अविकसित देशों में आर्थिक पिछड़ापन की समस्याएं | Read this essay in Hindi to learn about the main problems of economic backwardness in underdeveloped countries as given by Myint.
आर्थिक पिछड़ेपन की व्याख्या करते हुए प्रो. मिंट मुख्यत: निम्न समस्याओं की ओर संकेत करते हैं:
(1) आवश्यकताओं क्रियाओं एवं पर्यावरण के मध्य आपसी अनुकूलन की निरन्तर प्रक्रिया जिसे आर्थिक संघर्ष के द्वारा निरूपित किया जाता है ।
(2) व्यक्तियों के विभिन्न समुदायों के आर्थिक संघर्ष में सफलता की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की तुलना करने के लिये यह मान्यता लेनी पड़ेगी कि इन विभिन्न समुदायों का उद्देश्य वास्तव में एक ही प्रकार के या तुलना योग्य लक्ष्यों की प्राप्ति होता है ।
ADVERTISEMENTS:
(3) यह भी विचार करना होगा कि क्या विभिन्न समुदायों के पिछड़ेपन या उन्नति की अवस्था को, उनके मध्य अन्तिम आयों के सापेक्ष वितरण के आधार पर आंकना पर्याप्त है, अथवा क्या विभिन्न समुदायों के मध्य आर्थिक क्रिया के वितरण का रूप एवं आर्थिक जीवन में उनके द्वारा किये गए योगदान दीर्घकाल में यह संकेत प्रस्तुत नहीं करते कि प्रत्येक समुदाय के विकास की भावी सम्भावना कितनी है?
मिंट के अनुसार पिछड़े व्यक्तियों के सम्बन्ध में दृष्टिकोण विकसित करते हुए, परिभाषा के अनुसार उनकी असफलता को समस्या का केन्द्र बनाया जाता है, इससे तात्पर्य है कि:
(i) पिछड़े लोगों के तथा उनके देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं उनके आर्थिक पर्यावरण में आधारभूत विषमता विद्यमान हो ।
(ii) उत्पादन अथवा आर्थिक क्रिया के कुल परिणाम की अपेक्षा उनकी आय के अंश अथवा आर्थिक क्रिया में उनके हिस्से पर ध्यान केन्द्रित करना ।
ADVERTISEMENTS:
मिंट के अनुसार अल्पविकसित साधनों पर आधारित दृष्टिकोण को अपनाते हुए भिन्न प्रकार के विचारों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है । अल्पविकसित साधनों के अर्न्तगत मानवीय साधनों एवं प्राकृतिक साधनों को एक जैसा स्थान देने से अभिप्राय है मानव बनाम पर्यावरण के पुरातन विचार के स्थान पर आधुनिक आबंटन कुशलता विधि का दृष्टिकोण अपनाना ।
ऐसा करते हुए किसी जनसमुदाय के अपने आर्थिक पर्यावरण के विरूद्ध संघर्ष में सफलता या असफलता पर ध्यान नहीं जाता बल्कि वैकल्पिक प्रयोगों के मध्य दिए हुए संसाधनों के आबंटन पर विचार करना पड़ता है जिसका निर्धारण कीमत प्रणाली द्वारा या केन्द्रीय नियोजक द्वारा या इनके एक उचित सम्मिश्रण द्वारा किया जाता है ।
आबंटन की इस प्रक्रिया का उद्देश्य कुल उत्पादन को अधिकतम करना है, इस प्रकार अल्पविकास किसी भी तरह परिभाषित उत्पादन अनुकूलतम से विचलन का एक रूप बन जाता है ।
मिंट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि जब हम पिछड़े लोगों तथा अल्पविकसित मानवीय साधनों की बात करते हैं तो भौतिक रूप से इसका अभिप्राय एक ही जाति के लोगों से होता है, फिर भी प्रत्येक स्थिति में अपनाया जाने वाला दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न होता है ।
ADVERTISEMENTS:
प्रथम दृष्टिकोण के अनुरूप इन व्यक्तियों को आर्थिक संघर्ष में अभिनेता माना जाता है भले ही वह असफल क्यों न हो । दूसरा दृष्टिकोण उनको अल्पविकसित साधनों की व्यक्तित्वहीन इकाइयाँ मानता है ।
मिंट का कहना था कि अन्य प्रकार के साधनों की अपेक्षा मानवीय साधन पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता सिवाय एक ऐसी स्थिति में, जबकि यह सिद्ध किया जा सकता हो कि मानवीय संसाधनों का विकास करने से कुल उत्पादन वास्तव में उस मात्रा से अधिक बढ़ेगा, जिस मात्रा में यह अन्य भौतिक साधनों का विकास करने से बढ़ सकता है ।
मिंट के अनुसार जब मानवीय संसाधनों को अल्पविकसित साधनों की परिभाषा के बाहर कर दिया जाता है तथा इन्हें पूर्ण रूप से प्राकृतिक संसाधनों तक सीमित रखा जाता है तब पिछड़ेपन एवं अल्पविकास से सम्बन्धित दृष्टिकोण का अन्तर काफी अधिक स्पष्ट हो जाता है । अल्पविकसित साधनों से मनुष्यों को अलग करने पर संकल्पनाएँ सामने आती हैं ।
जो निम्न हैं:
(i) प्राकृतिक संसाधनों का अल्पविकास एवं लोगों का पिछड़ेपन दो भिन्न-भिन्न बाते हैं एवं इनका हमेशा एक साथ विद्यमान रहना आवश्यक नहीं है । काफी अधिक जनसंख्या वाले देशों के निवासी भी सामान्य रूप से पिछड़े होते हैं जिनके पास ऐसे अल्प प्राकृतिक साधन शेष रहे हों जिनका बिना किसी सहायता के और अधिक विकास किया जा सकता हो ।
(ii) ऐसी स्थिति जब अल्पविकसित प्राकृतिक साधन एवं पिछड़े व्यक्ति साथ-साथ विद्यमान हों तो वह एक-दूसरे को कुचक्र के रूप में प्रभावित करते हैं । यह आपसी अर्न्तक्रिया आवश्यक रूप से एक प्रावैगिक एवं ऐतिहासिक प्रक्रिया है जो एक समय अवधि में सम्भव बनती है इतनी जटिल एवं गुणात्मक प्रकृति की हो सकती है कि इसे संसाधनों के अनुकूलतम आबंटन के औपचारिक मात्रात्मक ढाँचे के साथ रखकर स्पष्ट नहीं किया जा सकता ।
(iii) यद्यपि प्राकृतिक संसाधनों का अल्पविकास किसी जाति के पिछड़े होने का कारण हो सकता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्राकृतिक संसाधनों का कोई समर्थ विकास जो कुल उत्पादन में होने वाली एक वृद्धि को दिखा रहा हो हमेशा व्यक्तियों की निर्धनता में ह्रास सूचित करें ।
देखा तो यह गया है कि कई देशों में आर्थिक पिछड़ेपन की समस्या काफी गम्भीर बन गयी है, इसका कारण यह नहीं कि प्राकृतिक साधन अल्पविकसित रहे हैं बल्कि यह है कि बाजार परिस्थितियों के अनुसार इनका पूर्ण रूप से तथा तीव्र गति से विकास हुआ है । लेकिन वहाँ के निवासी इस विकास के वंचित रहे हैं, या तो इस प्रक्रिया में पूर्णत: जुड़ने में वह असमर्थ थे या अनिच्छुक या यह दोनों ही बातें प्रभावी रहीं ।