एक देश का आर्थिक विकास: 5 गैर-आर्थिक कारक | Read this article in Hindi to learn about the five non-economic factors governing economic development of a country. The factors are:- 1. विकास के लिये इच्छा (Desire for Development) 2. व्यापक शिक्षा (Widespread Education) 3. सामाजिक और संस्थानिक परिवर्तन (Social and Institutional Changes) and a Few Others.
गैर-आर्थिक कारकों में सांस्कृतिक, संस्थानिक, नैतिक मूल्य, सामाजिक और राजनीतिक संगठन सम्मिलित हैं जो देश में आर्थिक विकास की प्रक्रिया को बहुत प्रभावित करते हैं ।
संयुक्त राष्ट्रों के विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि- ”जब तक वातावरण आर्थिक विकास के अनुकूल नहीं होता आर्थिक विकास नहीं होगा । किसी देश के लोगों को प्रगति की आशा अवश्य रखनी चाहिये तथा उनकी सामाजिक, आर्थिक, वैधानिक और राजनीतिक स्थितियां इसकी समर्थक होनी चाहिये ।”
इसी प्रकार मैकार्ड वराइट (Macord Wright) ने आर्थिक कारकों के स्थान पर गैर-आर्थिक कारकों का समर्थन किया । वे स्वीकार करते हैं कि- ”आर्थिक वृद्धि को बनाने वाले मौलिक कारकों का स्वरूप गैर-आर्थिक तथा गैर-भौतिक होता है, यह आत्मा ही है जो स्वयं शरीर का निर्माण करती है ।”
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इस तथ्य के बावजूद कि आर्थिक कारक महत्त्वपूर्ण है, गैर-आर्थिक कारक अधिक गतिशील तथा शक्तिशाली होते है जो एक बड़ी सीमा तक आर्थिक विकास निर्धारित करते हैं । इस सम्बन्ध में नर्कस ने कहा है- “आर्थिक विकास एक बडी सीमा तक मानवीय प्रतिभा, सामाजिक अभिवृत्तियों, राजनीतिक स्थितियों और ऐतिहासिक घटनाओं पर निर्भर है ।”
तथापि, आओ हम इन गैर-आर्थिक कारकों का विस्तार में परीक्षण करें:
Factor # 1. विकास के लिये इच्छा (Desire for Development):
यह व्यापक रूप में सत्य है कि इच्छा विकास का निर्धारण करती है । विकास की इच्छा लोगों के दिल से उत्पन्न होनी चाहिये । इसलिये, यह सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक कारक है जो आर्थिक विकास की प्रक्रिया को आरम्भ एवं तीव्र करता है ।
तब तक तीव्र उन्नति नहीं हो सकती जब तक लोग इसकी इच्छा नहीं करते अर्थात् राजनेता, इन्जीनियर, अध्यापक, व्यापारी, श्रम-संघ, पत्रकार और अन्य सबको देश की उन्नति की इच्छा होनी चाहिये तथा वह इसके लिये कीमत देने को तैयार हों ।
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इसलिये, देश के लोगों का प्रगति के लिये उत्सुक होना आवश्यक है तथा उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक, वैधानिक और राजनीतिक संस्थाएं इसका आवश्यक रूप में समर्थन करें ।
प्रगति के लिये लोग दु:ख एवं असुविधाएं सहन करने को तैयार हो । अन्य शब्दों में, विकास की इच्छा तभी होगी यदि लोग विकास की प्राप्ति के प्रति आश्वस्त होगें । प्रयोगात्मक अभिवृत्ति विकास की पूर्व शर्त है तथा इसका विकास केवल उन लोगों में हो सकता है जो उन्नति की इच्छा रखते हो ।
परन्तु अल्प विकसित देशों के लोग आर्थिक लक्ष्यों के स्थान पर धार्मिक लक्ष्यों की ओर अधिक ध्यान देते हैं । इस प्रकार का दृष्टिकोण उनमें से नव प्रवर्तन की इच्छा को छीन कर उन्हें भाग्यवादी बना देता है ।
इसलिये, लोगों का उचित ढंग से शिक्षित होना आवश्यक है ताकि वह विकास के मूल्यों की सराहना कर सकें । सबसे अधिक उन्नति वहां होगी जहां शिक्षा का प्रसार अधिकतम होगा तथा इससे प्रयोगात्मक अभिवृत्ति उत्साहित होगी । केरनक्रास के शब्दों में- ”विकास यदि लोगों के मन में घटित नहीं होता तो यह असम्भव है ।”
Factor # 2. व्यापक शिक्षा (Widespread Education):
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शिक्षा मानवीय शरीर, मन और आत्मा से सर्वोत्तम को बाहर लाती है । कराउस (Krause) का दावा सत्य ही है कि- “शिक्षा आर्थिक प्रगति के लिये विचारों में क्रान्ति लाती है ।”
इसलिये यह स्वीकार किया गया है कि शिक्षा अन्तराल कम आय वाले देशों के पिछड़ेपन के लिये मुख्य रूप से उत्तरदायी है । अल्प विकसित देशों में शिक्षा के अभाव के कारण प्रौद्योगिकी की सामान्य उन्नति में बाधा पड़ती है । वास्तव में शिक्षा आर्थिक विकास का मुख्य झरना है जो ईमानदारी सिखाता है और देश भक्ति को उत्साहित करता है ।
अत: उन देशों में उन्नति का विस्तार शीघ्र होगा जहां शिक्षा का अधिक फैलाव है । इस सम्बन्ध में गालब्रेथ (Galbraith) ने शिक्षा पर आर्थिक विकास के इंजन के रूप में सत्य ही पर बल दिया है ।
उसने कहा- “पिछली शताब्दी में, आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति की आवश्यकताओं में सार्वजनिक शिक्षा और जनसंख्या प्रबंधन को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था । लोकप्रिय शिक्षा केवल चौके की ऊर्जाओं को मुक्त नहीं करती बल्कि उनमें अनेक प्रकार से ऊर्जा जागृत करती है जिससे तकनीकी ज्ञान का मार्ग खुलता है । जब तक प्रबुद्ध लोग उद्योगीकरण के लिये उन्नत तकनीक के प्रयोग में रुचि नहीं रखेंगे आर्थिक उन्नति सम्भव नहीं होगी । नई विधियों और नई तकनीकों को स्वीकार करने के लिये, लोकप्रिय शिक्षा ही मात्र एक उपकरण है जो लोगों के ज्ञान की सीमा को विस्तृत करेगी । पढ़े-लिखे लोग मशीनों की आवश्यकता का अनुभव करेंगे । यह इतना स्पष्ट नहीं है कि मशीनें पढ़े-लिखे लोग प्राप्त करने की आवश्यकता देखेंगी ।”
इसके अतिरिक्त, एच. डब्ल्यू सिंगर के अनुसार- “शिक्षा में निवेश न केवल उच्च उत्पादक है बल्कि बढ़ता हुआ प्रतिफल भी उपलब्ध कराता है, इसलिये शिक्षा मानवीय पूंजी और सामाजिक उन्नति की रचना में पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाती है जो बदले में देश की उन्नति निर्धारित करती है ।”
Factor # 3. सामाजिक और संस्थानिक परिवर्तन (Social and Institutional Changes):
यह माना गया है कि सामाजिक एवं संस्थागत परिवर्तन आर्थिक विकास के साधन और साध्य दोनों है । रूढ़िवादी एवं कठोर सामाजिक व्यवस्था जैसे संयुक्त परिवार प्रणाली जाति प्रथा जीवन के परम्परावादी मूल्य आदि आर्थिक विकास की गति में बाधा बनते हैं ।
वे प्राचीन धर्मों में विश्वास करते हैं । मुक्ति के दर्शन और सिद्धान्त ने आर्थिक विकास की गति में बहुत बाधा डाली है तथा निर्धनता और पिछड़ेपन की दलदल ने स्थिति को और भी बिगाड़ा है । उन्होंने श्रम की ऊर्ध्व और समस्तरीय गतिशीलता को प्रतिबन्धित किया है ।
किन्डलबर्ग के शब्दों में- “जहां सामाजिक व्यवस्था निश्चित जाति प्रणाली द्वारा प्रशासित होती है, जो व्यवसायिक गतिशीलता को रोकती है, वहां व्यक्ति में सामाजिक उन्नति के लिये मितव्ययता की इच्छा को विकसित करना कठिन होता है ।”
इसलिये यह समय की मांग है कि संस्थागत सुधारो को इस प्रकार आरम्भ किया जाये कि वह विकास की गति में सहायक हों । वांछित सुधारों की प्राप्ति के लिये विशेष प्रतिरोधक उपायों का प्रयोग किया जाये, क्योंकि कठोरता और व्यापकता प्राय: लोगों में विरोध, अशान्ति, असन्तोष और निराशा लायेगी ।
इस प्रकार अल्प विकसित देशों के सामने केवल सामाजिक ढांचागत परिवर्तन लाना ही नहीं बल्कि इसे इस ढंग से ढालने और पुन: आकार देने की आवश्यकता है कि वह प्रभावी ढंग से जीवन के आधुनिक मूल्यों की प्राप्ति में योगदान कर सकें । इस दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुये ।
मायर और बाल्डविन ने कहा है कि- “न केवल आर्थिक संगठनों में बदलाव किया जाये परन्तु सामाजिक संगठनों में भी संशोधन किया जाये ताकि मूल्यों और प्रेरणाओं का मूलभूत समूह आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिये अधिक हितकर हो ।”
संक्षेप में, आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिये, वर्तमान सामाजिक और संस्थानिक ढांचे को बदलना होगा तथा उसे नये वातावरण के अनुसार संशोधित करना होगा । इस प्रयोजन से नई आवश्यकताओं, नई प्रेरणाओं, उत्पादन के नये ढंगों तथा नई संस्थाओं का सृजन करना होगा ।
Factor # 4. कानून और व्यवस्था की सम्भाल (Maintenance of Law and Order):
कल्याणकारी राज्यों में कानून और व्यवस्था को बनाये रखना सरकार का मौलिक दायित्व होता है जो उच्च दर से आर्थिक विकास बढ़ाने में सहायता करता है । बाहरी आक्रमणों से देश की रक्षा तथा सार्वजनिक सम्पत्ति का बाहरी अव्यवस्था से बचाव करना एक कुशल सरकार के मुख्य कार्य हैं ।
शान्ति, स्थिरता और वैधानिक सुरक्षा प्राय: उद्यमीय प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करते हैं । एक कुशल एवं योग्य सरकार उचित मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियां अपना कर पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित कर सकती है ।
अत: यदि सरकार आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना चाहती है तो इसे समाज को सेवाएँ, व्यवस्था, न्याय, पुलिस, सुरक्षा, योग्यता के अनुरूप पुरस्कार और उत्पादन में प्रयोज्यता, सम्पत्ति के आनन्द की सुरक्षा जो विभिन्न प्रकार की हो सकती है, दित्सापत्रीय अधिकार, व्यापारिक प्रसंविदाओं और संपर्कों को मानने का विश्वास, भार, माप, मुद्रा के मानकों की व्यवस्था तथा स्वयं सरकार की स्थिरता तथा व्यवस्था की स्थिति को बनाये रखना होगा ।
यह दु:ख का विषय है कि अधिकांश अल्प विकसित देशों में कोई कानून व्यवस्था नहीं होती । वहां अराजकता, भ्रम और अव्यवस्था होती है जिससे सामाजिक और आर्थिक गतिविधियां प्रतिबन्धित हुई हैं तथा प्रगति उनके लिये एक सपना बन कर रह गई है ।
बड़े स्तर की अव्यवस्था राष्ट्रीय साधनों को विकास गतिविधियों करके गैर-विकासात्मक मार्गों की ओर ले जाती है । सेना और पुलिस पर भारी मात्रा में धन व्यय किया जाता है ताकि क्षेत्र में कानून व्यवस्था को कायम रखा जा सके । इस विचार के समर्थन में अनेक उदाहरण हैं ।
भारत के विभाजन के कारण स्थिति, बर्मा में आन्तरिक अव्यवस्था, पाकिस्तान और बंगला देश की राजनीतिक अस्थिरता, वियतनाम में समस्याएं और अन्य मध्य पूर्वी देश इस स्थिति को स्पष्ट करते हैं । हाल ही में उग्रवाद और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर अशान्ति इसके अन्य प्रमाण हैं ।
इसलिये, व्यापारिक पहलकदमी और उद्यम तथा व्यक्तिगत कार्यों द्वारा पूंजी निर्माण के गम्भीरतापूर्वक घट जाने अथवा बिगड़ जाने की सम्भावना है क्योंकि सरकार अपने न्यूनतम कार्य पूरे करने में असफल रहती है ।
ल्यूस ने सत्य ही कहा है- ”बुद्धिमान सरकार से सकारात्मक प्रोत्साहन के बिना किसी देश ने उन्नति नहीं की है ।” अत: राज्य में शान्त वातावरण तथा कानून एवं व्यवस्था तीव्र आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण कारक हैं ।
Factor # 5. प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency):
किसी देश में दृढ़, योग्य और ईमानदार प्रशासनिक व्यवस्था का अस्तित्व आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण निर्धारक है । यदि सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था दुर्बल, अदक्ष तथा भ्रष्टाचारी हो तो देश में कठिनाइयों और अव्यवस्थाओं का साम्राज्य होगा । ल्यूस का कहना है कि- “आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित करने में सरकार का व्यवहार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।”
दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांश अल्प विकसित देशों में घटिया प्रशासन होता है तथा राजनेताओं में गतिशीलता का अभाव होता है । इन स्थितियों में तीव्र उन्नति सम्भव नहीं होती ।
दूसरी ओर दृढ़ एवं कुशल प्रशासन न केवल कानून व्यवस्था बनाये रखता है बल्कि प्रभावी आर्थिक नीतियों का भी निर्माण करता है । इससे लोगों का प्रशासन में विश्वास बढ़ता है । फलत: लोग धीरे-धीरे सरकार की विकास नीतियों में रुचि लेना आरम्भ कर देते हैं ।
गिलबेथ ने इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया है- “सर्वोत्तम कृषि वैज्ञानिक एक अस्तित्वहीन मन्त्रालय के परामर्शदाता के रूप में अधिक प्रगति नहीं कर सकता । अति उत्तम कर प्राधिकारी व्यर्थ सिद्ध होता है यदि मन्त्री सांझे करों में विश्वास नहीं करता, ऐसा नहीं करना चाहता अथवा अपने मित्रों के लिये अधिक समर्पित विचार रखता है । अत: तीव्र आर्थिक उन्नति के लिये कानून और व्यवस्था बनाये रखना एक महत्वपूर्ण शर्त है ।”