दूध में मौजूद सूक्ष्मजीव: 4 प्रकार | Read this article in Hindi to learn about the four types of microorganisms present in milk. The types are:- 1. जीवाणु (Bacteria) 2. प्रकिण्व (Yeast) 3. फंफूदी (Fungus) 4. जीवाणुभोजी (Bacteriophage)/वायरस (Viruses).

दूध दूहने के बाद, उसमें गन्ध (Flavour) तथा दिखावट (Appearance) में परिवर्तन जीवाणुओं द्वारा ही होते हैं । जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत दूध से सम्बन्धित उन सभी सूक्ष्म जीवों का अध्ययन करते है जो केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं, इसको दुग्ध सूक्ष्म जीव विज्ञान (Dairy Microbiology) कहा जाता है ।

दूध में प्रमुखतया चार प्रकार के सूकक्ष्म जीव पाये जाते हैं:

1. जीवाणु (Bacteria)

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2. प्रकिण्व (Yeast)

3. फंफूदी (Fungus)

4. जीवाणुभोजी (Bacteriophage)/वायरस (Viruses) |

दुग्ध विज्ञान की दृष्टि से जीवाणु प्रमुख है । ये दूध में वांछित व अवांछित दोनों प्रकार के परिवर्तन करते हैं । कुछ जीवाणु बीमारी उत्पन्न करने वाले होते हैं जिन्हें रोगाणु (Pathogens) कहा जाता है । जितने अधिक सूक्ष्म जीव दूध में पाये जाते है उस दूध की गुणवत्ता उतनी ही खराब होती है ।

Type # 1. जीवाणु (Bacteria):

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जीवाणु एक कोशिकीय पर्णहरित विहीन (Chlorophyll-Less) पादप जीव है । इनका आकार एक या एक से भी कम माइक्रोन से लेकर 60 माइक्रोन (1 Micron (µ) 1/1000mm or 1/10,000cm) तक हो सकता है । सामान्यरूप में ये 0.5 से 6µ तक आकार में पाये जाते है ।

इनकी वृद्धि या जनन द्विखण्डन (Binary Fission) विधि द्वारा होता है । सामान्य अवस्था में एक कोशिका लगभग 30 मिनट में दो में विभक्त हो जाती है । साधारण गणना के अनुसार 10 घण्टे में एक कोशिका से 10,48,570 कोशा निर्मित हो जाते है ।

सामान्य (कमरे के) ताप पर संचित दूध में जीवाणु की संख्या अधिकतम तीव्र गति से वृद्धि करती है । तापमान बढने या घटने पर जीवाणुओं की वृद्धि में ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है । 25C तापमान पर जीवाणु वृद्धि कारक (Bacterial Growth Factor) 1,20,000 है जो 0C तापमान पर घट कर एक (1) रह जाता है । 10C ताप जीवाणु वृद्धि की दृष्टि से Critical Point है ।

इस ताप पर वृद्धि दर कारक 1.8 होती है जो 15C ताप पर 10 तथा 5C ताप पर 1.05 है । अतः दूहने के तत्काल पश्चात यदि दूध को 5C ताप पर संचित किया जाय तो जीवाणुओं की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है । कच्चे दूध को जीवाणुओं की संख्या के आधार पर IS.1479 Part III 1982 के अनुसार चार वर्गों में बाटते है ।

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जीवाणु आकार की दृष्टि से गोलाकार (Spherical), बेलनाकार (Cylindrical) तथा चक्राकार (Spiral) होती है । दूध तथा इससे बने पदार्थों में प्रथम दो प्रकार के जीवाणु प्रमुखतः उपस्थित रहते हैं जीवाणुओं को एकल अवस्था में नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है परन्तु बहुत से जीवाणु एकत्रित अवस्था में कोलोनियाँ (Colonies) बनाते हैं, जो नंगी आंखों से देखी जा सकती है ।

जीवाणु प्रकृति से सर्वत्र पाये जाते है । ये हवा, पानी तथा मिट्टी में सब जगह उपस्थित पाये जाते हैं कुछ जीवाणु विषम परिस्थितियों में बीजाणु (Spore) में परिवर्तित हो जाते है तथा परिस्थितियां सामान्य होने पर पुन: क्रियाशील कोशिका (जीवाणु) में परिवर्तित होकर कार्य करने लगते है ।

जीवाणुओं का बीजाणुओं में परिवर्तित होने की प्रक्रिया दुग्ध उद्योग के लिए एक समस्या है क्योंकि ये पास्तुरीकरण या अन्य ऐसे ही उष्मा उपचार को रूप परिवर्तन द्वारा सहन करने की क्षमता रखते हैं । यही कारण है कि दुग्ध पदार्थों को उच्च ठप्पा उपचार के बावजूद भी अधिक समय तक संग्रहित नहीं रखा जा सकता है ।

Type # 2. प्रकिण्व (Yeast):

जीवाणुओं के अतिरिक्त दूध में उपस्थित एक कोषकीय जीवों को प्रकिण्व (Yeast) कहा जाता है । ये आकार तथा परिमाप में जीवाणुओं की अपेक्षा बडे होते हैं । इनका आकार लगभग 0.005 से 0.01 मि. मी. तक होता है । इनके कोशों में संचित खाद्य पदार्थ अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होता है ।

प्रत्येक कोष पर कई कलिकाएँ (Budding) पायी जाती हैं जो परिपक्व होने के उपरान्त मूल कोष से अलग होकर नयी यीस्ट कोष (New Yeast Cell) बन जाती है । फिर उनमें भी Budding होने लगता है । दुग्ध व्यवसाय में इनकी लाभकारी भूमिका कम है परन्तु कुछ दुग्ध उत्पाद जैसे Kefir व Koumiss निर्माण में ये उपयोगी भी है ।

दूध या क्रीम में उपस्थित होने पर गैस तथा अपसुवास उत्पन्न करते हैं । दूध में पाये जाने वाले प्रमुख प्रकिण्व Torula Cremoris, Torula Spherica Ameri तथा Torula Lactics Condensi आदि है । प्रकिण्व कोशा रोगाणुनाशन (Pasteurization) प्रक्रिया द्वारा नष्ट हो जाते है ।

डेरी उद्योग के लिए उपयोगी प्रकिण्व Candida Guillermondi, Candida Pseudotropicalis, Rhodotorula Glutinis, Kluyveromyces Marxianus, Saccharomyces Uvarum, Saccharomyces Cerevisiae, Kluyveromyces Marxianus, Torulopsis Candida आदि है ।

Type # 3. फफूंदी (Mould Fungi):

ये बहुकोषकीय पादप होते हैं । इनकी कोषाओं में खाद्य सामग्री तथा केन्द्रक पाया जाता है । वृद्धि के समय इनमें डोरे जैसी शाखाएँ बनती हैं जो एक दूसरे के साथ मिलकर जाल जैसी रचना बनाती है । इस जाल नुमा रचना को कवकजाल (Mycelium) कहते है । इसके एक डोरे या शाखा को Hypha या कवक तन्तु कहा जाता है ।

इनकी कोषा को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता परन्तु Mycelium को देखा जा सकता है । इनके अधिकतर बीजाणुओं (Spores) को पास्तुरीकरण प्रक्रिया द्वारा नष्ट किया जा सकता है इनमें प्रजनन, कवकजाल के टूटने तथा कवकजाल के सिरे पर बने बीजाणुओं द्वारा होता है ।

दूध उद्योग में इनका उपयोग चीज (Cheese) निर्माण में किया जाता है । फफूंदी द्वारा परिपक्वन (Ripening) की जाने वाली चीज में Camembert, Roquefort, Blue, Gorgonzola, तथा Gammelost प्रमुख है । दूध एवं दुग्ध पदार्थों में अनियंत्रित रूप से उत्पन्न होने पर उनमें अपसुवास उत्पन्न करता है ।

दुग्ध उद्योग के लिए उपयोगी फंफूदियों में Aspergillus Niger, Aspergillus Parasiticus, Cladosporium Herbarium, Odium Sp, Penicillium Comemberti, Renicillium Roqueforti तथा Rhizopus Oryzae प्रमुख है ।

Type # 4. वायरस (Virus):

यह जीवन का अति सूक्ष्मदर्शीय (Ultra Microscopic) रूप है । प्रकृति में अनेकों प्रकार के वायरस पाये जाते है । डेरी उद्योग की दृष्टि में केवल वे वायरस महत्वपूर्ण हैं जो लैक्टिक अम्ल उत्पादन करने वाले जीवाणुओं पर परजीवी (Parasite) के रूप में पाये जाते है इन्हें Stater Bacteriophage कहा जाता है । वायरस, आकार में 0.22 से 0.23 µ (Micron) तक के होते हैं ।

ये दूध के लिए प्रयोग किये जाने वाले सामान्य पास्तुरीकरण ताप पर नष्ट नहीं होते है । परन्तु उच्च उष्मा उपचार द्वारा इन्हें दूध में से समाप्त किया जा सकता है । चीज या मक्खन निर्माण हेतु प्रयोग होने वाले जामन (Starter) में इनकी उपस्थिति होने पर जामन की अम्लता में वृद्धि नहीं होती तथा वह खराब हो जाता है ।

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