Read this article in Hindi to learn about:- 1. बर्हिजात वृद्धि में आर्थिक वृद्धि एवं कुशलता का निर्धारण (Determination of Economic Growth and Efficiency in Exogenous Growth) 2. इष्टतम वृद्धि का नियम (Rule for Optimal Growth) and Other Details.
बर्हिजात वृद्धि में आर्थिक वृद्धि एवं कुशलता का निर्धारण (Determination of Economic Growth and Efficiency in Exogenous Growth):
चित्र 67.1 आर्थिक वृद्धि एवं कुशलता का निर्धारण करता है जो उत्पादन पूंजी अनुपात है । ऊर्ध्वमुखी ढाल वाली रेखा G, हैरोड डोमर के समीकरण को व्यक्त करती है । इसका ढाल अर्थात् वह कोण जो यह X-अक्ष से बनाती है बचत की दर है । बचत की दर जितनी अधिक होगी G रेखा उतनी ही अधिक प्रपाती होगी ।
कुशलता में होने वाली वृद्धि, अन्य बातों के समान रहने पर कम-से-कम कुछ समय के लिए आर्थिक वृद्धि को अवश्य बढाएगी ।
G रेखा X-अक्ष को, क्षैतिज रेखा OX के नीचे d बिन्दु पर काट रही है, यह ह्रासकी दर है । इससे यह जानकारी मिलती है कि न तो बचत और न ही कुशलता आर्थिक वृद्धि में कोई योगदान करते हैं । ऐसे में उत्पादन वृद्धि ऋणात्मक होगी । उत्पादन उसी समान दर पर गिरेगा जितना पूंजी स्टाक अर्थात् ह्रास की दर है ।
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X-अक्ष के समानान्तर S रेखा (सोलोव के विश्लेषण के आधार पर ऊर्ध्व रेखा OY को एक बिन्दु S’ पर काटती है जो जनसंख्या वृद्धि एवं तकनीकी प्रगति का योग है तथा उस दीर्घकालीन सन्तुलन दशा को निरूपित करती है जहाँ आर्थिक वृद्धि अवश्य ही इस योग के बराबर होती ।
ऊर्ध्व रेखा E (E अर्थात् कुशलता, Efficiency) कुशलता के स्तर को बताती है अर्थात यह उत्पादन पूंजी/अनुपात है । यह सोलोव के मॉडल का मुख्य अन्तर्जात चर है । मध्यम कालीन सन्तुलन G रेखा व रेखा के अन्तर्छेदन से प्रदर्शित है ।
दीर्घकालीन सन्तुलन, चित्र में प्रदर्शित तीनों रेखाओं G, E व S के E द्वारा सम्पन्न होता है । मध्यमकालीन सन्तुलन से दीर्घकालीन सन्तुलन की ओर होने वाली संक्रमण गति, G रेखा व S रेखा के मध्य अन्तर्छेदन बिन्दु से E रेखा पर स्वचालित आकर्षण द्वारा प्रावैगिक समायोजन द्वारा सम्भव बनेगी जिसे सोलोव द्वारा खोजा गया था ।
कितनी अधिक बचत हो (How Much to Save):
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बचते वृद्धि के लिए अच्छी साबित होती है । आर्थिक वृद्धि के सिद्धान्त जिनका हम अध्ययन करते आ रहे है यह पूर्वानुमान करते है कि अपनी आय के अंश का जितना अधिक भाग परिवार बचतों में व फर्में विनियोग में लगाएंगी प्रति व्यक्ति उत्पादन का स्तर, अन्य बातों के समान होने पर, उतना ही बढ़ेगा और इस प्रकार भावी समय अवधियों हेतु वृद्धि की दर भी ऊँची होगी ।
प्रश्न यह है कि क्या तब स्थिति बेहतर होगी जब अधिक से अधिक व्यक्ति बचत करें ? पर ऐसा है नहीं । कारण यह है कि बचतें चालू उपभोग के रूप में जो नहीं किया जा रहा के रूप में एक लागत को समाहित करती हैं ।
ऐसे में पुन: यह प्रश्न उठ खडा होता है कि एक देश कितनी अधिक बचत करें ? इसका सम्भावित बेहतर जवाब यह है कि राष्ट्रीय आय में बचत का इष्टतम स्तर या अंश वह है जो उसके नागरिकों को दीर्घकाल में अधिकाधिक सम्भव उपभोग करा पाने में समर्थ बने, क्योंकि बचत का उद्देश्य अन्ततः उपभोग है- परन्तु कुछ समय बाद किया जाने वाला ।
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यदि बचतें बहुत कम ही तो इससे उत्पादन भी कम होगा और दीर्घकाल में उपभोग भी कम होगा । दूसरी ओर, काफी अधिक बचतें, भले ही प्रति व्यक्ति अधिक उत्पादन करने में समर्थ हों लेकिन इस उत्पादन का काफी कम अंश उपभोग हेतु शेष रहने देती है । अतः हमें ऐसा इष्टतम चाहिए जो काफी कम बचत व काफी अधिक बचतों के मध्य हो ।
बचत की कितनी अधिक दरें वृद्धि के लिए अनुकूलतम या इष्टतम हों ? इष्टतम बचत दर के लिए अब जिस फार्मूले को हम समझेंगे उसका प्रयोग इष्टतम बचत रणनीतियों के मात्रात्मक मापन के साथ यह समझने के लिए भी किया जा सकता है कि अनुभवसिद्ध अवलोकन के आधार पर विश्व में पाई जाने वाली बचत दरें इष्टतम है या नहीं या बराबर है उपभोग की उस मात्रा के साथ जो बचत के साथ भावी समय में संगति रखें ।
यदि हम यह मानें कि- (a) राष्ट्रीय आय में पूंजी का शेयर एक तिहाई है, (b) उत्पादन वृद्धि बराबर होती है वास्तविक ब्याज दरों के तथा (c) बरहे की दर बराबर होती है जनसंख्या वृद्धि की दर के ।
अतः प्रति व्यक्ति उत्पादन में होने वाली वृद्धि शुद्ध व्याज की दरों पर बढ़ती है जो आतुरता के लिए समायोजित हैं । जैसा कि इष्टतम वृद्धि चाहती है इस दशा में, इष्टतम बचत दरें बराबर होती हैं राष्ट्रीय आय में पूंजी के अंश के और इस प्रकार यह स्वर्णिम नियम के अनुकूल है ।
लेकिन बहुत कम देश ऐसे हैं जो अपनी आय से इतना अधिक भाग बचा व विनियोजित कर पाते हैं । 1995 में, केवल थाइलैण्ड । (जहां सकल घरेलू विनियोग GNP का 43 प्रतिशत), चीन (40 प्रतिशत), कोरिया (37 प्रतिशत), होंगकोंग (35 प्रतिशत) एवं सिंगापुर (33 प्रतिशत) ही इस स्तर तक पहुँचे एवं इसे पार कर सके ।
क्या इससे आशय यह है कि उपभोक्ता अपने उपभोग को समय रहते अधिकतम नहीं कर पाएँगे ऐसा नहीं है । माना मान्यता (b) व (c) के स्थान पर यदि आर्थिक वृद्धि, 3 प्रतिशत वार्षिक व वास्तविक ब्याज की दर 6 प्रतिशत तथा ह्रास4 प्रतिशत है ।
तब ऐसी दशा में इष्टतम बचतों तथा स्वर्णिम नियम के फारमूले के अनुसार अनुकूलतम बचत दर 23 प्रतिशत है जो भारित विश्व की औसत बचत (अर्थात् विनियोग) के समकक्ष है । यह तुलनात्मक भारित औसत, निम्न एवं मध्य आय वाले देशों में 27 प्रतिशत व उच्च आय वाले देशों में 21 प्रतिशत था ।
इष्टतम वृद्धि का नियम (Rule for Optimal Growth):
इष्टतम वृद्धि के नियम को निम्न प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है:
हम एक व्यक्ति को ध्यान में रख रहे हैं, यह व्यक्ति अपनी कुल आय के वर्तमान मूल्य (Y*) को आज के उपभोग (C1) तथा कल या भविष्य के उपभोग (C2) में इस प्रकार विभाजित करना चाहता है कि आज व कल दोनों समय अवधि में उसकी उपयोगिता हो सके ।
इस हेतु हम निम्न लघुगुणक उपयोगिता फलन को ध्यान में रखते है:
यहाँ ρ बट्टे की दर है जो उपयोगिता फलन से सम्बन्धित उदासीनता मानचित्र से सम्बन्धित हैं । उपयोगिता इस परिसीमा के विषयगत अधिकतम होती है कि आज और कल के उपभोग की वर्तमान बट्टा जनित मूल्य ठीक बराबर होता है कुल प्राप्तियों Y* के ।
यह इष्टतम वृद्धि समीकरण है (जिसे हम G रेखाओं के द्वारा दिखा रहे है । यहाँ वास्तविक व्याज की दर में होने वाली एक वृद्धि इष्टतम वृद्धि बिन्दु को बढाती है, चित्रों में G रेखाओं को x-अक्ष के साथ 45° का कोण बनाती हुई रेखा के द्वारा दिखाया गया है ।
i. बर्हिजात वृद्धि (Exogenous Growth):
समीकरण (8) इष्टतम वृद्धि (G रेखा) एवं सोलोव का समीकरण g = n + q (S रेखा) पर है जिसका चित्रात्मक निरूपण परीक्षण 4 में किया गया है । इन दोनों समीकरणों को साथ-साथ इष्टतम वृद्धि दर एवं वास्तविक ब्याज की दरों हेतु हल करने पर-
g = n + q
r = q + p
इन संक्षिप्त किए गए समीकरणों के जोड़े से हम यह पाते हैं कि:
(a) जनसंख्या वृद्धि में होने वाली एक वृद्धि आर्थिक वृद्धि की इष्टतम दर में वृद्धि करती है परन्तु वास्तविक व्याज की दर में नहीं,
(b) बढती हुई तकनीकी प्रगति अनुकूलता वृद्धि व वास्तविक ब्याज की दर दोनों को बढ़ाती है ।
(c) बढ़ता हुइ आतुरता अर्थात् (ρ) में होने वाली वृद्धि, जो बचतों की तत्परता या स्वेच्छा में कमी करती है- वास्तविक व्याज की दर में वृद्धि करती है, लेकिन आर्थिक वृद्धि की इष्टतम दर को नहीं ।
ii. अन्तर्जात वृद्धि (Endogenous Growth):
अनुकूलता वृद्धि (G रेखा) व वास्तविक ब्याज दर (R रेखा) के संक्षिप्त किए गए समीकरण निम्न हैं:
उपर्युक्त समीकरण प्रदर्शित करते हैं कि:
(a) कुशलता में वृद्धि, इष्टतम आर्थिक वृद्धि तथा वास्तविक ब्याज की दरों दोनों में वृद्धि करती है,
(b) ह्रास में वृद्धि, इष्टतम वृद्धि एवं ब्याज की दर दोनों में कमी करती है,
(c) बढ़ती हुई आतुरता अर्थात् ρ में वृद्धि, बचतों की तत्परता या स्वेच्छा में कमी के साथ-वृद्धि की इष्टतम दर को अब कम करती है लेकिन वास्तविक ब्याज की दरों को अपरिवर्तित छोड देती है, तथा
(d) जनसंख्या में होने वाली वृद्धि, इष्टतम आर्थिक वृद्धि को बढाती है परन्तु वास्तविक व्याज की दरों को नहीं ।
इष्टतम बचतें तथा स्वर्णिम नियम (Optimal Savings and the Golden Rule):
वैकल्पिक रूप से, इष्टतम बचत दर वह बचत दर है जो इष्टतम आर्थिक वृद्धि को उत्पन्न करने के लिए चयनित उपभोग पथ के साथ संगति रखती है ।
इसे ज्ञात करने के लिए निम्न समीकरण का प्रयोग करते है:
यह ध्यान रखना है कि यदि बट्टे की दर (ρ) बराबर हो जनसंख्या वृद्धि दर (n) के, जिससे समीकरण (8) के अनुसार आर्थिक वृद्धि बराबर हो सके ब्याज की वास्तविक दर के तब ऐसी दशा में समीकरण (13) को s = 1 – a के द्वारा निरूपित किया जा सकता है जो पूंजी संचय का स्वर्णिम नियम है ।
स्वर्णिम नियम के द्वारा, विशेष उपभोक्ता समय के चलते अपने उपभोग को अधिकतम करता है, क्योंकि वह वर्तमान में अपनी पूंजी आय से बचत करता है (यहां समीकरण में 1 – a राष्ट्रीय आय में पूंजी का अंश है) तथा शेष आय अर्थात् अपनी श्रम आय का उपभोग करता है ।
अब हम यह जानने का प्रयास करते है कि ऐसा किस प्रकार होता है ? हम यह देख रहे है कि एक विशेष उपभोक्ता एक विनियोगी भी है अर्थात् वह एक फर्म में एक विनियोगी की हैसियत रखता है ।
स्वर्णिम नियम यह बताता है कि उपभोक्ता, एक विनियोगी के रूप में पूंजी का तब तक संचय करेगा जब तक यह उपभोग में वृद्धि करती रहेगी । ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि परिभाषा से, उत्पादन बराबर होता है- उपभोग धन विनियोग के । जब ऐसा महत्वपूर्ण बिन्दु आता है जहाँ पूंजी का ढाँचा विनियोग में काफी अधिक योगदान करें, वहाँ उपभोग अधिकतम होता है तथा कोई अतिरिक्त पूंजी का संचय नहीं किया जाएगा ।
यदि ऐसा हो तब, उपभोग गिरेगा, क्योंकि इस महत्त्वपूर्ण बिन्दु से आगे किया जाने वाला संचय विनियोग में वृद्धि करेगा और यह वृद्धि, उत्पादन में होने वाली वृद्धि से अधिक होगी ।
जब हम इस वर्णन में आतुरता को सम्मिलित करते है तब, समीकरण (9) से (12) में g व r के संक्षिप्त हलों को समीकरण (13) के दाएँ हाथ वाले भाग में प्रतिस्थापित करते हुए हम इष्टतम बचत दरों को बर्हिजात प्राचलों के रूप में अभिव्यक्त कर सकते है ।
बर्हिजात वृद्धि की दशा में हमें निम्न सम्बन्ध प्राप्त होता है:
इनमें किसी एक दशा हेतु हम इष्टतम वृद्धि दर को बर्हिजात रूप से निर्धारित कर सकते हैं । ध्यान रखना है कि समीकरण (18) व (19) में आतुरता एवं बचत दर के मध्य विपरीत संबंध है अर्थात् दोनों दशाओं में कम आतुरता से कम बचत प्राप्त होगी । यह फार्मूले, स्वर्णिम नियम की तुलना में कुछ जटिल हैं, परन्तु जब ρ = n तब, समीकरण (13) की भांति s = 1 – a तब स्वर्णिम नियम अपनी पूर्व दशा में आ जाता है ।
अपने सरलतम रूप में, जहाँ s = 1 – a = 1/3, स्वर्णिम नियम, एक बचत दर को निर्धारित करता है, जो कुछ अपवादों को छोड़कर विश्व में देखी जाती हैं तो भी, यह मानते हुए कि जब आर्थिक वृद्धि 3 प्रतिशत वार्षिक है, वास्तविक ब्याज की दर 6 प्रतिशत तथा ह्रास, 4 प्रतिशत तब समीकरण (13) से एक इष्टतम बचत दर 23 प्रतिशत की प्राप्त होती है जो 1995 में भारित विश्व औसत थी ।
आर्थिक वृद्धि के लिए इष्टतम बचत व्यवहार के परिणाम (Consequences of Optimal Savings Behavior for Economic Growth):
अब हम आर्थिक वृद्धि के लिए इष्टतम बचत व्यवहार के परिणामों का वर्णन कर रहे हैं । इसकी शुरूआत हम बर्हिजात वृद्धि से करते है । चित्र 67.6 में इष्टतम बर्हिजात वृद्धि तथा वास्तविक व्याज की दर का निर्धारण किया गया है । चित्र में G रेखा इष्टतम वृद्धि के नियम को सूचित करती है जो ठीक बराबर होता है ब्याज की वास्तविक दर के जिसे आतुरता एवं जनसंख्या वृद्धि के लिए समायोजित किया गया है । G रेखा क्षैतिज अक्ष से 45° रेखा पर खींची गई है जो यह सूचित करती है कि हर बिन्दु पर वास्तविक ब्याज की दर में होने वाली वृद्धि इष्टतम वृद्धि को बढ़ाती है ।
बढती हुई आतुरता या बचत की सीमित तत्परता G रेखा को नीचे की ओर विवर्तित करती है जिससे वास्तविक ब्याज की दर बढती है, जो कि एक दी हुई वृद्धि दर के साथ एक-दूसरे के अनुकूल या संगत है या, समान रूप से यह इष्टतम वृद्धि दर को कम करती है जो एक दी हुई वास्तविक व्याज की दरके साथ संगति रखती है । क्षैतिज रेखा S, सोलोव की दशा को प्रदर्शित करता है कि आर्थिक वृद्धि बराबर होती है जनसंख्या वृद्धि धन तकनीकी प्रगति के ।
अब हम कुछ परीक्षण करते हैं:
परीक्षण 1: तकनीकी प्रगति (Experiment 1: Technological Progress):
हम यह मानते है कि तकनीक में तीव्र प्रगति होती हैं । अत: S रेखा S’ हो जाएगी तथा आर्थिक वृद्धि A से बढ्कर B बिन्दु पर आ जाती है (चित्र 67.7) कुशलता के बढ़ने से, ब्याज की वास्तविक दर बढ़ती है । ब्याज की वास्तविक दर के बढ़ने पर पूंजी/उत्पादन अनुपात में कमी होती है जिससे अभिप्राय है अधिक कुशलता । एक उच्च वास्तविक ब्याज की दर इस प्रकार बढ़ती हुई कुशलता के साथ चलती है ।
चित्र 67.7 से स्पष्ट है कि बढ़ती हुई तकनीकी प्रगति आर्थिक वृद्धि व वास्तविक ब्याज की दरों को बढ़ाती है अर्थात् इससे हम बर्हिजात वृद्धि के साथ इष्टतम बचत को प्रदर्शित करते हैं ।
परीक्षण 2: जनसंख्या वृद्धि (Experiment 2: Population Growth):
अब माना, जनसंख्या बढती है । अंत: S व G दोनों रेखाएँ जनसंख्या वृद्धि की दर के बराबर बढ्कर S’ व G’ हो जाएंगी तथा इनका अन्तर्छेदन बिन्दु A से बदल कर B पर आ जाता है ।
अत: आर्थिक वृद्धि में इतनी वृद्धि होगी जितनी श्रम-शक्ति में वृद्धि होती है, लेकिन शुद्ध ब्याज की दर के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि की दर अपरिवर्तित ही रहेगी । चित्र 67.8 से स्पष्ट है कि जनसंख्या वृद्धि होने पर आर्थिक वृद्धि बढती है परन्तु वास्तविक ब्याज की दरें अपरिवर्तित रहती है जब हम बर्हिजात वृद्धि को इष्टतम बचतों के साथ देखते है ।
परीक्षण 3 : ह्रास (Experiment 3 : Depreciation):
चित्र 67.7 एवं 67.8 में हुए परीक्षणों में शुद्ध ब्याज की दरें तथा कुशलता अपरिवर्तित ही रहती हैं, कारण यह है कि दिए हुए ह्राससे यह दोनों प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है ।
बढ़ते हुए ह्रास के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए हम चित्र 67.6 में एक नयी ऊर्ध्व रेखा R (अर्थात् शुद्ध ब्याज) जोडते हैं जो S रेखा व G रेखा के अन्तर्छेदन बिन्दु से होकर गुजरती है । इसे चित्र 67.9 में प्रदर्शित किया गया है ऐसा योग करना इस कारण जरूरी है, क्योंकि बढ़ता हुआ ह्रास, शुद्ध ब्याज और कुशलता के मध्य एक पच्चर की भाँति रहता है ।
अधिक ह्रास शुद्ध ब्याज की दर को सीमित करता है जो अधिकतम लाभ पर कुशलता के दिए हुए स्तर से संगत रहता है या अनुकूल होता है या समान रूप से, यह कुशलता के स्तर में वृद्धि करता है जो एक दी हुई वास्तविक ब्याज की दर के साथ संगत रहता है ।
ह्रास में होने वाली एक वृद्धि इस प्रकार R रेखा को बायीं ओर R’ पर चित्र 67.9 में ले आती है, इस प्रकार कि आर्थिक वृद्धि एवं वास्तविक ब्याज की दर दोनों A से B पर गिर जाते है, जबकि कुशलता दी हुई है । B बिन्दु पर प्राप्त सन्तुलन अविरत नहीं है, क्योंकि यह इस दशा को सन्तुष्ट नहीं करता कि आर्थिक वृद्धि बराबर होती है जनसंख्या वृद्धि धन तकनीकी प्रगति के ।
कुशलता इसमें पार्श्व में समायोजित होती है, क्योंकि बढता हुआ ह्रास पूंजी स्टॉक में कमी करता है, जो उत्पादन में होने वाली कमी से अधिक होती है (ऐसा पूंजी पर ह्रासमान प्रतिफल के कारण होता है) इस प्रकार पूँजी/उत्पाद अनुपात गिरता है अर्थात् धीरे-धीरे कुशलता में वृद्धि होती है ।
कुशलता में होने वाली क्रमिक वृद्धि R’ रेखा को इसकी मूल दशा R पर ले आती है । यह प्रक्रिया तब समाप्त होती है जब बिन्दु A पर मूल साम्य पुन: स्थापित होता है । चित्र 67.10 से स्पष्ट है कि बढता हुआ ह्रास, आर्थिक वृद्धि को एक समय के लिए कम करता है परन्तु हमेशा नहीं ।
परीक्षण 4 : आतुरता (Experiment 4 : Impatience):
माना व्यक्ति अचानक कम आतुर हो जाते है तथा बचत करने की अधिक इच्छा रखते हैं । इससे चित्र 67.10 में G रेखा बायीं ओर खिसक कर G’ हो जाती है । अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि होने से साम्य A से हट कर B बिन्दु पर आता है । अधिक बचतों से शुद्ध ब्याज की दर मन्द या धीमी पड़ जाती है जिससे R रेखा बायीं ओर खिसक कर R’ हो जाती है ।
इष्टतम बने रहने के लिए शुद्ध ब्याज की दर को अधोगामी गति करनी पडती है जिससे अर्थव्यवस्था बिन्दु B से बिन्दु C पर आती है । दीर्घकाल में आर्थिक वृद्धि वही बनी रहेगी, क्योंकि यह बर्हिजात है अन्तत: यह तकनीकी वृद्धि व जनसंख्या वृद्धि को छोड सबसे अप्रभावित हो जाती है । चित्र 67.10 से स्पष्ट होता है कि बढ़ती हुई आतुरता से आर्थिक वृद्धि एक समय के लिए बढती है, यह शुद्ध ब्याज दर में कमी करती है तथा वृद्धि को अन्ततः अपरिवर्तित ही रखती है ।
इष्टतम अन्तर्जात वृद्धि एवं वास्तविक ब्याज की दर के निर्धारण को चित्र 67.11 से प्रदर्शित किया गया है । G रेखा पूर्व चित्रों की भाँति ही है । R रेखा वास्तविक ब्याज दर को सूचित करती है जो अधिकतम लाभ से संगति रखती है । यह R रेखा बढी कुशलता से दांयी ओर को विवर्तित होती है क्योंकि पूंजी/उत्पाद अनुपात व वास्तविक ब्याज की दर के मध्य विपरीत सम्बन्ध होता है ।
परीक्षण 5: स्थैतिक कुशलता (Experiment 5: Static Efficiency):
चित्र 67.12 में कुशलता में होने वाली एक वृद्धि से इष्टतम आर्थिक वृद्धि पर होने वाली प्रतिक्रिया को प्रदर्शित किया गया है । R रेखा दायीं ओर खिसक कर R’ होती है जिससे शुद्ध ब्याज की दर चित्र में A से B बिन्दु पर स्थापित होती है । चित्र से स्पष्ट है कि कुशलता में होने वाली एक वृद्धि आर्थिक वृद्धि एवं शुद्ध ब्याज की दर को बढाती है जब अन्तर्जात वृद्धि को इष्टतम बचतों के सन्दर्भ में देखा जा रहा हो ।
यदि ह्रास, आतुरता एवं जनसंख्या में पुन: वृद्धि हो तब इसके परिणामों को चित्र 67.13 व 67.14 के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है ।
चित्र 67.13 में बढ़ते हुए ह्रास के प्रभाव को दिखाया गया है । जहाँ अन्तर्जात वृद्धि के साथ इष्टतम बचतों की दशा में इस प्रकार ह्रास में होने वाली एक वृद्धि आर्थिक वृद्धि को तथा शुद्ध ब्याज दरों को सीमित करती है ।
चित्र 67.14 में बढ़ती हुई सहनशक्ति के प्रभाव को दिखाया गया है जो बचत की प्रवृति में वृद्धि करता है । G रेखा ऊपर की ओर बढ्कर A’ हो जाती है तथा आर्थिक वृद्धि A से बढ्कर B होती है, परन्तु वास्तविक ब्याज की दर अपरिवर्तित ही रहती है ।
स्पष्ट है कि अन्तर्जात वृद्धि के साथ इष्टतम बचतों की स्थिति में बढ़ते हुए धैर्य या सहनशक्ति से आर्थिक वृद्धि बढती है लेकिन वास्तविक व्याज की दरें अपरिवर्तित रहती हैं ।
चित्र 67.14 में बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों को प्रदर्शित किया गया है । उत्पादन बढ़ कर बिन्दु A से बिन्दु B पर आ जाता है, लेकिन प्रति व्यक्ति उत्पादन में होने वाली वृद्धि व वास्तविक ब्याज की दरें यथावत् रहती हैं ।
विचारणीय बात यह है कि बर्हिजात वृद्धि के साथ मध्य अवधि के प्रभाव गुणात्मक रूप से वही है जो अन्तर्जात वृद्धि के साथ दीर्घ अवधि के प्रभाव है । परन्तु मात्रात्मक रूप से यह भिन्न होते हैं ।