दूध में सूक्ष्मजीव: विकास और प्रभाव | Read this article in Hindi to learn about:- 1. दूध में जीवाणुओं की वृद्धि (Growth of Microorganisms in Milk) 2. जीवाणुओं का क्षय (Destruction of Microorganisms) 3. प्रभाव (Effects).
दूध में जीवाणुओं की वृद्धि (Growth of Microorganisms in Milk):
जीवाणु विज्ञान में वृद्धि से तात्पर्य संख्या में वृद्धि से है । एकदम ताजे दूध में कुछ जीवाणु उपस्थित होते हैं । इनकी वृद्धि पदार्थ की संग्रहण अवस्थाओं पर निर्भर करती है ।
सक्षम जीवाणुओं की वृद्धि की अवस्थाएं (Stages of Growth of Microorganisms):
इनकी वृद्धि 5 अवस्थाओं में पूरी होती है:
ADVERTISEMENTS:
1. प्रारम्भिक स्थिर अवस्था (Initial Stationary Phase) ।
2. समायोजन की अवस्था (Lag Phase) ।
3. गणितीय वृद्धि की अवस्था (Accelerated Growth Phase) ।
4. अधिकतम स्थिरता की अवस्था (Maximum Stationary Phase) ।
ADVERTISEMENTS:
5. बढ़ती गति से मृत्यु की अवस्था (Accelerated Death Phase) ।
सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Growth):
1. भोजन आपूर्ति (Food Supply)
2. नमी (Moisture)
ADVERTISEMENTS:
3. वायु आपूर्ति (Air Supply)
4. अम्लता या पी. एच. (Acidity or pH = 5.6 to 7.5 Optimum)
5. परिरक्षी पदार्थों की उपस्थिति (Presence of Preservative)
6. प्रकाश (Light)
7. सान्द्रता (Concentration):
शर्करा व नमक की अधिक सान्द्रता, जीवाणु वृद्धि को रोकती है ।
8. तापमान (Temperature)
जीवाणुओं का क्षय (Destruction of Microorganisms):
जीवाणुओं को निम्नांकित 6 विधियों द्वारा नष्ट किया जा सकता है:
1. उष्पा (Heat):
डेरी उद्योग में जीवाणुओं के विनाश के लिए उष्मा का प्रयोग व्यापक रूप में किया जा रहा है । विभिन्न प्रकार के ताप उपचारों (Pasteurization, UHT, Sterilization आदि) में विभिन्न ताप व समय संयोग (Time and Temperature Combination) रख कर विभिन्न वर्गों के जीवाणुओं को नष्ट किया जाता है ।
2. आयनिक विकिरण (Ionizing Radiation):
दूध में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए Ultraviolet Rays आदि का प्रयोग किया जाता है ।
3. विद्युत (Electricity):
विद्युत द्वारा उत्पादित उष्मीय ऊर्जा के द्वारा जीवाणुओं को नष्ट किया जा सकता है ।
4. दाब (Pressure):
यदि पदार्थ पर दाब वायुमण्डलीय दाब की तुलना में 600 गुणा तक बढ़ा दिया जाय तो जीवाणु नष्ट हो जाते है ।
5. उच्च आवर्ती ध्वनि तरंग (High Frequency Sound Waves):
जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए Supersonic तथा Ultrasonic Waves का प्रयोग किया जाता है ।
6. रसायन (Chemicals):
अम्ल, क्षार, हाइड्रोजन प्रोक्साइड तथा हैलोजन आदि का प्रयोग जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए परिरक्षी (Preservative) के रूप में दुग्ध उद्योग में व्यापक रूप से किया जाता है ।
दूध पर जीवाणुओं का प्रभाव (Effects of Microorganisms in Milk):
दूध पोषक तत्वों से भरपूर पदार्थ है इसमें वे सभी रासायनिक यौगिक उतनी मात्रा में पाये जाते हैं जितनी मात्रा की जीवों को स्वस्थ जीवन हेतु आवश्यकता होती है । दूध में सूक्ष्म जीव प्रवेश पाकर उचित वातावरण में तीव गति से वृद्धि करते हैं तथा वृद्धि के समय विभिन्न एन्जाइमों का संश्लेषण स्वतः होता है जो दूध के ठोस अव्यवों पर प्रतिक्रिया करके उनमें रासायनिक परिवर्तन करते हैं ।
यदि ताजे दूध का एक नमूना 20०C ताप पर रख लें तो समय बीतने के साथ-साथ उसमें विभिन्न परिवर्तन होते रहते हैं । दूध में होने वाले इन परिवर्तनों को दूध का सामान्य किण्वन (Normal Fermentation of Milk) कहा जाता है ।
दूध के इस संग्रहालय को चार भागों में बाटा जा सकता है:
1. जीवाणुनाशक काल (Germicidal Period):
दूध दूहने के कुछ समय बाद तक दूध में जीवाणुरोधी तत्वों की क्रियाशीलता के कारण उसमें जीवाणुओं की वृद्धि नहीं होती है अपितु प्रथम पाँच से छ घंटे में पहले से उपस्थित जीवाणु संख्या में घटते हैं इस समय को ही जीवाणुनाशक काल कहते है ।
यहाँ समय तथा तापमान में ऋणात्मक सम्बन्ध है जीवाणुनाशन काल दूध का संग्रह तापमान घटने पर बढता है तथा उसके विपरीत कम ताप पर यह काल बढ जाता है । दूध को 60-80०C ताप पर गर्म करने पर दूध का यह गुण समाप्त हो जाता है । यह समय कुछ मिनटों से कुछ घण्टों तक का हो सकता है ।
यह काल अधिक लम्बा नहीं किया जा सकता है । जीवाणुनाशन काल में Lactinin यौगिक कुछ जीवाणुओं को नष्ट करता है । लैक्टिक अम्ल जीवाणुओं पर इस यौगिक का प्रभाव कम होता है अतः दोहन के बाद शीघ्रातिशीघ्र दूध को ठण्डा करें ।
2. खट्टा होने का समय (Souring Period):
संग्रहण के कुछ घंटे बाद दूध में कार्बोहाइड्रेट (लैक्टोज) को विघटित करने वाले जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं । लैक्टोज से लैक्टिक अम्बल बनने लगता है । यह परिवर्तन कुछ घंटे से लेकर कुछ दिनों तक चलता रहता है । लैक्टिक अम्ल की निश्चित सान्द्रता (लगभग 1%) पर लैक्टिक अप्ल उत्पादक जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाती है ।
3. उदासीनीकरण काल (Neutralization Period):
लैक्टिक अम्ल की लगभग 1% सान्द्रता पर अधिकतर जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाती है । इस अम्लीय माध्यम में दूध में उपस्थित Yeast तथा Mould वृद्धि प्रारम्भ करते है । यह अम्ल इनके द्वारा उपयोग कर लिया जाता है । ये कुछ क्षारीय पदार्थों का संश्लेषण भी करते हैं ।
जो कुछ अम्ल को उदासीन करते हैं । परिणाम स्वरूप दूध में अम्लता प्रतिशत में कमी आती है इस समय दूध की सतह पर Mould की एक मोटी परत बन जाती है । यह प्रक्रिया कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह तक चलती रहती है ।
4. सड़न/पूयन काल (Putrefaction Period):
यीस्ट तथा मोल्ड के कारण अम्लता प्रतिशत कम होने पर दूध की प्रतिक्रिया क्षारीय हो जाती है । अम्लता प्रतिशत घटने पर दूध में उपस्थित अम्लता के कारण अक्रियाशील या सुशुप्त (Dormant) जीवाणु क्रियाशील हो जाते हैं । ये जीवाणु प्रोटीन को अपघटित करते हैं ।
ये जीवाणु यीस्ट तथा मोल्ड के सहयोग से दूध के ठोस अव्यवों को अपघटित करके दूध को स्वच्छ द्रव (Clear Liquid) में बदल देते है । यह पदार्थ इस अवस्था में भोजन के रूप में उपयोगी नहीं रहता है तथा इसमें कुछ विषैले रसायन (Toxins) भी उत्पन्न हो जाते है ।