विकासशील देशों में जनशक्ति योजना | Read this article in Hindi to learn about manpower planning in developing countries.

विकासशील देशों में आर्थिक विकास की मुख्य बाधा यह है कि तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ-साथ अज्ञान, निरक्षरता, कुपोषण व स्वास्थ्य का निम्न स्तर विद्यमान होता है । इसके कारण गुणात्मक परिवर्तन संभव नहीं होते ।

मानव पूँजी में विनियोग आर्थिक विकास हेतु आवश्यक व प्राथमिक लक्ष्य है । भौतिक पूंजी में किया गया कोई भी विनियोग तब तक व्यर्थ ही होगा जब तक मानव पूँजी में आनुपातिक विनियोग न किया जाए ।

मानवशक्ति विकास हेतु यह सावधानी अपेक्षित है कि आर्थिक नियोजन तथा जनशक्ति नियोजन के मध्य पूर्ण तालमेल विद्यमान हो । आर्थिक विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में नियोजकों को ऐसे उद्योगों का विकास व विस्तार करना चाहिए जिनके लिये देश में कुशल व प्रशिक्षित जनशक्ति उपलब्ध हो ।

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दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में ऐसे उद्योगों का विकास किया जाये जिनके लिए देश में कच्चा माल तो उपलब्ध हो परन्तु चाही जाने वाली मानवशक्ति को समुचित प्रशिक्षण व कौशल प्रदान कर गुणात्मक रूप से सम्पन्न बनाया जायें । स्पष्ट है कि एक देश को तीव्र गति से विकास करने के लिए मानवशक्ति नियोजन को प्राथमिकता देनी होगी ।

विकासशील मुख्यतः दो उद्देश्यों को आधारभूत मानते हैं:

1. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को उद्योग अर्थव्यवस्था के रूप में बदलना ।

2. उत्पादकता एवं प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में वृद्धि करना ।

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किसी भी विकासशील देश की मुख्य समस्या विकास हेतु नियोजन कार्यक्रमों का निर्माण एवं उनका क्रियान्वयन है । विकास की उत्तरोत्तर अगली अवस्थाओं के लिए चाही जाने वाली श्रम शक्ति, कुशलता व तकनीकी योग्यताओं के आंकलन हेतु आवश्यक होगा कि-

(i) श्रम की चालू माँग व पूर्ति पर आधारित उपलब्ध मानवशक्ति का आरंभिक मूल्यांकन किया जाये एवं देश के विकास हेतु बनी योजना के उद्देश्यों के अनुसार भविष्य में चाही जाने वाली मानवशक्ति का अनुमान लगाया जाये ।

(ii) यह ध्यान रखा जाये कि एक समर्थ मानवशक्ति कार्यक्रम के नियोजन एवं प्रबंध हेतु संगठनात्मक एवं सरकारी मशीनरी का रूप कैसा हो ।

(iii) भविष्य में चाही जाने वाली मानवशक्ति के प्रशिक्षण के बारे में एक विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया जाये ।

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वस्तुत: विकास की किसी भी योजना का सफल क्रियान्वयन देशवासियों के दृष्टिकोण एवं सोच पर निर्भर करता है । विकास की प्रक्रिया संसाधनों के आबंटन, आर्थिक क्रियाओं की तकनीक व संगठन के साथ आर्थिक व सामाजिक संस्थाओं के योगदान एवं सांस्कृतिक मूल्यों पर निर्भर करती है ।

सोवियत संघ, यूरोप व अमेरिका ने विज्ञान व तकनीक की उल्लेखनीय प्रगति एवं आधुनिक तकनीकी कुशलता व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त नीतियों पर आश्रित रह कर तीव्र गति से विकास किया ।

जापान, स्विटजरलैंड व नीदरलैंड जैसे देशों ने आर्थिक निर्भरता अपनी प्रशिक्षित जनशक्ति के द्वारा प्राप्त की, यदि एक देश के पास प्रशिक्षित व विकास उन्मुख मानवशक्ति विद्यमान है तब वह प्राकृतिक संसाधनों व मशीनरी को आसानी से जुटा सकता है ।

दूसरी तरफ वह देश जिसके पास भरपूर मानव संसाधन है पर प्रशिक्षित व कुशल मानवशक्ति नहीं है वह आर्थिक विकास के लक्ष्यों को उधार लिए तकनीशियन वैज्ञानिकों व अभियंताओं की सहायता से प्राप्त नहीं कर सकता ।

आर्थिक विकास की आरंभिक अवस्था में विकासशील देश को उच्च स्तरीय मावनशक्ति अर्थात् नियोजकों, प्रशासकों प्रबन्धकों उच्च प्रशिक्षण युक्त तकनीशियन व वैज्ञानिक क्षमताओं पर सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए ।

आर्थिक योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रत्येक देश को समर्थ मेहनती अनुशासित व नियोजित श्रमशक्ति चाहिए । आज के विज्ञान व तकनीकी युग में आर्थिक विकास की प्रक्रिया आवश्यक रूप से वैज्ञानिकों व तकनीशियनों की उपलब्धता पर निर्भर करती है ।

हिलार्ड के अनुसार राष्ट्रीय विकास के लिए जनशक्ति नियोजन आधारभूत रूप से अन्य संसाधनों के बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग की भाँति ही है । यद्यपि वह कुछ विशिष्ट समस्याओं को उत्पन्न करता है लेकिन एक समर्थ संगठनात्मक प्रबंध के सिद्धांत एवं व्यवहार द्वारा राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है ।