पांचवीं और छठी पंचवर्षीय योजनाओं की रणनीतियां | Read this article in Hindi to learn about the strategies of fifth and sixth five year plans in India.

पांचवीं पंचवर्षीय योजना (Fifth Five-Year Plan):

पांचवीं पंचवर्षीय योजना की प्रस्तुति के समय के दौरान दुर्भाग्य से अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक दृश्य में बडे स्तर पर अव्यवस्था थी जिस से विकसित एवं विकासशील देश बहुत प्रभावित हुये । समस्त संसार के राजनैतिक नेता और अर्थशास्त्री इस विफलता से परिचित थे ।

खाद्य पदार्थों, उर्वरकों और तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि ने उन मान्यताओं को गम्भीरतापूर्वक अव्यवस्थित कर दिया जिन पर योजना का प्रारूप आधारित था । श्रीमति इन्दिरा गांधी ने एक समाचार सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये आर्थिक चुनौती के विरुद्ध चेतावनी देते हुये आशा प्रकट की कि, लोग इन समस्याओं का सामना एकता और सहयोग की भावना से करेंगे ।

इन कठिनाईयों के प्रति सरकारी रवैये की रक्षा करते हुये उन्होंने कहा, ”बहुत सी वस्तुओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता । पश्च दृष्टि सदैव सम्भव होती है । निर्धन लोगों ने बहादुरी से चुनौती का सामना किया है । सार्वजनिक वितरण प्रणाली की अनुपस्थिति में इन लोगों को अपना राशन भी न मिल पाता ।”

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तब तक, योजना के कार्यान्वयन पर डा. मिन्हास ने त्यागपत्र दे दिया । इस प्रकार, उन की दलील को एक तरफ रखते हुये, श्रीमति इन्दिरा गान्धी और योजना मन्त्री श्री धर ने औद्योगिक प्राथमिकता का बलिदान करते हुये छोटी योजना को न्योता दिया जिससे आत्मनिर्भरता और अवास्तविक प्रक्षेपण संकट में पड़ गये ।

सितम्बर 1976 में राष्ट्रीय विकास परिषद को सम्बोधित करते हुये प्रधानमन्त्री ने दावा किया कि पांचवीं पंचवर्षीय योजना की पूर्णता को एक उत्साह-वर्धक कार्य करना चाहिये । इस से निश्चित प्रमाण प्राप्त हुआ है कि राष्ट्र ने बहुमुखी समस्याओं को पार कर लिया है, जिन का यह पिछले कुछ वर्षों के दौरान सामना करता रहा है और अब यह विश्वास के साथ विकास की प्रक्रिया को पुन: आरम्भ करने की स्थिति में है ।

स्पष्टतया तीव्र आलोचना के बावजूद योजना ने आत्मनिर्भरता तथा निर्धनता उ?न के उद्देश्यों पर पुन. विश्वास प्रकट किया तथा स्फीति प्रवृतियों को दबाने के लिये उठाये गये कदमों, कृषि सिंचाई, ऊर्जा और सम्बन्धित क्षेत्रों के महत्व का समर्थन किया, नये आर्थिक कार्यक्रमों के कार्यान्वन की इच्छा और साधनों की गतिशीलता की आवश्यकता की इच्छा के लिये राष्ट्र की दृढ़ता और सप्रयोजनता की सराहना की । साथ ही, लोगों के सभी वर्गों से योजना में दर्शाये लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये राष्ट्रीय प्रयत्न में सहयोग करने की प्रार्थना की ।

योजना ने 5.5 प्रतिशत वृद्धि दर के लक्ष्य की प्राप्ति का प्रस्ताव रखा और इसने (क) निवेश का एक उच्च स्तर (ख) दक्षता का उच्च स्तर, (ग) बचत का उच्च स्तर और आय उपभोग स्तरों में असमानता कम करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जो समाज के अधिक समृद्ध वर्गों से आने वाली बचतों के प्रोत्साहन से सम्भव है ।

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53,411 करोड़ रुपयों के कुल व्ययों के विरुद्ध 37,250 करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के लिये उपलब्ध करवाये गये और शेष 16,161 करोड़ रुपये निजी क्षेत्र के लिये निर्धारित किये गये । संक्षेप में पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का प्रयोजन केवल उत्साह-वर्धन था । यह अधिक देर नहीं रहा ।

योजना की अवधि से एक वर्ष पहले इसे 1978-83 के योजना प्रारूप द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया, जिसका निर्माण जनता सरकार द्वारा पुन: निर्मित योजना आयोग ने किया था । एक वर्षीय योजना की छोटी अवधि में विकास के कार्यक्रमों पर 20 सूत्री कार्यक्रम और संजय गांधी के पंच सूत्री कार्यक्रम का छाया पडी रही ।

छठी पंचवर्षीय योजना (Sixth Five-Year Plan):

छठी पंचवर्षीय योजना (1978-83) (केन्द्र में जनता सरकार के शासनकाल में) राष्ट्रीय विकास परिषद ने प्रारूप योजना 1978-83 के दस्तावेज पर प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में 18/19 मार्च, 1978 को विचार-विमर्श किया गया तथा बेरोजगारी दूर करने, निर्धनता और असमानताओं को कम करने और आत्मनिर्भरता को ओर निरन्तर प्रगति जैसे कार्यक्रमों को स्वीकृति दी गई ।

इस से आयोजन की कूटनीति में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देता था । पहली बार, योजना आयोग ने जनसंख्या के निर्धनतम वर्गों के लिये सामाजिक न्याय के इंकार को स्वीकार किया ।

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प्रारूप पंचवर्षीय योजना 1978-83 में वर्णित है, राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि का स्पष्ट दर जिसे पांच या दस वर्षों में प्राप्त किया जा सकता है इतना महत्व नहीं रखता, बल्कि महत्व का विषय यह है कि क्या हम निर्धारित समय ढांचे में लाखों निर्धन लोगों के कल्याण में मापयोग्य वृद्धि सुनिश्चित कर सकते हैं ।

इस लिये, महलनोबिस की भारी उद्योगों के विकास की कूटनीति की निंदा की गई । संशोधित प्राथमिकताओं सहित जनता सरकार की कूटनीति ने गांधी जी की विचारधारा के अनुसार समाधान का समर्थन किया, जिसमें श्रम-गहन तकनीकों पर आधारित कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास पर बल दिया गया है । औद्योगिक विकास के क्षेत्र में एक अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन जो देखा गया वह था निजी क्षेत्र के विस्तार एवं उदार आयातों द्वारा अर्थव्यवस्था का उदारीकरण ।

विकास के लिये प्रभावी कूटनीति निम्नलिखित के सन्दर्भ में है:

(क) प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों का स्पष्ट रूप में निर्माण किया गया तथा जहां अनेक लक्ष्य हैं उन्हें उन के महत्व के क्रमानुसार रखा गया, और यदि उद्देश्यों में असंगति है, तो उनके बीच सामजस्यता निर्धारित की जाये ।

(ख) साधन निर्धारणों का निर्माण उद्देश्यों द्वारा दर्शायी गई प्राथमिकताओं की सहायता के लिये होता है तथा इन निर्धारणों का समर्थन उचित आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों द्वारा किया जाता है ।

(ग) चयनित कूटनीति का अनुकरण लगातार एक ऐसे समय तक किया जाता है जो इसकी सफलता अथवा असफलता स्थापित करने के लिये पर्याप्त हो ।

योजना निर्माताओं ने 10 वर्षों की अवधि में इन उद्देश्यों की प्राप्ति में अपना विश्वास प्रकट किया-बेरोजगारी और अल्प-रोजगारी को दूर करना, जनसंख्या के निर्धनतम वर्गों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना तथा लोगों की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करना । वृद्धि का प्रस्तावित दर 4.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष था । सार्वजनिक व्यय 69,300 करोड़ रुपये प्रस्तावित किया गया अर्थात कुल योजना का 59.7 प्रतिशत ।

फिर, 1980 में कांग्रेस (आई) सत्ता में आई तथा योजना आयोग की पुन स्थापना की गई, शीघ्र ही सरकार ने नई छठी पंचवर्षीय योजना 1980-85 पर कार्य आरम्भ कर दिया । एक आधारभूत पत्र जिसका शीर्षक “Sixth Five Year Plant 1980-85-A Framework” था राष्ट्रीय विकास परिषद की 34वीं बैठक जोकि 30-31 अगस्त 1980 को हुई, में प्रस्तुत किया गया ।

क्योंकि ढांचा दर्शाता था कि योजना का आरम्भ कठिन परिस्थितियों में किया जा रहा है । सौभाग्य से तीव्र स्फीतिकारी दबाव जो सन 1979-80 में विद्यमान थे, ने सन 1980-81 में सुधार के चिन्ह दिखाने आरम्भ कर दिये ।

स्थिति अभी पूर्णतया नियन्त्रण में नहीं कही जा सकता थी, विकास एवं स्थायित्व की आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रभावी आर्थिक नीतियों की व्यवस्था करने के लिये पर्याप्त प्रवीणता तथा कल्पनाशक्ति की आवश्यकता होगी । श्रीमति इन्दिरा गांधी ने देश की अर्थव्यवस्था द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों का खुला प्रकटाव किया ।

निर्धनता, अल्प रोजगार और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान जैसा कि पहली योजनाओं में दर्शाया जा चुका है, तीव्रतापूर्वक विस्तृत होती हुई अर्थव्यवस्था के ढांचे के भीतर नहीं खोजा जा सकता । इस उद्देश्य से योजना काल 1980-85 के दौरान, 5.2 प्रतिशत का नियोजित वृद्धि दर प्राप्त करने के लिये प्रत्येक प्रयत्न करने का सुझाव दिया गया ।

इस वृद्धि दर की सहायता विशेषतया ग्रामीण इलाकों में निर्धनता कम करने के अधिक स्पष्ट सोधनों द्वारा की गई । अतः छठी योजना के दौरान अपनायी गई कूटनीति में कृषि और उद्योग दोनों के लिये एक साथ संरचना को दृढ़ बनाना सम्मिलित था ताकि एसी स्थिति की रचना हो जिसमें निवेश, उत्पादन और निर्मातों की तीव्र वृद्धि हो सके तथा रोजगार के अधिक अवसरों की उपलब्ध्ता के लिये विशेष कार्यक्रम उपलब्ध किये जायें, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों और अव्यवस्थित क्षेत्र में आरम्भ किये जायें ताकि लोगों की न्यूनतम मौलिक आवश्यकताएं पूरी हों ।

योजना ने वर्ष 1979-80 की कीमतों पर 1,58,710 करोड़ रुपयों के कुल निवेश का प्रावधान किया । यह दर्शाता है कि लगभग 94.3 प्रतिशत भाग की वित्त व्यवस्था धरेलु साधनों से की जानी थी । विदेशों से कोष की कुल प्राप्ति लगभग 9,063 करोड़ रुपये थी और घरेलू साधनों से 1979-80 के कीमत स्तर पर 1,49,674 करोड़ रुपये अनुमानित की गई ।

इससे आशा थी कि यह 5.2 प्रतिशत प्रतिवर्ष कुल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर लायेगी । कुल निवेश 1,58,710 करोड़ रुपये था और इसमें से 84,000 करोड़ रुपये (53 प्रतिशत) सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश किया गया तथा शेष 74,710 करोड़ रुपये (47 प्रतिशत) निजी क्षेत्र में निवेश किया गया ।

ऐसे प्रस्ताव करते समय, योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री नारायण दत्त तिवारी ने विशेष रूप में कहा कि योजना की सफलता पूर्णतया इसके कार्यान्वयन की दक्षता, गुणवत्ता और इसकी प्रकृति पर निर्भर करती है । इन उद्देश्यों के लिये कूटनीति का चयन विभिन्न सम्भव वैकल्पिक विकास रूप रेखाओं पर विचार करने के पश्चात उनकी लागतों और लाभों को ध्यान में रखते हुये किया गया ।

वृद्धि पथ के चयन में महत्त्वपूर्ण कूटनीति वर्णनीय हैं, जो निम्नलिखित हैं :

(क) साधनों के प्रयोग और सुधरी उत्पादक दक्षता का संवर्धन ।

(ख) आर्थिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता की प्राप्ति के लिये आधुनिकीकरण की प्रेरणों को दृढ़ करना ।

(ग) निर्धनता और बेरोजगारी के आपतन को क्रमिक कम करना ।

(घ) ऊर्जा के स्थानीय साधनों का तीव्र विकास ।

(ङ) सामान्य रूप में लोगों के जीवन की गुणवत्ता को सुधारना विशेषतया आर्थिक और सामाजिक रूप में पिछड़े हुये लोगों की ओर अधिक ध्यान देना ।

(च) सार्वजनिक नीतियों और सेवाओं का समाज के निर्बल वर्गों के पक्ष में वितरण के आधार का दृढिकरण ।

(छ) क्षेत्रीय असमानताओं में क्रमिक कमी ।

(ज) छोटे परिवार के मानदण्डों की स्वैच्छिक स्वीकार्यता द्वारा जनसंख्या वृद्धि के नियन्त्रण की नीतियों का संवर्धन ।

(झ) परिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय सम्पत्ति की सुरक्षा और सुधार के संवर्धन द्वारा विकास के लघुकालिक एवं दीर्घकालिक लक्ष्यों में सामजस्यता लाना ।

(ञ) शिक्षा, संचार और संस्थानिक कूटनीतियों द्वारा विकास की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों को सक्रिय भागीदार बनाना ।