निवेश मानदंड: अर्थ और इसके प्रकार | Read this article in Hindi to learn about:- 1. निवेश कसौटियों का परिचय (Meaning of Investment Criteria) 2. निवेश कसौटियों के प्रकार (Types of Investment Criteria) 3. व्यवहारिक प्रयोज्यता (Practical Applications).
निवेश कसौटियों का परिचय (Meaning of Investment Criteria):
निवेश कसौटियों का अर्थ है वह कसौटियां अथवा मार्गदर्शक सिद्धान्त जिन के अनुसार आयोजन प्राधिकरण समाज के निवेश योग्य कोष की कुल राशि को विभिन्न क्षेत्रों में वितरित करता है । निवेश योग्य कोष का, अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वितरण मुख्य समस्या है ।
आस्कर लांगे (Oscar Lange) अनुसार- ”किसी अल्प विकसित देश की समस्या केवल उसे पर्याप्त उत्पादन निवेश सुनिश्चित करना ही नहीं परन्तु उस उत्पादक निवेश को ऐसे मार्गों की ओर निर्देशित करना भी है जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की उत्पादक शक्ति को अति तीव्र वृद्धि उपलब्ध करेंगे ।” निवेश कसौटी का तात्पर्य है चयन करने की नीति ।
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किये जाने वाले निवेश की कुल मात्रा तभी सार्थक बनती है जब उसका दृढ़ निवेश परियोजनाओं के रूप में वर्णन किया जाता है और निवेश आयोजन का कार्यक्रम पहलू, अल्प विकसित देशों में आयोजन की मुख्य समस्या है इसलिये योजना निर्माताओं को साधनों के उद्योग और कृषि के मध्य वितरण, पूँजी वस्तुओं और उपभोक्ता वस्तु के उद्योगों के बीच वितरण तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बीच वितरण सम्बन्धी निर्णय लेना पड़ता हैं ।
विभिन्न क्षेत्रों में निवेश साधनों का बहाव राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों द्वारा प्रभावित होता है । अनेक विकास उद्देश्यों के कारण निवेश साधनों के आबंटन का कार्य बहुत कठिन हो जाता है । लघु काल में यह उद्देश्य संघर्षशील हो सकते हैं अत: निवेश प्राथमिकताएं निर्धारित करने की कोई सरल कसौटी नहीं है ।
अत: भिन्न-भिन्न समयों पर प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार की निवेश कसौटियों का होना आवश्यक है । मायर (Meier) और बाल्डविन (Baldwin) के अनुसार निवेश के सर्वोत्तम निर्धारण के लिये सन्तोषजनक कसौटी स्थापित करना कठिन है ।
इस प्रकार एक विकासशील अर्थव्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य है उपलब्ध साधनों द्वारा इसकी आय में अधिक और तीव्र वृद्धि लाना । इसलिये, एक उचित निवेश कसौटी के चयन की आवश्यकता इसलिये उत्पन्न होती है क्योंकि साधन दुर्लभ है जबकि साध्य असीमित है ।
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दुर्लभ साधनों के वैकल्पिक प्रयोग है और क्योंकि साधनों के आवंटन के पूँजीवादी ढंग और एक अल्पविकसित देश में निवेश निर्णय लेना अधिक न्यायोचित नहीं है । इसलिये विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निवेश साधनों के विवेकशील आवंटन के लिये विभिन्न मानदण्ड प्रस्तुत किये है ।
जो इस प्रकार है:
निवेश कसौटी का अर्थ:
“निवेश कसौटी, निवेश साधनों के सर्वोत्तम उपयोग निर्धारित करने की समस्या से सम्बन्धित है ताकि पूँजी गहनता को न्यूनतम बनाया जा सके, पूँजी एवं रोजगार समावेशन की सामाजिक सीमान्त उत्पादकता को अधिकतम बनाया जा सके ।” –मायर
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निवेश के कारक आवंटन के उद्देश्य (Objectives of Factor Allocation of Investment):
एक विकासशील अर्थव्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य है अपने उपलब्ध स्रोतों द्वारा अपनी आय में बड़ी और तीव्र वृद्धि प्राप्त करना ।
इसलिये निवेश कसौटियों के उद्देश्यों को नीचे संक्षिप्त किया गया है:
(i) आय और सम्पत्ति का समान वितरण;
(ii) अर्थव्यवस्था की सन्तुलित और तीव्र वृद्धि;
(iii) सकल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना;
(iv) विद्यमान साधनों का उचित आबंटन;
(v) भुगतानों के सन्तुलन को ठीक करने के प्रयत्न;
(vi) देश का सर्वपक्षीय विकास;
(vii) भविष्य की पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखना ।
निवेश कसौटियों के प्रकार (Types of Investment Criteria):
i. सामाजिक सीमान्त उत्पादकता की कसौटी (Social Marginal Productivity Criterion):
यह सिद्धान्त हॉलिस बी. चेनरी (Hollis B. Chenery) द्वारा प्रस्तुत किया गया । निवेश की सामाजिक सीमान्त उत्पादकता को निजी निवेशकर्ता को प्राप्त प्रतिफल तथा राष्ट्रीय उत्पादन में निवेश के शुद्ध योगदान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
इस कसौटी के अनुसार परियोजना को उस के सामाजिक मूल्य अनुसार स्थान दिया जाना चाहिये । सीमान्त परियोजना का निर्धारण कुल कोष और सभी निम्न स्तरीय परियोजनाओं के बहिष्करण द्वारा किया जाना चाहिये ।
सामाजिक सीमान्त उत्पाद (SMP) को मापने के लिये चेनरी ने निम्नलिखित विधि का उपयोग किया:
मान लो कल्याण फलन है-
जहां Y = आय पर प्रभाव, B = भुगतानों के सन्तुलन पर प्रभाव D = आय के वितरण पर प्रभाव तथा U = सामाजिक कल्याण का सूचनांक तब निवेश में प्रदत्त वृद्धि के अनुकूल U में वृद्धि को इस प्रकार लिखा जा सकता है-
इसका तात्पर्य है, SMP में वृद्धि आय में परिवर्तन, भुगतानों के सन्तुलन भाग, आय के वितरण आदि के प्रभावों का जोड़ है । सरल व्याख्या के लिये SMP के वर्णन के लिये Y और B को छोड़कर अन्य सभी चरों की उपेक्षा की जाती है । तदानुसार-
गणितीय रूप में “r” राष्ट्रीय आय में वृद्धि की राशि का प्रतिनिधित्व करता है जो विशेष स्थितियों के अंतर्गत भुगतानों के सन्तुलन में एक इकाई के सुधार के समान होगा । इसलिये ”r” घरेलू करन्सी के औसत अधिक मूल्यांकन को, विनियम की विद्यमान दरों पर मापता है ।
यदि r = 0, तो भुगतानों का सन्तुलन साम्यावस्था में होगा, यदि r धनात्मक है (> 0) तो घरेलू करन्सी अधिमूल्यित है । यदि r ऋणात्मक है (> 0) तो घरेलू करम्सी अधोमूल्यित है अल्प विकसित देशों में, आयातों और निर्यातों की सापेक्ष लोचहीनता के कारण r पर्याप्त रूप में शून्य से बड़ा हो सकता है । इस कारण-
जहां सभी परिवर्तनशील चर (B1 और K के बिना) वार्षिक बहाव है:
SMP = एक प्रदत्त उत्पादक प्रयोग में निवेश की सीमान्त इकाई से राष्ट्रीय आय में औसत वार्षिक वृद्धि
K = पूंजी में वृद्धि (निवेश)
X = उत्पादन का बढ़ा हुआ बाजार मूल्य
E = बाह्य मितव्ययताओं के कारण उत्पादन का बढ़ा हुआ मूल्य
M1 = आयत की गई सामग्रियों की लागत
V = घरेलू तौर पर बढ़ा हुआ सामाजिक मूल्य, अर्थात V + X + E – Mi,
L = श्रम लागत
Mi = घरेलू सामग्रियों की लागत
O = ऊपरि व्ययों की लागत
C = घरेलू कारकों की कुल लागत = L + Md + O
Br = भुगतानों के सन्तुलन का कुल प्रभाव = αB1 + B2
α = चालू परिशोधन और चालू ऋणों पर ब्याज दर
B1 = भुगतानों के सन्तुलन पर निवेश का प्रभाव
B2 = भुगतानों के सन्तुलन पर संचालन का प्रभाव ।
इस प्रकार, सामाजिक सीमान्त उत्पाद तीन तत्वों में विभाजित किया जाता है अर्थात:
(क) निवेश की प्रति इकाई के पीछे घरेलू अर्थव्यवस्था में जोड़ा गया मूल्य;
(ख) निवेश की प्रति इकाई के पीछे कुल संचालित लागतें और
(ग) निवेश की प्रति इकाई के लिये भुगतानों के सन्तुलन का प्रीमियम ।
समीकरण (5) को निम्नलिखित अनुसार वर्णित किया जा सकता है:
इस प्रकार SMP सामाजिक मूल्य की लागत पर प्रतिशत सीमान्त मूल्य है
(V-C/V) तथा पूँजी व्यवसाय का दर जमा भुगतानों के सन्तुलन का प्रीमियम । इस प्रकार का समीकरण दर्शाता है कि पूँजी व्यवसाय के दर में कमी को मूल्य सीमान्त में आनुपातिक वृद्धि द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता और विपरीत स्थिति में विलोमत ।
सीमाएं (Limitations):
1. यह विशुद्ध राजकोषीय साधनों द्वारा एक इष्टतम आय वितरण की प्राप्ति की पूर्व कल्पना करता है ।
2. धारणा अस्पष्ट है । सामान्यता अधिक प्रयोज्य होने के बावजूद यह निजी लाभ मानदण्ड से कम निश्चित है ।
3. बाजार मूल्य पूर्णतया सामाजिक मूल्य नहीं दर्शाते तथा इस प्रकार, निवेश से उत्पन्न होने वाली लागतों और लाभों का मात्रात्मक अनुमान बहुत कठिन है ।
4. अनेक वस्तुएं जो परियोजना की कुल लागत में योगदान करती हैं उनकी लागतों को मापना कठिन है ।
5. इस और ध्यान आकर्षित किया जाता है कि भुगतानों के सन्तुलन पर किसी निवेश का प्रभाव इसकी स्थापना और संचालन पर की गई लागतों से ही उत्पन्न नहीं होता बल्कि अधिकाल में विदेशी ऋणों की उपलब्धता, उनके प्रत्याशित बहाव और वापसी की शर्तों से भी होता है ।
6. यह कसौटी संरचनात्मक परस्पर निर्भरता और बाहरी मित्तव्ययताओं के स्वरूप और मूल्य पर ध्यान नहीं देती ।
7. SMP कसौटी उत्पादन के अधिकतमीकरण में सहायता करती है जिस का श्रेय चालू, निवेश प्रयत्न को दिया जा सकता है, परन्तु किसी समय में अन्तिम उत्पाद का क्या होता है यह उस पर ध्यान नहीं देता, जिससे भविष्य की निवेश दर प्रभावित होती है ।
8. हार्वे लीबेनस्टीन इस बात की आलोचना करते हैं कि यह अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास की शक्तियों को उत्पन्न करने की आवश्यकता पर बल नहीं देता । उनके अनुसार प्रति श्रमिक पूँजी की मात्रा को अधिकतम करने और श्रम शक्ति की गुणवत्ता को सुधारने का लक्ष्य होना चाहिये ।
ii. पूँजी के कुल व्यवसाय की कसौटी (Capital Turnover Criterion):
यह मानदण्ड जे.जे. पोलक और एन.एस.बुकॉनन द्वारा प्रस्तुत किया गया था । क्योंकि अल्पविकसित देशों में पूँजी दुर्लभ होती है, इसलिये ऐसी तकनीक का चुनाव किया जाना चाहिये जिस द्वारा पूँजी की प्रति इकाई के प्रयोग से अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो ।
उत्पादन के अधिकतमीकरण के लिये, उच्च पूँजी का व्यवसाय उपलब्ध करने वाली योजनाओं का चुनाव किया जाना चाहिये । ऐसे देशों में जहां पूँजी दुर्लभ है कोष का निवेश ऐसी परियोजनाओं में किया जाना चाहिये । जिनकी पूँजी गहनता निम्नतम हो ।
शीघ्र उत्पादन देने वाली तथा निम्न पूँजी गहनता वाली परियोजनाएं दुर्लभ पूँजी साधनों को अन्य परियोजनाओं में पुननिवेश के लिये उपलब्ध करती हैं । ऐसी परियोजनाएं अल्पविकसित देशों में प्रति साधन अधिकतम रोजगार उपलब्ध करती हैं ।
जहां पूँजी रोजगार समावेशन कसौटी पूँजी के कुल व्यवसाय की कसौटी में मिश्रित हो जाती है । यह एक प्रदत्त क्षेत्र के भीतर परियोजनाओं में से चयन के लिये ही लाभप्रद है ।
सीमाएं (Limitations):
1. यह समय कारक की उपेक्षा करती है । एक विशेष वस्तु लघु काल में कम पूँजी गहन हो सकती और दीर्घकाल में अधिक पूँजी गहन में बदल सकती है ।
2. निर्धन देशों के पूंजी उत्पादन अनुपात का अनुमान लगाना कठिन है, अपर्याप्त आंकड़ों के कारण कई कठिनाइयां होती है ।
3. श्रम गहन तकनीकों का उपयोग उत्पाद को कम कर सकता है जिससे पूँजी का अधिक उपयोग आवश्यक हो जाता है और पूँजी उत्पाद अनुपात बढ़ता है ।
4. कृषि जैसे कुछ उद्योगों में एक निम्न पूँजी उत्पाद अनुपात प्रकट हो सकता है और यदि उर्वरकों जैसी कार्यशील पूँजी को भी स्थिर पूँजी निवेश में शामिल किया जाता है, तो वास्तव में अनुपात ऊँचा हो सकता है ।
5. रोजगार में वृद्धि का तात्पर्य कुल उत्पादन में वृद्धि नहीं है । श्रम गहन और पूँजी बचत वाले निवेश श्रम की उत्पादकता को कुल उत्पादन में किसी वृद्धि के बिना पहले की भान्ति नीचा रख सकते हैं ।
6. श्रम गहन परियोजनाएं अधिक रोजगार उत्पन्न कर सकती हैं परन्तु वह उत्पादकता कम करती है । अत: पूँजी-गहन परियोजनायें अल्पविकसित देशों के लिये बहुत महत्व रखती है यदि हम उत्पादन के स्तर को ऊपर उठाना चाहते है ।
7. इस धारणा में निहित रोजगार के अधिकतमीकरण का तर्क लघुकाल में सही बैठ सकता है । एक पूँजी गहन परियोजना आरम्भ में थोड़े श्रम को रोजगार दे सकती है परन्तु दीर्घकाल में निवेश की प्रति इकाई के पीछे श्रम की मात्रा को अधिकतम बना सकती है ।
8. यह तकनीकें प्राय: निम्न स्तरीय परियोजनाएं उत्पन्न करती है और इन उत्पादों को प्राय: सरकार की आर्थिक सहायता प्राप्त होती है और इनकी उच्च सामाजिक लागतें होती है ।
9. किसी परियोजना के पूरक लाभों पर ध्यान नहीं दिया जाता । सम्भव है कि एक परियोजना अधिक पूँजी गहन हो परन्तु वह अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण पूरक लाभ देती हो जो इसकी उच्च पूँजी लागतों को पछाड़ सकते है । अत: निम्न पूँजी उत्पादन अनुपात वाली परियोजनाएं विकासशील देशों के लिये अधिक महत्व रखती है ।
iii. भुगतान के सन्तुलन की कसौटी (Balance of Payment Criterion):
निवेश परियोजनाओं में भुगतान सन्तुलन का प्रभाव अल्पविकसित देशों में बहुत महत्व रखता है अत: कुछ अर्थशास्त्रियों ने निवेश कोष निर्धारण के लिये भुगतान के सन्तुलन की कसौटी का सुझाव दिया है ।
इस कसौटी अनुसार निवेश का आवंटन इस प्रकार किया जाना चाहिये जिससे भुगतान सन्तुलन पर न्यूनतम विपरीत प्रभाव पड़े अल्पविकसित देशों में भुगतान सन्तुलन की कठिनाइयां इस तथ्य के कारण होती है कि वह पूँजीगत साज-सामान के लिये विदेशों पर अत्यधिक निर्भर होते है ।
इसके अतिरिक्त आयात तथा इस साजो-सामान को चालू हालत में रखने के लिये उन्हें विदेशी विनियम की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के आयातों को बुचानन (Buchanan) ने विदेशी विनियम का स्पष्ट निष्कासन कहा है । निवेश और औद्योगिक-करण के कारण आय में वृद्धि उपभोक्ता वस्तुओं के आयात का कारण बनती है । इनको विदेशी विनियम पर प्रचलन निष्कासन (Circulation drain) कहा जाता है ।
भुगतान सन्तुलन पर प्रभाव के आधार पर पोलक (Polak) निवेश को तीन श्रेणियों में विभाजित करते हैं:
(i) निवेश, उत्पन्न करने वाली वस्तुएं जो किसी देश के निर्यात को बढ़ाती है अथवा पहले आयात की गई वस्तुओं का प्रतिस्थापन करती है । ऐसे निवेश का अगला प्रभाव निर्यात अतिरेक की रचना होगा ।
(ii) देश में पहले बेची गई वस्तुओं अथवा देश से निर्यात की गई वस्तुओं का प्रतिस्थापन सम्बन्धी निवेश । इस प्रकार के निवेश का भुगतान सन्तुलन पर निष्क्रिय प्रभाव होगा ।
(iii) निवेश, जिसका परिणाम देश में पहले बेची गई वस्तुओं में वृद्धि और मांग में अधिकता पर होगा । ऐसे निवेश का भुगतान सन्तुलन पर विपरीत प्रभाव होगा ।
पहले दो किस्मों के निवेशों को वरीयता दी जानी चाहिये क्योंकि उनका भुगतान सन्तुलन पर हितकर प्रभाव होगा । तीसरे प्रकार के निवेश की उपेक्षा की जानी चाहिये । अत: इस मानदण्ड अनुसार, भुगतान सन्तुलन पर न्यूनतम बुरे प्रभाव डालने वाली निवेश परियोजनाओं का चयन आवश्यक है ।
सीमाएं (Limitations):
1. निवेश मौद्रिक आयों को बढ़ाये बिना वास्तविक आयों को बढ़ा सकते है जिन्हें आयातों पर व्यय किया जा सकता है तथा बड़े हुये आयातों का भय तभी होगा जब मौद्रिक आय बढ़ती है ।
2. यदि वास्तविक आय के साथ मौद्रिक आय बढ़ती है तो आयात नहीं बढ़ेंगे ।
3. निवेश कम आयातों का कारण भी बन सकते हैं पहले प्रकार के निवेश को छोड़कर ।
4. हम व्यक्तिगत निवेशों के भुगतान सन्तुलन पर प्रभाव की उपेक्षा नहीं कर सकते, इनके अनेक परोक्ष प्रभाव है जिनकी उपेक्षा की गई है ।
निवेश कसौटी की व्यवहारिक प्रयोज्यता (Practical Applications of Investment Criteria):
विभिन्न परिचर्चित निवेश मानदण्डों में से अल्पविकसित देशों में निवेश साधनों के आवंटन हेतु किसी एक मानदण्ड का सुझाव देना कठिन है । क्योंकि यह देश बहुमुखी समस्याओं का सामना करते है तथा किसी एक कसौटी की प्रयोज्यता सीमित होती है । इसलिये एक उचित कसौटी का चुनाव किसी देश में विद्यमान परिस्थितियों और समस्याओं पर निर्भर करेगा ।
इसके अतिरिक्त निवेश कसौटी की व्यावाहारिक प्रयोज्यता निम्नलिखित कारकों द्वारा सीमित हो सकती है:
1. एक निवेश नीति के उद्देश्य की सही परिभाषा करना कठिन है । अनेक परस्पर विरोधी उद्देश्य सकते हो सकते है तथा उनमें से सर्वाधिक वांछनीय का चयन कठिन हो सकता है ।
2. विभिन्न लेखकों द्वारा प्रस्तावित निवेश के नियम सिद्धान्तों के रूप में त्रुटिपूर्ण हैं । यह सन्देहपूर्ण है कि क्या निवेश की जटिल समस्याओं के सम्बन्ध में किसी दृढ़ सिद्धान्त का निर्माण सम्भव भी है या नहीं ।
3. निवेश कसौटी प्राय: असफल हो जाती है क्यों निवेश परियोजनाओं के विभिन्न पहलू माप योग्य नहीं होते ।
इन सब कठिनाइयों के बावजूद, निवेश कसौटी अल्पविकसित देशों में जिनमें भारत भी सम्मिलित है, साधन आवंटन के कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । मायर और बाल्डविन के शब्दों में- “अन्त में कसौटी व्यापक आर्थिक एवं उद्देश्यों पर निर्भर करती है । आवश्यक है कि केवल कारक पूर्ति की विद्यमान राशियों और मात्राओं पर विचार न किया जाये बल्कि परियोजना के विभिन्न विपरीत प्रभावों तथा भिन्न-भिन्न समयों पर राष्ट्रीय आय पर भी विचार किया जाये । बाजार की स्थितियां, परिमाप की मितव्ययताओं की प्राप्ति की योग्यता, उत्पादन काल की अवधि, आय के वितरण और प्रतिव्यक्ति आय के स्तर और आवश्यकताओं के संतुलन पर प्रभावों की मांग करती है ।”