नोबल अर्थशास्त्री और उनके योगदान की सूची | Here is a list of noble economists and their contribution in Hindi language.

1. पॉल ए. सैमुअलसन (Paul A. Samuelon):

अर्थशास्त्र में दूसरा नोबेल पुरस्कार अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल ए. सैमुअलसन को 1970 में उसके प्रतिभाशाली योगदान के लिए प्रदान किया गया । सैमुअलसन को उसकी कृति Development of New Economic Theories और पुराने सिद्धांतों के लिए नये प्रयोगों की उपलब्धि के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया ।

स्वीडिश अकादमी ने यह घोषणा करते समय सही ही कहा था कि सैमुअलसन ने आर्थिक सिद्धांत के क्षेत्र में अन्य किसी अर्थशास्त्री की अपेक्षा वैज्ञानिक विश्लेषण के स्तर को ऊंचा उठाया । उसने अमेरिका की आर्थिक और वित्तीय नीतियों को अच्छा आकार देने का प्रयास किया । सैमुअलसन अमेरिका से अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रान्त करने वाला पहला अर्थशास्त्री था ।

सैमुअलसन ने आर्थिक समस्याओं की व्याख्या और स्पष्टीकरण के लिए हमेशा गणित के उपयोग की वकालत की । 1949 में उसकी प्रकाशित पुस्तक Economics, an Introductory Analysis विश्वप्रसिद्ध हुई है । सैमुअलसन ने कहा ‘अर्थशास्त्र कभी भी निराशाजनक विज्ञान नहीं था । यह एक वास्तविक विज्ञान होना चाहिए’ ।

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सैमुअलसन का योगदान मुख्य रूप से आर्थिक विश्लेषण, सार्वजनिक व्यय, उपभोक्ता कल्याण आदि के क्षेत्र में है । उसने प्रकटित अधिमान धारणा का प्रचलन किया । रुचियों और उपयोगिता का आकलन करने की बजाय, उसने उपभोक्ता द्वारा निर्मित वास्तविक चयन पर आधारित दृष्टिकोण विकसित किया । प्रकटित अधिमान सिद्धांत एक व्यावहारिक उपकरण है ।

2. सर जॉन हिक्स (Sir John Hicks):

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सर जॉन हिक्स को अमेरिका के कैनेथ जे. एरो के साथ 1972 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला । हिक्स नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाला प्रथम ब्रिटिश अर्थशास्त्री था । उसको पुरस्कार उसकी ‘Pioneering Contributions to the General Economic Equilibrium Theory and Welfare Theory’ के लिए मिला ।

जैसा कि बर्टिल ओलिन ने कहा, ”सामान्य संतुलन सिद्धांत आर्थिक सिद्धांत के बहुधा प्रत्यक्ष प्रयोग के लिए आधार है जैसे औद्योगिक उद्यम का स्थानीयकरण, संसाधन आवंटन वित्तीय एवं रोजगार सिद्धांत और विदेश व्यापार-ये सभी लोगों के कल्याण में वृद्धि के लिए उपयोग होते हैं ।”

हिक्स का जन्म वारविक में 1904 में हुआ था । 1925 में उसने आक्सफोर्ड से ग्रेजुएशन किया । वह 1926 से 1935 तक लन्दन स्कूल ऑफ इकानामिक्स, कैम्बिज और ऑक्सफोर्ड में प्रवक्ता था । 1965 में वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से रिटायर हुआ ।

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1964 में उसे ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया । प्रो. हिक्स ने 1960 में Revenue Allocation Commission for Nigeria सदस्य और Royal Commission on the Taxation of Profits and Income के सदस्य के रूप में कार्य किया । वह All Souls का फैलो, ब्रिटिश अकादमी का फैलो और लन्दन स्कूल ऑफ इकानामिक्स का प्रतिष्ठित फैलो बना ।

उसकी मुख्य कृतियां हैं:

Theory of Wages (1932), Value and Capital (1939), The Social Frame­work- An Introduction to Economics (1942), The Problem of Budgetary Reform (1948), A Contribution to the Theory of Trade Cycle (1950), A Revision of Demand Theory (1956), Capital and Growth (1965) और Critical Essays in Monetary Theory (1967) I

”Value and Capital” हिक्स की चिरस्थायी कृतियों में से एक है । यह ब्रिटेन और अमेरिका में तदनन्तर व्यष्टि आर्थिक सिद्धांतों के लिए आरंभिक बिन्दु बन गयी । यह उपभोक्ता अधिमान की प्राथमिक समस्या के साथ आरंभ होती है और बेरोजगारी और पूंजीवाद के भविष्य की ओर ले जाती है ।

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हिक्स के कार्य की मुख्य विशेषता थी कि वह अल्फ्रेड मार्शल के आशिक संतुलन दृष्टिकोण से वालरस के सामान्य संतुलन दृष्टिकोण की ओर लौटा । उसने अवधि विश्लेषण पर अपने कार्य और प्रत्याशाओं की लोच (Elasticity of Expectations) से अपने सिद्धांत के साथ गत्यात्मक आयाम भी आरंभ किया । यह पुस्तक आर्थिक विज्ञान की दुर्लभ पुस्तकों में से एक है जो विज्ञान की प्रगति में एक निश्चित अवस्था का चिह्न है ।

किसी अन्य अर्थशास्त्री से अधिक हिक्स ने तटस्थता वक्र उपकरण का पुनर्स्थापन और विस्तार किया । पुस्तक के प्रथम 52 पृष्ठों में समकालीन सिद्धांत की सबसे अच्छी व्याख्या है । The Social Framework और A Revision of Demand Theory उसकी अन्य पथप्रदर्शक रचनाएं हैं ।

The Social Framework अर्थशास्त्र की एक सुन्दर प्रस्तावना है । इस पुस्तक की प्रशंसा करते हुए प्रो. हैरड ने कहा ”यह उच्च योग्यता वाले एक अर्थशास्त्री द्वारा रचित अर्थशास्त्र का परिचय है उसकी शैली आसान और लोकप्रिय है, प्रस्तुतिकरण सीधा अग्रवर्ती और सम्मानित है ।”

हिक्स की पुस्तक A Revision of Demand Theory ‘स्पष्टीकरण का उत्तम अभ्यास’ और ‘संभवतः मांग सिद्धांत के इस पहलू पर कहा जाने वाला अंतिम शब्द’ के रूप में प्रशंसनीय है । उसने दर्शाया कि मांग के नियम को व्यक्तियों के व्यवहार से समूहों के व्यवहार का अध्ययन के रूप में विस्तारित किया जा सकता है । एक वस्तु के लिए मांग का सिद्धांत, केवल मांग सिद्धांत का आरंभ है । मांग का सामान्य सिद्धांत, कीमतों के समूह के बीच संबंध का सिद्धांत है जिस पर क्रय किए जाते हैं और मात्राओं का समूह जो खरीदा जाता है ।

3. मिल्टन फ्रीडमैन (Milton Friedman):

शिकागो विश्वविद्यालय के छात्राप्राध्यापक मिल्टन फ्रीडमैन को वर्ष 1976 का अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया । पुरस्कार की घोषणा करते हुए रॉयल स्वीडिश अकादमी ने कहा, ‘फ्रीडमैन को यह सम्मान उपभोग विश्लेषण, मौद्रिकइतिहास और सिद्धांत के क्षेत्र में उसकी उपलब्धियों के लिए तथा स्थिरीकरण नीति की जटिलताओं के प्रदर्शन के लिए दिया गया’ ।

फ्रीडमैन का जन्म न्यूयार्क के ब्रुकलेन में 1912 में हुआ था । उसने रहगर्स विश्वविद्यालय में अध्ययन किया । 1946 में उसने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से की उपाधि प्राप्त की । 1940-41 वर्ष में United States Treasury Department के Tax Research Division में प्रधान अर्थशास्त्री के रूप में कार्य किया ।

1941 से 1943 तक वह War Research Division of Columbia में शोध का सहायक निदेशक रहा । उसने मिनिसोटा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया । वह अनेक अमेरिकी विश्वविद्यालयों का विजिटिंग प्रोफेसर था ।

फ्रीडमैन एक अत्यन्त उन्नत लेखक और स्पष्टवादी संतुलित विचारक है । वह मौद्रिक सम्प्रदाय में अपने योगदान के लिए जाना जाता है जो मानता है कि स्फीति नियंत्रण करने के लिए कर और वित्तीय नीति की बजाय मौद्रिक नीति अधिक प्रभावी साधन है, जब बेरोजगारी को स्वीकार योग्य सीमा के अन्तर्गत रखा जाता है । फ्रीडमैन इस पुरस्कार से सम्मानित कि जाने वाला प्रथम दक्षिण अमेरिकी है ।

4. अमृर्त्य कुमार सेन (Amartya Kumar Sen):

अमृर्त्य सेन को नोबेल समिति ने हिक्स उगैर ऐरो के उपरान्त सामान्य संतुलन के क्षेत्र में एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण विचारक के रूप में माना । सेन को वर्ष 1998 के लिए अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया । यह उसकी अर्थशास्त्र में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । सेन प्रथम एशियन और भारतीय हैं जिन्हें अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।

नोबेल दृष्टांत के अनुसार:

(अ) सामाजिक चयन सिद्धांत में सेन का योगदान,

(ब) विकास अर्थशास्त्र में सेन का कार्य, मुख्य रूप से गरीबी और अकाल के बीच संबंध के विश्लेषण में, और

(स) सेन की अधिकार और सामर्थ्य की धारणाएं महत्वपूर्ण हैं ।

सेन का कार्य उपरोक्त क्षेत्रों में विस्तृत कार्यक्रम प्रस्तुत करता है । वह सांकेतिक तर्क और प्रामाणिक दृष्टिकोण के उपयोग में कुशल है । उसके विचार अर्थशास्त्र के किसी विशिष्ट सम्प्रदाय में नहीं रखे जा सकते । फिर भी, उसे कल्याण अर्थशास्त्र में अपने विशेष नमूने की स्थापना के लिए श्रेय दिया जायेगा, खास करके गरीबी और मानव विकास के बीच संबंध के विश्लेषण में । उसने अनेक नये माप जैसे निर्धनता सूचकांक और सामर्थ्य सूचकांक दिए जिनका आनुभाविक रूप से आकलन करने का प्रयास किया गया है ।

सेन का सामाजिक चलन सिद्धांत, उसका बंगाल अकाल पर कार्य, उसका असमानता और गरीबी की गहनता को संबंधित करने का प्रयास और उसकी सामर्थ्य और अधिकार की धारणाएं-कल्याण अर्थशास्त्र में सबसे महत्वपूर्ण योगदान हैं ।

सामाजिक चयन सिद्धांत, जो सामान्यत: पेरेटो, बर्गसन और ऐरो की परम्परा में समझा जाता है, समुदाय के समग्र कल्याण की अलग से प्रत्येक व्यक्ति के फलन के रूप में व्याख्या करता है ऐरो का असंभवता प्रमेय अपनी रचना में मान्यताओं पर आधारित है जो पेरेटो, बर्गसन आदि की परम्परा में उचित है । ऐरो ने दर्शाया कि कोई भी सामाजिक चयन सभी मान्यताओं की संतुष्टि नहीं कर सकता ।

सैमुअलसन ने कहा कि ऐरो का विश्लेषण बर्गसन के सामाजिक कल्याण फलन से अलग है जो आवश्यक रूप से गणनावाचक और व्यक्तिगत तुलना का त्याग नहीं करता सेन का योगदान भी ऐरो की पद्धति में क्रमबद्धता की आवश्यकता को समाप्त करके और इसे गणनावाचक और अन्तव्यक्तिगत तुलना द्वारा प्रतिस्थापित करके इस संभावना को दर्शाता है ।

बाद के लेखों में लगता है कि सेन उपयोगिता पर आधारित पद्धति के विरुद्ध था । सेन ने कहा कि रील एद्वक्ता के तरीके में उपयोगिता में विश्वास, उसकी ह्रासमान प्रकृति और अन्तःवैयक्तिक तुलना सम्मिलित है । यह रास्ता है जिससे धनी और निर्धन के बीच अंतर करते हैं और गरीबों में से अत्यधिक गरीब को चुन सकते हैं ।

सेन ने सामाजिक कल्याण फलन मॉडलों के क्षेत्र में विस्तार के लिए प्रामाणिक दृष्टिकोण की अवश्य ही प्रशंसा की । उसने अपने विस्तारित सामाजिक चयन दृष्टिकोण में गरीबी, असमानता, अकाल आदि विषयों को सम्मिलित किया । सेन के निर्देशन में सामाजिक चयन सिद्धांत के प्रयोग का क्षेत्र वैकल्पिक राजनीतिक अर्थव्यवस्था को विकास से संबंधित सामाजिक क्रिया मॉडलों के साथ बराबर करता है ।

इस दिशा की ओर सेन कल्याण अर्थशास्त्र को ले जाता है और लगता है कि नोबेल समिति की प्रशंसा प्राप्त की हो । गरीबी, बेरोजगारी दूर करना, जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, स्फीति पर नियंत्रण, सामाजिक क्षेत्र की सुविधाओं में सब्सिडी का प्रस्ताव आदि प्रजातंत्र में सामाजिक उपयोग आधार पर समर्थित किये जा सकते हैं । नैतिक विचार को लाने की आवश्यकता नहीं है ।

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