संतुलित क्षेत्रीय विकास: मतलब और आवश्यकता | Read this article in Hindi to learn about the meaning and need of balanced regional development of an economy.

संतुलित क्षेत्रीय विकास का अर्थ (Meaning of Balanced Regional Development):

भारत के सन्दर्भ में क्षेत्र का अर्थ है भारतीय संघ के भीतर एक राज्य जो भाषा के आधार पर निर्मित है । परन्तु आयोजन के प्रयोजन से इसका अभिप्राय है एक राज्य के भीतर पिछड़ा हुआ इलाका । अतः किसी क्षेत्र को एक प्रांत के भीतर आर्थिक मद के रूप में देखा जाता है, यह एक जिला, शहर अथवा एक गांव भी सकता है ।

राज्यों और प्रत्येक अन्य राज्य के बीच क्षेत्रों में सापेक्षतया विकसित और आर्थिक रूप में अल्प विकसित अर्थव्यवसओं के सह-अस्तित्व को क्षेत्रीय असन्तुलन कहा जाता है । क्षेत्रीय असंन्तुलन अन्तप्रान्तीय अथवा प्रान्त के भीतर हो सकता है ।

किसी क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन भूमि पर जनसंख्या के दबाव द्वारा प्रदर्शित है, कृषि पर अत्याधिक निर्भरता, बड़े स्तर पर शहरीकरण की अनुपस्थिति, कृषि एवं कुटीर उद्योगों में निम्न उत्पादन आदि आर्थिक पिछड़ेपन हो सकते हैं । अतः इसका अभिप्राय है कि किसी देश के सामंजस्यतापूर्ण विकास के लिये सन्तुलित क्षेत्रीय विकास एक आवश्यक शर्त है ।

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इसका अर्थ है देश में क्षेत्रों का समान विकास नहीं बल्कि इसका भाव है किसी क्षेत्र की सम्भवताओं का इसकी क्षमता के अनुसार पूर्णतया विकास ताकि समग्र आर्थिक वृद्धि का लाभ सभी क्षेत्रों के निवासियों द्वारा उठाया जाये । संतुलित क्षेत्रीय विकास का अर्थ प्रत्येक राज्य अथवा क्षेत्र की स्व-निर्भरता नहीं, न ही इसका अर्थ औद्योगीकरण का समान स्तर और न ही प्रत्येक प्रान्त के लिये समान आर्थिक प्रतिरूप है, बल्कि इसका अर्थ है पिछड़े हुये क्षेत्रों में जहां तक सम्भव हो उद्योग का विस्तृत प्रसार ।

मुख्य उद्देश्य है पिछड़े क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर को उपर उठाना तथा इस उद्देश्य की प्राप्ति कृषि, उद्योग, व्यापार और वाणिज्य आदि के विकास से सम्भव हो सकती है । संक्षेप में यह कहा जाता है की “वाणिज्य बढ़ती हुई वासयोग्यता (Habitability) समस्या है-सामाजिक और आर्थिक नवीकरण की समस्या है ।” अतः विभिन्न राज्यों व विकसित और पिछड़े राज्यों में बढ़ता अंतर एक चिंता का विषय है ।

संतुलित क्षेत्रीय विकास क्या है? (What is Balanced Regional Development):

क्षेत्रीय सन्तुलित विकास से आशय है नियोजित निवेश का देश के भिन्न क्षेत्रों में एक यह निवेश के ऐसे वितरण की माँग करता है जिससे देश के विभिन्न भागो में वृद्धि दर हो और क्षेत्रीय असमानताएं दूर हों ।

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यहां यह स्मरण रखना आवश्यक है कि सन्तुलित क्षेत्रीय विकास का अर्थ- औद्योगिकीकरण में आत्म-निर्भरता की प्राप्ति अथवा प्रत्येक प्रान्त के लिये एक जैसा प्रतिरूप नहीं है । बल्कि यह उद्योग का विस्तृत प्रसार विशेषतया देश के पिछड़े क्षेत्रों में दर्शाता है । संक्षेप में पिछड़े क्षेत्रों के लोगों का मार्गदर्शन कृषि, उद्योग, संरचना, व्यापार एवं वाणिज्य में विकास की प्राप्ति होगी ।

सन्तुलित क्षेत्रीय विकास की आवश्यकता (Need for Balanced Regional Development):

अल्प विकसित देशों के सामंजस्यतापूर्ण विकास के लिये सन्तुलित विकास निम्नलिखित कारणों से आवश्यक हैं:

1. राजनीतिक स्थायित्व बनाये रखने के लिये (To Maintain Political Stability):

किसी भी देश के लिये राजनीतिक स्थायित्व आवश्यक होता है । आय और सम्पत्ति में क्षेत्रीय असमानताएं राष्ट्रीय स्थिरता के लिये संकट का बड़ा स्रोत हैं । इसी कारण बांग्लादेश एक स्वतन्त्र सर्वसत्तापूर्ण देश बन गया । अतः सभी क्षेत्रों का समान विकास अत्यावश्यक है । यह राजनीतिक एवं राष्ट्रीय दृढ़ता से जन्म लेता है ।

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2. सामाजिक बुराइयों से निपटना (To Overcome Social Evils):

क्षेत्रीय विकास बड़े शहरों और कस्बों में उद्योगों के स्थानीयकरण के साथ जुड़ी सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सहायता करता है । ऐसे औद्योगिक केन्द्रों में अत्याधिक भीड, संकुलन तथा शोर होता है जो निवासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है । अतः सन्तुलित क्षेत्रीय विकास के लिये आवश्यक है कि ऐसी सामाजिक बुराइयों को दूर किया जाये ।

3. साधनों का विकास एवं संरक्षण (To Develop and Conserve Resources):

यह साधनों के अधिकतम विकास में सहायक है । डॉ. डी. आर. बालाकृष्णा ने ठीक ही कहा है, ”क्षेत्रीय विकास का लक्ष्य उपलब्ध साधनों के उपयोग में अधिकतम कुशलता की प्राप्ति होना चाहिये ।” विविध प्रकार के उद्योगों की स्थापना क्षेत्र के खनिज, कृषि और मानवीय साधनों के पूर्ण उपयोग और संरक्षण में सहायता करती है ।

4. अर्थव्यवस्था को निर्विध्नता से विकसित करना (To Develop the Economy Smoothly):

सन्तुलित क्षेत्रीय विकास अर्थव्यवस्था के सन्तुलित विकास में सहायता करता है । यदि सभी क्षेत्रों को समान रूप में विकसित किया जाता है तो वे एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं, अन्यथा यदि क्षेत्रीय असन्तुलन हैं तो पिछड़े क्षेत्रों में आय का निम्न स्तर विकास में बाधा डालेगा । इससे अर्थव्यवस्था के भीतर स्फीतिकारी दबाव भी न्यूनतम होंगे ।

5. अर्थव्यवस्था को तीव्रता से विकसित करना (To Develop the Economy Rapidly):

अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास के लिये सन्तुलित क्षेत्रीय विकास एक पूर्वापेक्षा है क्योंकि समग्र अर्थव्यवस्था की उन्नति सभी क्षेत्रों के विकास पर निर्भर करती है ।

6. प्रतिक्रियापूर्ण प्रभावों को न्यूनतम बनाना (To Minimise Backward Effects):

मायरडल ने अवलोकन किया है कि आय और रोजगार में क्षेत्रीय अनार अल्प विकसित देशों के लक्षण हैं और क्षेत्रीय असमानता का मुख्य कारण दृढ़ प्रतिक्रियात्मक प्रभाव और इन अर्थव्यवस्थाओं में निर्बल प्रसार प्रभाव है । ये असमानताएँ प्रवास, पूजी संचलन और व्यापार द्वारा तीव्र होती हैं ।

पिछड़े क्षेत्रों से युवा एवं सक्रिय लोगों का स्थानान्तरण प्रगतिपूर्ण क्षेत्रों के पक्ष में होगा । फलतः आर्थिक गतिविधि और पूंजी का चलन विकसित क्षेत्रों की ओर हो जायेगा जिससे पिछड़े क्षेत्रों में पूजी की कमी हो जायेगी । विकसित क्षेत्रों मैं उद्योग का विकास पिछड़े क्षेत्रों के वर्तमान उद्योगों को नष्ट कर देगा ।

अतः प्रतिक्रियात्मक प्रभाव प्रसार प्रभाव से दृढ़ होने के कारण क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ जाती हैं । अतः अल्प विकसित क्षेत्रों की मौलिक आवश्यकता यह है कि राज्य द्वारा जानी-बुझी कार्यवाही द्वारा प्रतिक्रियात्मक प्रभाव को न्यूनतम बनाया जाये ।

7. रोजगार के अधिक अवसरों का संवर्धन और प्राप्ति (To Promote and Secure Larger Employment Opportunities):

क्षेत्रीय असन्तुलन अल्प विकसित देशों को निम्न आय, रोजगार और उत्पादन स्तरों की ओर ले जाते हैं । उद्योगों का विभिन्न क्षेत्रों में बिखराव पिछड़े क्षेत्रों में न केवल संरचना का संवर्धन करता है बल्कि रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में भी सहायता करता है जिससे उनके प्रति व्यक्ति आय और उत्पादन में वृद्धि होती है ।

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