आर्थिक शक्ति का एकाग्रता: परिणाम और उपाय | Read this article in Hindi to learn about the consequences resulting from the concentration of economic power. Also learn about the measures to control the same.
आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण के परिणाम (Consequences of Concentration of Economic Power):
आर्थिक शक्ति के बढ़ते हुये केन्द्रीकरण के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के परिणाम हैं । इसने भारत में आर्थिक विकास का संवर्धन किया है, विशेषतया इसलिये क्योंकि इसके औद्योगिक क्षेत्र पर सार्थक प्रभाव थे । विकेन्द्रीकरण के आर्थिक परिणामों का विश्लेषण करते समय, एकाधिकार जांच आयोग (MIC) ने आर्थिक वृद्धि पर प्रबन्धकीय निपुणता की पूर्ति और निवेश के आदर्श के निर्धारण पर इसके प्रभावों का अध्ययन करने का प्रयत्न किया ।
इसके प्रभावों का वर्णन करें:
1. आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव (Effects on Economic Growth):
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आयोग का विचार था कि आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण ने आर्थिक वृद्धि लाने में सहायता की है । बड़े व्यापारिक घरानों ने पूंजी निर्माण का संवर्धन किया, नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की और वर्तमान औद्योगिक इकाइयों का विस्तार किया ।
एकाधिकार जाँच आयोग ने अवलोकन किया कि ”यह प्रत्याशा करना न्यायसंगत है कि केन्द्रीकृत आर्थिक शक्ति पर, आने वाले कठिन वर्षों में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिये निर्भर किया जा सकता है । इस प्रकार एकाधिकार जांच आयोग ने स्वयं आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण पर प्रहार नहीं किया बल्कि उस केन्द्रीकरण प प्रहार किया जो साझे हितों के लिये हानिकारक है ।”
परन्तु दत्त समिति का विचार था कि बड़े औद्योगिक घराने पूजी निर्माण के दर को न केवल बढ़ाने में असफल रहे बल्कि उन्होंने अपने विस्तार के लिये बैंकों की जमा राशि और सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं का भी उपयोग किया ।
2. प्रबन्धकीय निपुणताओं का संवर्धन (Promotion of Managerial Skills):
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एकाधिकार जाँच आयोग (MIC) का विचार था कि आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण के कारण प्रबन्धकीय निपुणताओं की पूर्ति में वृद्धि हुई । परन्तु आर. सी. दत्ता कहते हैं कि इस विकेन्द्रीकरण ने प्रबन्धकीय श्रेणी की वृद्धि में बाधा डाली है, विशेषतया प्रबन्ध के उच्च स्तर पर ।
3. निवेश का प्रतिरूप (Pattern of Investment):
एम. आई. सी. ने कभी भी आर्थिक केन्द्रीकरण के परिणामस्वरूप निवेश के गलत निर्देशन पर टिप्पणी नहीं की । यह बिल्कुल सच है कि बड़े व्यावसायिक घराने सदा तीव्र प्रतिफल वाली उच्च उत्पादक परियोजनाओं में निवेश का प्रयत्न करते हैं और उन कठिन क्षेत्रों की उपेक्षा करते हैं जो निवेश पर निम्न प्रतिफल दर्शाते हैं । पी. एस. लोकनाथन ने पाया कि, ”आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण निवेश के कुनिर्देशन की ओर ले जा सकता है ।”
इसके अतिरिक्त, आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण पारिवारिक प्रबन्ध में परिणामित होता है, जोकि आधुनिक प्रबन्ध का अति असंगत तत्व है । यह समाज-आर्थिक असमानता तथा निवेश का कुछ गलत दिशाओं में कुनिर्देशन प्रोत्साहित करता है । इस सबके कारण आवश्यक वस्तुओं की लागत पर गैर-आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन हुआ जिस कारण बाजार में सट्टेबाजी और जमाखोरी में वृद्धि हुई ।
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अर्थव्यवस्था की आवश्यक आवश्यकताएं उपेक्षित रह गईं । बड़े व्यापारिक घराने कोष देकर राजनीतिक शक्ति का नियन्त्रण भी कर सकते हैं । अतः केन्द्रीकरण में बहुत सी बुराइयाँ हैं तथा देश के सर्वोत्तम हितों के लिये ऐसी प्रवृति को नियन्त्रित करने के लिये अनेक उपाय किये गये हैं ।
आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को नियन्त्रित करने के उपाय (Measures to Control Concentration of Economic Power):
एकाधिकार की वृद्धि और परिणामित आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण ने देश में एक चिन्ताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी है । निगमित क्षेत्र ने अपने तुरन्त लाभ की वेदी पर राष्ट्रीय हितों का त्रलिदान कर दिया है । परिस्थितियाँ सुधारक कार्यवाही की मांग करती हैं । तथापि भारत सरकार ने अनेक उपाय किये हैं तथा आर्थिक शक्तियों के ही हाथी में नियन्त्रण को रोकने के प्रयत्न किये हैं ।
इनमें से कुछ उपायों का वर्णन नीचे किया गया है:
1. एम. आर: टी. पी. एच्छ तथा एम. आर टी. पी. आयोग (MRTP Act and MRTP Commission):
भारत सरकार ने देश में आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण को रोकने के लिये वर्ष 1969 में एम.आर.टी.पी. एक्ट अपनाया । इसी प्रकार एम.आर.टी.पी. आयोग की नियुक्ति की गई जो बड़े व्यापारिक घरानों के एकाधिकारिक व्यवहारों को दबाने के लिये सिफारिशें और मार्गदर्शन करेगा । सरकार ने तीन सदस्यों का एक स्थायी ‘मोनोप्लीज एण्ड रेसट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसिक आयोग’ की स्थापना की है जो नहाता एक्ट की व्यवस्थाओं को लागू करेगा ।
2. लाइसैन्स नीति (Licensing Policy):
सरकार को ऐसी लाइसैन्स नीति का निर्माण करना चाहिये जो आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण को रोकने में सहायक हो । एकाधिकार जांच आयोग और हजारी समिति ने इस तथ्य को प्रकट किया है । अतः लाइसैन्स नीति में कुछ त्रुटियों को दूर करने के लिये, सरकार ने वर्ष 1970 में औद्योगिक लाइसेन्स नीति की घोषणा की तथा समय-समय पर इसमें संशोधन किये गये ।
3. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तर:
सरकार ने इस तथ्य का अनुभव कर लिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र को सक्रिय भागीदारी के बिना, आर्थिक शक्तियों के कुछ ही हाथों में केन्द्रित होने की प्रवृत्ति को दबाने की कोई सम्भावना नहीं है । इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र को आर्थिक वृद्धि का इंजन माना जाता है । इसलिये सरकार सार्वजनिक क्षेत्र विशेषतया पूंजी, मध्यस्थ और उपभोक्ता क्षेत्रों के वर्धन में अधिक ध्यान दे रही है ।
4. संयुक्त क्षेत्र (Joint Sector):
वर्ष 1970 की औद्योगिक लाइसैन्स नीति ने केन्द्र/प्रान्त सरकार और निजी क्षेत्र की निष्पक्ष भागीदारी के अनुसार पर एक संयुक्त क्षेत्र की स्थापना की है । सरकार ने स्पष्ट किया है कि सरकार उन क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने में बड़े व्यवसायिक घराना का सहयोग नहीं करेगी जहाँ उनके प्रवेश का निषेध है । इस सम्बन्ध में संयुक्त क्षेत्र की स्थापना कुछ ही हाथों में आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण को रोकने का शानदार कदम है ।
5. छोटे, मध्यम और निगमित क्षेत्रों का प्रोत्साहन (Encouragement to Small, Medium and Corporate):
सरकार को न केवल रोजगार के आधार पर ही छोटे, मध्यम और निगमित क्षेत्रों का प्रोत्साहन नहीं करना चाहिये बल्कि व्यापारिक घरानों की बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिये भी यह प्रोत्साहन आवश्यक है । इस प्रयोजन से सरकार को चाहिये कि आधारभूत सुविधाएं उदार साख और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के लिये उनको अन्य संरचनात्मक सुविधाएं उपलब्ध करें । कुछ उद्योगों को इस क्षेत्र के लिये आरक्षित रखा जाये ।