पुनर्निवेश मानदंड और इसकी आलोचनाएं | Read this article in Hindi to learn about the reinvestment criterion in economic development and its criticisms.

यह मानदण्ड डब्ल्यु गेल्नसेन (W. Galenson) और हार्वे लीबेनस्टेन (Harvey Leibenstein) द्वारा प्रस्तुत किया गया । यह अल्प विकसित देशों में निवेश आवंटन की समस्या से व्यवहार करता है । इसे त्वरित वृद्धि कसौटी अथवा सीमान्त प्रतिव्यक्ति निवेश भागफल भी कहा जाता है ।

पश्चात् कथित को- ”शुद्ध उत्पादकता प्रतिश्रमिक प्रति व्यक्ति उपभोग” के रूप में परिभाषित किया जाता है । यह कसौटी वर्तमान के स्थान पर भविष्य में प्रतिव्यक्ति उत्पादन के अधिकतमीकरण पर बल देती है ।

इसलिये आवश्यक है कि चालू लाभों में से बचतों और पुनर्निवेश द्वारा चालू सम्भाव्य वृद्धि को अधिकतम बनाया जाये और इसकी प्राप्ति के लिये बचत कर्त्ताओं और व्ययकर्त्ताओं के बीच आय के वितरण के लिये उचित तकनीक का चयन करना होगा । गेल्नसेन और लीबेनस्टेन ने सीमान्त प्रतिव्यक्ति पुनर्निवेश भागफल की धारणा को अल्पविकसित देशों में निवेश के लिये कसौटी के रूप में प्रस्तुत किया है ।

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उनके अनुसार- ”निवेश साधनों के सर्वोत्तम आवंटन की प्राप्ति पूँजी के MRQ को इसके विभिन्न वैकल्पिक उपयोगों में बराबर करके की जा सकती है ।” श्रम उत्पादकता पूँजी श्रम अनुपात का फलन है । यह अनुपात जितना ऊँचा होगा श्रम उत्पादकता उतनी ही ऊँची होगी ।

बदले में, पूँजी श्रम अनुपात मुख्यता चालू निवेश से लाभों का फलन है और लाभ तभी अधिकतम होंगे जब उच्च पूँजी श्रम अनुपात मुख्यता चालू, निवेश से लाभों का फलन है और लाभ तभी अधिकतम होंगे जब उच्च पूँजी गहन तकनीक अपनाई जायेगी और इसकी प्राप्ति के लिये हम ऐसी निवेश कसौटी को अपनाते है जो प्रति व्यक्ति निवेश को अधिकतम बनायेगी ।

अत: निवेश की गई पूँजी की प्रति इकाई के लिये पुनर्निवेश के दर को निम्नलिखित अनुसार दर्शाया जा सकता है:

r = निवेश की गई प्रति इकाई पूँजी के लिये पुनर्निवेश का दर; (Rate of Reinvestment per Unit Capital Invested)

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p = प्रति इकाई पूँजी के पीछे निबल उत्पादन; (Net Output per Unit of Capital)

e = प्रति इकाई पूँजी के लिये नियुक्त श्रम; (Labour Employed per Unit of Capital)

w = मजदूरी की वास्तविक दर; (The Real Wage Rate)

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k = प्रति इकाई पूँजी की लागत; (Cost of Unit Capital)

यह कल्पना की जाती है कि सभी लाभों का पुन: निवेश किया जाता है और सभी वेतनों का उपभोग किया जाता है । इसलिये उपरोक्त समीकरण में ‘r’ लाभ की दर तथा पुनर्निवेश का भागफल दोनों ही है ।

पूँजी का श्रम से अनुपात बढ़ाने के लिये, प्रति व्यक्ति उत्पादन सम्भाव्यता और प्रति व्यक्ति निवेश योग्य अतिरेक आवश्यक है । गेल्नसेन और लीबेनस्टेन उन देशों में भी पूँजी गहन तकनीकों का पक्ष करते हैं जहां पूँजी की प्रारम्भिक दुर्लभता और श्रम की बहुलता है ।

अल्पविकसित देशों का उत्पादन बढ़ाने के लिये एक महान आरम्भिक प्रयत्न करने की आवश्यकता होती है तथा यह प्रयत्न विकास की अति प्रारम्भिक स्थिति में किया जाना चाहिये यह प्रयास ऐसा होना चाहिए कि प्रति व्यक्ति आय का स्तर पर्याप्त ऊंचा हो ताकि बचत और पूँजी निर्माण का स्तर कायम रखा जा सके ।

लाभ जितना बड़ा होगा बचतें उतनी ही ऊँची होगी । फलत: निवेश के लिये अधिक पूँजी उपलब्ध होगी और उत्पादन में वृद्धि होगी । रेखाचित्र 7.1 में इसकी व्याख्या की गई है ।

 

उत्तर पूर्वी चतुर्भुज द्वारा नये निवेश और परिणामित रोजगार N में परिवर्तन को NK, द्वारा दिखाया जाता है । N उस सम्बन्ध को दर्शाता है जब एक पूँजी गहन तकनीक का प्रयोग किया जाता है और NL जब श्रम गहन तकनीक प्रयोग किया जाता है । उत्तर पश्चिमी चतुर्भज रोजगार और उत्पादन के बीच सम्बन्ध दर्शाती है ।

OK इस सम्बन्ध को पूँजी गहन तकनीक द्वारा दर्शाता है और OL श्रम गहन तकनीक को । यदि नये निवेश की मात्रा OI है, तो पूँजी गहन तकनीक IF रोजगार की रचना करती है जबकि श्रम गहन तकनीक 10 रोजगार की रचना करती है । परन्तु श्रम गहन तकनीक केवल OL उत्पादन उत्पन्न करती है जबकि पूँजी गहन तकनीक बड़ा उत्पादन ON उत्पन्न करती है ।

इस प्रकार पूँजी गहन तकनीक कम रोजगार परन्तु अधिक उत्पादन की रचना करती है, जबकि श्रम गहन तकनीक अधिक रोजगार परन्तु कम उत्पादन उत्पन्न करती है । इस प्रकार यह कसौटी पूँजी गहन परियोजनाओं के पक्ष में है जहां मजदूरी के ऊपर अतिरेक होगा, अत: प्रति व्यक्ति पुर्न निवेश उच्चतम होगा ।

आलोचना (Criticism):

आलोचना के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन नीचे किया गया है:

1. इस कसौटी के आय वितरण और रोजगार पर विपरीत प्रभाव होंगे । बहुत से देशों में आय की असमानताओं और बेरोजगारी को कम करना आयोजन के मुख्य उद्देश्य हैं । इस लिये MRQ कसौटी इन देशों में नहीं अपनायी जा सकती ।

2. यह पूँजी की सीमान्त उत्पादकता के नियम के विरुद्ध है । जैसे ही क्रमिक खुराकों में पूँजी को बढ़ाया जाता है तो एक बिन्दु आता है जहां उत्पादकता कम होनी आरम्भ हो जाती है अत: प्रतिव्यक्ति उत्पादन में गिरावट आती है ।

3. यह निवेश पर भुगतान सन्तुलन के प्रभाव पर विचार नहीं करती । एक अल्पविकसित देश में पूँजी वस्तुओं की बहुत दुर्लभता होती है जिन्हें आयात करना पड़ता है जिससे भुगतान सन्तुलन की पहले से बिगड़ी हुई स्थिति और भी बिगड़ जाती है ।

4. यह उपभोग के महत्व की उपेक्षा करता है, बल्कि उसमें कटौती का समर्थन करता है । परन्तु भविष्य में उपभोग की तुलना वर्तमान का उपभोग अधिक महत्व रखता है तथा समाज के हित में पुनर्निवेश योग्य अतिरेक में कटौती करनी पढ़ सकती है । पूँजीगत वस्तुओं के पक्ष में उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र की अज्ञानता अर्थव्यवस्था और राज्य दोनों के लिये गम्भीर परिणामों से भरपूर है ।

5. उच्च पूँजी गहन तकनीकों को अपनाने से अल्प विकसित देशों में कुछ व्यवहारिक कठिनाईयां उत्पन्न हो सकती है । इन देशों में प्राय: पूँजी का अभाव होता है तथा इस कारण उनके लिये पूँजी गहन परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित करना सम्भव नहीं होता । निपुण श्रम शक्ति और उद्यमीय योग्यता का अभाव अन्य कठिनाइयां उत्पन्न कर सकता है ।

6. निवेश की पूँजी गहनता उपलब्ध पूँजी साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग सुनिश्चित नहीं करती । यह पूँजी साधनों के ऐसे अदक्ष आबंटन में परिणामित हो सकती है कि आय में वृद्धि बहुत कम होगी ।

7. ऐसे निवेश के चयन से वृद्धि दर को अधिकतम नहीं किया जा सकता जिसका प्रति पूँजी इकाई पुन: निवेश योग्य लाभ ऊँचा हो । ए. के. सेन दर्शाते हैं कि उच्च पुनर्निवेश लब्धि सहित निवेश का चयन मात्र आर्थिक वृद्धि की उच्च दर सुनिश्चित नहीं कर सकती ।

पूंजी की प्रति इकाई अतिरेक बड़ा हो सकता है परन्तु यदि उत्पादन में व्यस्त लोगों की उपभोग की प्रवणता बढ़ जाती है, तो निवेश योग्य अतिरेक विपरीत प्रभावित होता है ।

8. यह कसौटी एक विकासशील अर्थव्यवस्था के सामाजिक कल्याण उद्देश्यों का उल्लंघन करती है । इस कसौटी को अपनाये जाने से सम्पदा लाभ अर्जन करने वाली श्रेणी के हाथों में केन्द्रित हो जायेगी । इसके परिणामस्वरुप श्रम भी अव्यवस्थित होता है, जो कि विकासशील समाज के मानदण्डों के विरुद्ध है ।

9. पुर्ननिवेश कसौटी का प्रयोग, ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में आय के असमान वितरण की समस्या को बढ़ाता है । आय के वितरण की असमानता की मात्रा मजदूरी अर्जन करने वालों और पूँजीपतियों के बीच और तुरन्त रोजगार प्राप्त करने वालों तथा जो बिना रोजगार रह जाते है के बीच बड़ी होती है ।

10. ओ. एक्स्टेन (O. Eckestein) का मत है कि नियोजित निवेश के लिये पुनर्निवेश कसौटी पर निर्भर रहने के स्थान पर, ऐसे आय वितरण की प्राप्ति के लिये राजकोषीय उपायों का प्रयोग बेहत्तर होगा जो निवेश कार्य के लिये पर्याप्त बचत उपलब्ध करेंगे ।

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