पारिस्थितिकी और सूक्ष्म जीवों के बीच संबंध | Read this article in Hindi to learn about the relation between ecology and micro-organisms.
मृदा पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले खनिज लवणों व कार्बनिक पदार्थों की वह अबद्ध या अदृढ़ (Loose) सतह है जो पादप वृद्धि के लिए उपयुक्त माध्यम का कार्य करती है । इसका पर्यावरण अति जटिल होता है, जिसका निर्माण ठोस, द्रव्य तथा गैस के सम्मिश्रण से होता है ।
इसके अनुपात में विविधता के कारण ही विश्व में पाई जाने वाली मृदाओं का निर्माण हुआ है । इसमें सदैव कार्बनिक पदार्थों की प्रचुर मात्रा होती है जिसका निर्माण ह्यूमस तथा सूक्ष्मजीवों से होता है । इसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है ।
मृदा का निर्माण चट्टानों के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अपक्षय (Weathering) से होता है । इसमें कई छोटे-छोटे कणों का निर्माण होता है । यह बहुत ही धीमी प्रक्रिया है । जिस चट्टान से मृदा का निर्माण होता ही है, उनका रासायनिक संगठन भी वैसा ही होता है ।
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खनिज युक्त मृदा में सिलिका की मात्रा अधिक होती है । जबकि पीतमय मृदा में इसकी मात्रा में कम होती है । एल्युमीनियम, पोटैशियम, सोडियम तथा मैंगनीज भी खनिज मृदा में पाये जाते हैं । कैल्शियम तथा मैग्नीशियम चूना युक्त चट्टानों से निर्मित मृदा में पाये जाते हैं । उपर्युक्त सभी पोषक तत्व सूक्ष्मजीवों की वृद्धि तथा उपापचयी क्रियाओं में सहायक होते हैं ।
मृदा (Soil) का कार्बनिक (Organic) भाग मुख्य रूप से पादप (Plant) तथा प्राणी जगत (Animal Kingdom) के सदस्यों से मिलकर बनता है । इसका मृदा में निरन्तर अपघटन होता है फलत: ह्यूमस (Humus) का निर्माण होता है । चित्र में मृदीय कणों के बीच वाले भाग में कार्बनिक पदार्थ, खनिज लवणों, गैसों व सजीवों का वितरण दिखाया गया है ।
चित्र में मृदा की सूक्ष्म पारिस्थितिकी का निरूपण है । मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव कोशिका बाह्य (Extra Cellular) रसायनों का निर्माण करते हैं । जैसे- बहुशर्करा । यह रसायन मृदा के कणों को आपस में बांधते हैं । इस प्रवर्ध में कवक, एक्टीनोमाइसीटीज आदि सजीव सहायक होते हैं ।
सूक्ष्म जीव मृदा कणों की सतह पर या अन्तर कणों के खाली स्थान में निवास करते हैं । इन कणों के मध्य जल नहीं होता है, लेकिन जल वाष्प या आर्द्रता अधिक होती है । कणों के बीच ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड झ आदान- प्रदान जल द्वारा प्रभावित मन्द विसरण (Slow Diffusion) द्वारा होता है ।
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कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता ऑक्सीजन की तुलना में 10 से 100 अधिक होती है । वाष्पशील रसायन जैसे मीथेन, हाइड्रोजन, सल्फाइड, अमोनिया तथा हाइड्रोजन इन कणों के मध्य अधिकता से पाये जाते हैं ।
नाइट्रोजन, प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्लों का मुख्य घटक है, वायुमण्डल में 79% N2 मिलती है । वायुमण्डल का सर्वाधिक भाग नाइट्रोजन बनाता है तथा जीवों द्वारा प्रोटीन्स न्यूक्लिक अम्ल एवं अन्य नाइट्रोजनीय यौगिक बनाने के लिये आवश्यक है । वायुमण्डलीय नाइट्रोजन अंतिम स्रोत के रूप में काम आती है ।
नाइट्रोजन चक्र (Cycle) पूरी तरह मृदीय (Edaphic) नहीं है, लेकिन अधिकतर वायुमण्डलीय घटक (Atmospheric Components) हैं, जो मृदा से नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Nitrogen Fixation) और विनाइट्रीकरण (Denitrification) द्वारा जुड़े रहते हैं । इसके बाद भी पौधे अपना अत्यधिक नाइट्रोजन मृदा से नाइट्रेट (Nitrate) या अमोनियम आयन (Ammonium Ions) से प्राप्त करते हैं, नाइट्रेट अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।
विश्वव्यापी, वायुमण्डलीय यौगिकीकरण (Fixation) जीवमंडलीय नाइट्रोजन प्रवाह (Flow of N2) का लगभग 105 kg ha-4a-11 के हिसाब से होता है । स्थल पर 60% से ज्यादा यौगिकीकरण कृषि पारिस्थितिक तंत्र (Agro-Ecosystems) के कारण होता है और शेष नाइट्रोजन वनों में यौगिकीकृत होता है । अन्य पारिस्थितिक तंत्र में कुल नाइट्रोजन यौगिकीकरण का लगभग 7% होता है ।
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कुल मिलाकर, वायुमण्डलीय यौगिकीकरण (Atmospheric N2 Fixation) विश्व नाइट्रोजन स्वांगीकरण (Global Nitrogen Assimilation) का लगभग 2% होता है, अवशेष अगैसी (Nongaseous) रूप में चक्रित (Cyclic) हो जाता है ।
लेकिन मृदा और जीवजात नाइट्रोजन उद्गम वायुमण्डल में होता है और दस लाख वर्षों में संचित हुआ है जिसमें नाइट्रोजन यौगिकीकरण (N2 Fixation) हो रहा है । अधिकांश स्थलीय यौगिकीकरण पादप जड़ों में सहजीवी बैक्टीरिया (Symbiotic Bacteria) द्वारा होता है और लघु स्तर पर मुक्तजीवी मृदा जीवाणु द्वारा होता है ।
नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle) को सुविधानुसार निम्न चार भागों में बांटा गया है:
(1) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation),
(2) अमोनीकरण (Ammonification),
(3) नाइट्रीफिकेशन (Nitrification),
(4) डिनाइट्रीफिकेशन (Denitrification),
(5) नाइट्रेट रिडक्शन (Nitrate Reduction) ।
(1) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation):
वायु (Air) में नाइट्रोजन (Nitrogen) स्वतंत्र अवस्था में पायी जाती है । अत: नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) द्वारा वायुमण्डल कई स्वतंत्र नाइट्रोजन (Nitrogen) नाइट्रोजन पदार्थों अथवा अमोनिया (NH3) में परिवर्तित कर दिये जाते हैं ।
पौधे (Plants) तथा जीवाणु (Bacteria) नाइट्रेट्स (NO3) का एंजाइमों (Enzymes) की सहायता से अवकरण (Reduction) करते हैं । इन क्रियाओं में मोलिब्डेनम (Mo) का विशेष महत्व होता है तथा मैंग्नीज (Mn) घुलनशील कार्बनिक यौगिकों (Soluble Organic Compounds) को प्रोटीन्स में बदल देते हैं ।
इस प्रकार पौधों द्वारा अवशोषित नाइट्रोजन, प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) के काम आती है और यह नाइट्रोजन, अमीनो अम्लों (Amino Acids) पेप्टाइड्स (Peptides), प्रोटीन्स (Proteins) तथा न्यूक्लियो प्रोटीन्स (Nucleo Proteins) में परिवर्तित हो जाती है ।
अनेक प्रोटीयोलाइटिक क्रियाओं द्वारा नाइट्रोजन के जटिल यौगिक पुन: पेप्टाइड्स (Peptides) तथा अमीनो अम्लों (Amino Acids) में परिवर्तित हो जाते हैं । पौधों में मृत्यु के बाद उनके शरीर में उपस्थित जटिल नाइट्रोजनी यौगिकों (Nitrogenous Compounds) से स्वतंत्र नाइट्रोजन (Free N2) एवं अमोनिया (NH3) मृदा में उपस्थित जीवाणुओं (Bacteria) की क्रियाओं के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं ।
अनॉक्सी जीवाणु (Anaerobic Bacteria), अमोनिया का निर्माण करते हैं तथा ऑक्सी जीवाणु (Aerobic Bacteria) नाइट्रेट्स (NO3) का निर्माण करते हैं । इसके अतिरिक्त नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नामक जीवाणु भी नाइट्रेट (NO3) का निर्माण करते हैं ।
कुछ डिनाइट्रीफाइंग जीवाणु (Denitrifying) भी स्वतंत्र नाइट्रोजन (N2) वायुमण्डल में छोड़ते हैं और इस प्रकार प्रकृति में नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle) चलता रहता है ।
(2) अमोनीकरण (Ammonification):
पौधे अपनी जड़ों (Roots) द्वारा नाइट्रोजन (N2) का अवशोषण नाइट्रेट्स (NO3) के रूप में मिट्टी से करते हैं । पौधे इस नाइट्रोजन (N2) से अनेक नाइट्रोजन चक्र कार्बनिक पदार्थों (Organic Compounds) का संश्लेषण करते हैं । लेग्यूमिनोसी-कुल (Family-Leguminosae) के पौधे तथा कुछ अन्य पौधे वायुमण्डल की नाइट्रोजन (N2) का सीधा स्थिरीकरण करते हैं ।
जंतुओं को प्रोटीन्स (Proteins) तथा अन्य नाइट्रोजन युक्त पदार्थ पौधों से प्राप्त होते हैं । जब जंतुओं एवं पौधों की मृत्यु हो जाती है, तो इनके शरीर के प्रोटीन्स तथा नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का अपघटन (Decomposition) सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है । जिससे अमोनियम यौगिक (Ammonium Compounds) प्राप्त होते हैं ।
यह क्रिया अमोनीकरण जीवाणुओं जैसे बैसिलस रेमोसस (Bacillus Ramosus), बे. वल्गोरिस (B. Vulgaris) तथा बे. माइकोइडिस (B. Mycoides) द्वारा सम्पन्न होती है । यह अमोनिया मिट्टी या जल में मिल जाती है, जो पुन: पौधों को प्राप्त हो जाती है तथा NO3 में बदल जाती है । कुछ अमोनिया (NH3) वायुमण्डल में चली जाती है ।
(3) नाइट्रीफिकेशन (Nitrification):
इस क्रिया में मिट्टी में उपस्थित अमोनियम यौगिकों (Ammonium Compounds) का ऑक्सीकरण (Oxidation) होता है, जिससे नाइट्रेट्स (NO3) बनते हैं । यह क्रिया जीवाणुओं (Bacteria) के कुल के नाइट्रो बैक्टीरिएसी (Family-Nitro-Bacteriaeceae) द्वारा होती है ।
नाइट्रीफिकेशन (Nitrification) की क्रिया निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती है:
(i) मिट्टी (Soil) में उपस्थित जीवाणु जैसे नाइट्रोसोमोनाज (Nitrosomonas), नाइट्रोकोकस (Nitrococcus), नाइट्रोसोस्पाइरा (Nitrosospira) तथा नाइट्रोसोसिस्टिस (Nitrosocystis), जेनेरा (Genera) के जीवाणु सर्वप्रथम अमोनिया (NH3) को नाइट्राइट (NO2) में बदलते हैं । इस क्रिया को नाइट्रोसिफिकेशन (Nitrosification) कहते हैं ।
2NH3 + 3O2 → 3HNO2 + 2H2O + Energy.
(ii) इसके पश्चात् मिट्टी में पाया जाने वाला दूसरे प्रकार का जीवाणु नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नाइट्राइट (NO2) का ऑक्सीकरण (Oxidation) करके उसे नाइट्रेट्स (Nitrates NO3) में बदल देता है ।
पौधों की जडों (Roots) द्वारा मिट्टी (Soil) में उपस्थित नाइट्रेट्स (Nitrates NO3) के रूप में नाइट्रोजन (Nitrogen) का अवशोषण (Absorption) होता है । जो कि पौधों के शरीर में पहुँचकर अनेक उपापचयी क्रियाओं (Metabolic Processes) में भाग लेता है तथा प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis) होता है ।
कुछ हेटरोट्रोफिक बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria) जैसे स्ट्रेप्टोमाइसेस (Streptomyces) तथा नोकार्डिया, अमोनिया (Ammonia) को नाइट्राइट (Nitrite) में ऑक्सीकृत (Oxidise) करते हैं ।
इसके अतिरिक्त कुछ फन्जाई (Fungi) की जातियाँ (Species) जैसे पेनीसिलियम (Penicillium), एस्परजिलस (Aspergillus), सिफेलोस्पोरियम (Cephlosporium), अमोनिया (Ammonia) को नाइट्राइट (Nitrite) एवं नाइट्राइट को नाइट्रेट्स (Nitrates) में ऑक्सीकृत (Oxidise) करते हैं ।
(4) डिनाइट्रीफिकेशन (Denitrification):
यह क्रिया मिट्टी (Soil) में उपस्थित निम्नलिखित डिनाइट्रीफाइंग जीवाणुओं (Denitrifying Bacteria) द्वारा होती है:
(a) बेसीलस डिनाइट्रीफिकेन्स (Bascillus Denitrificans),
(b) बेसीलस सबटीलिस (Bascillus Subtilis),
(c) माइक्रोकोकस (Micrococcus),
(d) थायोबेसीलस डीनाइट्रीफिकेशन्स (Thiobascillus Denitrificans),
(e) क्लॉस्ट्रिडियम (Clostridium) एवं एजोटोबैक्टर (Azotobacter) आदि ।
डिनाइट्रीफिकेशन (Denitrification) की क्रिया के फलस्वरूप मिट्टी (Soil) में उपस्थित नाइट्रेट्स (Nitrates) तथा अमोनियम यौगिकों (Ammonium Compounds) का विघटन होता है, जिसके फलस्वरूप गैसीय नाइट्रोजन, नाइट्रस ऑक्साइड या स्वतंत्र नाइट्रोजन (Free N2) के रूप में मिट्टी से निकलकर वायुमंडल में चली जाती है ।
इस क्रिया से N2 की कमी के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है ।
जैसे:
(5) नाइट्रेट रिडक्शन (Nitrate Reduction):
बहुत से सूक्ष्मजीव (Microbes) जैसे कुछ जीवाणु (Bacteria), यीस्ट (Yeast) तथा तंतुवत फंजाई (Filamentous) नाइट्रीफिकेशन क्रिया द्वारा बने नाइट्रेट्स को नाइट्राइट में तथा इसके पश्चात् इसे अमोनिया (Ammonia) में अपचयित (Reduction) करते हैं ।
HNO3 + 4H2 → NH3 + 3H2O
भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति मनुष्यों द्वारा भूमि में खाद मिलाने से, चट्टानों आदि के टूट-टूट कर जल में मिलकर घुलने से भी होती है ।
इसके अतिरिक्त वायुमंडल (Atmosphere) की नाइट्रोजन (Nitrogen) बादलों की बिजली चमकने से ऑक्सीजन (Oxygen) से संयोग करके नाइट्रिक ऑक्साइड (Nitric Oxide) बनाती है । जो वायु की ऑक्सीजन से मिलकर नाइट्रोजन परऑक्साइड में बदल जाती है ।
नाइट्रोजन परऑक्साइड वर्षा के अंत में घुलकर नाइट्रस तथा नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid) में परिवर्तित हो जाती है । नाइट्रस (Nitrous) तथा नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid) वर्षा के जल के साथ भूमि पर गिरते हैं । जहाँ ये कैल्शियम (Calcium) एवं पोटेशियम (Potassium) के यौगिकों से क्रिया करके नाइट्रेट्स का निर्माण करते हैं ।