आर्थिक विकास अभिसरण है? | Read this article in Hindi to learn about whether economic growth is convergent or divergent.
अब हम यह प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या विपिन देशों के बीच आर्थिक वृद्धि अभिसरित या केन्द्राभिमुखी होती है । Pen World Table में विश्व अर्थव्यवस्था के 128 देशों को एक साथ लेने पर प्रति व्यक्ति वृद्धि एवं आरम्भिक प्रति व्यक्ति आय के मध्य कोई दृश्य सम्बन्ध नहीं पाया गया जो न तो केन्द्राभिमुख था व न ही विविध रूपों में विकसित ।
दूसरे उदाहरण में, विश्व बैंक द्वारा वर्गीकृत 23 उच्च आय वाले देशों को लेने पर यह पाया गया कि इस समूह में जिनकी आय न्यूनतम थी वह उच्च आय वृद्धि से सम्बन्धित थे । विलियन बामोल ने इसे प्रति व्यक्ति आय के स्तर के मध्य एक सुदृढ़ ऋणात्मक सम्बन्ध के द्वारा प्रदर्शित किया ।
इससे अभिप्राय है कि उच्च आय समूह में केंद्रभिमुखता की स्पष्ट प्रवृति दिखाई देती है । रोबर्ट बेरो एवं मार्टिन के अनुसार विभिन्न देशों एवं महाद्रीपों के मध्य विभिन्न प्रदेशों में केन्द्राभिमुखता की स्पष्ट प्रवृति दिखाई देती है । इनमें यूनाइटेड स्टेट्स, कनाडा के स्वायत्तशासी प्रान्त, जापान व भारत के राज्य, यूरोप के प्रदेश व स्वीडन के कम्यून शामिल हैं ।
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केंद्राभिमुखता की प्रवृति को चित्र 71.1 में दिखाया गया है जहाँ X अक्ष में प्रारंभिक प्रति व्यक्ति आय व y अक्ष में प्रति व्यक्ति चालू आय को दिखाया गया है । केंद्राभिमुख से अभिप्राय है कि प्रतीपगमन रेखा AB, 45° से अधिक चपटी है ।
इसे दो प्रकार से समझाया जा सकता है:
(a) वृद्धि की दर जो दो रेखाओं के बीच की दूरी EF के दारा दिखाई गई है, तब गिरती है जब आरंभिक आय में वृद्धि होती है ।
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(b) चालू आय की सीमा जिसे A व B के मध्य की क्षैतिज दूरी के द्वारा दिखाया गया है अर्थात् यह देशों के बीच आय का वितरण है जो पहले की तुलना में बाद में ज्यादा होता है ।
अब यदि मापन के दोष विद्यमान हों तो आरम्भिक आय की मापी गई सीमा अतिशयोक्ति पूर्ण हो जाएंगी । ऐसे में सत्य या वास्तविक सीमा, निरीक्षण की गई सीमा से कम होंगी ।
माना आरम्भिक आय की वास्तविक सीमा को C व D के मध्य की क्षैतिज दूरी के द्वारा दिखाया गया है तथा चालू आय को स्पष्ट रूप से मापा जाना सम्भव हो, तब C व D के मध्य की ऊर्ध्व दूरी ठीक बराबर होगी A व B के बीच की दूरी के । ऐसे में पक्षपात रहित प्रतीपगमन रेखा CD, पक्षपात पूर्ण या विशिष्ट प्रतीपगमन रेखा AB से अधिक चपटी होगी ।
यदि यह पक्षपात या विशिष्टता काफी अधिक हो तो CD रेखा का ढाल इकाई के बराबर होगा, जैसा कि 45° रेखा का होता है । इससे तात्पर्य है कि न तो केन्द्राभिमुखता होगी और न ही विविधता यह ऐसी दशा है जिसे चित्र 71.1 में दिखाया गया है ।
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I. बीटा व सिगमा केन्द्राभिमुखता (Beta and Sigma Convergence):
केन्द्राभिमुखता की दो व्याख्याओं में पहली बीटा केन्द्राभिमुखता है, जिससे आशय है कि आर्थिक वृद्धि आरम्भिक आय से सम्बन्धित होती है अर्थात् आय का स्तर जितना -दम होगा वृद्धि की दर उतनी अधिक होगी ।
केन्द्राभिमुखता का दूसरा प्रकार सिगमा केन्द्राभिमुखता है, जिससे आशय है कि राष्ट्रीय आय का प्रति व्यक्ति वितरण एक समय विशेष में देशों के मध्य अधिक है । सिगमा का प्रयोग प्रायः प्रमाप विचलन के मापन हेतु किया जाता है जो विचलन का एक सामान्य माप है ।
उपर्युक्त दोनों प्रकार की केन्द्राभिमुखताएँ निकट रूप से सम्बन्धित है, परन्तु एक दूसरे की समरूप नहीं । विशेष रूप से बीटा केन्द्राभिमुखता ‘उत्पन्न होने’ या ‘सृजित करने’ की प्रवृति रखती है, परंतु यह आवश्यक रूप से सिगमा केन्द्राभिमुखता की गारण्टी नही देती ।
विभिन्न देशों के मध्य प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद का विचलन एक समय हो सकता है या विभिन्न कारणों से कम हो सकता है भले ही आर्थिक वृद्धि स्वत: अपने आय से विपरीत रूप से सम्बन्धित हो ।
चित्र 71.2 इस विभेद को दिखाता है । चित्र के A भाग में निर्धन देश धनी देशों से अधिक तीव्र गति से बढ़ते है तथा इनके मध्य आय का वितरण एक समय अवधि में एक समान होता है जिसे चित्र के पहले भाग में दोनों पथों के बीच संकुचित हो रहे अन्तराल के द्वारा दिखाया गया है । इस दशा में बीटा केन्द्राभिमुखता से सिगमा केन्द्राभिमुखता का सृजन होता है ।
चित्र के B भाग में निर्धन देश एक विपरीत धक्के को महसूस करते हैं जिससे उनकी आय का पथ नीचे को खिसक जाता है फिर भी यदि निर्धन देश धनी देशों के सापेक्ष अधिक तेजी से वृद्धि करें तब धनी व निर्धन दोनों समूहों के मध्य आय का वितरण कम समान होगा जिसे चित्र के दूसरे भाग में दो समूहों के मध्य बढ़ते हुए अन्तराल के द्वारा दिखाया गया है । यह एक ऐसी दशा है जहाँ बीटा केन्द्राभिमुखता, सिगमा केन्द्राभिमुखता को सृजित नहीं करती ।
II. निरपेक्ष बनाम सशर्त केन्द्राभिमुखता (Absolute Vs. Conditional Convergence):
दीर्घकालीन सन्तुलन की दशा में, बर्हिजात वृद्धि के अधीन यदि कड़े प्रति व्यक्ति उत्पादन की सूचना दे तो, सोलोव के मॉडल के अनुसार न तो केन्द्राभिमुखता और न ही विविधता का पूर्वानुमान सम्भव होता है । सोलोव के मॉडल में प्रति व्यक्ति उत्पादन की दीर्घकालीन वृद्धि तरह से तकनीकी वृद्धि पर निर्भर करती है, जो आर्थिक दृष्टि से एक उल्लेखनीय पूर्णत बर्हिजात दशा ।
दूसरी तरफ, यदि दीर्घकालीन सन्तुलन की ओर जाते, विभिन्न देशों की विभिन्न अवस्थाओं में प्रावैगिक समायोजन पथों की जानकारी आकड़ों द्वारा प्राप्त हो, तब स्थिति कुछ भिन्न हो जाती है ।
समस्या को स्पष्ट करने के लिए यदि हम यह मानें कि धनी व निर्धन देशों के मध्य एकमात्र अन्तर यह है कि धनी देशों के पास, निर्धन देशों के सापेक्ष प्रति श्रमिक अधिक पूंजी है । हालांकि यह अति सामान्यीकरण है, क्योंकि वास्तव में धनी व निर्धन देश कई बातों में एक-दूसरे से भिन्नता रखते हैं, परन्तु स्पष्टीकरण हेतु हम यह मान रहे हैं कि धनी व निर्धन देश, अन्य सभी सन्दर्भो में एक रूपता रख रहे हैं ।
उनकी बचत दर समान हैं, जनसंख्या वृद्धि दर समान है, तकनीकी प्रगति की दर समान है । इस प्रकार अन्ततः वह प्रति व्यक्ति समान उत्पादन की प्राप्ति करते हैं । इससे यह अभिप्राय है कि निर्धन देश घनी देशों पर केंद्राभिमुखता रखते हैं ।
इसे दूसरी तरह से देखते हुए हम यह पाएंगे कि आरम्भ में निर्धन देशों के पास धनी देशों की तुलना में कम पूंजी श्रमिक तथा प्रति व्यक्ति निम्न उत्पादकता थी । यही वह दुश्चक्र है जिससे निर्धन देश हमेशा निर्धन ही रहता है ।
अन्ततः वह प्रति व्यक्ति समान उत्पादन की दशा प्राप्त कर लेते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने ठीक समय पर तेजी से वृद्धि की है । ऐसी असाधारण घटना निरपेक्ष केन्द्राभिमुखता कहलाती है ।
चित्र 71.3 में इस बिन्दु को स्पष्ट किया गया है कि निरपेक्ष केन्द्राभिमुखता में निर्धन देश धनी देशों के सापेक्ष अधिक तेजी से (मध्यम समय अवधि में) वृद्धि करते है । माना गया है कि दो देश ठीक समान है सिवाय इसके कि इनकी प्रति व्यक्ति आय भिन्न है । दोनों देश दीर्घकालीन सन्तुलन बिन्दु E पर पहुँचते है ।
यदि निर्धन देश की आरम्भिक आय प्रति व्यक्ति OA है जोकि धनी देश की प्रति व्यक्ति आय OB से कम हो, तब निर्धन देश अवश्य ही धनी देश की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करेगा क्योंकि, अन्त में दोनों ही देश आय के समान स्तर OC को प्राप्त करते है ।
परन्तु यह निष्कर्ष इस कारण अवास्तविक है क्योंकि धनी व निर्धन देशों के पूंजी के आरम्भिक स्टॉक को छोडकर अन्य सभी बातों में समरूप माना गया है । अतः निर्धन देशों की धनी देशों पर केन्द्राभिमुख होने की दशा इस चित्र में सोलोव के मॉडल की मध्यकालीन दशा को स्पष्ट नहीं करती ।
सशर्त केन्द्राभिमुखता (Conditional Convergence):
केन्द्राभिमुखता के सोलोव मॉडल की मध्य समय अवधि दशा को प्रमाणित करने के लिए इस सम्भावना पर विचार करना होगा कि धनी व निर्धन देश एक से अधिक बातों में भिन्नता रखते हैं । उदाहरण के लिए उनकी बचत दरें भिन्न हो सकती है ।
उनकी कुशलता का पैमाना कई कारणों से भिन्न हो सकता है- साथ ही उनकी जनसंख्या वृद्धि की दरों एवं ह्रास में अन्तर हो सकता है । यदि इन सभी सम्भावित वृद्धि के निर्धारकों के भिन्न होने पर भी यदि निर्धन देश धनी देशों की तुलना में तेजी से वृद्धि करें तो यह सशर्त केन्द्राभिमुखता है, तब निर्धन देश धनी देशों पर इस दशा में केन्द्राभिमुख होंगे कि उनकी बचत दर बराबर है, समान कुशलता है, इत्यादि ।
सशर्त केन्द्राभिमुखता, नव क्लासिकल मांडल की मध्यकालीन प्रावैगिक दशाओं के साथ संगति रखती है । राबर्ट बैरो के अनुसार यह आवश्यक नहीं कि यह दीर्घकाल में अर्न्तजात वृद्धि के साथ आवश्यक रूप से असंगति न रखे ।
बर्हिजात वृद्धि के सिद्धान्त बताते हैं कि मध्यम काल में जब देश दीर्घकालीन सन्तुलन की ओर जा रहे होते हैं, अर्न्तजात वृद्धि दीर्घकाल में गुणात्मक रूप से समान होती है तब भी, जबकि मात्रात्मक रूप से इनमें भिन्नता दिखाई दे । तब इस सन्देह को दूर करने की जरूरत होती है कि अन्तर्जात वृद्धि का सिद्धान्त हमें समृद्ध देशों की सापेक्षिक आर्थिक वृद्धि के बारे में क्या बताता है ?
अन्तर्जात आर्थिक वृद्धि मुख्यतः बचत की दर कुशलता व ह्रास में पूर्णतः निर्भर होती है । अतः अन्तर्जात वृद्धि का सिद्धान्त यह पूर्वानुमान करता है कि निर्धन देश, समृद्ध देशों की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करते है तथा समृद्ध देशों की ओर अभिसरित होते हैं ।
यह केवल तब सम्भव होता है जब निर्धन देश या तो समृद्ध देशों की तुलना में अपनी उच्च आय के अनुपात को बचाएँ या प्रति इकाई पूंजी से अधिक उत्पादन प्राप्त करने की कुशलता रखें या इनके यहाँ ह्रास कम हो ।