आर्थिक शक्ति (विकास) का एकाग्रता | Read this article in Hindi to learn about the reasons for growth of concentration of economic power.
आश्चर्यजनक बात है कि एकाधिकारिक व्यवहारों और आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था और देश में आयोजन का परिणाम है । अनेक एकाधिकारिक विरोधी उपायों के बावजूद यह प्रक्रिया भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ सुदृढ़ कर रही है ।
आओ हम इसकी वृद्धि के कारणों का अध्ययन करें:
1. सरकार की लाइसैन्स नीति (Licensing Policy of the Government):
भारत सरकार ने औद्योगिक लाइसैन्स नीति को अपना कर बडे औद्योगिक घरानों और उद्योगपतियों का बहुत पक्ष लिया है । सरकार ने ‘पहले आने वाले की पहले सेवा’ (First Come – First Serve) का नियम बना कर भी बड़े उद्योगपतियों का पक्ष लिया है । इससे बडे उद्योगपतियों का विकास हुआ है क्योंकि वह अपने विस्तृत साधनों द्वारा नवीनतम सूचना प्राप्त कर लेते हैं ।
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इसके अतिरिक्त लाइसैन्स नीति ने प्रमाणित योग्यता वाले व्यक्तियों को लाइसैन्स देकर नये उद्यमियों की उपेक्षा की तथ्य इस प्रक्रिया से नये उद्यमी हतोत्साहित हुये । एकाधिकारिक जांच आयोग ने ठीक अवलोकन करते हुये कहा है कि, ”हमे विश्वास है कि औद्योगिक लाइसैन्सों के रूप में नियन्त्रणों की प्रणाली ने अन्य दुरि कोणों से आवश्यक होते हुये भी, उद्योग में प्रवेश की स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित किया है जिससे केन्द्रीकरण के सहायता प्राप्त हई है ।”
2. संरक्षण की नीति (Policy of Protection):
सरकार ने घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाने के लिये संरक्षण की नीति अपनायी है । एक ओर आपात नियन्त्रण की नीति तथा दूसरी ओर कड़ा विनिमय नियन्त्रण भी आर्थिक शक्तियों के कुछ ही हाथों में केन्द्रीकरण में सहायक हुआ है ।
बड़े व्यापारिक घराने कई प्रकार से छोटी इकाइयों पर दबाव डालने की स्थिति में होते हैं और उन्हें अपनी शर्तों अनुसार कार्य करने के लिये विवश करते हैं । उनके अवैध और अनियमित दबावों के कारण उनकी सम्पत्ति अधिकाल में बढ़ गई है ।
3. विदेशी सहयोग (Foreign Collaboration):
विदेशी सहयोग ने भी बड़े व्यापारिक घरानों को अपना प्रभाव बढाने में सहायता की है । बड़े उद्योगपतियों को इस स्थिति में भी लाभ प्राप्त होता है क्योंकि विदेशी सहयोग प्राप्त करने के लिये पर्याप्त वित्तीय साधनों की सुविधाओं और प्रबन्धकीय निपुणताओं की आवश्यकता होती है । अतः स्वाभाविक है कि यह कारक भी अधिक शक्तियों के केन्द्रीकरण की ओर ले जायेगा ।
4. वित्तीय संस्थाओं से सहायता (Assistance from Financial Institutions):
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बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से सहायता की व्यवस्था करने में बड़े व्यापारिक घरानों की क्षमता छोटे व्यवसायियों से अधिक होती है । आई.डी.बी.आई., आई.एफ.सी.आइ., आई.सी.आई.सी.आई. आदि ने बडे घरानों की प्रत्यक्ष ऋणों द्वारा सहायता की है । यहां महा लेनोबिस समिति ने स्पष्ट किया है कि बड़े व्यापारिक घरानों की पूंजी बाजार में बड़ी कम्पनियों के शेयरों में निवेश करने में सुविधा प्राप्त होती है ।
इसी प्रकार दत्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1915 से 1966 के दौरान कुल सार्वजनिक वित्तीय सहायता का 42 प्रतिशत भाग 73 बड़े स्तर के उद्यमों को वितरित किया गया तथा 20 बड़े घरानों को कठिनता से 20 प्रतिशत वितरित किया गया । 31 मार्च, 1983 तक एम.आर.टी.पी. कम्पनियों द्वारा 8,970 करोड़ रुपयों की संचित स्वीकृत ऋणों की राशि से 20 करोड रुपये प्राप्त किये गये ।
5. निजी उद्यमों के विस्तार की सम्भावना (Scope of Expansion of Private Enterprises):
समय-समय पर सरकार द्वारा निर्मित औद्योगिक नीति ने निजी उद्यमों के विस्तार को प्रोत्साहित किया है । इसके परिणामस्वरूप आर्थिक शक्तियों का कुछ ही हाथी में केन्द्रीकरण हुआ है । उदाहरणतया 1956 की औद्योगिक नीति ने 11 उद्योगो को सूची 4 के लिये और 8 को सूची B के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित किया । निजी क्षेत्र की इस भागीदारी ने आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण को उत्साहित किया ।
6. कराधान नीति (Taxation Policy):
निजी क्षेत्र को अधिक प्रोत्साहन देने के लिये भारत सरकार ने कर रियायतें प्रदान कीं । कुछ रियायतें है-कर अवकाश, नये उद्यमों को छूट, अवमूल्यन भत्ता, आयातों और निर्यातों पर छूट और अन्तनिर्गमित लाभों आदि पर रियायती दर । इसलिये कराधान नीति ने देश में बड़े व्यापारिक घरानों की स्थिति को सुदृढ़ किया है ।
7. प्रबन्धक अभिकरण (Managing Agency):
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प्रबन्धक अभिकरण की प्रणाली जो वर्ष 1970 तक चालू रही, भी आर्थिक शक्तियों के कुछ ही हाथों में केन्द्रीकरण के लिये उत्तरदायी है । आर.सी. दता (सदस्य एकाधिकार जाँच आयोग) के अनुसार, ”प्रबन्धक अभिकरण प्रणाली का निर्माण केन्द्रीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये किया गया था इसलिये इसे केन्द्रीकरण के उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिये ।”
8. आयोजन प्रक्रिया (Planning Process):
देश में आयोजन प्रक्रिया का निश्चित रूप में अर्थ है दुर्लभ, साधनों का निर्धारण तथा वरीयताए निर्धारित करना । इसलिये, प्रभावशाली लोगों के लिये यह सम्पत्ति एकत्रित करने तथा दुर्लभ साधनों का अपने हित में प्रयोग करने का सुनहरी अवसर था । दूसरे शब्दों में, यह उनके हाथों में आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण का फलदायक उपाय प्रमाणित हुआ ।
9. अन्तर-कम्पनी निवेश (Inter-Company Investment):
बड़ी इकाइयों द्वारा अन्तर-कम्पनी निवेश एक अन्य तत्व है जिससे बड़े औद्योगिक घरानों एवं आर्थिक शक्तियों के केन्द्रीकरण में वृद्धि हुई है; इस विधि अनुसार बड़ी कम्पनियां अनेक अच्छी कम्पनियों का निर्देशन सम्भाल कर अन्य कम्पनियों के निर्णय निर्माण का एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं ।
10. बड़े स्तर के उत्पादन की मितव्ययताएं (Large Scale Production Economies):
प्रौद्योगिक उन्नति और नियोजित आर्थिक वृद्धि की कार्यप्रणाली ने बडे स्तर की आन्तरिक तथा बाहरी मितव्ययताओं का लाभ उठाया है । इस प्रक्रिया ने उत्पादन को कई गुणा बढ़ा कर उत्पादन की लागत को कम किया है । इससे बड़े उद्योगों की वृद्धि को सुविधा और सहायता प्राप्त हुई है ।