सूखा: कारण और परिणाम | Drought: Causes and Consequences in Hindi!
Read this article in Hindi to learn about:- 1. सूखा पड़ने के कारण (Causes of Drought) 2. सूखे के परिणाम (Consequences of Drought) 3. उपाय (Strategy).
सूखा पड़ने के कारण (Causes of Drought):
वर्षा का समय से पर्याप्त मात्रा में होने से सूखे की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
सूखा पड़ने के मुख्य कारणों की संक्षिप्त विवेचना निम्नलिखित है:
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1. वर्षा का अभाव (Rainfall Deficiency):
वर्षा का औसत से कम होना तथा सही समय पर न होने से सूखा पड़ जाता है ।
2. बड़े पैमाने पर वन कटाई (Large Scale Deforestation):
जंगलों को काटकर भूमि को कृषि के अंतर्गत लाने से वर्षा की मात्रा में कमी होती जा रही है । जंगलों को काटना इसलिए अनिवार्य हो गया कि बढती जनसंख्या की खाद्य की आपूर्ति की जा सके तथा कारखानों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जा सके ।
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3. भूमिगत जल का अत्यधिक उपयोग (Excessive Use of Underground Water):
बढ़ती जनसंख्या की खाद्य एवं अन्य आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिये विकासशील देशों में नये बीजों की सघन खेती की जा रही है । इन बीजों से सफल उत्पादन के लिए नलकूपों के द्वारा बारंबार सिंचाई की आवश्यकता होती है । अधिक सिंचाई के कारण भूमिगत जल की सतह नीची हो रही है ।
दुखद बात यह है कि नदियों के साथ-साथ भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रही है । जल के अभाव एवं प्रदूषित जल से कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । उत्पादन कम होने के कारण अकाल पड़ने की संभावना बढ़ जाती है ।
4. वर्षा जल संचय न करना (Lack of Water Harvesting):
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भारत में तमिलनाडु को छोड़कर किसी भी राज्य में वर्षा के जल को संचय करने पर पर्याप्त बल नहीं दिया जाता । इसलिए असफल मानसून होने पर सिचाई के द्वारा फसलों को बचाया नहीं जा सकता ।
5. मरुस्थलों को नियंत्रित करने की उचित परियोजना का अभाव ।
6. तीव्र जनसंख्या वृद्धि तथा उपभोक्तावाद ।
सूखे के परिणाम (Consequences of Drought):
जीव तथा पारिस्थितिकी का आधार जल है । जल के अभाव का सभी जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । संक्षिप्त में जल के अभाव का अर्थव्यवस्था, समाज तथा पारिस्थितिकी पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष भारी प्रभाव पड़ता है । सूखा पड़ने का अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है ।
सूखे के प्रतिकूल प्रभाव का निम्न में वर्णन किया गया है:
1. पारिस्थितिकी प्रभाव (Ecological Impact):
जल के अभाव में जैविक-विविधता अन्य स्थानों को पलायन कर जाते है तथा पारितंत्र में खाद्य के लिए भारी प्रतिद्वंद्विता होती है ।
2. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):
सूखा पड़ने पर कृषि उत्पादन घट जाता है । चारे की फसलें सुख जाती हैं जिसके फलस्वरूप पशुधन की हानि होती है । कृषि-आधारित उद्योगों का उत्पादन भी घट जाता है ।
3. जनांकिकी पर प्रभाव (Demographic Impact):
सूखे से पीडित बहुत-से लोग मर जाते हैं, जनसंख्या में कमी होती है । सूखाग्रस्त क्षेत्रों से जनसंख्या का पलायन होता है । राजस्थान उत्तराखंड, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र की ओर पलायन करते हैं ।
4. राजनैतिक प्रभाव (Political Consequences):
यदि मानसून समय पर पर्याप्त वर्षा दे रहा है तो सत्तारूढ दल अपनी सरकार की नीतियों की अधिक दृढ़ता तथा विश्वास के साथ लागू कर सकता है ।
5. मरुस्थलीकरण (Desertification):
वर्षा के अभाव में मरुस्थल की समस्याओं को जन्म देता है भूमि उपयोग में परिवर्तन होता है ।
6. मृदा अपरदन (Soil Erosion):
मरुस्थल तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में शुष्कता के कारण मृदा अपरदन वृद्धि होती है ।
7. वन ह्रास (Degradation of Forest):
वनों पर आधारित लोग वृक्षों को अधिक मात्रा में काटते हैं, जिससे वन संपदा का ह्रास तेजी से होता है ।
8. कृषि रोजगार में कमी ।
9. प्रदूषित जल से फैलने वाली बीमारियों में वृद्धि ।
10. खाद्य सामग्री पेय-जल तथा चारे की कमी ।
उपरोक्त विपरीत परिस्थितियों के कारण बहुत-से लोग मर जाते हैं या कुपोषण का शिकार होते हैं, सामाजिक मूल्यों का ह्रास होता है । लोगों में निराशा होती है । सूखे का अधिक प्रभाव समाज के कमजोर वर्गों विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या पर पड़ता है । अधिकतर लोग आत्महत्या कर लेते हैं ।
सूखे से निपटने के उपाय (Strategy for Drought Management):
निम्न उपाय करने से सूखे के खराब प्रभाव को किसी सीमा तक कम किया जा सकता है:
1. वृक्षारोपण करना ।
2. वर्षा जल संचय ।
3. जल विभाजक प्रबंधन ।
4. शुष्क कृषि को वैज्ञानिक ढंग से करना ।
5. शुष्कता को सहन करने वाले बीजों तथा पेड-पौधों का आविष्कार ।
6. शुष्क प्रदेश संबंधी योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू करना ।
7. जलाशयों का निर्माण करना तथा नलकूप लगाना ।
8. कृषि में विविधता लाना ।
9. फसल चक्र एवं फसली के प्रतिरूप में बदलना ।
10. ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का पता लगा ।
11. नदियों को एक-दूसरे से जोड़ना ताकि जिन नाद से अधिक जल बहकर सागर में जाता है उसका शुष्क प्रदेशों की कृषि आदि में उपयोग किया जा सके ।