प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री की सूची | List of Eminent Economists in Hindi.
1. विलियम पैटी (William Petty):
पैटी का जन्म हैम्पशायर में 16 दिसम्बर, 1623 को हुआ था । पैटी को राजनीतिक अर्थव्यवस्था और सांख्यिकीय विधि का संस्थापक माना जाता है । वह आर्थिक सिद्धांत के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए याद किया जाता रहेगा । वह परिमाणात्मक रुचि रखता था तथा उसने आर्थिक अन्वेषण में पहली बार यथार्थ- खोज धारणा का विकास किया ।
सांख्यिकी कर्त्ता के रूप में पैटी ने केवल परिमाणात्मक आकड़ों का ही प्रयोग किया तथा सांख्यिकीय तकनीक के रूप में साधारण औसत का उपयोग किया । अर्थशास्त्र के क्षेत्र में पैटी को जो अलग करता है वह सांख्यिकीय विधि नहीं वरन् आर्थिक विचार है जो उसने अपने सांख्यिकी अनुसंधानों से प्राप्त किए । उसके आर्थिक विचार समय और देश की वास्तविक समस्याओं पर अत्यधिक चिन्तन के परिणाम थे । पैटी का आर्थिक सिद्धांत में सबसे बड़ा योगदान प्राकृतिक समता का सिद्धांत था जिसमें उसके लगान तथा मूल्य संबंधी विचार भी सम्मिलित हैं ।
2. जॉन लॉक (John Locke):
जॉन लॉक, ब्रिटिश वर्ग का लेखक था जो 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में आर्थिक विचारों के विकास के लिए उत्तरदायी था । उसकी महत्वपूर्ण कृतियां An Essay Concerning Human Understanding (1690) एवं Some Considerations of the Consequence of Lowering of Interest and Raising the Value of Money थीं ।
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लॉक वणिकवादी विचारों से प्रभावित हुआ एवं विश्वास करता था कि एक देश आयात से अधिक निर्यात करके धनी होगा । लॉक के अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण योगदान उसका मूल्य के श्रम सिद्धांत का आध्यात्मिक न्यायपूर्ण समर्थन और श्रम के मांग एवं पूर्ति सिद्धांत की भौतिकवादी व्याख्या है ।
लॉक का ‘मूल्य का श्रम सिद्धांत’ संपत्ति के सिद्धांत का तार्किक कारण है । संपत्ति मानव का प्राकृतिक आधार है । मनुष्य प्राकृतिक वस्तु पर श्रम लगाता है, उसे प्राप्त करता है एवं उसे संपत्ति बनाता है । इसके अलावा, लॉक ने श्रम के मूल्य का गुण माना । उसके अनुसार, ‘श्रम सभी चीजों में मूल्य का अंतर है’ ।
लॉक प्राकृतिक नियम के सिद्धांत में विश्वास करता था जो उसे आर्थिक क्षेत्र में ले जाता है । मांग एवं पूर्ति का प्राकृतिक नियम वस्तु की सामान्य कीमत का निर्धारण करता है । वह आगे मानता था कि कीमत निर्धारण की सामान्य क्रिया में सरकारी हस्तक्षेप हानिकारक सिद्ध होगा एवं इसे लगाना चाहिए ।
मुद्रा का परिमाण सिद्धांत उसके मूल्य के मांग एवं पूर्ति के सामान्य सिद्धांत की एक विशिष्ट स्थिति है । लॉक ने माना कि मुद्रा की मांग विनिमय के माध्यम के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए असीमित होती है और घरेलू उद्देश्यों के लिए स्थिर होती है । इस प्रकार उसने निष्कर्ष निकाला कि मुद्रा के मूल्य या सामान्य कीमत स्तर का निर्धारण केवल मुद्रा की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है ।
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मान्यता यह है कि मुद्रा की मात्रा में मुद्रा का चलन वेग सम्मिलित है । लॉक के आर्थिक विश्लेषण की कमी यह है कि उसका मूल्य का श्रम सिद्धांत, मूल्य के मांग एवं पूर्ति के सिद्धांत के साथ ही है तथा वह उन्हें संगठित रूप से एकत्रित करने में असफल हुआ ।
लॉक ने वस्तुओं की कीमत पर मुद्रा के खोटापन के प्रभाव का बहुत ही अच्छा विश्लेषण दिया । वह उपयोगी मूल्य को मानता था तथा विनिमय मूल्य की उपेक्षा करता था । उसके अनुसार, ”मुद्रा का मूल्य केवल काल्पनिक ही होता है ।” वह विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य पर जोर देता था ।
उसने अपने ब्याज के सिद्धांत को लगान संबंधी विश्लेषण से व्युत्पन्न किया था । उसने निष्कर्ष निकाला कि जिस प्रकार भूमि के असमान वितरण के कारण वे व्यक्ति जिनके पास कुछ अतिरेक भूमि है, काश्तकार को देकर उससे लगान पाते हैं उसी प्रकार मुद्रा के असमान वितरण के कारण मुद्रा के स्वामी, इसे किराये पर देकर उससे ब्याज प्राप्त करते हैं ।
वह ब्याज के नियंत्रण संबंधी नियमों के विरुद्ध था । वह विश्वास करता था कि चलन में मुद्रा की मात्रा, ब्याज की दर को प्रभावित करती है । उसके मुद्रा पर विचार उन्नत थे तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर विस्तृत थे ।
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एडम स्मिथ का जन्म स्कॉटलैंड के एक छोटे शहर किरकाल्डी में 1723 में हुआ था । वह ग्लासगो एवं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पड़ा तथा गणित, प्राकृतिक दर्शन और नैतिक एवं राजनीतिक विज्ञान में विशेषज्ञता प्राप्त की । उसने ग्लासगो में तर्कशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया और बाद में नैतिक दर्शन का प्रोफेसर बन गया ।
1759 में उसने अपनी पुस्तक Theory of Moral Sentiments, प्रकाशित की जिससे उसको काफी प्रसिद्धि मिली । उसने 1764 में Duke of Bucceleuch का निजी शिक्षक बनना स्वीकार कर किया । ड्यूक के साथ एडम स्मिथ ने यूरोप का भ्रमण किया । यूरोप के भ्रमण के दौरान फ्रांस में वह प्रसिद्ध प्रकृतिवादियों कैने, तुर्गो और वाल्टेयर से मिला ।
स्कॉटलैंड लौटने पर वह अपनी प्रसिद्ध पुस्तक An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations लिखने लग गया जो 1776 में प्रकाशित हुई । 1778 में वह एडिनबर्ग में सीमा शुल्क कमिश्नर नियुक्त किया गया । वह इस पद पर अपनी मृत्यु 1790 तक रहा ।
3. थॉमस रॉबर्ट माल्थस (Thomas Robert Malthus – 1766-1834):
टी. आर. माल्थस का जन्म इंग्लैंड की सरे काउण्टी के राकरी क्षेत्र में 1766 में हुआ था । कैम्ब्रिज में दर्शनशास्त्र एवं धर्मशास्त्र का अध्ययन किया और 1788 में आनर्स के साथ स्नातक किया । शीघ्र ही वह जीसस महाविद्यालय का फैलो बना दिया गया ।
1799 में वह महाद्वीप की यात्रा के लिए चला गया । उसने स्वीडन, नार्वे फिनलैंड एवं रूस की यात्रा की । 1805 में वह लन्दन के निकट हेलीबरी में ईस्ट इंडिया कम्पनी के कॉलेज में इतिहास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था का प्रोफेसर बन गया और अपनी मृत्यु (1834) तक इस पद पर आसीन रहा ।
4. जोसेफ एलोइ शूम्पीटर (Joseph Alois Schumpeter – 1883-1950):
सूम्पीटर का जन्म आस्ट्रिया के मोरेविया प्रांत में 1883 में हुआ था । उसने वियाना विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और 1906 में कानून में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की । कुछ वर्षों तक वकालत करने के उपरान्त उसने अर्थशास्त्र में विशिष्टता करने का निर्णय लिया ।
उसने प्रो. वीजर फिलिपोविच और बॉमबार्वक के अन्तर्गत अर्थशास्त्र का अध्ययन किया । अध्ययन-गोष्ठियों में वह बौअर, सिमेरी और हिल्फर्डिग के सम्पर्क में आया । उसका अध्यापन जीवन 1909 में आरंभ हुआ । उसने जैरनोविट्ज ग्राज (आस्ट्रिया), बोन (जर्मनी), कोलम्बिया और हार्वर्ड (अमेरिका) विश्वविद्यालयों में पढ़ाया । शूम्पीटर अपनी विद्वत्तापूर्ण उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध था ।
वालरस, फिशर, जे.बी.क्लार्क, वीजर और बॉमबार्वक ने शूम्पीटर को प्रभावित किया । उसने कहा कि वालरस के सामान्य संतुलन विश्लेषण का अध्ययन किए बिना कोई भी अच्छा सिद्धांतकार नहीं बन सकता । पूंजीवादी प्रक्रिया के विश्लेषण में वह फिशर और क्लार्क से प्रभावित था । सीमांत उत्पादकता, वस्तुओं का क्रम, अवसर लागत आदि से संबंधित सिद्धांतों में वीजर और बामबार्वक ने उसे प्रभावित किया ।
5. दादाभाई नौरोजी [Dadabhai Naoroji (1825-1917)]:
‘भारत का महान वृद्ध पुरुष’ दादाभाई नौरोजी, भारतीय राष्ट्रवाद के संस्थापकों में से एक थे उनके शिक्षक उन्हें ‘भारत की आशा’ कहते थे । बम्बई के एक पारसी परिवार में जन्मे नौरोजी बम्बई के एलफिन्सटन कॉलेज में प्रथम भारतीय प्रोफेसर नियुक्त हुए ।
वह East India Association (1886) के संस्थापक थे । ब्रिटिश संसद (1893) के सदस्य के रूप में निर्वाचित प्रथम भारतीय थे । रायल कमीशन के प्रथम भारतीय सदस्य थे और उपरोक्त सभी के अतिरिक्त 19वीं शताब्दी के प्रथम भारतीय अर्थशास्त्री थे । वह तीन बार 1886, 1893 और 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
नौरोजी के आर्थिक विचार उनकी पुस्तक Poverty and Un-British Rule in India (1901) से प्राप्त होते हैं । नौरोजी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के प्रभावों का विश्लेषण किया । उन्होंने स्पष्ट किया कि कैसे अंग्रेज, भारतीय संसाधनों के निष्कासन के कारणों और भारत में निर्धनता उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी थे । उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए कुछ उपायों का भी सुझाव दिया ।
6. महादेव गोविन्द रानाडे (Mahadev Govind Ranade – 1842-1901):
महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत में पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है । जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आया उनसे प्रभावित हुआ । रानाडे का जन्म नासिक में 18 जनवरी, 1842 को हुआ था । 1865 में बम्बई विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि लेने के उपरान्त, उन्होंने कानून की उपाधि के लिए स्वयं योग्यता प्राप्त की ।
उन्होंने कुछ समय के लिए बम्बई विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाया, बाद में न्यायिक सेवा में प्रवेश किया और बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए । तभी से उन्हें जस्टिस रानाडे कहा जाने लगा । उन्होंने इस पद पर 1901 में अपनी मृत्यु तक कार्य किया ।
1878 में, रानाडे ने Quarterly Journal का प्रकाशन प्रारंभ किया । 1884 में उन्होंने Deccan Educational Society की स्थापना में सहायता की । सोसाइटी का मुख्य उद्देश्य नयी पीढी को पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करना था, किन्तु साथ ही अंग्रेजी शिक्षकों के राष्ट्र विरोधी स्वभाव से भी दूर रखना था ।
इससे यह स्पष्ट है कि पाश्चात्य शिक्षा के गुणों को मानते हुए रानाडे राष्ट्रवाद की भावना को हानि पहुंचाये बिना अपनाना चाहते थे । रानाडे के मुख्य आर्थिक विचार उनकी अत्यधिक महत्वपूर्ण कृतियों- Essay on Indian Political Economy (1898), और The Rise of Maratha Power (1900) में मिलते हैं ।
7. रमेशचन्द्र दत्त [Ramesh Chandra Dutt (1848-1909)]:
आर.सी.दत्त सुप्रसिद्ध शिक्षित बंगाली परिवार से थे । उसका जन्म 1843 में कलकत्ता में हुआ । 1869 में उन्होंने भारतीय नागरिक सेवा में नियुक्ति प्राप्त की ओर अनेक पदों पर कार्य किया । 1899 में वह इण्डियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
बाद के वर्षों में, वह लन्दन विश्वविद्यालय में भारतीय इतिहास के प्रवक्ता नियुक्त किए गए । दत्त के आर्थिक विचार उनकी दो महत्वपूर्ण पुस्तकों (1) The Economic History of India (2 Volumes) और (2) Famines in India – (2 Volumes) में मिलते हैं । उनकी Economic History of India को गाडगिल ने उपनिवेश साम्राज्य का प्रथम इतिहास कहा ।
इस प्रकार पहली पुस्तक उपनिवेशवाद के अर्थशास्त्र का वर्णन करती है, जबकि दूसरी पुस्तक भारत में कृषि जनसंख्या की दशा और भारत में अकाल के कारणों और उपायों का । आर. सी. दत्त की दूसरी पुस्तक Famines in India भारत में कृषि जनसंख्या की दशाओं का विविध विवरण प्रदान करती है ।
रूस के युवराज क्रोपोटकिन ने दत्त को लिखा था, ”आपकी कृषक जनसंख्या की दशा रूसी कृषकों के बहुत अधिक समान है और अब मेरे मस्तिष्क में यह विचार रहेगा कि रूस तथा यूरोप के किसी भाग में भी कृषि संबंधी दोषों के विरुद्ध जागृति उत्पन्न करने के लिए जो कुछ भी करेंगे वह अप्रत्यक्ष रूप से उन करोडो व्यक्तियों के लिए होगा जिन तक हम बिना प्रेम की भावना से नहीं पहुंच सकते ।”
8. गोपाल कृष्ण गोखले [Gopal Krishna Gokhale (1866-1915)]:
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को रत्नागिरि जिले के कोल्हापुर में हुआ । उन्होंने राजाराम कॉलेज कोल्हापुर; डेकन कॉलेज पूना और एल्फिस्टन कॉलेज, बम्बई में उच्च शिक्षा प्राप्त की । 1886 से 1902 तक उन्होंने फर्गुसन कॉलेज पूना में इतिहास और अर्थशास्त्र पढ़ाया । 1899 में वह बम्बई विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए ।
1901 में वायसराय की कौंसिल के सदस्य बन गए । 1905 में वह इण्डियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए । इसी वर्ष उन्होंने Servants of Indian Society की स्थापना की । वह अनेक बार वैलबाई कमीशन, विकेन्द्रीकरण कमीशन और अन्य उद्देश्यों के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए इंग्लैंड गए । उसका निधन 19 नवम्बर 1915 को हुआ ।
यद्यपि गोखले का जीवन अल्पकालीन था फिर भी उनका जीवन वैभवशाली था । वह 18 वर्ष की आयु में स्त्रातक, 20 वर्ष की अवस्था में प्रोफेसर 22 वर्ष की अवस्था में Provisional Conference के सचिव 24 वर्ष की अवस्था में पूना सार्वजनिक सभा की पत्रिका के सम्पादक, 29 वर्ष की अवस्था में इण्डियन नेशनल कांग्रेस के सचिव 30 वर्ष की अवस्था में वैलबाई कमीशन के एक गवाह, 34 वर्ष की अवस्था में विधान परिषद के सदस्य, 36 वर्ष की अवस्था में Imperial Legislator, 39 वर्ष की अवस्था में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और 3 Servants of India Society के संस्थापक और 46 वर्ष की आयु में Royal Commission on Public Services के सदस्य बने ।
गाँधी गोखले के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे । उन्होंने लिखा- ”वह मेरे लिए जो मैं सभी कुछ एक राजनैतिक कार्यकर्त्ता के रूप में चाहता था- स्फटिक की भांति शुद्ध मेमने की भांति कोमल, शेर के समान बहादुर और अत्यधिक उदार ।”
9. जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru):
जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद में हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर एक अंग्रेज शिक्षक द्वारा हुई । 1905 में उन्हें अध्ययन हेतु इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेजा गया । 1907 में ट्रिनिटी कॉलेज, क्रैम्ब्रिज में प्रवेश लिया, वहां विज्ञान, साहित्य, अर्थशास्त्र और इतिहास का अध्ययन किया ।
1910 में कानून संकाय में कानून की पढ़ाई करके 1912 में बैरिस्टर बन कर भारत लौटे । महात्मा गांधी के संपर्क में आने के कारण उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अग्रणी के रूप में भाग लिया तथा स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने । 27 मई, 1964 को उनका देहावसान हो गया । नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकें – Autobiography, Letters from a Father to his Daughter, Glimpses of World History, Discovery of India और Wither India है ।