वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के बीच अंतर | Difference Between Globalization, Liberalization and Privatization in Hindi!
वैश्वीकरण (Globalization in India):
वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक एवं मानवीय घटनाओं की अन्त क्रियाओं की अवधारणा को वैश्वीकरण के रूप में जाना जाता है । इससे आशय विश्व के विभिन्न देशों के बीच परस्पर बढ़ते जुडाव की ओर रुझान से है । यह प्राथमिक तौर पर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, प्रौद्योगिकीय तत्वों का परस्पर आदान-प्रदान है जो समाजों, राष्ट्रों एवं देशों के बीच घटित होता है ।
दूसरे शब्दों में यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समाज अर्थव्यवस्था उत्पादन वितरण व्यापार संस्कृति कला संगीत फैशन परम्पराओं व जीवन शैली के क्षेत्रों में बाहरी प्रभावों के प्रति अपने आप को खोजता है । वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के आर्थिक-समाजिक निहितार्थ बहुआयामी हैं ।
वैश्वीकरण के आर्थिक आयाम अधिक सुप्रकट एवं दूरगामी हैं । लोगों के काम-काज, रोजगार कार्य दशायें, आमदनी, परिवार के सामाजिक स्तर, आजादी और सामाजिक सुरक्षा, संस्कृति, पहचान, महिला सशक्तीकरण पर वैश्वीकरण के नाना प्रकार के प्रभाव होते हैं ।
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यद्यपि देशों का परस्पर जुड़ाव अति प्राचीन काल से जारी है । इस प्रक्रिया को पहली बार २०वीं सदी के उत्तरार्द्ध के आस-पास वैश्वीकरण का नाम दिया गया । वैश्वीकरण पर अधिकतर साहित्य 1970 और 1980 के दशकों के उत्तरार्द्ध से प्रकाश में आया ।
समसामयिक वैश्वीकरण भूतकाल में देखी गई प्रक्रिया से मुख्यतौर पर परस्पर आदान-प्रदान और जुड़ाव के परिणाम के अर्थों में भिन्न है । आज हर चीज पहले की तुलना में अधिक तेज गति से होती है । वैश्वीकरण की मौजूदा प्रक्रिया जिसका आमतौर पर देशों के बीच व्यापार और निवेश के मार्ग में से अवरोधों को क्रमिक रूप से हटाने के रूप में वर्णन किया जाता है जिसका उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा के द्वारा मोटे तौर पर आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये आर्थिक कुशलता हासिल करना है ।
वैश्वीकरण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप आर्थिक वैश्वीकरण है । यह मुख्य रूप से पूंजी श्रम प्रौद्योगिकी आसूचना और उत्पादों के मुक्त आवागमन का परिणाम है जिनसे अर्थव्यवस्था संस्कृति सामाजिक एवं आर्थिक वातावरण प्रभावित होता है ।
वैश्वीकरण में भारतीय बाजार में विदेशी मुद्रा को मुक्त रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के योग्य बनाने में संरक्षात्मक उपायों की समाप्ति जैसी कई विशेषतायें निहित हैं । इसके अतिरिक्त इसका अर्थ बिना अधिक पाबंदियों के विदेशी निवेशों को अनुमति देता है । संक्षेप में यह सीमाहीन विश्व है ।
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इसका अर्थ निर्यात और आयात दोनों को बढ़ाने के लिये आयात शुल्क में कमी करना है । इसमें विश्व माल-सेवाओं श्रम और पूंजी का मुक्त आवागमन तथा विदेशियों से पूर्ण रूप से राष्ट्रीय व्यवहार होता है जिसे आर्थिक तौर पर कहा जाता है कि कोई विदेशी नहीं ।
व्यापारिक कंपनियों की दृष्टि से वैश्वीकरण का अर्थ है कि वे क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने के बजाय, अब लाभ के लिये अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से कच्चा माल श्रम और बाजार प्राप्त कर सकती हैं ।
यदि धनी और विकसित देशों में श्रम और कच्चा माल महंगे होते हैं तो वह उन स्थानों को चुन सकती हैं जहाँ उत्पादन के ये घटक सस्ते हैं । बैंकिगं और बीमा जैसे सेवा क्षेत्रों में इसका आशय संबन्धित आंकड़ों (Data) का महज दूसरे कंप्यूटर को अंतरण करना है ।
आधुनिक वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताएं:
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1. उत्पादन तथा श्रम का मुक्त रूप से एक देश से दूसरे को आयात-निर्यात करना ।
2. विदेशी निवेशकों एवं उद्योगपतियों को अपने नागरिकों की भांति सुविधाएं एवं सम्मान देना ।
3. यह सीमाहीन विश्व (The Borderless World) है, जिसमें पूँजी एवं श्रम को एक देश से दूसरे देश में लाने ले जाने की अनुमति होती है ।
4. आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिलता है ।
5. अन्तर्राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय (मल्टीनेशनल) की प्रक्रियाओं में पारस्परिक सम्बंध स्थापित करना ।
6. अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सूचना, ज्ञापन, खबरों का आदान-प्रदान करना ।
7. उत्पादन का आधुनिकीकरण करना ।
8. वस्तुओं का उत्पादन मांग एवं बाजार को ध्यान में रखकर करना ।
9. उत्पादन मुख्यत: निर्यात के लिये करना ।
10. विचारों, टेक्नोलॉजी का आदान-प्रदान करना ।
11. बड़े पैमाने पर वस्तुओं तथा उत्पादन करना तथा सेवाओं का आदान-प्रदान करना ।
12. श्रम और लोगों का एक देश से दूसरे देश को पलायन (Migration) करना ।
13. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अतंर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund), विश्व बैंक (World Bank) तथा विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) के द्वारा नियंत्रित (Regulate) करना ।
14. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देना (Foreign Direct Investment) |
15. सड़कों बिजली दूरसंचार सेवा तथा मूलभूत सेवाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना ।
उदारीकरण (Liberalization in India):
आर्थिक अभिशासन (Economic Governance) में उदारीकरण को सरकार की भूमिका में आमतौर पर कमी के रूप में परिभाषित किया जाता है । यह आर्थिक क्षेत्रों सरकार की निकासी और निजी क्षेत्र द्वारा उसका प्रतिस्थापन्न है ।
उदारीकरण की मुख्य विशेषताएं:
1. आधारभूत एवं प्रमुख उद्योगों, बैंकिंग, बीमा आदि क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की कमी ।
2. सार्वजनिक सामाजिक सेवाओं, जैसे- शिक्षा, आवास और स्वास्थ्य रक्षा में सरकार की भूमिका में कमी ।
3. निजी क्षेत्र की व्यापक सहभागिता के द्वारा भावी विकास ।
निजीकरण (Privatization in India):
मोटे तौर पर निजीकरण का आशय है – सार्वजनिक स्वामित्व की आस्तियों की क्रमिक रूप से निजी स्वामित्व को बिक्री ।
निजीकरण निम्न तकनीकों में से किसी या सभी को काम में लेकर किया जा सकता है:
1. अंशों की सार्वजनिक बिक्री:
किसी सार्वजनिक सीमित कम्पनी (Public Limited Company) के सारे अंश या उनका हिस्सा जनता को बिक्री के लिये प्रस्तावित किया जाता है ।
2. अंशों की निजी बिक्री:
सार्वजनिक स्वामित्व के उद्यम को पूरा या आशिक तौर पर निजी व्यक्तियों या क्रेताओं के समूह को बेचा जाता है ।
3. सरकारी स्वामित्व के उद्यम में नया निजी निवेश:
निजी अंश निगर्म में निजी या सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा सब्सिडी दी जाती है ।
4. सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रवेश:
सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित क्षेत्रों में निजी समूहों को प्रवेश दिया जाता है, जैसे- भारत में बिजली एवं दूरसंचार क्षेत्र ।
उदारीकरण निजीकरण एवं वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क:
1. भारत में आर्थिक वृद्धि दर आठ प्रतिशत तक बढ़ाना ।
2. वैश्विक चुनौतियों के मुकाबले के लिये औद्योगिक क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता में वृद्धि ।
3. आमदनी एवं संपदा के वितरण से गरीबी और असमानता में कमी ।
4. यह सार्वजनिक क्षेत्र की दक्षता, उत्पादकता एवं लाभ बढ़ाता है ।
5. यह महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देता है ।
6. यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देता है ।
7. यह ज्यादा ग्रामीण एवं नगरीय रोजगार का सृजन करता है ।
वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के विरुद्ध तर्क:
1. द्वितीयक (उद्योगों) एवं तृतीयक क्षेत्रों (Secondary and Tertiary Sectors) की तुलना में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की जाती है ।
2. विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में इस नीति को अपनाया गया है, जिससे इन अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के सामने भारतीय अर्थव्यवस्था के समर्पण के रूप में माना जाता है ।
3. वैश्वीकरण ने विदेशी प्रौद्योगिकी पर देश की निर्भरता बढ़ाई है और यह देशी प्रौद्योगिकी के सुधार में विफल ।
4. वैश्वीकरण ने विदेशी सहायता व कर्ज पर देश की निभर्रता बढ़ाई है ।
5. वैश्वीकरण ने देश की आर्थिक संप्रभुता को क्षति पहुँचाई है ।
6. वैश्वीकरण ने बिना वैकल्पिक रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था किये कामगारों की बड़े पैमाने पर छंटनी (Retrenchment) के द्वारा बेरोजगारी की समस्या को और गंभीर बना दिया है ।
7. निजीकरण पर बहुत अधिक बल दिया जाता है ।
8. विलासिता की वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन के द्वारा वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद व खतरनाक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है ।
9. वैश्वीकरण बढ़ती कीमतों वित्तीय घाटे, सब्सिडी और सरकारी गैर-योजना खर्च की प्रवृत्ति पर रोकथाम में विफल रहा है ।