जाते हैं । 3०C तापमान से कम पर इनकी वृद्धि दर घट जाती है ।
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ii. कोष्णप्रिय जीवाणु (Mesophilic Bacteria):
ये जीवाणु 20 से 50०C तापक्रम के मध्य सामान्य वृद्धि एवं विकास करते है । इनके लिए सर्वोंखुक्त तापमान 30०C से 37०C होता है । कम तापमान पर ये अक्रियाशील तथा उच्च ताप पर नष्ट हो जाते है । इस वर्ग के जीवाणु ही अधिकतर दूध में पाये जाते हैं । दुग्ध उद्योग की दृष्टि से यह वर्ग महत्वपूर्ण है । Lactococcus Lactis तथा Lactococcus Cremoris इस वर्ग के प्रमुख दुग्ध जीवाणु है । रोगाणु भी अधिकांशतः इसी वर्ग में आते है ।
iii. तापरागी जीवाणु (Thermoduric Bacteria):
इनके विकास एवं वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान 30-36०C है परन्तु अधिक तापमान पर ये जीवाणु न वृद्धि एवं विकास करते हैं तथा न ही नष्ट होते है । ये जीवाणु निरोगीकरण क्रिया (Pasteurization) द्वारा नष्ट नहीं होते है बल्कि Spore बना लेते हैं ।
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जो उपयुक्त तापमान मिलने पर वृद्धि करते हैं तथा दूध को खराब कर देते है । इस वर्ग में Micrococcus Luteus, Micrococcus Condidus, Streptococcus Thermophilus, Streptococcus, Microbacterium Flavum तथा Microbactrium आदि आतें है ।
iv. उष्णप्रिय जीवाणु (Thermophilic Bacteria):
इनके वृद्धि एवं विकास के लिए उपयुक्त तापमान 50-70०C है । अधिक तापमान पर ये नष्ट नहीं होते तथा बीजाणु बना लेते है । निरोगीकरण की अल्पताप दीर्घ-समय (LTLT) विधि अपनाने पर दूध में इनकी संख्या में तीव्र वृद्धि होती है । यही कारण है कि पटा विधि का प्रयोग अब औद्योगिक स्तर पर नहीं किया जा रहा है । इस वर्ग के प्रमुख जीवाणु Lactobacillus Themophillus तथा Bacillus Colidolactis एवं Bacillus Subtilis आदि हैं ।
2. आकृति के आधार पर वर्गीकरण (Classification Based on Shape):
आकृति के आधार पर जीवाणु को चार वर्गों में विभक्त करते हैं:
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i. गोलाकार (Round Shaped):
ये जीवाणु गोलाकार आकार में 0.5 से 1.5 µ व्यास के होते हैं । ये अलग-अलग या आपस में जुडकर श्रृंखला बनाये मिलते है । ये बीजाणु नहीं बनाते हैं ।
इनके चार उपवर्ग है:
(a) कोकस (Coccus):
गोलाकार जीवाणुओं का अलग-अलग व्यक्तिगत इकाइयों में पाये जाने वाले जीवाणुओं को कोकस (Coccus) कहा जाता है ।
(b) डिपलोकोकस (Diplococcus):
दो जीवाणु आपस में जुड़ कर Dipolococcus बनाते हैं ।
(c) स्ट्रैप्टोकोकस (Streptococcus):
दो से अधिक जीवाणु मिल कर एक सीधी श्रृंखला जैसी रचना बना लेते हैं तो इन्हें Streptococcus कहा जाता है । इस वर्ग के अधिकतर जीवाणु रोगाणु होते है ।
(d) स्टैंफाइलोकोकस (Staphylococcus):
दो से अधिक गोलाकार जीवाणु अनियमित रूप में एक साथ जुडते हुए वृद्धि एवं विकास करते हैं तो इन्हें Staphyloccus कहा जाता है । सामान्यतया ये गुच्छे जैसी रचना बनाते है ।
ii. रम्भाकार जीवाणु (Rod-Shaped):
इन जीवाणुओं को Bacilli भी कहा जाता है । ये रचना में बेलनाकार होते है । इनका व्यास 0.5 से 1µ तथा लम्बाई 2 से 6µ तक होती है । ये जीवाणु अधिकांशतः बीजाणु बनाते हैं ।
iii. स्पाईरिला (Spirilla):
इस वर्ग के जीवाणु दूध में यदा-कदा ही पाये जाते हैं ।
iv. बिब्रोसिस (Vibriosis):
ये जीवाणु भी दूध में कभी-कभी तथा बहुत कम संख्या में पाये जाते है ।
3. क्रियाओं के आधार पर वर्गीकरण (Classification Based on Their Function):
दूध में उपस्थित जीवाणु विभिन्न प्रकार की किण्वन (Fermentation) क्रियाएं करते है । दूध में उपस्थित जीवाणु दूध में विद्यमान पोषक अव्यवों जैसे वसा, लैक्टोज तथा प्रोटीन के जल अपघटन की क्रिया को उत्प्रेरित करने वाले एन्जाईम उत्पादित करते हैं जो उपरोक्त पोषक अव्यवो का अपघटन करते है । इन पदार्थों के विघटन से विभिन्न अम्ल तथा गैसें बनते है ।
इस वर्ग के जीवाणुओं को तीन समूहों में विभक्त करते हैं:
I. कार्बोहाइड्रेट विघटनकारी जीवाणु (Carbohydrate Fermenting Bacteria):
जीवाणु दूध में उपस्थित लैक्टोज का विघटन कर उसे लैकिटक अम्ल में परिवर्तित करते है । इस वर्ग के जीवाणुओं को जब हम नियमित दशाओं में प्रयोग करते है तो विभिन्न किण्वित दुग्ध पदार्थ (Fermented Milk Products) बनते हैं । इस वर्ग में दही, मक्खन, पकी क्रीम, पनीर तथा चीज आते हैं । दूध में इन जीवाणुओं की क्रिया अनियन्त्रित दशा में होने पर ये दूध को खराब कर देते हैं ।
इन जीवाणुओं को उनके द्वारा सम्पन्न कियाओं के आधार पर दो भागों में बाटते हैं:
(i) सम किण्वन जीवाणु (Homofermenting Bacteria):
ये जीवाणु लैक्टोज को ग्लूकोज तथा ग्लैक्टोज में विभक्त कर देते है जो बाद में Lactic Acid में परिवर्तित हो जाते हैं:
इस वर्ग में दुग्ध उद्योग की दृष्टि से प्रमुखतः Lactococcus Lactics तथा lactococcus Cremosis जीवाणु आते है ।
(ii) विषम किण्वन जीवाणु (Hetero Fermenting Bacteria):
ये जीवाणु लैक्टोज से लैक्टिक अम्ल के साथ अन्य अम्ल भी उत्पादित करते हैं:
इस वर्ग में आने वाले जीवाणु Escherichia Coli तथा Aerobactor Acrogeness है ।
II. प्रोटीन विघटनकारी जीवाणु (Protein Fermenting Bacteria):
ये जीवाणु प्रोटीन को अमीनो अम्लों में विभक्त करते हैं । इन्हें Proteolytic Bacteria भी कहा जाता है । ये जीवाणु विशेष प्रकार के एन्जाईम निकालते हैं । जिन्हें Proteolytic Enzyme कहते हैं । ये एन्जाईम प्रोटीन को अमीनों अम्लों में विभक्त करते हैं । दूध में उपस्थित इस वर्ग के जीवाणु संश्लोषित एन्जाईम, केसीन पर क्रिया करते हैं ।
ये इस दुग्ध प्रोटीन को Proteoses, Peptones तथा Amino Acids में विघटित करते हैं । अमीनो अम्ल स्वाद में कडवे होते हैं अतः इस प्रकार का किण्वन होने पर दूध या दुग्ध पदार्थ में कडुवाहट उत्पन्न हो जाती है । इस वर्ग के प्रमुख जीवाणुओं में Bacillus Subtilise, Bacillus Serus, Bacillus Callidolactics, pseudomonas Fluorescans, Streptococcus Liquifacience तथा Micrococcus Casi है ।
III. वसा किणवनकारी जीवाणु (Fat Fermenting Bacteria):
ये जीवाणु वसा का विघटन वसीय अम्ल तथा ग्लिसरोल में करते हैं । यह विघटन लाइपेज एन्जाईम द्वारा होता है जो इस वर्ग के जीवाणुओं द्वारा संश्लेषित किया जाता है । वसा विघटित होने पर दूध तथा दुग्ध पदार्थों से एक विशेष प्रकार की दुर्गम आती है दूध की वसा के विघटन को प्रेरित करने वाले जीवाणुओं में Pseudomonas Fragi, Achromobacterium Lipoliticum तथा Pseudomonas Fluorescens प्रमुख है ।