आर्थिक विकास की शास्त्रीय सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about the classical theory of economic development.
आर्थिक वृद्धि का प्रतिष्ठित मॉडल सिद्धान्त वस्तुत: प्रतिष्ठित प्रणाली की वृद्धि से काफी भिन्न है । आर्थिक वृद्धि का प्रतिष्ठित विश्लेषण प्रावैगिक अर्थशास्त्र में स्थैतिक विधियों को प्रदर्शित करता है । यह प्रावैगिक समस्याओं की एक विशिष्ट विधि है ।
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों में एडम स्मिथ, रिकार्डों, माल्थस एवं जे.एस. मिल ने वृद्धि व गतिरोध पर व्याख्या प्रस्तुत की । तदुपरान्त कार्ल मार्क्स द्वारा वृद्धि एवं पतन का विश्लेषण किया गया ।
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा विकसित व्याख्या एक अर्थव्यवस्था का बहुत सरल मॉडल प्रस्तुत करती है । यह विचारों की एक क्रमबद्ध स्कीम एवं ऐसी नीतियों को सामने रखने का प्रयास करती है जिनकी वास्तविक रूप से होने की आशा हो ।
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ऐसे एक सरलीकृत मॉडल के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए तथा जटिलताओं का त्याग करते हुए प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था में कार्य करने वाली गतियों की कार्य प्रणाली का विवेचन किया । उनका मुख्य लक्ष्य नीति निर्थारण के लिए ऐसे निर्णयों को परिभाषित करना या जिनसे राष्ट्रों की सम्पत्ति में वृद्धि हो सके ।
राष्ट्र की सम्पत्ति की प्रकृति एवं कारणों व नीतियों के निर्धारण संबंधी राजनीतिक अर्थव्यवस्था का प्रतिष्ठित विश्लेषण एक आवश्यक एकरूपता का परिचय देता है । विलियम बामोल ने अपनी पुस्तक Economic Dynamics (1951) में इस विधि को Magnificent Dynamics कह कर सम्बोधित किया ।
वस्तुत: “प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कार्लमार्क्स ने आर्थिक सिद्धान्तों के ऐसे समूह को प्रतिपादित करते हुए किया जिनका विकास अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रारंभ औद्योगिक पूंजीवाद की प्रावैगिकी को समझाने हेतु किया गया था ।
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्रों की सम्पत्ति की प्रकृति एवं कारकों तथा समाज में व्यक्तियों के समूहों के मध्य इसके वितरण पर प्रकाश डाला । उन्होंने श्रम की उत्पादकता को राष्ट्रों की सम्पत्ति का कारण बतलाया ।
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एक आर्थिक प्रणाली की उत्पादन क्षमता में होने वाली प्रत्येक वृद्धि का मुख्य स्रोत श्रम उत्पादकता में होने वाली वृद्धि बतलाया गया भले ही, प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता कुछ भी हो । उनका यह विश्वास था कि उत्पादित संपत्ति, भले ही वह वार्षिक प्रवाह के रूप में हो या उत्पादन के साधनों के एक संचयी स्टाक के रूप में, औद्योगिक समाज की बढ़ती हुई दशाओं का विश्लेषण करती है ।
एक उन्नत कर रहे औद्योगिक समाज की आर्थिक प्रणाली को स्पष्टतः वर्णित करने का श्रेय एडम स्मिथ को जाता है । प्रकृतिवादियों के द्वारा वर्णित विश्लेषण को आधार मान उन्होंने प्रक्रिया की समूची तस्वीर सामने रखी । स्मिथ के व्यापक विचारों को क्रमबद्ध एवं विकसित करने के साथ सैद्धांतिक ढाँचा प्रदान करने का कार्य डेविड रिकार्डो ने किया ।
उन्होंने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की बनावट, एक समाज में विभिन्न वर्गों के मध्य के सम्बन्ध एवं आर्थिक प्रणाली की प्रावैगिकी की व्याख्या की । उनकी सम्मति में राजनीतिक अर्थव्यवस्था राष्ट्रों की सम्पत्ति की प्रकृति एवं कारणों का अध्ययन नहीं बल्कि ऐसे नियमों की जानकारी थी, जो समाज में विभिन्न वर्गों के मध्य कुल उत्पाद के विभाजन को निर्धारित करती थी ।
रिकार्डों के मुख्य आलोचक थे उनके मित्र थामस रोबर्ट माल्थस जो 1798 में प्रकाशित Essay on the Principle of Population से प्रसिद्ध हुए । इस लेख में माल्थस ने जनसंख्या की सापेक्षिक वृद्धि एवं खाद्यान्न की प्रवृतियों का विश्लेषण किया ।
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1803 में एडम स्मिथ के फ़्रांसीसी शिष्य जीन-बॉपटिस्ट का ग्रन्थ Traite’ d’ Economic Politique प्रकाशित हुआ । रिकार्डों ने से का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि चूंकि पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न करती है । अत: बाजार में समर्थ माँग की कमी के कारण मंदी नहीं हो सकती ।
रिकार्डों के उपरान्त उन्नीसवीं शताब्दी के चौथे दशक तक प्रतिष्ठित राजनीतिक अर्थव्यवस्था के उदारवादी संप्रदाय को जान स्टुअर्ट मिल बनाए रखा । उन्होंने अपने ग्रन्थ (Principle of Political Economy 1848) में पूंजीपति एवं श्रमिक के मध्य होने वाले विवाद को रेखांकित नहीं किया ।
मिल के विचारों को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र के एक नए विश्लेषण का विरोध सहना पड़ा । यह नयी प्रणाली रिकार्डों के कई विचारों के साथ इतिहास एवं समाज के अधिक सामान्य सिद्धान्त का संयोग प्रस्तुत करती थी ।
जिसके जनक कार्ल मार्क्स थे । मार्क्स ने कहा कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र का प्रारम्भ सर विलियम पेटी एवं इसका अन्त इंग्लैंड में रिकार्डों के साथ हुआ । मार्क्स के अनुसार- प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र आर्थिक प्रक्रिया में सामाजिक संबंधों को महत्ता प्रदान करता था । संक्षेप में, प्रतिष्ठित राजनीतिक अर्थव्यवस्था प्रावैगिक समस्याओं में काफी रुचि रखती थी ।
आर्थिक प्रगति के कारणों को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की गति के नियमों (The Laws of Motion of Capitalist Economics) का नाम दिया गया । मुख्यत: आर्थिक विकास के आधारभूत कारणों एवं दशाओं से संबंधित प्रश्नों को ध्यान में रखा गया ।
इनसे संबंधित समस्याओं को सुलझाने की विधि राष्ट्रों की सम्पत्ति की प्रकृति एवं कारण थे जिनसे ऐसे नियमों का निर्धारण होता जो एक समाज के विभिन्न वर्गों में आय का वितरण करते ।
इन प्रावैगिक समस्याओं को सुलझाने के लिए स्थैतिक सिद्धांत यन्त्रों प्रयोग किया गया । इसी कारण आर्थिक वृद्धि का प्रतिष्ठित सिद्धान्त आधुनिक वृद्धि मॉडलों की भाँति नहीं है । स्थैतिक मॉडल एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था की औसत् दशा में होने वाले परिवर्तनों को स्थैतिक विधियों के द्वारा परिभाषित करते थे ।
प्रो.जे.आर. हिक्स ने अपने ग्रन्थ Capital and Growth (1956) P. 36 में लिखते है कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने एक पुरातन शुद्धि मॉडल स्थापित किया जो एक जटिल वास्तविकता के विशिष्ट पक्ष की आशिक समझ प्रदान करता था ।