पूंजी निर्माण: अर्थ, परिभाषा और मापन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. पूंजी निर्माण का अर्थ (Meaning of Capital Formation) 2. पूंजी निर्माण की परिभाषाएँ (Definitions of Capital Formation) 3. मापन (Measurement).

पूंजी निर्माण का अर्थ (Meaning of Capital Formation):

पूंजी निर्माण आर्थिक विकास की केन्द्रीय समस्या है । आर्थिक विकास की प्रक्रिया में पूंजी निर्माण को हमेशा मुख्य चालक तत्व की भाँति देखा गया है । संकुचित दृष्टि से पूंजी निर्माण को भौतिक पूंजी या पूंजीगत वस्तुओं के स्टाक में होने वाली वृद्धि तथा व्यापक रूप से भौतिक एवं मानवीय पूंजी के निर्माण से लिया जाता है । वस्तुत: पूंजी मानव द्वारा निर्मित होती है तथा मानव के प्रयास इसकी पूर्ति में वृद्धि करने में समर्थ होते है ।

पूंजी उत्पादन का एक मुख्य साधन है जो अर्थव्यवस्था में वस्तु व सेवाओं के उत्पादन में सहायक होता है । पूंजी साधनों का ऐसा संग्रह है जो किसी नियत काल में भावी आवश्यकताओं वस्तुओं व सेवाओं की पूर्ति में सहायक होता है । इस अर्थ में पूंजी के अधीन सार्वजनिक भौतिक सम्पत्ति का भण्डार, ऐसा स्टाक जो देश की उत्पादन प्रक्रिया में लगा हो तथा निजी परिसम्पत्ति शामिल होती है ।

किसी देश की वास्तविक पूंजी से अभिप्राय मशीन, कल कारखानों, कच्चे माल, अर्द्धनिर्मित माल व यातायात के साधनों की समष्टि से होता है । पूंजी स्टाक में मनुष्य के द्वारा निर्मित समस्त वस्तुएं शामिल होती है जो उत्पादन की प्रक्रिया में उपयोगी होती हैं ।

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एक राष्ट्र की पूंजी देश के समस्त नागरिकों एवं सभी संस्थानों की शुद्ध सम्पत्ति की योग होती है । राष्ट्रीय पूंजी का अधिकांश भूमि, इमारतों, मशीन, यातायात के संसाधन जैसी दीर्घकालीन उपयोगी वस्तुओं के रूप में होता है ।

पूंजी निर्माण से अभिप्राय है देश की वास्तविक पूंजी में होने वाली अभिवृद्धि । एक देश अपनी समस्त उत्पादन क्षमता को अपने उपभोग की आवश्यकता पूर्ति में ही नहीं लगा देता बल्कि इसके कुछ अंश को पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण में भी लगाता है जिससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है एवं भविष्य में उपयोग वस्तुओं का उत्पादन भी बढता है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा के अनुसार- “पूंजी वह वस्तुएँ है जो आर्थिक क्रियाओं से प्राप्त होती है तथा जिनका प्रयोग भविष्य में वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जाता है ।”

संक्षेप में पूंजी निर्माण से अभिप्राय है देश की वास्तविक पूंजी की अभिवृद्धि । किसी देश का आर्थिक विकास उसके पूंजी निर्माण की गति पर निर्भर करता है, क्योंकि- (1) पूंजी निर्माण से पूंजी का फैलाव एवं गहनता सम्भव बनती है । (2) पूंजी संचय नयी तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहन प्रदान करता है । (3) पूंजी संचय श्रम की कुशलता में वृद्धि करता है ।

पूंजी निर्माण की परिभाषाएँ (Definitions of Capital Formation):

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संकुचित एवं व्यापक दृष्टिकोण:

संकुचित दृष्टिकोण के अन्तर्गत पूंजी निर्माण को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है:

रागनर नर्क्से के अनुसार पूंजी निर्माण से अभिप्राय यह है कि समाज अपनी समस्त चालू उत्पादक क्रियाओं जो तात्कालिक उपभोग की आवश्यकता तथा इच्छाओं की पूर्ति पर नहीं लगाता बल्कि इसके एक भाग को पूंजी वस्तुओं, औजार, उपकरण, मशीन व यातायात सुविधा, संयन्त्र एवं साज-सज्जा के निर्माण की ओर लगाता है-ये सभी वास्तविक पूंजी के विभिन्न रूप हैं जो उत्पादक प्रयासों की कुशलता को काफी अधिक बढा सकते है इस प्रक्रिया का सार इस प्रकार समाज के चालू रूप से उपलब्ध स्रोतों के एक भाग को पूंजीगत वस्तुओं के स्टाक में वृद्धि की ओर लगाया जाना है जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में उपभोग योग्य उत्पादन में वृद्धि की जा सके ।

रिचर्ड टी॰ के अनुसार- पूंजी संचय एक निश्चित समय में मशीन, औजार, भवन इत्यादि की मात्रा में वृद्धि करने की प्रक्रिया है । साइमन कुजनेट्‌स का कथन है कि- दबाव पूर्ण आर्थिक विकास व औद्योगीकरण की दशाओं में पूंजी निर्माण से आशय केवल उन संयन्त्रों, उपकरणों व निर्माण की अवस्था में रहने वाली वस्तुओं तक ही सीमित किया जाता है जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन के औजार के रूप में प्रयोग की जाती हैं ।

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व्यापक दृष्टिकोण:

व्यापक दृष्टिकोण में पूंजी निर्माण को भौतिक पूंजी के साथ-साथ अभौतिक एवं अदृश्य पूंजी जैसे मानवीय कुशलता प्रशिक्षण स्वास्थ्य इत्यादि के सन्दर्भ में देखा जाता है । रागनर नर्क्से का कथन है कि- शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, कौशल निर्माण इत्यादि पर विनियोग की जाने वाली राशि पूंजी निर्माण में शामिल की जानी चाहिएँ ।

साइमन कुजनेट्‌स के अनुसार- प्रति व्यक्ति या प्रति श्रमिक उत्पादन में होने वाली दीर्घकालीन वृद्धि को यदि आर्थिक वृद्धि माना जाये तो पूंजी को इसका साधन कहना उचित होगा तथा चालू सम्पत्ति के सभी प्रयोगों जिनके द्वारा यह वृद्धि सम्भव हो को पूंजी निर्माण समझना चाहिए ।

कुजनेट्‌स के अनुसार- पूंजी निर्माण में मात्र देश के नवनिर्माण की सामग्री यंत्र इत्यादि को ही सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि उन समस्त कार्यों को सम्मिलित किया जाता है जो उत्पादन के वर्तमान स्तर को बनाए रखने हेतु किए जाते हैं । इनमें शिक्षा, मनोरंजन व भौतिक सुविधा पर किया जाने वाला व्यय जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य व व्यक्तिगत उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है ।

इसके साथ ही समाज द्वारा किए गए वह समस्त व्यय जो उत्पादन कार्य में संलग्न जनसंख्या के चरित्र निर्माण व उत्पादन हेतु सहायक होते है को भी शामिल किया जाना चाहिए । इस प्रकार पूंजी निर्माण में भौतिक व अभौतिक दोनों ही पक्ष शामिल होने चाहिएँ ।

एच॰ डबल्यू॰ सिंगर ने स्पष्ट किया कि- पूंजी निर्माण के अधीन व्यक्त वस्तुओं जैसे संयन्त्र उपकरण, मशीनरी इत्यादि के साथ-साथ अव्यक्त वस्तुओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, वैज्ञानिक परम्परा एवं अन्वेषण के उच्च स्तर को भी सम्मिलित किया जाता है ।

पूंजी निर्माण का मापन (Measurement of Capital Formation):

पूंजी निर्माण विशुद्ध एवं कुल या सकल हो सकता है । कुल पूंजी निर्माण से तात्पर्य है, पूंजी के भण्डार में वृद्धि के लिए किए जाने वाले व्यय, से जबकि विशुद्ध पूंजी निर्माण को कुल पूंजी निर्माण में ह्रास व स्थिर पूंजी की आकस्मिक टूट-फूट घटाकर प्राप्त किया जाता है ।

इस प्रकार विशुद्ध पूंजी निर्माण स्थिर पूंजी अर्थात् भवन, निर्माण व अन्य कार्य, मशीन व संयन्त्र एवं उत्पादकी की कार्यशील पूंजी के स्टॉक में होने वाला योगदान या वृद्धि है । एक वर्ष में कुल पूंजी निर्माण की दर कुल पूंजी निर्माण एवं कुल राष्ट्रीय उत्पादन का अनुपात होता है, जबकि विशुद्ध पूंजी निर्माण की दर विशुद्ध पूंजी निर्माण के एवं विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद का अनुपात होती है ।

पूंजी निर्माण के मापने की विधियाँ निम्न है:

(1) वस्तु प्रवाह विधि

(2) व्यय विधि

(3) पूंजी वस्तुओं के भौतिक स्टाक में होने वाले परिवर्तन

(4) समग्र बचत विधि

पूंजी निर्माण के मापन की विधियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष विधियों के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है । प्रत्यक्ष विधि में पूंजी निर्माण को प्रत्यक्ष रूप से उपयोग या बचत के मापन पर आश्रित रहे बिना मापा जाता है इसके लिए पूंजी निर्माण के मुख्य घटकों विनिर्माण मशीनरी एवं संयंत्र तथा स्टाक में होने वाले परिवर्तन ज्ञात किए जाते है ।

इनमें वस्तु प्रवाह विधि व्यय विधि व माँग तालिका विधि महत्वपूर्ण है । अप्रत्यक्ष विधि में पूंजी निर्माण को बचतों एवं शुद्ध पूंजी के अंर्तप्रवाह द्वारा मापा जाता है ।