वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के बीच अंतर | Read this article in Hindi to learn about the differences between globalization, privatization and liberalization.

उदारीकरण के सामाजिक आर्थिक निहितार्थ बहुआयामी हैं । वैश्वीकरण के आर्थिक आयाम ज्यादा सुप्रकट और दूरगामी हैं । लोगों को काम-काज, रोजगार, कार्य दशाएँ, आमदनी, परिवारों के सामाजिक स्तर, समाज, स्वतंत्रता और सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान, महिला सशक्तिकरण पर वैश्वीकरण के बहुत-से प्रभाव होते हैं ।

वैश्वीकरण (Globalization):

वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक और मानवीय घटनाओं की अंतः क्रियाओं की अवधारणा को वैश्वीकरण कहा जाता है । वैश्वीकरण से आशय विश्व के विभिन्न देशों के बीच परस्पर बढ़ते ओर रुझान है ।

वैश्वीकरण प्राथमिक तौर पर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक प्रौद्योगिकीय तत्वों का परस्पर आदान-प्रदान करना है, जो समाजों, राष्ट्रों और देशों के बीच घटित होता है । दूसरे शब्दों में यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समाज अर्थव्यवस्था, उत्पादन, वितरण, सांस्कृतिक, कला, संगीत, फैशन, परंपराओं एवं जीवन-शैली के क्षेत्र में बाहरी प्रभावों के प्रति अपने-आपको खोलता है ।

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वैश्वीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण स्वरूप आर्थिक वैश्वीकरण है । आर्थिक वैश्वीकरण में पूंजी, श्रम, प्रौद्योगिक एवं उत्पादों का मुफ्त आदान-प्रदान होता है । इस प्रकार के मुफ्त आदान-प्रदान से अर्थव्यवस्था, संस्कृति, सामाजिक एवं आर्थिक वातावरण पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है ।

आर्थिक वैश्वीकरण में विदेशी-निवेशों को, विदेशी कर्जों एवं और आदिवासी भुगतानों के अंतः वाह की अनुमति देना है । संक्षिप्त में वैश्वीकरण सीमाविहीन विश्व है । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आयात शुल्कों में कमी की जाती है और अपने देश से विदेशों में पूंजी निवेश करने तथा श्रमिकों को रोजगार दिलाने में आसानी होती है ।

व्यापारिक फर्म की दृष्टि से इसका अर्थ है, किसी क्षेत्रफल या राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने की बजाय, वह अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर अपना कारख़ाना लगा सकती है, विदेशों में कारोबार कर सकती है । बैंकिंग और बीमा जैसे सेवा क्षेत्रों में विदेशों में अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर कारोबार कर सकती है ।

वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताएँ (Characteristics of Globalization):

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1. राष्ट्रिय अर्थव्यवस्थाएँ अधिक खुली एवं ज्यादा गहनता से संघटित हो गई हैं ।

2. वैश्विक व्यापार में वृद्धि हुई है ।

3. विचार, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक तत्वों का आदान-प्रदान उच्चतर गति से होता है ।

4. अंतर्राष्ट्रीय पूँजी प्रवाह में तीव्र गति से वृद्धि हुई है ।

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5. वस्तुओं ओर सेवाओं का भारी मात्रा में आदान-प्रदान हुआ है ।

6. आदान-प्रदान की जाने वाली वस्तुओं में भारी विविधता पाई जाती है ।

7. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नई सेवाओं का प्रवेश हुआ है । उदाहरण के लिए भारतीय वास्तुकार, अफ्रीकी देशों में किसी भवन की अभिकल्पना कर सकता है और कोई जापानी में भवन का खाका एवं निर्माण तैयार कर सकता है ।

8. इंटरनेट एवं मोबाइल फोन ने विश्व भर में कहीं भी तत्काल संप्रेषण को संभव कर सकता है । इससे विभिन्न समाजों के ज्ञान की अभिवृद्धि और विकास की गति में वृद्धि हुई है ।

9. वैश्वीकरण को आर्थिक विकास के घटक के तौर पर देखा जाता है, पर यह देशों के बीच व घरेलू स्तर पर आमदनी के अंतर को बढ़ाने, गरीबी बढ़ाने और पर्यावरण आक्रमण को गहरा करने के लिए जाना जाता है ।

उदारीकरण (Liberalization):

आर्थिक अभिशासन में उदारीकरण को सरकार की भूमिका में आम तौर पर कमी के रूप में परिभाषित किया जाता है । यह आर्थिक क्षेत्रों से सरकार की निकासी और निजी क्षेत्र द्वारा प्रतिस्थापन है ।

उदारीकरण की मुख्य विशेषताएँ:

1. बुनियादी और प्रमुख उद्योगों, बैंकिंग, बीमा आदि में सार्वजनिक क्षेत्र में कमी ।

2. सार्वजनिक सामाजिक सेवाओं; जैसे-शिक्षा, आवास और स्वास्थ्य रक्षा की व्यवस्था में सरकार की भूमिका में कमी ।

3. निजी क्षेत्र की व्यापक सहभागिता के द्वारा भावी विकास ।

निजीकरण (Privatization):

निजीकरण का अर्थ है – सार्वजनिक स्वामित्व की अस्तियों की क्रमिक रूप से निजी स्वामित्व को बेच देना ।

निजीकरण निम्न तकनीकों में से किसी या सभी को काम में लेकर किया जा सकता है:

1. अंशों की सार्वजनिक बिक्री – किसी सार्वजनिक सीमित कंपनी के लिए प्रस्तावित किया जाता है ।

2. अंशों की निजी बिक्री – सार्वजनिक स्वामित्व के उद्यम को पूरा या आंशिक तौर पर निजी व्यक्तियों या क्रेताओं के समूह को बेचा जाता है ।

3. सरकारी स्वामित्व के उद्यम में नया निजी निवेश – निजी अंश निर्गम में निजी या सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा सब्सिडी दे जाती है ।

4. सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रवेश – सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित क्षेत्रों में निजी समूहों को प्रवेश दिया जाता है; जैसे-भारत में बिजली एवं दूरसंचार क्षेत्र ।

5. स्वामित्व सरकार के पास रखते हुए जनउपयोगी सेवाओं को निजी संचालकों या ठेकेदारों को परिचालन और रख-रखाव के लिए अनुबंध पर देना, जैसे-जलदाय, मल-जल निस्तारण आदि अंशों की बजाय निजी बिक्री की तरह सरकारी उद्यम की अस्थियों की बिक्री किसी कंपनी की सहायक इकाइयों का पुनर्गठन या विखंडन ।

उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा निजीकरण के पक्ष में तर्क:

वैश्वीकरण के पक्ष में निम्न तर्क दिये जाते हैं:

1. भारत में आर्थिक वृद्धि दर करीब आठ फीसदी तक बढ़ाना ।

2. वैश्विक चुनौतियों के मुकाबले के लिए औद्योगिक क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता में वृद्धि ।

3. आमदनी और संपदा के वितरण से गरीबी और असमानता में कमी ।

4. यह सार्वजानक क्षेत्र की दक्षता, उत्पादकता और लाभ प्रदाता बढ़ाता है ।

5. यह महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देता है ।

6. यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देता है ।

7. यह ग्रामीण एवं शहरी रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना है ।

वैश्वीकरण के विरुद्ध निम्न तर्क दिये जाते हैं:

1. औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र की तुलना में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की जाती है ।

2. विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के सामने भारतीय अर्थव्यवस्था के समर्पण के रूप में माना जाता है ।

3. वैश्वीकरण ने विदेशी प्रौद्योगिकी पर देश की निर्भरता बढ़ाई है और यह देशी प्रौद्योगिकी के सुधार में विफल रहा है ।

4. वैश्वीकरण ने विदेशी सहायता व कर्ज पर देश की निर्भरता बढ़ाई है ।

5. वैश्वीकरण ने देश की आर्थिक संप्रभुता को क्षति पहुँचाई है ।

6. वैश्वीकरण ने बिना वैकल्पिक रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था किए कामगारों की बडी पैमाने पर छटनी के द्वारा बेरोजगारी की समस्या को और गंभीर बना दिया है ।

7. निजीकरण पर अधिक बल दिया जाता है ।

8. विलासिता की वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन के द्वारा वैश्वीकरण उपभोक्तावाद की खतरनाक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है ।

9. वैश्वीकरण बढ़ती कीमतों (महँगाई) वित्तीय घाटे, सब्सिडी और सरकारी गैर-योजना खर्च की प्रवृत्ति पर रोकथाम में विफल रहा है ।

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