मानवीय पूंजी निर्माण का अर्थ और समस्याएं | Read this article in Hindi to learn about:- 1. मानवीय पूंजी निर्माण का अर्थ (Meaning of Human Capital Formation) 2. ज्ञान का विकास और निपुणता निर्माण (Growth of Knowledge and Skill Formation) 3. समस्याएं (Problems).
मानवीय पूंजी निर्माण का अर्थ (Meaning of Human Capital Formation):
मानवीय पूंजी निर्माण का अर्थ है “ऐसे लोगों की प्राप्ति और उन की संख्या में वृद्धि जिनके पास निपुणताएं, शिक्षा और अनुभव है तथा जो देश के आर्थिक और राजनैतिक विकास के लिये महत्व रखते हैं । अत: एक रचनात्मक उत्पादक साधन के रूप में, यह व्यक्ति और उसके विकास पर निवेश से सम्बन्धित हैं ।”
शुल्ज के अवलोकन अनुसार मानवीय संसाधनों को विकसित करने के पाँच मार्ग हैं:
(क) स्वास्थ्य सुविधाएं और सेवाएं जिनमें जीवन की प्रत्याशित आयु, शक्ति, सहनशक्ति, बल और लोगों की ओजस्वता को प्रभावित करने वाले सभी व्यय सम्मिलित हैं ।
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(ख) नौकरी दौरान प्रशिक्षण जिसमें व्यवस्थित फर्मों द्वारा पुरानी किस्म की प्रशिक्षुता सम्मिलित है ।
(ग) प्राथमिक, द्वितीयक और उच्च स्तर पर औपचारिक रुप में व्यवस्थित शिक्षा ।
(घ) वयस्कों के लिये शिक्षा कार्यक्रम जो फर्मों द्वारा व्यवस्थित नहीं किये जाते जिनमें प्रसारण कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं विशेषतया कृषि में ।
(ङ) परिवर्तनशील रोजगार अवसरों से समायोजन के लिये व्यक्तियों और परिवारों द्वारा स्थानान्तरण ।
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इसमें मस्तिष्क शक्ति सम्मिलित है और उत्पादन की समस्याओं तथा आर्थिक संस्थाओं के सर्वोत्तम संगठन पर व्यवस्थित अनुसंधान लागू करने पर आधारित है ।
“औद्योगिक रूप से उन्नत राष्ट्र का प्रमुख पूंजी भण्डार इसका भौतिक साजो-सामान नहीं है, यह परीक्षित खोजों और आनुभाविक विज्ञान के अन्वेषणों से अर्जित ज्ञान और इस ज्ञान के प्रभावशाली प्रयोग के लिये इसकी जनसंख्या की क्षमता और प्रशिक्षण है ।” –साइमन कुज़नेटस
मानवीय पूंजी निर्माण में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुधार तथा विशेषीकृत निपुणताओं में श्रमिकों के प्रशिक्षण पर निवेश सम्मिलित है । हर्वीसन का मत है कि मानवीय पूंजी निर्माण व्यक्ति तथा उसके रचनात्मक उत्पादक साधन के रूप में विकास से सम्बन्धित है ।
“मानवीय पूंजी निर्माण ऐसे व्यक्तियों की प्राप्ति और उनकी संख्या में वृद्धि की प्रक्रिया है, जिनके पास निपुणताएं, शिक्षा और अनुभव है तथा जो देश के आर्थिक और राजनैतिक विकास के लिये महत्वपूर्ण है ।” –मायर
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मानवीय पूंजी आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । शुल्टज (Schultz), हर्बीसन (Harbison), केन्डिरिक (Kendrick) द्वारा हाल ही में किये गये अध्ययन दर्शाते हैं कि यू.एस.ए. में उत्पादन की वृद्धि का एक बड़ा भाग, बढ़ी हुई उत्पादकता के कारण है जो मुख्यत: मानवीय पूंजी निर्माण का परिणाम है ।
“अब हम औद्योगिक वृद्धि का बड़ा भाग अधिक पूंजी निवेश से प्राप्त नहीं करते परन्तु, व्यक्तियों पर किये गये निवेश और सुधरे हुये लोगों द्वारा लाये गये सुधारों से प्राप्त करते हैं ।” –गेलबरैथ
एडम स्मिथ (Adam Smith) ने देश के निश्चित पूंजी भण्डार में वहां के सभी निवासियों द्वारा प्राप्त की गई लाभप्रद योग्यताओं को भी सम्मिलित किया । तकनीकी ज्ञान और कौशल समाज के अभौतिक साजो-सामान का निर्माण करता है जिसके बिना भौतिक पूंजी का उत्पादन के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता ।
मार्शल शिक्षा को राष्ट्रीय निवेश मानते हैं और मानवीय जीवों में किया गया निवेश समग्र पूंजी से मूल्यवान है । मानवीय पूंजी में निवेश का अभाव अल्पविकसित देशों के धीमे विकास के लिये उत्तरदायी है । अल्पविकसित देश मुख्यत: दो समस्याओं का सामना करते हैं ।
वहां औद्योगिक क्षेत्र के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण निपुणताओं का अभाव होता है तथा अतिरेक श्रम शक्ति होती है । अतिरेक श्रम शक्ति का अस्तित्व महत्वपूर्ण निपुणताओं के प्रभाव के कारण होता है ।
अत: मानवीय पूंजी निर्माण इन समस्याओं के समाधान का लक्ष्य रखता है, इसके लिये व्यक्तियों में आवश्यक निपुणताओं की रचना की जाती है उन्हें उत्पादन का साधन बनाया जाता है और लाभप्रद रोजगार उपलब्ध करवाया जाता है । अल्पविकसित देश न केवल आर्थिक रूप में पिछड़े हुये होते हैं बल्कि उत्पादक अभिकर्ता के रूप में लोगों की गुणवत्ता भी निम्न होती है ।
“आजकल इस बात को अधिक मान्यता दी जाती है कि बहुत से अल्पविकसित देशों के पीछे रहने का कारण बचतों की कमी उतनी नहीं है जितना कि निपुणताओं और ज्ञान का अभाव है जिससे उनकी संस्थानिक संरचना द्वारा पूंजी को उत्पादक निवेश में समाविष्ट करने की क्षमता सीमित हो जाती है ।” –माइन्ट
अल्प विकासित देशों में अप्रशिक्षित श्रम शक्ति की बहुलता और तकनीकी रूप में प्रशिक्षित तथा उच्च शिक्षा प्राप्त कर्मचारियों का अभाव होता है ।
“जबकि उन्नत देशों में मानवीय जीवों में निवेश, विकास का मुख्य स्त्रोत रहा है, अल्पविकसित देशों में मानवीय निवेश की नगण्य राशि लोगों की क्षमता बढ़ाने में सफल नहीं हुई जिससे कि त्वरित विकास की चुनौती का सामना किया जा सके ।” -मायर
ज्ञान का विकास और निपुणता निर्माण (Growth of Knowledge and Skill Formation):
ज्ञान का विकास और निपुणता निर्माण आर्थिक विकास के मौलिक निर्धारक हैं ।
“प्रति व्यक्ति उत्पादन की वृद्धि में अधिक बड़ा कारक है- परीक्षित लाभप्रद ज्ञान के भण्डार को बढ़ाना ।” –साइमन कुज़नेटस
नव-प्रवर्तन आर्थिक विकास का मुख्य कारण है और यह अप्रयुक्त ज्ञान का, उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग है ।
“आर्थिक विकास के समीपस्थ कारण ज्ञान के संचयन और पूंजी के संचयन का पूरा लाभ उठाने के प्रयत्न हैं ।” –लुइस
अल्प विकसित देशों की स्थिति विकसित देशों से भिन्न है । यह देश वैज्ञानिक ज्ञान के क्षेत्र में बहुत पीछे होते हैं । वे इतने निर्धन होते हैं कि वे विकसित देशों से कुछ उधार नहीं ले सकते । अत: इन देशों को अपनी आवश्यकतानुसार तकनीकें आयात करने की और स्वयं अपनी तकनीकें विकसित करने की आवश्यकता होती है ।
औद्योगिक देशों में अनुसंधान निजी दायित्व द्वारा किया जाता है, परन्तु अल्प विकसित देशों में यह सरकार का दायित्व होता है और यह उनकी गतिविधि का मुख्य क्षेत्र होना चाहिये । इन देशों द्वारा प्रत्येक प्रकार के अनुसंधान पर राष्ट्रीय आय का 1/2 से 1 प्रतिशत तक व्यय किया जाता है ।
कोई भी देश परीक्षित लाभप्रद के प्रयोग से उन्नति करता है । किसी समाज में ज्ञान का उपयोग लोगों द्वारा नये विचारों को ग्रहनशीलता पर निर्भर करता है और वह उस सीमा पर भी निर्भर करता है जिस तक संस्थाएं इसकी प्राप्ति और प्रयोज्यता का लाभप्रद बनाती है ।
नये विचारों की स्वीकार्यता विचारों के औचित्य पर भी निर्भर करेगी जोकि स्थानीय स्थितियों के अनुकूल होने चाहिये । यदि नये ज्ञान को स्वीकार करना हैं और इसे उत्पादन में प्रयोग करना है तो यह आवश्यक रूप में लाभप्रद होना चाहिये ।
इसलिये ज्ञान की प्रयोज्यता एक संस्थानिक नमूना चाहती है जो विभेदी प्रयत्न को विभेदी पुरस्कार से त्वरित करता है । ऐसे उद्यमियों, जो नये विचारों की खोज में हैं तथा उन्हें कार्यान्वित करने का जोखिम लेने के लिये तैयार हों, की पर्याप्त पूर्ति एक अन्य आवश्यक शर्त है ।
मानवीय पूंजी निर्माण की समस्याएं (Problems of Human Capital Formation):
मानवीय पूंजी निर्माण की धारणा को शिक्षा में निवेश के संदर्भ में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है । किसी अल्प विकसित देश में आवश्यक मानवीय पूंजी के भण्डार का अनुमान लगाना बहुत कठिन है ।
विकास के आरम्भिक सोपानों पर, विकसित देशों का विकास, मानवीय पूंजी में निवेश के स्थान पर भौतिक पूंजी के निवेश पर अधिक आधारित था, परन्तु अल्प विकसित देशों में, विभिन्न व्यवसायों में शिक्षित व्यक्तियों के रूप में मानवीय पूंजी की आवश्यकता है ।
जहां उद्यमियों, व्यापारिक अधिकारियों, प्रशासकों, वैज्ञानिकों, अभियन्ताओं तथा डॉक्टरों की बहुत आवश्यकता होती है, परन्तु पूर्ति को बढ़ाना कठिन होता है क्योंकि उनका मौलिक कार्य देश के आर्थिक संगठन को अधिक उत्पादक दिशाओं में परिवर्तन करना है न कि एक प्रदत्त संरचना में अपने को स्थापित करना ।
मानवीय पूंजी के संचय दर को न केवल श्रम शक्ति के वृद्धि दर से अधिक होना चाहिये बल्कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भी अधिक होना चाहिये । राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि कि तुलना में मानवीय पूंजी में वार्षिक वृद्धि का अनुपात 3:1 की भांति बड़ा होना चाहिये, अथवा उन देशों में और भी बढ़ा होना चाहिये जहां विदेशी नागरिकों को विकासशील देशों के नागरिकों द्वारा प्रतिस्थापित करना है ।
परन्तु अल्पविकसित देशों द्वारा, विकास के विभिन्न सोपानों पर वांछित मानवीय पूंजी के भिन्न विकास दर खोजने का कोई लाभ नहीं । अधिकांश अल्प विकसित देश शिक्षा का स्तर सुधारने में असफल रहते हैं । उच्च शिक्षा पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाये जाते फलत: हायर सैकण्डरी और कालेज स्तर पर बहुत असफलताएं होती हैं ।
शैक्षिक स्तरों की गिरावट के कारण पूर्व स्नातकों की दक्षता कम हो जाती है और “निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में नियुक्त स्नातक आर्थिक विकास के लिये गतिशील नेतृत्व के निर्माण में अच्छे परिणाम नहीं दर्शाते जिससे मानवीय साधन व्यर्थ होते हैं ।” इसके अतिरिक्त कृषि शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता । ऐसे देशों में सेवा दौरान प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है ।
वयस्क शिक्षा तथा किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों के प्रयोग सम्बन्धी प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है, परन्तु इन शैक्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिये बहुत से अध्यापकों तथा उप-अध्यायों की आवश्यकता होती है जिनकी अल्प विकसित देशों में कमी है ।
अल्पविकसित देशों में राजनीतिज्ञ और प्रशासक अध्यापक वर्ग की नियुक्ति की तुलना में भवनों और साजो-सामान पर बल देते हैं । वास्तव में अल्प विकसित देशों में योग्य व्यक्तियों की अपर्याप्त पूर्ति मुख्य बाधा है ।