दूध संविधानों का पौष्टिक मूल्य | Read this article in Hindi to learn about the nutritive value of milk constituents.

दूध नवजात शिशुओं का भोजन है । इसमें उनके लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व (All-In-One) उचित अनुपात में विद्यमान रहते हैं । विभिन्न जातियों से प्राप्त दूध में उसके संघटकों की अलग मात्राएँ पायी जाती हैं । दूध के मुख्य संघटक पानी, वसा, लैक्टोज, प्रोटीन तथा खनिज तत्व है ।

दूध में पाए जाने वाले गौण संघटकों में विटामिन, एन्जाईम, सूक्ष्म तत्व (जैसे Zn, Cu, Fe, Co) गैस, यूरिया तथा अन्य कोशिकीय अभिक्रियाओं के उपापचीय उपजात पाये जाते हैं । दूध में लवण तथा शर्करा पानी के विलयन के रूप में प्रोटीन कोलाइडी निलम्बन, वसा इमल्सन के रूप में पाया जाता है । दूध के सभी संघटकों का अपना-अपना महत्व है ।

1. दुग्ध कार्बोहाईड्रेट्‌स (Milk Carbohydrates):

कार्बोहाईड्रेट्‌स वे कार्बनिक यौगिक हैं जिनमें कुछ को छोड़ कर सामान्यतया हाइड्रोजन तथा आक्सीजन 2 व 1 के अनुपात में पाया जाता है । इन यौगिकों को मोनोसेकेराईड, ओलिगोसैकेराइडज तथा पोलीसैकेराइड वर्गों में बाटा जाता है । दूध में मुख्य रूप से लैक्टोज (Milk Sugar-Lactose) तथा गौण रूप में ग्लूकोज, टियूफिकोज, गाइनोलैक्टोज, जएलोलैक्टोज, पेन्टोज तथा एरेबिनोज पाये जाते है ।

ADVERTISEMENTS:

दुग्ध शर्करा की खोज 1615 ई॰ में बर्टोलिटी ने की थी विभिन्न जातियों से प्राप्त दूध में इसकी मात्रा 2 से 10 प्रतिशत तक होती है । इनमें गाय, भैंस, भेड़ बकरी के दूध में 47 से 5% तथा मानव दूध में लगभग 6.5% तक पायी जाती है । लैक्टोज में ग्लूकोज तथा ग्लैक्टोज की एक-एक इकाई पायी जाती है ।

I. दुग्ध उद्योग में लैक्टोज का उपयोग तथा महत्व:

(i) दूध से किण्वित दुग्ध पदार्थ उत्पादन के लैक्टोज परम आवश्यक है ।

(ii) दुग्ध पदार्थों को अधिक गर्म करके लक्टोज द्वारा इनमें एक विशेष गन्ध उत्पन्न करते है ।

ADVERTISEMENTS:

(iii) शिशु आहार निर्माण में गाय के दूध के साथ लैक्टोज का उपयोग होता है ।

(iv) मीठा तथा संघनित दुग्ध निर्माण में लैक्टोज का प्रयोग किया जाता है ।

II. लैक्टोज के अन्य व्यवसायिक उपयोग:

(i) यह गोलियां तथा टिकियां बनाने में एक विलायक का कार्य करता है ।

ADVERTISEMENTS:

(ii) यह पैनिसिलिन उत्पादन के लिए मोल्ड की वृद्धि हेतु माध्यम के रूप में प्रयोग होता है ।

(iii) यह एल्कोहल के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है ।

(iv) अवकारक पदार्थ होने के कारण सिल्वर दर्पण बनाने के काम आता है ।

(v) इसे जल अपघटित करके लैक्टोज सीरप बनाने में प्रयोग करते है ।

III. लैक्टोज का पोषक महत्व:

(i) लैक्टोज दूध के ऊर्जा मान में वृद्धि करता है ।

(ii) यह शरीर में विटामिन संश्लेषण में सहायक होता है ।

(iii) यह आंत द्वारा कैल्शियम एव फास्फोरस के अवशोषण में सहायता करता है ।

(iv) लैक्टोज आंत में लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करता है जो अम्ल उत्पादक जीवों के विकास को प्रोत्साहित कर पैथोजैनिक (रोगकारी) जीवाणुओं की वृद्धि को रोक देता है ।

(v) दूध मस्तिष्क तथा तन्त्रिका तन्तुओं में उपस्थित लैक्टोज के लिए मुख्य स्रोत है । लैक्टोज का अव्यव ग्लैक्टोज मस्तिष्क तथा नाडी संस्थान के लिए आवश्यक है ।

(vi) यह अन्य शर्कराओं की अपेक्षा अधिक स्वास्थ्यवर्धक है ।

IV. लैक्टोज का व्यापारिक निर्माण (Commercial Production of Lactose):

लैक्टोज का व्यवसायिक उत्पादन चीज व्हे (Cheese Whey) से किया जाता है ।

व्हे में वैद्यामान वसीय यौगिकों को सेन्ट्रीफ्यूगल मशीन द्वारा अलग करके प्राप्त वसा विहीन व्हे को चुने के साथ उबाल कर छानते हैं । छनित व्हे को शून्यक (Vacuum) में संघटित करके ठण्डा कर लिया जाता है जिसमें लैक्टोज क्रिस्टल (Crystals) के रूप में जम जाता है । इन लैक्टोज क्रिस्टलों को सेन्ट्रीफ्यूगल विधि द्वारा अलग कर लिया जाता है ।

लैक्टोज उत्पादन विधि को निम्नलिखित पदों में विभक्त करते हैं:

1. व्हे से वसा को अलग करना ।

2. व्हे को चूने के साथ उबालना ।

3. अवक्षेपित प्रोटीन के छान कर अलग करना ।

4. छनित को वाष्पित करके लैक्टोज सिरप बनाना ।

5. सिरप को ठण्डा करके मणिभीकरण (Crystallization) करना ।

6. लैक्टोज के क्रिस्टल्स को अलग करना तथा धोना ।

7. लैक्टोज के क्रिस्टल्स को सुखाना ।

प्राप्त लैक्टोज से अशुद्धियों को दूर करने के लिए जन्तु कोयले का प्रयोग किया है । वर्तमान में प्रयोग की जा रही विधि से β – Lactose का उत्पादन किया जाता है । इसकी धुलनशीलता α – लेक्टोज की अपेक्षा अधिक होती है ।

2. दुग्ध लिपिडस (Milk Lipids):

लिपिडस कार्बनिक यौगिकों का वह समूह  है जिसमें वास्तविक वसा (Triglycerides) तथा उससे सम्बन्धित कार्बनिक पदार्थ सम्मिलित हैं । लिपिडस में तेल, वसा, मोम, फास्कोलिपिड, ग्लाईकोलिपिड के साथ इनके कुछ जल विश्लेषित पदार्थ जैसे स्टैरोल, ‘गिल्स्रोल, वसीयअम्ल, फास्फोरिक अम्बल, बाईल लवण, सेक्स हामोंन आदि सम्मिलित हैं ।

लिपिडस को सरल (Simple), यौगिक (Compound) तथा व्युत्पन्न (Derived) वर्गों में बांटा जाता है । दुग्धालिपिडस में 98% ट्राईग्लिसराइडस तथा शेष 2% में फास्फोलिपिड, कोलेस्टरोल, मोम तथा अन्य घुलनशील वसीय पदार्थ जैसे विटामिन तथा वर्णक सम्मिलित है । इसमें वसा, वसा गोलिकाओं के रूप में पायी जाती है ।

दूध की एक मि.ली. मात्रा में 2 से 4×1012 वसा गोलिकाएं पायी जाती हैं जो स्थिर रखने या मथने पर आपस में मिलकर झुण्ड बना लेती है । इन गोलिकाओं का आकार दूध में 0.1µ से 15µ तक पाया जाता है । बसा गोलिकाएं पारदर्शी होती हैं ।

ये गोलिकाएं फास्फोलिपिड तथा प्रोटीन की अधिशोषित परत से घिरी रहती है । इस परत को वसा गोलिका झिल्ली (Fat Globule Membranes) कहा जाता है । दुग्ध सीरम में भी सूक्ष्म मात्रा में फास्फोलिपिड, स्टैरोल तथा स्वतन्त्र वसीय अम्ल पाये जाते हैं ।

दुग्ध वसा में 9 सन्तृप्त वसीय अम्ल, 4 एक युग्म बन्ध (Single Double Bond) युक्त असन्तृप्त वसीय अम्ल तथा एक दो युग्म बन्ध (Two Double Bond) युक्त असन्दप्त वसीय अम्ल पाये जाते हैं । दुग्ध वसा में सर्वाधिक ओलिक अम्ल (33%) तथा पामिटिक अम्ल (25%) पाये जाते हैं । दुग्ध वसा में कुल मिला कर लगभग 43 प्रतिशत असंतृप्त वसीय अम्ल तथा 57 प्रतिशत सन्तृप्त वसीय अम्ल पायी जाती हैं ।

I. दुग्ध उद्योग में वसा का उपयोग तथा महत्व:

(i) दूध से सधन वसा युक्त दुग्ध पदार्थ (Fat Rich Dairy Products) जैसे क्रीम, मक्खन तथा घी बनाने में मक्खन वसा (Butter Fat) का उपयोग होता है ।

(ii) आईसक्रीम निर्माण में क्रीम के रूप में वसा मिलायी जाती है ।

(iii) काटेज पनीर में क्रीम की परत चढायी जाती है ।

(iv) दुग्ध वसा का सिफेलिन तथा स्फिंगोमाईलिन वायुमंडल के आक्सीजन से आक्सीकृत होकर ट्राईमिथाइल ऐमीन बनाता है जो वसा युक्त पदार्थ में मछ्ली जैसी (Fish Flavour) दुर्गन्ध उत्पन्न करता है ।

(v) दुग्ध वसा दुग्ध पदार्थों में एक विशिष्ट सुगन्ध प्रदान करती है ।

(vi) दुग्ध पदार्थों में अच्छा स्वाद, मुलायमपन, तथा चिकनापन वसा से ही आता है ।

II. दुग्ध वसा के अन्य व्यवसायिक उपयोग:

(i) पाक कला में (होटलों में) मखनिया खाद्य व्यजन निर्माण में मक्खन का उपयोग होता है ।

(ii) क्रीम से सलाद, पेस्ट्री तथा क्रीम रोल जैसे बिस्कृट बनाये जाते है ।

(iii) मक्खन का उपयोग साँस तथा चटनी बनाने में किया जाता है ।

(iv) घी का उपयोग विभिन्न भोज्य पदार्थों को Fry (तलना) करने में किया जाता है ।

(v) लगभग सभी धार्मिक कार्यों में घी की आवश्यकता होती है ।

(vi) घी का लगभग 80% भाग पाकशाला में, 18% भाग मिठाईयां बनाने में तथा 2% भाग धार्मिक कार्यों में उपयोग किया जाता है ।

III. दुग्ध वसा का पोषक महत्व:

(i) भारतीय अधिकतर शाकाहारी है अतः उनके भोजन में घी पशु वसा का मुख्य स्रोत है ।

(ii) घी से कार्बोहाड्रेटस की तुलना में लगभग 2.25 गुणा अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है । अतः यह भोजन से मानव शरीर के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है ।

(iii) दुग्ध वसा के अव्यव ‘फास्फोलिपिड’ का जैविक महत्व बहुत अधिक है जिसका विवरण निम्नवत् है:

(a) यह रक्तस्कन्दन में सहायक होता है ।

(b) ऊतकों के चयापचय में सहायक होता है ।

(c) वसा प्रोटोप्लाज़्म की संरचना का प्रमुख अव्यव है ।

(d) यह प्रजनन एवं शरीर विकास दोनों में सहयोग देता है ।

(e) यह कोशिकाओं के पोषण का कार्य करता है ।

(f) लैसिथिन दुग्ध वसा को सुरक्षित रखने में मददगार है ।

IV. दुग्ध वसा से शरीर को विटामिन तथा कोलस्टैरोल (Cholesterol) प्राप्त होते हैं ।

V. दुग्ध वसा में शरीर के लिए आवश्यक वसीय अम्ल (Essential Fatty Acids) जैसे Linoleic मिलते हैं ।

VI. इसमें कम द्रवणांक बिन्दु वाले वसीय अम्ल होने के कारण पाचन संस्थान में इनका पाचन शीघ्र होता है ।

3. दुग्ध प्रोटीन (Milk Protein):

प्रोटीन अत्यन्त जटिल, नाइट्रोजन युक्त, संकीर्ण कार्बनिक पदार्थों का एक समूह है जो सभी जीवित पदार्थों की कोशिकाओं का एक अनिवार्य संरचनात्मक भाग है । प्रोटीन पूर्णतया एल्फा अमीनो के जुड़ने से बना यौगिक है । इसमें एमीनो अस्त एक दूसरे से पेप्टाईड बन्धों (Co-NH) द्वारा जुड़े रहते है । प्रोटीन में 50-55% कार्बन, 20-25% आक्सीजन, 15-18% नाइट्रोजन, 6-7 हाइड्रोजन 0.4-2.5% सल्फर तथा 0.1 से 10% फास्फोरस पाया जाता है ।

सभी प्रकार की प्रोटीन में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 16% आवश्यक रूप से होती है जो दूसरे पोषक तत्वों में नहीं होती है अतः प्रोटीन के निर्धारण में सर्वप्रथम नाइट्रोजन की मात्रा ज्ञात की जाती है । प्राप्त नाइट्रोजन की मात्रा में 100/16 या 6.25 का गुणा करके प्रोटीन की मात्रा ज्ञात की जाती है ।

दूध में पायी जाने वाली कुल नाइट्रोजन केवल प्रोटीन के कारण ही नहीं होती अपितु कुछ दूसरे पदार्थ भी जो प्रोटीन नहीं होते नाइट्रोजन यौगिक के रूप में दूध में विद्यमान रहते है । दूध की कुल नाईट्रोजन का लगभग 95% भाग प्रोटीन में तथा 5% भाग अन्य यौगिकों (यूरिया, यूरिक अम्ल तथा क्रिएटिनिन) में रहता है ।

दूध में पायी जाने वाली मुख्य प्रोटीन निम्नवत् है:

1. केसीन (Casein-2.63%) 78.5 भाग नाइट्रोजन ।

2. एल्ब्यूमिन (Albumin – 0.31%) 9.2 भाग नाइट्रोजन ।

3. ग्लोब्यूलिन (Globulin – 0.11%) 3.3 भाग नाइट्रोजन ।

4. प्रोटियोज तथा पैप्टोन (Proteases and Peptones – 0.13%) 4 भाग नाइट्रोजन ।

दुग्ध प्रोटीन को तीन वर्गों में बाटते है:

1. सरल प्रोटीन (Simple Protein):

एल्ब्यूमिन तथा ग्लोब्यूलिन (केवल अमीनो अम्ल से बनी) इन्हें के प्रोटीन भी कहा जाता है ।

2. संयुग्मित प्रोटीन (Conjugated Protein):

केसीन, अमीनो अम्लों के साथ प्रसिथैटिक समूह (Prosthetic Group) (कार्बोहाइड्रेटस, पिगमैन्ट, फोस्फोरिक अम्ल, लेसिथिन या न्यूक्लिक अम्ल आदि) के मिलने से बनती है । केसीन में फोस्फोरिक अग्ल होता है अतः इसे फोस्फोप्रोटीन भी कहा जाता है । यह दूध की प्रमुख प्रोटीन है ।

 

3. व्युत्यादित प्रोटीन (Derived Proteins):

उपरोक्त प्रोटीन्स के आंशिक जल अपघटन से बनी शाहयोजिज तथा पैप्टोन्स को इस समूह में रखा जाता है ।

I. केसीन (Casein):

यह फास्फोरस युक्त फोस्को प्रोटीन संयुग्मित वर्ग में आती है । यह दूध की प्रमुख प्रोटीन है ।

दूध से केसीन प्राप्त करना (Separation of Casein from Milk):

दूध से वसा अलग करके (Cream Separation), सप्रेटा दूध में तीन गुणा जल मिला कर 40C तक गर्म करते है । गर्म किये दूध में फिटकरी का सन्तृप्त घोल डाल कर केसीन को अवक्षेपित कर लिया जाता है । पूर्ण अवक्षेपण के उपरान्त इसे 30 मिनट तक शान्त रख कर मलमल के कपडे में छान कर केसीन को अलग कर लेते हैं ।

छनित (Filterate) में एल्ब्यूमिन तथा ग्लोब्यूलिन चली जाती है । अवक्षेपित केसीन की अशुद्धियों को दूर करने के लिए इसे कई बार आसुत जल (Distilled Water) से धोते है । केसीन को अधिक शुद्ध बनाने के लिए NaOH की कम से कम मात्रा में घोल लिया जाता है ।

इस विलयन में 1% ऐसीटिक अम्ल विलयन मिलाकर पुन: अवक्षेपित करने है । अवक्षेप को पुन: आसुत जल से तथा फिर एल्कोहल व ईथर से धोकर सुखा लिया जाता है ।

केसीन के उपयोग (Uses of Casein):

(A) केसीन की व्यवसायिक उपयोगिता:

1. रेनेट द्वारा निर्मित महीन पिसी हुई केसीन से रंग (Rays) तथा जल द्वारा प्लास्टिक निर्मित की जाती है जिसका उपयोग बटन, आभूषण, कंघा, बुनने वाली सलाई, चाकूओं दस्ते आदि बनाने में उपयोग की जाती है ।

2. शुद्ध केसीन को चूना, सोडियम काबोंनेट, बोरैक्स आदि के विलयन में घोल कर उससे गोंद सीमेंट तथा अन्य चिपकाने वाले पदार्थ बनाये जाते हैं ।

3. केसीन से संश्लेशिंत धागे बनाये जाते है ।

4. केसीन, चूना तथा जल से Insecticide एवं Fungicidal Sprays बनाये जाते ।

5. यह औषधी निर्माण में प्रयोग की जाती हैं ।

6. केसीन का प्रयोग खाद्य टेनिक निर्माण में भी किया जाता है ।

7. केसीन पोस्टर रंग (Poster Colour) निर्माण में उपयोगी हैं ।

8. कागज की सतह को चिकना बनाने के लिए केसीन, चिकनी मिट्टी व अन्य पदार्थों को कागज की सतह पर चिपकाते है ।

B. केसीन की पोषक उपयोगिता (Nutritive Utility of Casein):

1. इस प्रोटीन में लगभग सभी अनिवार्य अमीनो अम्ल (Threonine, Valine, Leucine, Isoleucine, Lysine, Methionine, Phenylalanine, Tryptophan, Arginine तथा Histidine) प्राप्त हो जाते हैं ।

2. यह प्रोटीन पाचन प्रणाली में लगभग 97-98% तक पच जाती है तथा लगभग 76% तक शरीर में शोषित हो जाती है ।

3. यह आयोडीन तथा भारी धातुओं में संयुक्त होकर एक उपयोगी वाहक के रूप में कार्य करती है ।

4. केसीन से फास्फोरस तथा कैल्शियम भी प्राप्त होता है ।

II. लैक्टएल्बयूमिन (Lactalbumin):

यह C, H, O, N तथा S से निर्मित सरल प्रोटीन है । इसमें कार्बन 52.19%, हाइड्रोजन 7.18%, आक्सीजन 23.13%, नाइट्रोजन 15.77% तथा गन्धक 1.73% पाया जाता है ।

दूध से प्राप्त एल्ब्यूमिन रक्त एल्ब्यूमिन से सर्वथा भिन्न होती है:

1. दूध से एल्ब्यूमिन प्राप्त करना (Separation of Lactalbumine from Milk):

दूध को मैग्नीशियम सल्फेट के विलयन से सन्तृप्त करके केसीन तथा ग्लोब्यूलिन को पश्चात अलग कर दिया जाता है । छनित को 40C ताप पर गर्म करके 0.25% अम्ल विलयन द्वारा धीरे-धीरे सन्दप्त करके एक घण्टे के लिए रखते है । इस समय अवक्षेपित हो जाती है । इसे अलग करके शुद्ध करने के लिए ठण्डे पानी में विलयन बनाने हैं ।

इस विलयन को 40C ताप तक गर्म करके MgSO4 से सन्तृप्त करते है तथा अवक्षेपित प्रोटीन (केसीन एवं ग्लोब्यूलिन) को छान कर अलग कर विधि को 4-5 बार दोहराते है । विलयन को छान कर शुद्ध एल्कोहल द्वारा छनित से एल्ब्यूमिन को अवक्षेपित कर लिया जाता है । अन्तिम रूप से प्राप्त अवक्षेप को शुद्ध शुद्ध इथर से धो कर कम ताप पर सुखा लिया जाता है ।

2. लैक्टऐल्ब्यूमिन की पोषक उपयोगिता (Nutritive Utility of Lactalbumin):

लैक्टऐल्ब्यूमिन में आवश्यक अमीनो अम्ल विशेष रूप से लाइसीन तथा ट्रोप्टोफान अधिक मात्र में पाये जाने के कारण इसकी पोषकता अधिक होता है ।

III. लैक्टोग्लोब्यूलिन (Lactoglobulin):

दूध में इसकी मात्रा 0.11% तथा खीस में दूध की अपेक्षा 12 से 15 पायी जाती है । यह प्रोटीन रक्त सीरम ग्लेब्यूलिन के समान होती हैं । इस प्रोटीन मैं C-51.88%, H-6.96%, N-15.44%, O-24.62%, तथा S-0.86% तक पाये जाते हैं । खीस में चिपचिपापन इसकी अधिक मात्रा के कारण होता है ।

दूध में पायी जाने वाली इस प्रोटीन को दो भागों में बांटा जा सकता है:

1. इयूग्लोब्यूलिन (Euglobulin):

यह 0.6% NaCl विलयन में घुलती है जबकि पानी तथा NaCl के इससे तनु विलयन में अविलय है ।

2. स्यूडो-ग्लोब्यूलिन (Pseudoglobulin):

यह जल में अविलेय है । विलयन में से यह एल्कोहल द्वारा अवक्षेपित हो जाती हैं ।

दूध से लैक्टो ग्लोब्यूलिन प्राप्त करना (Separation of Lactoglobuline from Milk):

शुद्ध दूध को NaCl से सन्तृप्त करके अवक्षपित केसीन को छान कर अलग कर देते है । छनित को 35C ताप पर गर्म करते है यदि अवक्षेप बनता है तो उसे भी छान कर पृथक कर दिया जाता है ।

छनित को NaOH से उदासीन कर के MgSO4 से सन्तृप्त करते हैं जिससे लक्टो ग्लोब्यूलिन अवक्षेपित हो जाता है । अवक्षेप की शुद्धिकरण के लिए पुनः NaCl के विलयन में घोलते हैं तथा MgSO4 के विलयन से पुनः अवक्षेपण, छानना तथा विलयन बनाने की उपरोक्त सम्पूर्ण विधि को कम चार बार दोहराते हैं ।

अवक्षेप को पहले जल से, इसके बाद शुद्ध एल्कोहल से तथा अन्त में शुद्ध ईथर से बोकर सुखा लेते हैं । जलीय घोल में 72C ताप पर यह अवक्षोपित हो जाती है जबकि रैनिन द्वारा इसका अवक्षेपण नहीं होता है ।

दुग्ध ग्लोब्यूलिन की पोषक उपयोगिता (Nutritional Utility of Lactoglobuline):

1. माता के रक्त से ऐरीबॉडीज बच्चों में इस प्रोटीन द्वारा पहुंचाये जाते हैं । यह नवजात शिशुओं में प्रतिरक्षा कारक (Immunity Factor) का कार्य करता है ।

2. इसमें Proline एमीनो अप्ल की मात्रा अधिक होती है जो बच्चों में रक्त निर्माण में सहायक होता है ।

4. खनिज तत्व (Mineral Matter):

दूध को 500C तापमान पर जलाकर प्राप्त की गयी सफेद या भूरे रंग की भस्म में दूध के सभी अकार्बनिक तत्व पाये जाते है । दूध में भस्म की सामान्य मात्रा 0.75% होती है । दूध में विद्यमान कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन तथा भस्म में 13:9:2 का अनुपात (Vieth’s Ratio) पाया जाता है ।

दूध की भस्म वास्तविक खनिज की मात्रा से कुछ कम होती है क्योंकि दूध को जलाकर भस्म बनाने में खनिजों पर लगा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है । ‘दूध में खनिज आयनिक दशा (Ionic State), अनायनीकृत दशा (Unionized State) तथा कोलाइडी दशा (Colloidal State) में पाये जाते हैं ।

दूध में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज कैल्शियम (0.176%), फोस्फोरस (0.233%) पोटेशियम (0.19%), सोडियम (0.068%), मैग्निशियम (0.018%), साइट्रेट आयन (0.18%), क्लोराईड आयन (0.106), कार्बोनेट आयन तथा सल्फर (0.027%) है । गौण लवणों में लोहा (1.2PPM), तांबा (0.12PPM), आयोडीन (0.02 से 0.14PPM) जस्ता (3PPM) एवं अति सूक्षम मात्रा में मैग्नीज कोबाल्ट आदि पाये जाते हैं ।

खनिज लवणों को पोषक उपयोगिता (Nutritional Importance of Minerals):

i. फास्फोरस हड्डी, दांत तथा मांस निर्माण में कार्य करता है ।

ii. शरीर को आकार तथा दृढ़ता प्रदान करने वाला कंकाल खनिज लवणों का बना होता है ।

iii. शरीर के अव्यवों की रचना में प्रयुक्त प्रोटीन तथा बसा के साथ जुड कर लवण योगदान करते हैं । खनिज लवणों (कैल्शियम, फास्फोरस आदि) की कमी से बच्चों में रिकेट तथा वयस्कों में आस्टियोमेंलेशिया व आस्टोपोरोसिस हो जाता है ।

iv. शरीर विकास, दुग्ध उत्पादन, प्रजनन तथा शरीर एवं रख-रखाव में लगा उपापचयी क्रियाओं में भाग लेते हैं । लवणों की कमी होने पर उत्पादन घटता है तथा बांझपन भी हो सकता है ।

v. अनेक एन्जाईमो के सक्रिय करने लिए खनिज क्रियाकारक का कार्य करता है ।

vi. लोह तत्व तथा मैग्नीज रुधिर निर्माण में आवश्यक होते है ।

vii. सल्फर एमीनो अम्लों के संश्लेषण में सहायक होते है ।

viii. कॉपर वसीय अम्लों, एस्कोर्बिक अम्ल तथा विटामिन डी के आक्सीकरण में सहायता करता है ।

ix. क्लोरीन आहार को पचाने तथा शरीर वृद्धि व प्रजनन में आवश्यक है ।

x. अल्पमात्रा में फ्लोरीन दांतों के रख-रखाव के लिए आवश्यक है ।

xi. कोबाल्ट विटामिन B-12 के संश्लेषण में काम करता है तथा रक्ताल्पता को कम करता है ।

xii. आयोडिन, थाइराक्सीन हार्मोन के लिए आवश्यक है जो चयापचयी क्रियाओं को प्रभावित करता है । आयोडीन की कमी से Goiter रोग हो जाता है ।

xiii. सोडियम, पोटाशियम तथा क्लोराईड शरीर द्रवों का परिसारक दाब स्थिर रखता है ।

xiv. लवणों की सामान्य कमी से जोडों की आकडन, पसली की आस्थियों में गांठें बनना, शरीर की अस्थि सन्धि टेढ़ी-मेढ़ी तथा पक्षाघात हो सकता है ।

xv. जस्ता त्वचा के लिए आवश्यक है इसकी कमी में त्वचा खुरदरी हो जाती है, इस रोग को Para-Keratosis कहते है ।

5. विटामिन्स (Vitamins):

बटामिन वे कार्बनिक यौगिक है जिनकी भोजन में उपस्थिति आवश्यक है । ये शरीर को सीधे रूप से ऊर्जा प्रदान नहीं करते हैं परन्तु सामान्य चयापचर्यी क्रियाओं के लिए आवश्यक है । इनमें C, H, O तथा N की उपस्थिति पायी जाती है । भोजन में इनके अभाव से प्राणी में अल्पपोषण रोग (Deficiency Disease) हो जाता है । विटामिन शब्द 1912 ई. में फंक द्वारा प्रतिपादित किया गया था ।

दूध में पाये जाने वाले विटामिन निम्नलिखित प्रकार से हैं:

6. एन्जाईम्स (Enzymes):

एन्जाईम कार्बनिक उत्प्रेरक होते है । प्रेत्येक एन्जाईम जीवित कोशिका द्वारा संश्लेषित प्रोटीन है जो अत्यन्त अल्प मात्रा में उपस्थित रह कर शरीर क्रियात्मक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं । इनमें विशिष्टता का गुण पाया जाता है । एक ही एन्जाईम सभी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित नहीं करता अपितु कोशिका में सम्पन्न होने वाली हजारों विभिन्न अभिक्रियाओं के उत्प्रेरक के रूप में उतने ही एन्जाईम आवश्यक होते हैं ।

दूध में पाये जाने वाले मुख्य एन्जाईम निम्नवत हैं:

i. प्रोटियेज (Protease)

ii. लाईपेज (Lipase)

iii. फास्फेटेज (Phasphatage)

iv. एमाइलेज (Amylase)

v. लैक्टेज (Lactase)

vi. जैन्थीन आक्सीडेन (Xanthin Oxidase)

vii. हाईड्रोजिनेज (Hydrogenase)

viii. कैटालेज (Catalase)

ix. परआक्सीडेन (Peroxidase)

x. ऐल्डोलेज (Aldolase)

xi. कोगुलेज (Coagulase)

 

दूध में पाये जाने वाले मुख्य एन्जाईम निम्नवत् हैं:

A. जल अपघटन करने वाले एन्जाइम (Hydrolytic Enzymes) : Lipase, Protease, Phosphatase, Amylase, Lactase.

B. अवकारक एन्जाइम (Reducing Enzyme) : Xanthine Oxidase, Schardinger’s Enzyme, Hydrogenase.

C. हाइड्रोजन पराक्साईड अपघटक एन्जाईम (H2O2 Decomposing Enzyme) : Catalase, Peroxidase.

D. अन्य एन्जाइम (Other Enzyme): Aldolase, Coagulase, Carbonic Antydrase)

दुग्ध उद्योग में एन्जाईम्म का महत्व (Importance of Enzymes in Dairy Industry):

i. दुग्ध निरोगन दक्षता (Milk Pasteurization Efficiency) का पता लगाने में फोस्केटेज एन्जाईम का विश्लेषण किया जाता है ।

ii. दूध में परिरक्षी के रूप में हाइड्रोजन पर-आक्साईड की मिलावट का ज्ञान पर- आक्सीडेज एन्वाईम के विश्लेषण द्वारा किया जाता है ।

iii. सामान्य दूध में थनैला प्रसित पशु के दूध की मिलावट का ज्ञान दूध में कैटेलेज एन्ताईम के विश्लेषण द्वारा किया जाता है ।

iv. किण्वित दुग्ध पदार्थ (Fermented Milk Products) निर्माण में लैक्टेज एन्जाईम की मुख्य भूमिका है ।

v. जल-अपघटन करने वाले एन्जाईम दुग्ध अव्यवों का विच्छेदन कर दूध की गुणवत्ता को खराब कर देते है ।

7. दुग्ध वर्णक (Milk Pigments):

जीवित उत्तकों में रंग उत्पन्न करने वाले पदार्थों की वर्णक (Pigment) कहा जाता है । दूध का सफेद रंग इसमें उपस्थित वसा गोलिकाओं व कैल्शियम कैसीनेट के अति सूक्ष्म कणों के कोलाईडो अवस्था में पाये जाने के कारण सफेद या दूधिया (Milky) दृष्टिगोचर होता है ।

दूध में दो प्रकार के वर्णक पाये जाते है:

i. वसा विलेय वर्णक (Fat Soluble Pigment):

कैरोटीन तथा जेन्थोफिल वसा में घुलने वाले वर्णक हैं । इन्हें लाइपोक्रोम (Lipochrome) या क्रोमोलीपेड (Chromolipid) भी कहते है । ये वर्णक पादप कोशिकाओं द्वारा निर्मित फिर दूध में प्रवाहित होते हैं । यह दूध में 0.015 mg/100gm तथा खीस में दूध की अपेक्षा 10-12 गुणा अधिक पाया जाता है । इनमें कैरोटीन विटामिन ‘ए’ का पूर्वगामी पदार्थ है ।

ii. जल विलेय वर्णक (Water Soluble Pigments):

राइबोफ्लेविन दूध का जल विलेय वर्णक है । दूध में इसकी मात्रा 0.05-0.1% में तक पायी जाती है । व्हे या दुग्ध सीरम में हरा पीला रंग इसी वर्णक के कारण होता है ।

8. दूध में गैसें (Gases in Milk):

अयन से ताजे निकाले गये दूध में आयतनानुसार लगभग 8% गैसें होती हैं । इनमें 6.6% CO2, 0.1% O2 तथा 1.2% N2 पायी जाती है । CO2 अयन से दूध में आती है परन्तु N2 तथा O2 दोहन के समय दूध में मिल जाती है । दोहन के पश्चात दूध से CO2 निकलने लगती है । सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता के कारण दूध में H2 तथा CH4 गैसें भी उत्पन्न हो जाती है ।

दूध को उबालने पर ये गैसें निकल जाती है परन्तु एज्यमिन के अपघटन के परिणाम स्वरूप H2S गैस अल्प मात्रा में बन जीती है । CO2 की उपस्थिति के कारण कैल्शियम के लवण घुलनशील अवस्था में पाये जाते हैं । ताजे निकाले गये दूध में इन सभी गैसों का अहितकर प्रभाव नहीं है ।

परन्तु दूध या क्रीम में धुली CO2, इनमें अम्लता निर्धारण के समय NaOH के साथ कार्बोनिक अम्ल के रूप में आभासीय अम्लता दर्शाती है । जबकि उदासीनीकरण के समय यह NaHCO3 के साथ प्रतिक्रिया नहीं करती है । ताजे दूध में गैसों की उपस्थिति के कारण उसका आयतन बढा रहता है अतः: दूध को तोलना ही पशु की वास्तविक उत्पादकता को दर्शाता है । गैस निकल जाने पर आयतन कम हो जाता है जबकि भार समान बना रहता है ।

9. दूध में गन्ध (Flavour in Milk):

दूध में बाह्य गन्ध को शोषित करने की अदभुत क्षमता पायी जाती है । अतः दूध की गन्ध वातारण की गन्ध से प्रभावित होती है । दूध में पायी जाने वाली मूल गन्ध, दूध में उपस्थित अल्प मात्रा में मिथाईल सल्फाईड (C2H6SO2) के कारण होते हैं । मक्खन में गन्ध डाइएसिटाइल (C4H6O2) के कारण होती है जो क्रीम के पकाने के समय पाईरुविक अम्ल से निर्मित होता है । ये दोनों Lactic Fermentation के उत्पाद है ।

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