अविकसित देशों का आर्थिक विकास (बाधाएं) | Read this article in Hindi to learn about the fifteen major obstacles to economic development of underdeveloped countries. The obstacles are:- 1. बाजार अपूर्णताऐं (Market Imperfections) 2. कुचक्र (Vicious Circles) 3. सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं (Socio-Cultural Constraints) 4. परिवर्तन का सामान्य विरोध (General Resistance to Change) and a Few Others.
अल्प विकास के लक्षणों का अध्ययन निर्देशात्मक है और समस्या के स्वरूप और विस्तार को समझने में सहायता करता है । विभिन्न निषेधकारी कारकों के प्रभाव की प्रवणता में अन्तर हो सकते हैं परन्तु उसी समय वे अधिकांश निर्धन देशों के विकास में बाधा डालते हैं ।
अल्प विकसित देशों के आर्थिक विकास के मार्ग में विद्यमान विभिन्न बाधाओं पर चर्चा की गई है:
Obstacle # 1. बाजार अपूर्णताऐं (Market Imperfections):
किसी भी देश के अल्प विकास के लिये मुख्यतया बाजार की अपूर्णतायें उत्तरदायी होती हैं । यह, वे शक्तियां हैं जो अर्थव्यवस्था की निर्विघ्न कार्यवाही में बाधा बनती हैं । इन्हें अर्थव्यवस्था की त्रुटियां कहा जाता है ।
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वे कारक जो अर्थव्यवस्था के निर्विघ्न कार्य में बाधा बनते हैं वे हैं- कारकों की स्थिरता, कीमत कठोरता, बाजार स्थितियों का अज्ञान, कठोर सामाजिक संरचना आदि । ये अपूर्णताऐं, इन देशों के उत्पादन को निम्न स्तर पर रखने के लिये उत्तरदायी हैं ।
निर्धन देशों में श्रमिकों की एक बड़ी संख्या की उत्पादकता लगभग शून्य होनी है । फिर भी वे उन उद्योगों की ओर स्थानान्तरित नहीं होते जहां प्रतिफल ऊंचे हो सकते हैं । इस प्रकार, कारकों की स्थिरता कारक असन्तुलन की ओर ले जाती है जो आर्थिक विकास में बाधा का कार्य करता है ।
एक और अपूर्णता यह है कि कीमतें बहुत कठोर हैं जिसके कारण बाजार के विस्तार और संचलन कि मात्रा में बाधा पड़ती है । इससे नये निवेश के लिये व्यापारी समुदाय की पहल प्रवृत्ति समाप्त होती है । अत: यह आर्थिक विकास की गति को क्षीण करती है ।
बाजार की यह अपूर्णताऐं, इन देशों के साधनों को अविकसित, अल्प-विकसित और अनुचित प्रयोग में रखने के लिये उत्तरदायी है । साधनों के पूर्ण और अधिक दक्ष उपयोग के अभाव ने इन देशों को निम्न उत्पादन वक्र पर रखा है । फलत: निर्धन अर्थव्यवस्थाओं में, उत्पादन उनकी क्षमता से बहुत नीचे रहता है ।
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अन्य शब्दों में, बाजार की यह अपूर्णतायें कारक असन्तुलन की ओर ले जाती हैं जो बदले में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को इसकी उत्पादन सीमाओं में रखता है अथवा निर्धन देशों का वास्तविक उत्पादन सम्भावित उत्पादन से कहीं कम होता है ।
अत: साधनों के अनुकूलतम निर्धारण की प्राप्ति और उनके पूर्ण उपभोग के लिए बाजार की अपूर्णताओं को दूर करना आवश्यक है तभी कोई देश अपनी उत्पादक क्षमता के अनुसार उत्पादन प्राप्त कर सकता है । इसकी रेखा चित्र 3.1 में उत्पादन सम्भवता वक्र द्वारा व्याख्या की जा सकती है ।
यदि कोई देश केवल दो वस्तुओं A और B का उत्पादन कर रहा है, तो उत्पादन सीमा, A और B के विभिन्न संयोगों की अधिकतम मात्राओं द्वारा दिखाई जाती है, जिसे देश प्रदत्त साधनों तथा प्रदत्त तकनीकों द्वारा सर्वोत्तम सम्भव ढंग से साधनों के आबंटन द्वारा उत्पादित करता है ।
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यह उत्पादन सीमा वक्र AB द्वारा दर्शायी जाती है जिसे सम्भावित उत्पादन वक्र कहा जाता है । साधनों के पूर्ण और बेहतर आवंटन द्वारा देश में उत्पादन सीमा तक पहुंचने की क्षमता होती है ।
किसी अल्प-विकसित देश में, कारकों का सर्वोत्तम संयोग प्रयुक्त नहीं किया जाता तथा बाजार की अपूर्णताओं के कारण साधनों का आबंटन अत्याधिक दक्षता द्वारा नहीं किया जाता ।
अत: इसका वास्तविक उत्पादन वक्र A’ B’ सम्भावित उत्पादन वक्र AB से बहुत नीचे हो सकता है । वास्तविक उत्पादन बिन्दु P द्वारा दर्शाया जा सकता है जो सम्भावित उत्पादन वक्र के नीचे के वक्र पर स्थित है तथा उत्पादन सीमा AB के भीतर है ।
यह दर्शाता है कि निर्धन देश के पूंजी भण्डार, प्राकृतिक साधनों और जनसंख्या में बिना किसी परिवर्तन के अपनी प्राकृतिक आय को प्रौद्योगिक उन्नति द्वारा अधिक दक्ष साधन आवंटन द्वारा बढ़ा सकते हैं ।
अल्प विकसित देशों के प्रकरण में, अनुकूलतम साधन आवंटन की प्राप्ति में असफलता के कारण निम्न उत्पादन सीमा का प्रयोग होता है । निर्धन देशों की विकास दर नीची होती है तथा बाजार अपूर्णतायें कोई राष्ट्रीय आय उपलब्ध नहीं कराती जिसे विकास में बाधक माना जाता है ।
Obstacle # 2. कुचक्र (Vicious Circles):
यह बाजार अपूर्णताओं से अधिक महत्त्वपूर्ण किस्म की बाधाएं हैं । यह अल्प विकसित देशों के आर्थिक पिछड़ेपन की व्याख्या करती हैं । निर्धनता के कुचक्र के वर्णन के लिये एक रुग्ण व्यक्ति का उदाहरण दिया जाता है । एक निर्धन व्यक्ति को कम आहार तथा कम पोषण प्राप्त होता है ।
कम पोषण उसे दुर्बल बना देता है और रुग्णता की सम्भावनाएं बढ़ा देता है । निर्धन व्यक्ति की उपार्जन क्षमता बहुत कम होती है, इसलिये वह निर्धन है । अत: वह बीमार है क्योंकि वह निर्धन है और वह निर्धन है क्योंकि वह बीमार है । इस प्रकार कुचक्र पूरा होता है ।
अल्पविकसित देश प्राय: कुचक्र में जकड़े होते हैं । नर्कस ने विचार का वर्णन इन शब्दों में किया है- ”इसका अर्थ है उन शक्तियों का चक्रीय समूह जो एक दूसरे पर क्रिया और प्रतिक्रिया इस प्रकार करता है जिससे एक निर्धन देश निर्धनता की स्थिति में रहे ।”
पूंजी के अभाव का कुचक्र (Vicious Circle of Capital Deficiency):
अत्याधिक विशेष कुचक्र वह है जो अल्प विकसित देशों में पूंजी के संचयन को प्रभावित करते हैं । पूंजी का अभाव किसी अल्प विकसित देश की निर्धनता का मूल कारण होता है । सभी अल्प विकसित देशों में पूंजी भण्डार का अभाव होता है तथा पूंजी निर्माण की दर बहुत नीची होती है तथा इसका मुख्य कारण निर्धनता का कुचक्र होता है ।
पूंजी संचयन दो कारकों पर निर्भर करता है:
(i) पूंजी की पूर्ति (Supply of Capital),
(ii) पूंजी की मांग (Demand for Capital) ।
पूंजी की पूर्ति, बचत के सामर्थ्य और बचत की इच्छा द्वारा प्रशासित होती है तथा पूंजी की मांग निवेश के लिये प्रोत्साहनों द्वारा । प्रो. आर. नर्कस के अनुसार- “निर्धन देशों में पूंजी निर्माण की समस्या के दोनों ओर एक कुचक्र उपस्थित होता है ।”
Obstacle # 3. सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं (Socio-Cultural Constraints):
सामाजिक-सांस्कृतिक कठोरताएं अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास में एक अन्य प्रकार की बाधाएं हैं । तीव्र आर्थिक विकास को मन के एक विशेष दृष्टिकोण और उच्च लोचपूर्ण संस्थानिक प्रतिरूप की आवश्यकता होती है ।
अधिकांश अल्प विकसित देशों में सामाजिक संस्थाएं होती हैं और वह ऐसा दृष्टिकोण प्रदर्शित करती हैं जो आर्थिक विकास के लिये नहीं प्रेरक होता है । भौतिक बेहतरी की तीव्र इच्छा, नियमित और पाबन्द रूप से कठिन परिश्रम की इच्छा, वर्तमान त्यागों के लिये भविष्य में लाभों की जानकारी आदि आर्थिक विकास की पूर्वापेक्षाएं हैं ।
परन्तु अल्प विकसित देशों में यह अनुपस्थित हैं और इसलिये उनमें से बहुतों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रान्ति की आवश्यकता है जबकि औद्योगिक क्रान्ति चालू है ।
Obstacle # 4. परिवर्तन का सामान्य विरोध (General Resistance to Change):
अल्पविकसित देशों में एक अन्य बाधा यह है कि वहां परिवर्तन के प्रति सामान्य विरोध होता है । इसका अर्थ है कि विकास के प्रति लोगों में रुचि का अभाव होता है ।
इन देशों में समृद्धि का दर्शन अनुपस्थित होता है तथा लोग त्याग और संन्यास के दर्शन तक सीमित होते हैं । इन समाजों में लोग कार्य को एक आवश्यक बुराई समझते हैं । वह फुर्सत, सन्तोष, त्योहारों तथा धार्मिक उत्सवों की सहभागिता को अधिक महत्व देते हैं ।
शिक्षित लोग किसी विशेष प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहते हैं तथा ऐसे कार्यों से परहेज करते हैं जहां उनके हाथ गन्दे हों । भारत में कृषि के नये और भिन्न ढंग अपनाने का विरोध किया जाता है ।
कृषि परिवर्तनों सम्बन्धी विरोध के सम्बन्ध में प्रो. हानसेन ने सत्य ही कहा है- ”कृषि प्रथाएं रीति-रिवाजों और परम्पराओं द्वारा नियन्त्रित होती है । ग्रामीण लोगों में विज्ञान के प्रति भय होता है । अनेक ग्रामीणों के लिये, कीटनाशक वर्जित होते है क्योंकि सम्पूर्ण जीवन पवित्र है । एक नये और सुधरे हुये बीज पर सन्देह किया जाता है, इसके प्रयोग के प्रयत्न को जुआ समझा जाता है ।”
Obstacle # 5. पश्चिमी प्रौद्योगिकी को अपनाने में कठिनाई (Hardship of Adopting Western Technology):
अल्प विकसित देशों में आधुनिक और नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने की समस्या होती है । पश्चिमी देशों में हम जिस उन्नति का अवलोकन करते हैं वह इस तरह प्रौद्योगिकी को अपनाने के फलस्वरूप होती है, जबकि निर्धन देशों में यह उचित नहीं ।
एक अन्य कारण यह है कि इन देशों में श्रमपूर्ति की बहुलता होती है तथा पूंजी की दुर्लभता । वहां प्रशिक्षित श्रम और प्रबन्ध का अभाव होता है । इन परिस्थितियों में अल्प विकसित देश श्रम गहन अथवा पूंजी गहन तकनीकों को अपनाने में असफल रहते हैं ।
इस प्रकार, नई प्रौद्योगिकी के प्रकरण में अल्प विकसित देशों की स्थिति बड़ी अजीब होती है । प्रौद्योगिकी का वर्तमान स्तर उन्हें निर्धनता के कुचक्र से बाहर निकालने के योग्य नहीं होता तथा इसके साथ ही पश्चिम की आधुनिक प्रौद्योगिकी उनके लिये प्रासंगिक नहीं होती तथा वह अपने लिये उचित प्रौद्योगिकी को विकसित नहीं कर सके ।
Obstacle # 6. जनसंख्या की समस्या (Population Problems):
जनसंख्या की तीव्र वृद्धि अल्प विकसित देशों के विकास मार्ग में एक बड़ी बाधा है । जैकॉब वाइनर (Jacob Viner) के अनुसार- ”जनसंख्या में वृद्धि सभी निर्धन देशों पर संकट के बादलों की भान्ति मण्डराती है ।”
यह, अन्य कारकों द्वारा आर्थिक प्रगति के लिये किये गये सभी योगदानों को समाप्त कर देती है । अधिकांश अल्प विकसित देशों में जनसंख्या 2 से 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष के हिसाब से बढ़ रही है ।
यह वृद्धि के बहुत तीव्र दर हैं तथा निर्धन देशों के लिये गम्भीर आर्थिक कठिनाइयां खड़ी कर सकती हैं जबकि पूंजी निर्माण की दर बहुत नीचे होती है । अधिक जनसंख्या का अर्थ है निर्धन जनसंख्या और निर्धनता का अर्थ है अध्यक्षता, कम उत्पादकता और अल्प विकास ।
अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जनसंख्या का आधिक्य प्रति व्यक्ति आय को कम करता है, बेरोजगारी की स्थिति को बिगाड़ता है, आहार समस्याएं बढ़ाता है, निर्भरता के बोझ को बढ़ाता है अथवा अनुत्पादक लोगों की संख्या को बढ़ाता है, पूंजी निर्माण में बाधक होता है तथा लोगों को अदक्ष बनाता है ।
अत: जनसंख्या की समस्या पर सीधा और स्पष्ट प्रहार करने की आवश्यकता है ताकि स्वैच्छिक, अनिवार्य अथवा वैध उपायों द्वारा जन्म दर कम करके साधनों को अल्प विकसित देशों के विकास के लिये प्रयुक्त किया जा सके ।
Obstacle # 7. कृषि सम्बन्धी बाधाएं (Agricultural Constraints):
एक अन्य बाधा कृषि क्षेत्र से सम्बन्धित है । अल्प विकसित देशों में लोगों की बहुसंख्या कृषि कार्यों में व्यस्त होती है । कृषि उत्पादन से उनकी जी. डी. पी. का बड़ा भाग बनाता है और कृषि वस्तुओं का मूल्य कुल निर्यात का एक बड़ा भाग होता है ।
“कृषि प्रथाएं रीति-रिवाजों और परम्पराओं से नियन्त्रित होती हैं । एक ग्रामीण व्यक्ति विज्ञान से डरता है, बहुत से ग्रामीणों के लिये कीटनाशक वर्जित होता है ……… एक नये एवं सुधरे हुये बीज पर सन्देह किया जाता है और इसका प्रयोग एक जुआ समझा जाता है । उदाहरणार्थ, उर्वरकों का प्रयोग जोखिमपूर्ण होता है । इन अप्रयुक्त विधियों को अपनाना जोखिम और असफलता जैसा हो सकता है और असफलता का अर्थ हो सकता है भूखे मरना ।”
वास्तव में किसान का व्यवहार कृषि की वृद्धि में बाधा का कार्य नहीं करता, बल्कि बाधाएं तो उस वातावरण में विद्यमान है जिसमें किसान कम करते हैं, उनको उपलब्ध प्रौद्योगिकी में, उत्पादन के लिए निवेश और प्रोत्साहनों में, आगतों की कीमतों और उपलब्धता में, सिंचाई की व्यवस्था और जलवायु में विद्यमान हैं ।
गर्मी और भारी वर्षा के कारण, उनकी धरती दुर्बल है क्योंकि उसमें बहुत कम जैव-पदार्थ होते हैं ।
पर्यावरणीय कारकों के कारण कृषि उत्पादन बढ़ता नहीं जिससे कि विकासशील देशों की बढ़ती हुई मांग पूरी हो सके, जब जनसंख्या की वृद्धि दर ऊंची होगी, प्रति व्यक्ति कृषि आय और आहार उत्पादन बढ़ने के स्थान पर कम हो सकता है । इस प्रकार, कृषि क्षेत्र का दुर्बल निष्पादन, कम विकसित देशों की धीमी आर्थिक वृद्धि के लिए भारी बाधा का कार्य करता है ।
Obstacle # 8. मानवीय साधनों की बाधाएं (Human Resource Constraints):
अल्प-विकसित मानवीय संसाधन, निर्धन और कम विकसित देशों के आर्थिक विकास के मार्ग में एक अन्य महत्वपूर्ण बाधा है । आवश्यक निपुणताओं और ज्ञान वाले लोग जिनकी अर्थव्यवस्था के सर्वपक्षीय विकास के लिये आवश्यकता होती है इन देशों में नहीं मिलते । अतिरेक श्रम की उपस्थिति प्राय: आवश्यक निपुणता के अभाव के कारण होती है ।
अल्प विकसित मानवीय साधनों का प्रकटाव श्रम की निम्न उत्पादकता, कारकों की गतिहीनता और व्यवसाय में सीमित विशेषज्ञता द्वारा होता है क्योंकि अल्प विकसित देशों में आवश्यक निपुणताओं और ज्ञान का अभाव होता है, इसलिये स्थानीय अथवा आयात की गई भौतिक पूंजी का उत्पादक प्रयोग नहीं किया जा सकता । फलत: यन्त्र शीघ्र खराब हो जाते हैं तथा सामग्री और घटक व्यर्थ हो जाते हैं और उत्पादन की गुणवत्ता गिर जाती है तथा लागतें बढ़ जाती हैं ।
Obstacle # 9. अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियां (International Forces):
कुछ अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियां भी अल्प-विकसित देशों के विकास के विरुद्ध कार्य कर रही हैं तथा उन्हें पिछड़ा हुआ रखने के लिये उत्तरदायी हैं । आधुनिक अर्थशास्त्री इस तथ्य में विश्वास नहीं करते कि आर्थिक दृष्टि में छोटे देश अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से अधिक लाभ उठाते हैं । कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों जैसे प्रिबिच, सिंगर, मिन्ट, ल्यूस और मायरडल ने एक ”निर्धन देशों के शोषण का सिद्धान्त” प्रस्तुत किया है ।
उनका कहना है कि- “लगभग पिछले 150 वर्षों के दौरान, व्यापार और पूंजी के संचलन के माध्यम द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों के कार्यों ने अल्प विकसित देशों के लिये विपरीत प्रभाव उत्पन्न किये हैं । विश्व अर्थव्यवस्था में कुछ असमानीकरण की शक्तियां कार्य कर रही हैं जिनके द्वारा व्यापार में प्राप्त किये गये लाभ मुख्यता विकसित देशों की ओर जाते हैं ।”
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने अल्प विकसित देशों में आरम्भिक उत्पादन का संवर्धन किया है । इन आरम्भिक उत्पादों का एक बड़ा भाग विकासशील देशों की ओर निर्यात किया जाता है । इस प्रकार, अल्प विकसित अर्थव्यवस्थाएं निर्यात उत्पादन के प्रति पक्षपाती हो गई हैं, जिस कारण विकास की अन्य आवश्यकताओं की उपेक्षा हो गई है ।
प्रो मायरडल ने ठीक ही कहा है- ”आरम्भिक उत्पादों के निर्यात में विस्तार के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं तथा स्थिरता एवं अवनति बनाये रखने वाली शक्तियों को बल मिलता है ।”
दूसरी ओर, विकसित देशों से आयात जिनमें अधिकतर तैयार औद्योगिक उत्पाद होते हैं, अल्प-विकसित देशों में उद्योगों की वृद्धि को रोकता है । प्रारम्भिक वस्तुओं के अत्यधिक निर्यात द्वारा अर्जित विदेशी विनिमय को उत्पादक निवेश में प्रयुक्त नहीं किया जाता बल्कि उपभोग, भू-सम्पत्ति, विलासतापूर्ण आयतों आदि में व्यर्थ खर्च कर दिया जाता है ।
इस प्रकार व्यापार का सन्तुलन, निर्यात-कर्ता देश के विपरीत हो जाता है । भारी विदेशी निवेशों के बावजूद इन देशों के लोग निर्धन रहते हैं । प्रो. मायर और बाल्डविन के अनुसार- “लाभों के विदेशों की और निकास ने कुछ प्रकरणों में निर्धन देशों की सम्भावित वास्तविक बचतों के बड़े भाग को समबिष्ट कर लिया है ।”
Obstacle # 10. आर्थिक क्रान्तियों की अनुपस्थिति (Absence of Economic Revolutions):
आर्थिक क्रान्तियों की अवधारणा को बारबारा वार्ड (Barbara Ward) द्वारा आरम्भ किया गया ।
किसी अर्थव्यवस्था के अल्प विकास और पिछड़ेपन के कारण निर्धनता का मुख्य कारण चार प्रकार की आर्थिक क्रान्तियों की अनुपस्थिति है:
1. पुरुषों और स्त्रियों में राजनीतिक समानता,
2. जैविक क्रान्ति अर्थात् धरती पर जनसंख्या की वृद्धि दर में अचानक वृद्धि,
3. प्रगति का क्रान्तिकारी विचार,
4. सभी आर्थिक प्रक्रियाओं में विज्ञान और बचतों के रूप में पूंजी का प्रयोग ।
पश्चिम में विज्ञान और बचतों का प्रयोग जीवन के लगभग सभी रूपों में किया जाता है । प्रशासन्, कार्यालय प्रबन्ध, राजनीति, समाज शास्त्र, जहां तक कि संस्कृति और कला जो पश्चिमी जगत में विद्यमान है में भी इनका प्रयोग होता है, परन्तु निर्धन राष्ट्रों में इनका अस्तित्व ‘अव्यवस्थित और भ्रूणीय स्तर’ पर होता है । अत: बचतें और विज्ञान आर्थिक विकास की कुंजी हैं परन्तु अल्प विकसित देशों में यह दोनों में यह दोनों सुदृढ़ आधार है जहां निर्धनता विद्यमान होती हैं ।
Obstacle # 11. पूंजी रणनीति का अभाव (Lack of Capital Strategy):
अल्प विकसित देशों में पूंजी साधनों का अभाव विकास मार्ग में एक मुख्य बाधा है । आर्थिक प्रगति को, अन्य वस्तुओं के साथ, नई पूंजी निर्माण की दर का एक फलन माना जा सकता है । विकसित देशों में पूंजी निर्माण की दर राष्ट्रीय आय के 10 प्रतिशत से अधिक होती है ।
परन्तु अल्प विकसित देश अपनी राष्ट्रीय आय के 5 प्रतिशत की भी बचत नहीं करते । अत: पूंजी निर्माण की दर नीची होती है तथा आर्थिक विकास न तो आरम्भ किया जा सकता है और न ही समर्थित । अल्प विकसित देशों में आर्थिक विकास के लिये बहुत पूंजी की आवश्यकता होती है ।
इन देशों में पूंजी का अभाव, अधिकतर निम्न उत्पादकता फलन बनाये रखने के लिये उत्तरदायी होता है । पूंजी की अपर्याप्त पूर्ति के कारण कृषि एवं उद्योग दोनों में श्रम गहन तकनीकें अपनायी जाती हैं ।
कृषि और निर्माण की तकनीक, विपणन और यातायात सभी विकासशील देशों की तुलना में पिछड़े हुये होते हैं जो अल्प विकसित देशों में आर्थिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्पादकता को निम्न स्तर की ओर ले जाते हैं ।
निम्न उत्पादकता फलन आय के निम्न स्तर की ओर ले जाता है जो बदले में इन देशों में बचतों और पूंजी निर्माण की निम्न दर के लिये उत्तरदायी है । इस प्रकार, निर्धन देशों में निर्धनता, पूंजी निर्माण के निम्न दर का कारण और परिणाम दोनों हैं ।
Obstacle # 12. आधुनिक उद्यम तथा प्रबन्ध योग्यता की अनुपस्थिति (Absence of Modern Enterprise and Management Talent):
अल्प विकसित देशों में विकास के अभाव का एक अन्य कारण आधुनिक उद्यम तथा प्रबन्ध योग्यता की अनुपस्थिति भी है । इंग्लैण्ड और अमरीका में आर्थिक विकास, उद्योग के उन नायकों के प्रयत्नों का फल है जो आगे बढ़ कर जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं ।
परन्तु अल्प विकसित देशों में इस प्रकार की उद्यमीय प्रवृत्ति प्राय: हितकर आर्थिक और समाज-सांस्कृतिक वातावरण के अभाव के कारण नहीं पायी जाती । प्रो. शुम्पीटर ने इसे ‘विशिष्ट-उद्यमी’ कहा जो इन देशों में बहुत कम होते हैं ।
इसके अतिरिक्त वे उन्हें निर्धन बनाये रखने के लिये भी उत्तरदायी होते हैं । यदि, वे कभी उपलब्ध भी होते हैं तो इन्हें उद्योग से दूर रखा जाता है । निर्धन देशों का वातावरण, परम्परागत परम्पराओं का समर्थन करता प्रतीत होता है और उसके विपरीत कार्य करना नया और अलग है । इन देशों में प्रबन्धकीय क्षमता भी आवश्यकता से कहीं कम होती है ।
Obstacle # 13. राजनैतिक अस्थिरता (Political Instability):
सरकार में बार-बार परिवर्तन और बाहरी आक्रमण के खतरे अथवा आन्तरिक विनाश अल्प विकसित देशों में राजनैतिक अस्थायित्व की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं । इससे भविष्य में अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे निवेश सम्बन्धी आर्थिक निर्णयों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
निर्धन देशों में पूंजी के अभाव के बावजूद, इन देशों से पूंजी का उन्नत देशों की ओर पर्याप्त पलायन होता है । इसके अतिरिक्त, राजनैतिक अस्थिरता के कारण, इन देशों की सरकारें विकास कार्यक्रमों के सम्बन्ध में उत्साहपूर्ण और दीर्घकालिक निर्णय लेने में असमर्थ होती हैं । यह देश निर्धनता से निपटने के स्थान पर ऊर्जा और साधनों को राजनैतिक तनावों में व्यर्थ गवा देते हैं ।
Obstacle # 14. निर्बल और भ्रष्टाचारी सार्वजनिक प्रशासन (Weak and Corrupt Public Administration):
यह अल्प विकसित देशों के विकास में मुख्य बाधा का कार्य करता है । विकास की प्रक्रिया, सरकार एवं उसके कर्मचारियों पर अतिरिक्त जिम्मेदारियों का बोझ डालती है । क्योंकि सरकार को आर्थिक परिवर्तन का नेतृत्व करना होता है अथवा उसे इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभानी होती है ।
परन्तु इन देशों में सार्वजनिक प्रशासन् इन जिम्मेदारियों को निभाने के योग्य नहीं होता । इसी प्रकार देश के सर्वोच्च राजनेता विकास की इच्छा नहीं रखते क्योंकि इससे समाज में उनकी आर्थिक स्थिति और उच्च आर्थिक आंकड़ों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
अत: विकास के लिये उनकी इच्छा कृत्रिम बन जाती है । इन देशों की प्रशासनिक प्रणाली विकास प्रक्रिया की जिम्मेदारियों को उठाने के लिये अपर्याप्त एवं दुर्बल होती है । विभिन्न क्षेत्रों में विकास की समस्याओं की ओर ध्यान दिये बिना प्रशासन् भ्रष्ट और अदक्ष होकर कार्य करता है ।
Obstacle # 15. धार्मिक कारक (Religious Factors):
अंग्रेजी के महान कवि विलियम वर्डसवर्थ ने अपनी एक कविता में दु:ख प्रकट किया है कि हम संसार से अत्याधिक जुड़े हुये हैं, परन्तु अल्प विकसित देशों में लोग धर्म और आध्यात्मिकवाद से अधिक जुड़े हुये हैं ।
हम जानते हैं कि प्रत्येक वस्तु का आधिक्य बुरा होता है तथा इससे लोग आर्थिक क्रियाकलापों की ओर उदासीन हो जाते हैं । वह अधिक समय ध्यान और प्रार्थना में व्यतीत कर देते हैं तथा लाभप्रद एवं उत्पादक कार्य को कम समय देते हैं ।
उनमें उत्साहपूर्ण कार्यों का अभाव होता है । उनका विश्वास है कि भौतिक प्रार्थनाएं और भौतिक प्रयत्न सभी बुराइयों की जड़ है । जनसंख्या के बड़े भाग में धार्मिक वर्जन आर्थिक विकास को रोकते हैं ।
सारांश:
अन्य अनेक कारक हैं जो अल्प विकसित देशों के विकास को रोकते हैं जैसे प्राकृतिक साधनों का उपयोग, कृषि पर अधिक निर्भरता, व्यापक निरक्षरता, निपुण श्रम तथा उद्यमीय योग्यता का अभाव और प्रौद्योगिकी पिछड़ापन आदि ।
ये बाधाएं अन्तर-सम्बन्धित और परस्पर बल प्रदान करने वाली हैं । ये बाधाएँ एक दूसरे के क्षेत्र में जा कर परस्पर तीव्रता प्रदान करती हैं इसलिये निर्धन देशों में स्थिरता और निर्धनता की शक्तियों को दृढ़ करती है ।
मायर और बाल्डविन ने निष्कर्ष में कहा है- ”बाजार की अपूर्णताओं ने साधनों के अनुकूलतम आवंटन की प्राप्ति को रोका है, कुचक्रों ने संरचनात्मक परिवर्तनों के आरम्भण को रोका है और अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियां निर्धन देशों के दृष्टिकोण से अनुकूलतम नहीं रही हैं ।”