बजट: अधिनियमन और निष्पादन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बजट के संवैधानिक उपबंध (Constitutional Provisions of Budget) 2. बजट – अधिनियम के चरण (Stages in Enactment of Budget) 3. निष्पादन (Execution).
बजट के संवैधानिक उपबंध (Constitutional Provisions of Budget):
‘बजट अधिनियमन’ का अर्थ है- संसद द्वारा पारित और राष्ट्रपति द्वारा अभिपुष्ट बजट की स्वीकृति अर्थात प्रत्येक वित्त वर्ष के संबंध में भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और खर्चों के वार्षिक वित्तीय विवरण की स्वीकृति । सरकारी प्राप्तियों और खर्चों को वैधानिकता मिल जाती है । इसका अर्थ है कि बजट के अधिनियम के बिना सरकार न तो धन एकत्र कर सकती है और न ही खर्च । आम बजट और रेल बजट दोनों पर यह कार्यविधि भी लागू होती है ।
बजट अधिनियम के संबंध में भारत के संविधान में निम्नलिखित उपबंध हैं:
(i) प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में राष्ट्रपति उस वर्ष के लिए भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और खर्चों के विवरण को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत कराएगा । इसे ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ (धारा 112) कहा जाता है ।
ADVERTISEMENTS:
(ii) अनुदान के लिए कोई माँग राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जाएगी (धारा 113) ।
(iii) भारत की संचित निधि से कोई भी धन निकाला जा सकेगा सिवाय उसके जो विधि द्वारा निर्मित युक्तिसंगत के अंतर्गत आता है (धारा 114) ।
(iv) कर लगाने वाला कोई भी धन विधेयक संसद में राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं रखा जाएगा और ऐसे विधेयक को राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा (धारा 117) ।
(v) कानून के प्राधिकार के बिना न तो कोई कर लगाया जाएगा और न एकत्र किया जाएगा (धारा 265) ।
ADVERTISEMENTS:
(vi) संसद किसी कर को कम या खत्म तो कर सकती है, पर बढ़ा नहीं सकती ।
(vii) बजट अधिनियमन (अर्थात वार्षिक वित्तीय विवरण) के संबंध में संविधान ने संसद के दोनों सदनों की सापेक्ष भूमिका या स्थिति को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है:
(a) कराधान संबंधी किसी धन विधेयक या वित्त विधेयक को राज्यसभा में नहीं रखा जा सकता । इसको केवल लोकसभा में रखा जाएगा ।
(b) अनुदान की माँगों पर राज्यसभा को मतदान का अधिकार नहीं है । यह विशेषाधिकार केवल लोकसभा को प्राप्त है ।
ADVERTISEMENTS:
(c) राज्यसभा धन विधेयक (वित्त विधेयक) को लोकसभा को चौदह दिन के भीतर वापस कर देगी । राज्यसभा की इससे संबंधित सिफारिशों को लोकसभा स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है ।
(viii) बजट में सम्मिलित व्यय अनुमान भारत की संचित निधि पर से प्रभारित व्ययों को और इस कोष से किए जाने वाले व्ययों को अलग-अलग प्रदर्शित करेंगे (धारा 112) ।
(ix) बजट राजस्व खाते पर आने वाले खर्चों तथा अन्य खर्चों में भेद करेगा (धारा 112) ।
(x) भारत की संचित निधि से प्रभारित खर्चों को संसद में मतदान के लिए नहीं रखा जाएगा; परंतु संसद इस पर चर्चा कर सकती है (धारा 113) ।
बजट – अधिनियम के चरण (Stages in Enactment of Budget):
संसद में बजट निम्न पाँच चरणों से होकर गुजरता है:
a. बजट प्रस्तुतीकरण,
b. आम बहस,
c. विभागीय समितियों द्वारा संवीक्षा,
d. अनुदान माँगों पर मतदान,
e. विनियोग विधेयक को पारित करना,
f. वित्त विधेयक पारित करना ।
बजट प्रस्तुतिकरण:
लोकसभा के नियम 213 में व्यवस्था की गई है कि लोकसभा में बजट दो या अधिक भागों में प्रस्तुत किया जाएगा । प्रस्तुतीकरण के समय प्रत्येक भाग को बजट माना जाएगा । तदनुसार बजट दो भागों में प्रस्तुत किया जाता है- रेल बजट और आम बजट ।
रेल बजट को आम बजट से पहले रखा जाता है । लोकसभा में रेल बजट, रेल मंत्री द्वारा फरवरी के तीसरे सप्ताह में और आम बजट वित्त मंत्री द्वारा फरवरी के अंतिम कार्यदिवस में प्रस्तुत किया जाता है । आम बजट को वित्त मंत्री एक भाषण के साथ प्रस्तुत करते हैं ।
जिसे ‘बजट भाषण’ कहा जाता है । लोक सभा में ‘बजट भाषण’ समाप्त होने पर बजट को राज्यसभा में रखा जाता है जो इस पर केवल चर्चा कर सकती है लेकिन अनुदान मांगों पर मतदान करने का अधिकार नहीं रखता है ।
लोकसभा में बजट के साथ निम्नलिखित दस्तावेज भी प्रस्तुत किए जाते हैं:
i. बजट के संबंध में व्याख्यात्मक प्रलेख,
ii. विनियोग विधेयक,
iii. वित्त विधेयक-कराधान प्रस्तावों सहित,
iv. मंत्रालयों की वार्षिक रिपोर्ट,
v. बजट का आर्थिक वर्गीकरण ।
पहले वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की गई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट को भी लोकसभा में रखा जाता था । अब इसे बजट से कुछ दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है ।
आम बहस:
बजट पर आम बहस इसके प्रस्तुतीकरण के कुछ दिनों बाद शुरू होती है । आमतौर पर तीन-चार दिन की यह बहस संसद के दोनों सदनों में चलती है । यह एक ब्रिटिश विरासत है । इस चरण के दौरान लोकसभा पूरे बजट पर चर्चा कर सकती है अथवा इसके किसी सैद्धांतिक प्रश्न पर; लेकिन इस दौरान न तो कोई प्रस्ताव पेश हो सकता है और न ही बजट को सदन में मतदान के लिए रखा जा सकता है । बहस के अंत में वित्त मंत्री को इसका जवाब देने का सामान्य अधिकार प्राप्त है ।
अनुदान माँगों पर मतदान:
बजट पर आम बहस की समाप्ति के बाद लोकसभा अनुदान माँगों पर मतदान की प्रक्रिया आरंभ करती है । मांगों को मंत्रालयों के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है । विधिवत मतदान होने के बाद माँग अनुदान बन जाती है । इस संदर्भ में दो बातों पर ध्यान देना चाहिए ।
एक, अनुदान मांगों पर मतदान का अधिकार केवल लोकसभा को है । दूसरे, मतदान बजट के केवल मतदान योग्य भाग तक सीमित होता है । मतदान के लिए उन खर्चों को प्रस्तुत नहीं किया जाता (जिन पर मात्र चर्चा हो सकती है) जो भारत के समेकित कोष पर प्रभारित होते हैं ।
आम बजट में जहाँ कुल मिलाकर 109 माँगे (103 नागरिक और 6 प्रतिरक्षा संबंधी खर्चों के लिए) होती हैं, वहीं रेल बजट में 32 । प्रत्येक माँग पर अलग-अलग मतदान होता है । इस अवस्था पर सांसद बजट के विवरणों पर चर्चा कर सकते हैं । वे किसी अनुदान माँग को घटाने के प्रस्ताव भी रख सकते हैं । ऐसे प्रस्तावों को ‘कटौती प्रस्ताव’ भी कहते हैं ।
ये चार प्रकार के होते हैं:
1. नीति अस्वीकृति कटौती प्रस्ताव:
यह माँग की नीति की अस्वीकृति का प्रतिनिधित्व करता है । यह कहता है कि माँग की राशि को एक रुपए की राशि तक घटाया जा सकता है (जो कि माँग में एकमुश्त कटौती या फिर माँग में किसी एक मद को शामिल न करना या उसकी कटौती हो सकता है) ।
2. सांकेतिक कटौतियां:
यह किसी उस शिकायत को सामने लाती है जो भारत सरकार के उत्तरदायित्व के क्षेत्र के भीतर है । इसमें माँग की धनराशि को घटाकर 100 रुपए तक किया जा सकता है । माँगों पर मतदान के लिए कुल मिलाकर 26 दिन दिए जाते हैं । अंतिम, अर्थात 26वें दिन अध्यक्ष शेष तमाम माँगों को मतदान के लिए प्रस्तुत करता है और उनका निपटारा होता है, चाहे सदस्यों ने उस पर बहस की हो अथवा नहीं । इसको ‘समापन’ कहते हैं ।
3. विनियोग विधेयक पारित करना:
संविधान कहता है- ”भारत की संचित निधि से कोई भी धन कानून द्वारा विनियोजन के सिवाय नहीं निकाला जाएगा ।”
अत: विनियोग विधेयक को प्रस्तुत किया जाता है ताकि भारत से वह सभी धन निकाला जा सके जो निम्न की पूर्ति के लिए आवश्यक है:
(i) लोकसभा द्वारा स्वीकृत अनुदान ।
(ii) भारत की संचित निधि पर भारित व्यय ।
संसद के दोनों में से किसी भी सदन में विनियोग विधेयक पर ऐसा कोई संशोधन पेश नहीं किया जा सकता जो स्वीकृत अनुदान की राशि में परिवर्तन करता हो या उसके गंतव्य स्थान को बदलता हो, अथवा भारत के समेकित कोष से प्रभारित किसी व्यय की धनराशि को घटाता-बढ़ाता हो ।
राष्ट्रपति की सहमति मिल जाने के बाद विनियोग विधेयक विनियोग अधिनियम बन जाता है । यह अधिनियम भारत के समेकित कोष से भुगतानों को वैधानिक बना देता है । इसका अर्थ है कि विनियोग विधेयक जब तक अधिनियमित नहीं होता तब तक सरकार कोई भी धन भारत के समेकित कोष से नहीं निकाल सकती ।
इसमें समय लगता है और आमतौर पर यह अप्रैल के अंत तक चलता है लेकिन 31 मार्च के बाद (अर्थात वित्तीय वर्ष के बाद) सरकार को अपने सामान्य कामकाज के लिए धन की जरूरत होती है । इस कार्यात्मक कठिनाई को पार करने के लिए संविधान द्वारा लोकसभा को यह अधिकार दिया गया है कि अनुदान की माँगों पर मतदान प्रक्रिया पूरे होने और विनियोग विधेयक के पारित होने तक वह वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए अनुमानित खर्च के संदर्भ में कोई अग्रिम अनुदान दे सकती है ।
इस व्यवस्था को ‘लेखानुदान’ कहते हैं । यह बजट पर आम बहस पूरी होने के बाद पारित किया जाता है । आमतौर पर यह अनुदान दो महीने के लिए होता है और यह अनुदान कुल अनुमान के एक बटा छह हिस्से के बराबर होती है ।
4. वित्त विधेयक पारित करना:
लोकसभा के नियम 219 के अधीन ‘वित्त विधेयक’ का आशय ऐसे विधेयक से है जो अगले वित्त वर्ष के लिए भारत सरकार के वित्तीय प्रस्तावों को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है और इसमें किसी भी कालावधि के पूरक वित्तीय प्रस्तावों को कार्यान्वित करने का विधेयक शामिल होता है ।
विनियोग विधेयक के विपरीत वित्तीय विधेयक के मामले में, किसी कर को अस्वीकार या कम करने के लिए, संशोधन रखे जा सकते हैं । अंतरिम कर संग्रह अधिनियम, 1931 के अनुसार वित्तीय विधेयक को 75 दिन के भीतर अधिनियमित, अर्थात संसद से पारित और राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत हो जाना चाहिए ।
वित्तीय विधेयक बजट के आय पक्ष को वैधानिकता प्रदान करता है और बजट अधिनियम की प्रक्रिया को पूरा करता है ।
अन्य अनुदान (Other Grants):
बजट के अतिरिक्त जिसमें एक वित्त वर्ष की आय और व्यय के सामान्य अनुभाग होते हैं, असाधारण अथवा विशेष परिस्थितियों में संसद अन्य विभिन्न प्रकार के अनुदान पारित करती हैं ।
i. पूरक अनुदान:
यह उस समय दिया जाता है जब यह पता चलता है कि चालू वर्ष में किसी सेवा विशेष के लिए विनियोग विधेयक के माध्यम से संसद द्वारा अधिकृत धनराशि उस वर्ष के लिए पारित है ।
ii. अतिरिक्त अनुदान:
यह तब दिया जाता है जब चालू वित्त वर्ष के दौरान किसी ऐसी नई सेवा के लिए अतिरिक्त खर्चे की जरूरत पैदा हो जाती है जिसको कि उस वर्ष के बजट में नहीं सोचा गया था ।
iii. अधिक अनुदान:
यह तब दिया जाता है जब किसी वित्त वर्ष के दौरान किसी सेवा पर उससे अधिक धनराशि खर्च हो गई हो जितनी कि उस वर्ष के बजट में उस सेवा के लिए स्वीकृत की गई थी । लोकसभा में इस पर मतदान वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद किया जाता है । अधिक अनुदान की मांगों को लोकसभा में रखे जाने से पूर्व उन पर संसद की सार्वजनिक लेखा समिति की स्वीकृति आवश्यक है ।
साख मत (Vote of Credit):
यह भारत सरकार के संसाधनों पर किसी अप्रत्याशित माँग की पूर्ति के लिए तब दिया जाता है जब सेवा के विस्तार या उसकी अनिश्चित प्रकृति के चलते माँग के उन विवरणों को बताया नहीं जा सकता जो सामान्यतया बजट में दिए जाते हैं । अत: यह कोरे चेक की तरह होता है जो लोकसभा द्वारा कार्यपालिका को दिया जाता है ।
अपवादी अनुदान:
यह विशेष उद्देश्यों के लिए दिया जाता है । यह किसी वित्त वर्ष की चालू सेवा का अंग नहीं बनता है ।
सांकेतिक अनुदान:
यह तब दिया जाता है जब किसी नई सेवा हेतु प्रस्तावित व्यय की पूर्ति के लिए धन की व्यवस्था पुनर्विनियोग द्वारा की जा सकती है । लोकसभा में मतदान के लिए एक सांकेतिक धनराशि (1रु) दिए जाने की माँग रखी जाती है और स्वीकृत होने पर धन उपलब्ध करा दिया जाता है । पूरक, अतिरिक्त, अधिक और अपवादानुदान और साख मत नियमित बजट के मामले में प्रयुक्त प्रक्रिया द्वारा ही नियंत्रित होते हैं ।
बजट निष्पादन (Execution of Budget):
‘बजट निष्पादन’ का अर्थ है- संसद द्वारा बजट के पारित हो जाने के बाद इसको लागू या कार्यान्वित करना । दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ है- विनियोग विधेयक (व्यय संबंधित) और वित्त विधेयक (आय संबंधित) लागू करना ।
बजट का निष्पादन वित्त मंत्रालय के नियंत्रण तथा निर्देश में विभिन्न प्रशासनिक मंत्रालयों/विभागों द्वारा किया जाता है । अर्थात बजट निष्पादन के संबंध में पूरी जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की होती है जो भारत सरकार की केंद्रीय वित्तीय एजेंसी है ।
व्यय भाग (Expenditure Part):
वित्त मंत्रालय में वित्तीय अधिकारों के अत्यधिक समेकित रूप ने वित्तीय नियंत्रण को बहुत सख्त बना दिया है । परंतु शक्तियों के प्रत्यायोजन की विभिन्न योजनाओं के द्वारा समय के साथ नियंत्रण कुछ ढीला पड़ा है । इन योजनाओं द्वारा अपने खर्चों के प्रबंधन के मामले में प्रशासनिक मंत्रालय को कुछ ढील और कुछ प्रचालन स्वतंत्रता दी गई है ।
प्रशासनिक मंत्रालयों/विभागों के खर्चों पर वित्त मंत्रालय अपना नियंत्रण निम्न उपायों से लागू करता है:
(i) नीतियों और कार्यक्रमों का सैद्धांतिक अनुमोदन ।
(ii) बजट अनुमानों में प्रावधान की स्वीकृति ।
(iii) व्ययकर्ता प्राधिकरणों अर्थात मंत्रालयों को प्रदत्त शक्तियों के अधीन खर्चों की संस्वीकृति ।
(iv) एकीकृत वित्तीय सलाहकार के माध्यम से वित्तीय सलाह उपलब्ध कराना ।
(v) अनुदानों का पुनर्विनियोग अर्थात एक उपशीर्ष से दूसरे उपशीर्ष में धन का हस्तांतरण ।
(vi) आंतरिक लेखा-परीक्षा प्रणाली ।
(vii) व्ययकर्ता प्राधिकरणों द्वारा पालन की जाने वाली वित्तीय संहिता का निर्धारण ।
अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए सरकार के द्वारा निर्मित तंत्र की संरचना इस प्रकार हैं:
(i) नियंत्रण अधिकारियों की प्रणाली, जो आमतौर पर मंत्रालय/विभाग प्रमुख होते हैं ।
(ii) सक्षम प्राधिकारियों की प्रणाली, जो वित्तीय संस्वीकृतियाँ देते हैं ।
(iii) आहरण एवं संवितरण (Drawing and Disbursing) अधिकारियों की प्रणाली ।
(iv) भुगतान एवं लेखा प्रणाली (भुगतान करने और लेखा संकलन के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में भुगतान एवं लेखा कार्यालय स्थापित किए जाते हैं) । पुनर्विनियोग (Reappropriation) एक कार्यान्वयन कार्य है । इसके लिए वित्त मंत्रालय या उस प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग की औपचारिक स्वीकृति लेनी पड़ती है जिसको अपेक्षित शक्तियाँ सौंपी गई हैं ।
पुनर्विनियोग की अनुमति केवल उसी अनुदान के अंतर्गत है और यह अनुमति निम्नलिखित मामलों में नहीं दी जा सकती है:
(i) खर्चों की दत्तमत और प्रभारित मदों (Voted and Charged Items) के बीच ।
(ii) उस नई सेवा पर खर्च की पूर्ति के लिए जिसकी व्यवस्था बजट में नहीं की गई है ।
(iii) लोकसभा द्वारा दत्तमत विभिन्न अनुदानों के बीच ।
(iv) उस किसी खर्च की पूर्ति के लिए जिसे लोकसभा या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी ने संस्वीकार नहीं किया है ।
(v) उस किसी खर्च की पूर्ति के लिए जिसका परिव्यय किसी भावी वित्त वर्ष में होता हो (आकस्मिक खर्च के अलावा) ।
(vi) बजट के राजस्व और पूँजी भागों के बीच ।
एकीकृत वित्तीय सलाहकार योजना 1974 में सबसे पहले जहाजरानी एवं परिवहन मंत्रालय में प्रयोग के तौर पर लागू की गई थी और 1975-76 के दौरान इसका विस्तार केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों में कर दिया गया । इसके अंतर्गत प्रशासनिक मंत्रालयों में एकीकृत वित्तीय सलाहकार नियुक्त किए जाते हैं ।
एकीकृत वित्तीय सलाहकार संयुक्त या अतिरिक्त सचिव की श्रेणी का होता है । उसका चयन प्रशासनिक मंत्रालय तथा वित्त मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है और उसकी गोपनीय रिपोर्ट संयुक्त रूप से दोनों मंत्रालयों द्वारा लिखी जाती है ।
वह दोनों मंत्रालयों के दोहरे नियंत्रण में रहता है और दोनों के प्रति जवाबदेह होता है । बढ़े हुए प्रत्यायोजित वित्तीय अधिकारों को लागू करने में वह प्रशासनिक मंत्रालय की सहायता करता है, परंतु प्रत्यायोजित अधिकारों एवं कार्यों के संबंध में मंत्रालय सचिव द्वारा उसकी सलाह को अस्वीकार किया जा सकता है । लेकिन प्रत्यायोजित शक्तियों के क्षेत्र के बाहर वह वित्त मंत्रालय के सामान्य निर्देश के अधीन काम करता है और वित्त सचिव तक उसकी सीधी पहुंच होती है ।
उसकी शक्तियाँ/अधिकार और कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) बजट तैयार करना ।
(ii) वित्त मंत्रालय की संस्वीकृति के लिए परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों की समीक्षा ।
(iii) बजट-पश्चात की सतर्कता ।
(iv) मंत्रालय के लिए निष्पादन बजट का निरूपण और योजनाओं की प्राप्ति की निगरानी करना ।
(v) सचिव, जो मंत्रालय का मुख्य लेखा प्राधिकारी होता है, को उत्तरदायित्व का पालन करने में अपनी सहायता करना ।
राजस्व/आय भाग (Revenue Part):
राजस्व पक्ष में बजट निष्पादन के अंतर्गत आते हैं:
(ए) राजस्वों का संग्रह,
(बी) संग्रहीत धनराशियों की रक्षा और
(सी) धनराशियों का वितरण ।
राजस्व संग्रह निम्न चरणों में होता है:
(i) कर प्रशासन के लिए उपयुक्त तंत्र का निर्माण और कार्यविधि का निर्धारण ।
(ii) कर निर्धारण अर्थात उन लोगों की सूची तैयार करना जो कर के लिए देय है और उनके द्वारा अदा की जाने वाली राशि तय करना ।
(iii) आपत्तियों तथा अपीलों की सुनवाई की व्यवस्था करना ।
(iv) संग्रह अर्थात विभिन्न निर्धारित रीतियों से देय राशि की वसूली ।
(v) बकाया राशियों की नकद सिद्धि करना अर्थात बकायदारों से निपटना ।
कर संग्रह का प्रभारी तंत्र पूरी तरह से वित्त मंत्रालय के नियंत्रण और देखरेख में काम करता है । करों का संग्रह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड और केंद्रीय उत्पादन शुल्क एवं कस्टम बोर्ड के माध्यम से किया जाता है । राशियों के आहरण और वितरण (Custody and Distribution) में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भारतीय स्टेट बैंक, जिला कोषागार (लगभग 300) और उपकोषागार (लगभग 1200) संलग्न हैं ।
भारत का संविधान केंद्र सरकार के लिए तीन प्रकार की राशियों/निधियों की व्यवस्था करता है:
(i) भारत की संचित निधि (धारा 266),
(ii) भारत की सार्वजनिक लेखा (धारा 266),
(iii) भारत की आकस्मिकता निधि (धारा 267) ।
भारत की संचित निधि:
इस कोष में सारी प्राप्तियों को जमा और सारे भुगतानों को व्यय में डाला जाता है ।
दूसरे शब्दों में:
(i) भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व;
(ii) जारी किए गए राजकोष बिलों, ऋणों अथवा अग्रिम राशियों के उपायों या माध्यम से सरकार द्वारा लिए गए तमाम कर्जे और
(iii) ऋणों की अदायगी के रूप में सरकार द्वारा प्राप्त सभी राशियाँ भारत की संचित निधि का निर्माण करेंगी ।
सरकार की ओर से किए जाने वाले सभी वैधानिक रूप से अधिकृत भुगतान इसी कोष से किए जाते हैं । इस कोष से किसी भी राशि का विनियोग (जारी करना या निकालना) संसदीय कानून के अनुसार ही किया जा सकता है, अन्यथा नहीं ।
भारत का सार्वजनिक लेखा:
भारत सरकार द्वारा या इसकी ओर से प्राप्त तमाम अन्य सार्वजनिक राशियाँ (उनके अलावा जो भारत की संचित निधि में जमा की जाती हैं) भारतीय सार्वजनिक लेखा में जमा की जाएँगी । उनमें भविष्य निधि जमा, न्यायिक जमा, बचत खाता जमा, विभागीय जमा और प्रेषित जमा इत्यादि शामिल हैं । इस खाते का संचालन कार्यपालक कार्यवाही द्वारा किया जाता है अर्थात, इस खाते से भुगतान संसदीय विनियोजन के बिना किए जा सकते हैं । भुगतानों की प्रकृति प्राय: बैकिंग लेन-देन की होती है ।
भारत की आकस्मिकता निधि:
संविधान ने संसद को एक ‘भारत की आकस्मिकता निधि’ की स्थापना के लिए अधिकृत किया है जिसमें समय-समय पर कानून द्वारा निर्धारित राशियाँ जमा की जाएँगी । तद्नुसार 1950 में संसद ने भारतीय आकस्मिकता निधि अधिनियम पारित किया ।
इस निधि को राष्ट्रपति के नियंत्रण में रखा गया । वह संसद द्वारा प्राधिकृत करने से पूर्व, अनदेखे खर्चे की पूर्ति के लिए इसमें से पेशगी दे सकता है । राष्ट्रपति की ओर से यह निधि वित्त सचिव के अधीन रहती है । भारतीय सार्वजनिक लेखा निधि की तरह इसका संचालन भी कार्यकारी कार्यवाही द्वारा होता है ।