जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल | Read this article in Hindi to learn about:- 1. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल के प्रस्तावना (Introduction to J.E. Meade’s Model of Economic Growth) 2. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की मान्यताएँ (Assumption of J.E. Meade’s Model of Economic Growth) and Other Details.
Contents:
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल के प्रस्तावना (Introduction to J.E. Meade’s Model)
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की मान्यताएँ (Assumption of J.E. Meade’s Model)
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की व्याख्या (Explanation of J.E. Meade’s Model)
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि की दर में परिवर्तन (Changes in the Rate of Economic Growth)
- सतत् या अविरत आर्थिक वृद्धि का पथ (Path of Steady Economic Growth)
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of J.E. Meade’s Model)
- जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की चित्रात्मक निरूपण (Diagrammatic Representation of J.E. Meade’s Model)
1. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल के प्रस्तावना (Introduction to J.E. Meade’s Model):
प्रो.जे.ई. मीड ने अपनी पुस्तक A Neo-Classical Theory of Economic Growth (1961) में आर्थिक वृद्धि के नव-प्रतिष्ठित विश्लेषण को प्रस्तुत किया । उन्होंने सतत या अविरत वृद्धि की प्रक्रिया को समझाया ।
प्रो. मीड ने एक अर्थव्यवस्था में होने वाली वृद्धि को मुख्य रूप से पूँजी संचय, श्रम शक्ति की वृद्धि एवम् तकनीकी प्रगति से संबंधित किया । मीड के अनुसार पूंजी संचय, बचतों के द्वारा सम्भव होता है जो वर्तमान आय से प्राप्त होती है । इससे उत्पादन के पूँजीगत उपकरणों के स्टाक में वृद्धि होती है । श्रम शक्ति में होने वाली वृद्धि से अभिप्राय है, कार्यकारी जनसंख्या में होने वाली वृद्धि । संसाधनों की एक दी हुई मात्रा पर समय के अनुरूप उत्पादन में वृद्धि को तकनीकी प्रगति के द्वारा बढ़ाया जाना संभव बनता है ।
ADVERTISEMENTS:
प्रो. मीड ने एक प्रतिष्ठि आर्थिक प्रणाली या एक पूर्ण प्रतिस्पर्द्धि अर्थव्यवस्था में संतुलित वृद्धि की प्रक्रिया के अधीन व्यवहार को विश्लेषित किया, जबकि वास्तविक पूँजी का संचय किया जा रहा हो, श्रम शक्ति बढ़ रही हो तथा तकनीकी प्रगति सम्भव बन रही हो । मीड उन दशाओं में स्थिर प्रगति की दशाओं की व्याख्या करते हैं जब जनसंख्या निश्चित अनुपातिक दर से बढ़े एवं तकनीकी प्रगति स्थिर हो ।
2. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की मान्यताएँ (Assumption of J.E. Meade’s Model of Economic Growth):
मीड का विश्लेषण निम्नांकित मान्यताओं पर आधारित है:
i. बंद अर्थध्यवस्था की कल्पना की गयी है अर्थात् अन्य देशों के साथ कोई आर्थिक या वित्तीय सम्बन्ध अनुपस्थित होते हैं ।
ii. अर्थव्यवस्था अबन्ध नीति का अनुसरण करती है, अर्थात् प्रतियोगिता की दशाएँ विद्यमान है तथा करारोपरण एवं सार्वजनिक व्यय जैसी कोई सरकारी आर्थिक किया सम्पन्न नहीं होती ।
ADVERTISEMENTS:
iii. अर्थव्यवस्था में पैमाने के स्थिर प्रतिफलों की दशा के अधीन उत्पादन होता है ।
iv. अर्थव्यवस्था में केवल दो वस्तुओं का उत्पादन होता है जिसमें एक उपभोग वस्तु तथा दूसरा पूँजीगत वस्तु है । उत्पादन में उपभोग वस्तुओं एवं उत्पादन वस्तुओं के मध्य पूर्ण प्रतिस्थापनीयता विद्यमान होती है ।
v. मशीन पूँजी का एकमात्र रूप है । मशीन के अतिरिक्त उत्पादन के अन्य दो साधन भूमि एवं श्रम हैं जिन्हें पूर्ण रोजगार की अवस्था में माना गया है ।
vi. उपभोग वस्तुओं की मौद्रिक कीमतें स्थिर हैं अर्थात् जीवन लागत निर्देशांक को स्थिर माना गया है ।
ADVERTISEMENTS:
vii. समस्त मशीनें एक प्रकार की हैं तथा श्रम का मशीनों के साथ अनुपात आसानी के साथ अल्प या दीर्घकाल में बदला जा सकता है । प्रो. मीड ने इस मान्यना को मशीनरी की पूर्ण आघात वर्द्धनीयता कहा ।
viii. मशीनों के एक दिए हुए स्टॉक में (भले ही वह नयी ही या पुरानी) प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ क्षरण एवं घिसावट आती है । इसे मीड ने वाष्पन के द्वारा घिसावट कहा ।
3. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की व्याख्या (Explanation of J.E. Meade’s Model of Economic Growth):
मीड ने उपर्युक्त मान्यताओं के सन्दर्भ में अर्थव्यवस्था में संतुलित वृद्धि की दशाओं को अभिव्यक्त किया ।
प्रो. मीड के अनुसार अर्थव्यवस्था का शुद्ध उत्पादन मुख्यत: चार घटकों पर निर्भर करता है:
i. एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मशीनों के स्टॉक की शुद्ध मात्रा ।
ii. उत्पादन रोजगार हेतु उपलब्ध श्रम की मात्रा ।
iii. उत्पादक कार्यों हेतु उपलब्ध भूमि प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा ।
iv. तकनीकी ज्ञान का स्तर जिसमें समय के अनुरूप सुधार होता है ।
शुद्ध उत्पादन एवं उपर्युक्त चार निर्धारकों के मध्य सम्बन्ध को निम्न उत्पादन फलन द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है:
Y = F (K, L, N, t) …(1)
जहाँ Y = शुद्ध उत्पादन या शुद्ध वास्तविक राष्ट्रीय आय
K = पूँजी का विद्यमान स्टाक
L = श्रम की मात्रा
N = भूमि की मात्रा
t = समय जिसके अनुरूप तकनीकी प्रगति सम्भव होती है ।
समीकरण 1 से स्पष्ट है कि एक निश्चित समय अवधि में शुद्ध उत्पादन में होने वाली वृद्धि K, L, N व t में होने वाली वृद्धि पर निर्भर करती है ।
यदि भूमि या उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन N स्थिर हो तब शुद्ध उत्पादन में वृद्धि K, L या t में होने वाली वृद्धि पर निर्भर करती है ।
अत: एक समय अवधि में आय में होने वाली वृद्धि ∆Y निम्न तीन प्रकार सम्भव है:
1. मशीनों के स्टॉक K की मात्रा में वृद्धि सम्भव है, क्योंकि द्वारा अपनी आय के एक भाग को बचाया जा रहा है । इस प्रकार वास्तविक पूँजी का संचय हो रहा है । यदि एक वर्ष में पूँजी के स्टॉक में होने वाली वृद्धि ∆K हो तो उत्पादन में V∆K की वृद्धि होगी जहाँ V पूँजी का सीमान्त उत्पाद या एक मशीन की सीमान्त शुद्ध भौतिक उत्पादकता है ।
2. कार्यशील जनसंख्या L में होने वाली वृद्धि । यदि श्रम उत्पादकता की मात्रा में होने वाली वृद्धि एक वर्ष में ∆L हो तथा श्रम का सीमान्त उत्पाद W हो तब एक वर्ष में उत्पादन में होने वाली वृद्धि W∆L द्वारा निरूपित होगी ।
3. शुद्ध उत्पादन में तब भी वृद्धि हो सकती है जब तकनीकी प्रगति सम्भव हो । यदि तकनीकी प्रगति के कारण एक वर्ष में शुद्ध उत्पादन में होने वाली वृद्धि ∆Y’ हो तब, एक वर्ष में शुद्ध उत्पादन में होने वाली वृद्धि उपर्युक्त तीनों प्रभावों के योग द्वारा अभिव्यक्त होगा, अर्थात्
समीकरण 5 प्रदर्शित करता है कि प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि दर (y – l) तीन घटकों का परिणाम है ।
1. यह वास्तविक पूंजी की वृद्धि दर (K) जो इसके समानुपाती सीमान्त उत्पाद या शुद्ध राष्ट्रिय आय के उस अनुपात जो एक प्रतिस्पर्द्धी सन्तुलन में लाभों को प्रदान किया जाता है (U) से भारित है अर्थात् UK घटक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करता है ।
2. कार्यशील जनसंख्या की वृद्धि दर (l) जो एक ऋण श्रम के आनुपातिक सीमान्त उत्पाद (1-Q) से भारित है अर्थात् (1-Q) l घटक प्रति व्यक्ति आय में कमी करता है । इससे स्पष्ट है कि भूमि एवं पूँजी सन्यन्त्रों की एक दी हुई मात्रा में अनिक से अधिक श्रम इकाइयाँ लगाने पर श्रम के हासमान प्रतिफल की दशा प्राप्त होती है ।
3. तकनीकी प्रगति की दर (r) जो प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि की कारक है । उत्पादन की वृद्धि दर को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण घटक अर्थव्यवस्था में पूँजी संचय की वार्षिक दर है । पूँजी संचय बचत द्वारा संभव होती है । अत: बचत को सम्मिलित करने के लिए हम UK घटक पर विचार करते हैं ।
4. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि की दर में परिवर्तन (Changes in the Rate of Economic Growth in J.E. Meade’s Model):
प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय की वृद्धि दर के मुख्य निर्धारकों को स्पष्ट करने के उपरान्त मीड उन दशाओं की व्याख्या करते है जिनके अधीन वृद्धि दर स्वयं बढ़ने अथवा घटने की प्रवृति रखती है । मीड ने आधारभूत वृद्धि सम्बन्ध के अधीन जनसंख्या की वृद्धि दर (l) एवम तकनीकी ज्ञान (r) को दिया हुआ एवम् स्थिर माना तथा यह कहा कि ये घटक बर्हिजात अनार्थिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होते हैं ।
आधारभूत वृद्धि समीकरण y – l = SV – (1 – Q) l + r में जब l एवम r को दिया हुआ तथा स्थिर मान लिया है जब Y में होने वाला परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि VS या UK एवम Q पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ।
मीड ने एक विशेष दशा प्रस्तुत की जिसके अधीन जनसंख्या स्थिर है अर्थात् l = 0, इस प्रकार आधारभूत समीकरण Y – l = SV – (1 – Q) l + r में l = 0 रखने पर y = VS + r स्पष्ट है कि वास्तविक आय में वृद्धि की दर पूँजी संचय VS एवम् तकनीकी प्रगति (r) पर निर्भर करती है ।
यदि तकनीकी प्रगति की दर (r) को स्थिर माना जाये तो प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि समय के साथ VS बढ़ रहा है अथवा घट रहा है । जनसंख्या की दर के स्थिर रहने की मान्यता के आधार पर मीड ने उन घटकों को स्पष्ट किया जो VS में वृद्धि के उत्तरदायी बनते हैं ।
यह घटक निम्न हैं:
i. तकनीकी प्रगति की एक उच्च दर का विद्यमान होना ।
ii. तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप मशीनों का अधिक प्रयोग ।
iii. वास्तविक आय के बढ़ने पर बचत मात्रा का अधिक होना ।
iv. लाभ का अधिकांश अनुपात बचतों के रूप में रखा जाना ।
कुल राष्ट्रीय आय या उत्पादन पर तकनीकी प्रगति के प्रभाव का विश्लेषण चित्र 1 की सहायता से किया गया है । X अक्ष में मशीनरी का कुल स्टॉक K एवम y अक्ष में वार्षिक शुद्ध उत्पादन y को प्रदर्शित किया गया है । वक्र F1K उत्पादन फलन है जो एक वर्ष की अवधि में लिए गए उत्पादन की मात्रा को प्रदर्शित करता है । जिसे तकनीकी ज्ञान के दिए होने पर, मशीनरी की दी हुई मात्रा द्वारा उत्पादित किया जाता है ।
इससे तात्पर्य है कि यदि पहले वर्ष मशीनरी की मात्रा है तो इस उत्पादन स्स होगा । न बिंदु पर वक्र कहि का बाल मशीनरी के सीमान्त उत्पाद को प्रदर्शित करता है । जैसे-जैसे हम इस वक्र के दाएँ जाते है, मशीनरी का सीमान्त उत्पाद गिरता जाता है । इसका कारण यह है कि मशीनरी पर प्रतिफल का गिरता हुआ नियम लागू होता है । अत: बिंदु G पर मशीनरी का सीमान्त उत्पाद बिंदु A की तुलना में कम होगा ।
तकनीकी प्रगति के कारण दूसरे वर्ष में उत्पादन फलन रेखा OF2 के द्वारा प्रदर्शित होगा । चित्र से स्पष्ट है कि मशीनों की OD मात्रा का प्रयोग करने पर दूसरे वर्ष उत्पादन DA से बढ़कर DB हो जाएगा ।
तकनीकी प्रगति की दर (r) AB/AD के द्वारा दी हुई है । इस तकनीकी प्रगति को मशीन का अधिक प्रयोग करने वाला तब कहा जाएगा, यदि यह मशीनरी के सीमान्त उत्पाद को एक ऐसे अनुपात में बढ़ाएं जो तकनीकी प्रगति की दर से अधिक हो । यदि मशीनरी का सीमान्त उत्पाद तकनीकी प्रगति की दर से कम हो तब तकनीकी प्रगति मशीन की बचत करने वाली कही जाएगी ।
दूसरे वर्ष मशीनों की OD मात्रा का प्रयोग कर BD उत्पादन प्राप्त होता है अर्थात् उत्पादन में AB वृद्धि होती है । यदि उत्पादन में OE मशीनों का प्रयोग हो रहा हो तो उत्पादन पहले वर्ष के EG से बढ़कर दूसरे वर्ष EC हो जाता है अर्थात् इसमें तट की वृद्धि होती है ।
यदि कार्यशील जनसंख्या एवं आय से की गयी बचत का अनुपात परिवर्तित होना स्वीकार किया जाए तो राही आय में वृद्धि दर को प्रभावित करने वाली शक्तियों को निम्न चार बिंदुओं के अधीन रखा जा सकता है:
i. चूँकि Y = Uk + Ql + r, अत: जो कोई भी घटक अथवा कारक पूँजी संचय में वृद्धि की दर (k) को बढ़ाएगा, राष्ट्रीय उत्पाद (Y) की वृद्धि का कारक बनता है ।
चूँकि k = SY/Y अत: k को प्रभावित करने में (i) पूँजी से आय का अनुपात (Y/K) में होने वाली वृद्धि, (ii) एवं आय के बचाए गए अनुपात (S) में वृद्धि महत्वपूर्ण होती है ।
ii. यदि S स्वयं बढ़ रहा हो तो पूँजी संचय की दर एवं राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि दर में भी बढ़ने की प्रवृति विद्यमान होती है । 5 में होने वाली वृद्धि दो कारणों से होगी (i) प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि जिससे बचतें स्वयं बढ़ती हैं, (ii) S में इस कारण भी वृद्धि हो सकती है, क्योंकि आय के वितरण में परिवर्तन होता है ।
iii. उत्पादन के साधनों के मध्य प्रतिस्थापन की उच्च लोच के कारण राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि दर बढ़ती है । यदि साधनों के मध्य प्रतिस्थापन की लोच निम्न है तो राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि दर गिरती है ।
iv. राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि दर को तकनीकी प्रगति प्रेरित कर सकती है ।
5. सतत् या अविरत आर्थिक वृद्धि का पथ (Path of Steady Economic Growth):
अविरत आर्थिक वृद्धि के पथ का विश्लेषण करते हुए प्रो. मीड स्थिर जनसंख्या की मान्यता को त्याग देते है । यह माना जाना है कि यह एक स्थिर आनुपातिक दर l से वृद्धि करती है लेकिन तकनीकी प्रगति की दर को स्थिर माना जाता है ।
सतत् या अविरत आर्थिक वृद्धि को ऐसी अवस्था माना गया है जहाँ कुल उत्पादन (y) में वृद्धि दर एवं प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर (y – l) स्थिर रहती है । वस्तुत: यह माने जाने पर कि जनसंख्या वृद्धि की दर (1) स्थिर है । प्रति व्यक्ति आय (y – l) की वृद्धि दर भी केवल तब स्थिर होगी जब कुल उत्पादन (y) की वृद्धि दर भी स्थिर रहे ।
प्रो. मीड ने प्रदर्शित किया कि जनसंख्या की स्थिर आनुपातिक वृद्धि दर (l) एवं तकनीकी प्रगति की एक स्थिर दर के दिए होने पर सतत या अविरत वृद्धि की दशाएँ या कुल उत्पादन की स्थिर वृद्धि दर तब प्राप्त हो सकती है ।
जबकि निम्न दशाएँ पूर्ण हों:
i. अपत्ति के विभिन्न साधनों के मध्य प्रतिस्थापन की सभी लोचें इकाई के बराबर है:
यदि भूमि, श्रम एवं मशीनरी के मध्य प्रतिस्थापन की लोच इकाई के बराबर हो तथा पैमाने का स्थिर प्रतिफल लागू हो तो साधन की पूर्तियों में कोई परिवर्तन नहीं होगा तथा उत्पादन के तीनों साधनों के मध्य राष्ट्रीय आय का वितरण भी अप्रभावित रहेगा । यदि उत्पादन के साधनों की सापेक्षिक मात्राओं के मध्य कोई सम्भावित परिवर्तन होता भी है तो इनके पुरस्कारों की सापेक्षिक दरों में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तन से यह क्षतिपूर्ति हो जाती है ।
ii. सभी साधनों के लिए तकनीकी प्रगति तटस्थ है:
तकनीकी प्रगति का कोई प्रभाव राष्ट्रीय आय के उन अनुपातों पर नहीं पड़ रहा जो लाभ एवं मजदूरी की ओर प्रवाहित हो रहे है । दशा (1) व (2) से स्पष्ट है कि आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में लाभ U मजदूरी Q तथा लगान Z की ओर होने वाले राष्ट्रीय आय के अनुपात स्थिर रहते हैं ।
iii. लाभ का बचाया गया अनुपात, मजदूरी का बचाया गया अनुपात एवं लगान का बचाया गया अनुपात स्थिर है:
यह दशा स्पष्ट करती है कि लाभों का बचाया गया अनुपात Sv, मजदूरी का बचाया गया अनुपात Sw तथा लगान का बचाया गया अनुपात Sg आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में स्थिर रहता है ।
चूँकि कुल राष्ट्रीय आय में लाभों का अनुपात V है अत: कुल लाभ Uy, बचाये गये लाभों का अनुपात Sv है, अत: लाभों से प्राप्त होने वाली कुल बचत SvUy होगी । इसी प्रकार मजदूरी से होने वाली कुल बचत SwQy तथा लगान से होने वाली कुल बचत SgZy होंगी ।
अर्थव्यवस्था में समग्र बचतें SY हैं जिसमें कुल राष्ट्रीय आय में बचतों का अनुपात 5 के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है । चूंकि अर्थव्यवस्था की समग्र बचतों को लाभ, मजदूरी एवं लगान द्वारा प्राप्त बचतों के योग द्वारा ज्ञात किया जाता है, अत: S = SVU + SwQ + SgZ
उपर्युक्त समीकरण स्पष्ट करता है कि यदि Sv, Sw तथा Sg उस अनुपात को व्यक्त करता है जो लाभ (U), मजदूरी (Q) तथा लगान (Z) में से बचाया जाता है तो कुल बचत लाभ, मजदूरी तथा लगान में से की जाने वाली बचतों का योग होती हैं ।
उत्पादन में वृद्धि की दर समीकरण 4 के अनुसार y = Uk + Ql + r
उपर्युक्त समीकरण में l तथा r को स्थिर माना गया है । दशा (1) एवं (2) में U तथा Q को स्थिर माना गया है । अत: Y केवल तब स्थिर हो सकता है, जबकि K स्थिर रहे । जैसा पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर K = SY/K ।
S को अचर माना गया है । अत: k केवल तब स्थिर होगा यदि Y/K के स्थिर रहें । Y/K तब स्थिर होंगा, जबकि Y व K की वृद्धि दरें समान होंगी । अत: Y/K के स्थिर होने के लिए होना चाहिए । स्पष्ट है कि आय की वृद्धि दरें तब स्थिर होंगी, जबकि पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर बराबर ही रशिय आय की वृद्धि दर के ।
अत: आय में वृद्धि दर की स्थिरता की दशा तब उत्पन्न होती है जब पूंजी स्टॉक की वृद्धि दर राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर के बराबर हो । पूँजी स्टॉक में वृद्धि दर का ऐसा कोई स्तर होगा जिस पर राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर के समकक्ष होगा । प्रो. मीड ने इसे पूँजी स्टॉक की क्रांतिक वृद्धि दर कहा । यदि पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर इस क्रांतिक वृद्धि दर से अधिक या कम हो तब y एवं k के मध्य समानता प्राप्त करना सम्भव नहीं होगा ।
यदि क्रांतिक वृद्धि दर को a द्वारा अभिव्यक्त किया जाए तब समीकरण 4 के द्वारा a = Ua + Ql + r
इसी प्रकार यह भी प्रदर्शित किया जा सकता है कि यदि k, वृद्धि के क्रांतिक स्तर (Ql + r)/(1 – U) एक निम्न स्तर से बढ़ना प्रारम्भ होता है तब ऐसी दशा में आय में पूँजी के सापेक्ष अधिक तेजी से वृद्धि होगी । अत: बचतें पूँजी स्टॉक की अपेक्षा और तेजी से बढ़ेगी एवं पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर क्रांतिक दर (Ql + r)/(1 – U) से ऊपर उठेगी ।
उपर्युक्त व्याख्या से मीड ने निष्कर्ष निकाला कि यदि जनसंख्या की वृद्धि दर स्थिर रहे, यदि प्रतिस्थापन की तीन लोचें, तीन साधनों भूमि, श्रम एवं मशीनरी के मध्य इकाई के बराबर रहें । यदि तकनीकी प्रगति एक स्थिर दर से बदे तथा सभी साधनों के प्रति तटस्थ हो तथा यदि लाभ, मजदूरी तथा लगान के बचाए गए अनुपात स्थिर रहें तब वास्तविक आय एवं मशीनरी का स्टॉक एक स्थिर स्तर (Ql + r)/(1 – U) की ओर रहने की प्रवृति रखेगा ।
6. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of J.E. Meade’s Model of Economic Growth):
प्रो.जे.ई. मीड का विश्लेषण पूर्ण प्रतियोगिता एवं पैमाने के स्थिर प्रतिफल की मान्यता के साथ एक प्रतिष्ठित प्रणाली के अन्तर्गत वृद्धि की प्रवृत्ति का विश्लेषण प्रस्तुत करता है । प्रो. मीड ने राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि में पूँजी के संचय, श्रम शक्ति की वृद्धि एवं तकनीकी प्रगति के योगदान को रेखांकित किया ।
प्रो. मीड के सतत् या अविरत वृद्धि विश्लेषण की व्यावहारिक उपयोगिता इस कारण संदिग्धस है, क्योंकि यह कुछ अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है । सर्वप्रधम यह पूर्ण प्रतिस्पर्द्धा की मान्यता को ध्यान में रखती है जिसमें सभी उत्पादन इकाईयों को एक दूसरे से स्वतन्त्र माना गया है । दूसरा पैमाने के स्थिर प्रतिफल की दशा है जिसके अथीन उत्पादन सम्भव माना गया है, जबकि उत्पादन पैमाने के वृद्धिमान प्रतिफल की दशा में होना सम्भव है ।
तीसरा, यह सभी मशीनों को एक जैसा मान कर चलता है तथा साथ ही यह भी मानता है कि मशीनों में पूर्ण आघात वर्धनीयता होती है । इससे अभिप्राय है कि मशीनों से श्रम के अनुपात को अल्प एवं दीर्घकाल में बदला जा सकता है । यह इस कारण अव्यावहारिक है, क्योंकि अल्पकाल में श्रम का मशीनरी से अनुपात बदला जाना सम्भव नहीं होता ।
प्रो. मीड यह मान कर चलते है कि एक पूँजी वस्तु की लागत-कीमत तथा एक उपभोक्ता वस्तु की कीमत-लागत समान होती है । यह पूँजी वस्तु एवं उपभोगता वस्तुओं के मध्य पूर्ण प्रतिस्थापनीयता तथा मशीनों की पूर्ण आघातवर्ध्यता की मान्यता पर आधारित है । वस्तुत: मीड द्वारा मशीनों की पूर्ण आघातवर्ध्यता एवं वाष्पीकरण के द्वारा क्षरण की मान्यता अव्यावहारिक है ।
चौथा, मीड का मॉडल इस मान्यता पर आधारित है कि उपभोक्ता वस्तुओं की स्थिर मौद्रिक कीमतों को मौद्रिक नीति की क्रियाओं द्वारा बनाए रखा जा सकता है तथा मौद्रिक मजदूरी की दरों में समायोजन द्वारा पूर्ण रोजगार बनाए रखा जाता है । इसी कारण श्रीमती जोन रोबिसन ने मीड के मॉडल को Psedo-Casual) कहा ।
पाँचवाँ, प्रो. बटरिक के अनुसार मीड के विश्लेषण में सभी चरों के मध्य अर्न्तसम्बन्ध को निश्चित माना गया है तथा अनिश्चितता की कोई सम्भावना व्यक्त नहीं की गयी है जो व्यावहारिक नहीं है । छठवाँ, मीड का मॉडल विकास की प्रक्रिया में संस्थागत घटकों के योगदान की व्याख्या नहीं करता यह आर्थिक वृद्धि में सामाजिक, राजनीतिक एवं संस्थागत घटकों की पूर्ण उपेक्षा करता है ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि नव-प्रतिष्ठित विश्लेषण के मुख्य संस्थापकों में मीड का योगदान उल्लेखनीय रहा । लेकिन सतत् वृद्धि की व्याख्या करते हुए यह माना गया कि तकनीकी प्रगति पूर्णत: श्रम-वृद्धि कारक होती है जिसके पर्याप्त अनुभव सिद्ध प्रमाण नहीं मिलते ।
वस्तुत: नव-प्रतिष्ठित समायोजन प्रक्रिया साधन कीमतों की लोचशीलता पर आधारित है, जबकि इनमें लोचशीलता नहीं पायी जाती । नव-प्रतिष्ठित मॉडलों में विनियोग फलन नहीं है तथा यह मात्र बचतों के व्यवहार द्वारा निर्धारित माना जाता है । इनमें तकनीकी प्रगति के कार्यकरण को ध्यान में नहीं रखा गया है इसे बर्हिजात घटक माना गया है । इन्हीं मान्यताओं के कारण सतत् वृद्धि विश्लेषण की व्यावहारिकता पर सन्देह उत्पन्न होने लगता है ।
7. जे.ई. मीड द्वारा आर्थिक वृद्धि मॉडल की चित्रात्मक निरूपण (Diagrammatic Representation of J.E. Meade’s Model of Economic Growth):
प्रो. मीड के मॉडल को चित्र 2 की सहायता से व्याख्यापित किया जा सकता है । चित्र में पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर को Y अक्ष द्वारा एवं राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर को X अक्ष द्वारा प्रदर्शित किया गया है ।
चित्र में OCD रेखा मूल बिन्दु से होते हुए U ढाल पर खींची गई है जो पूँजी के आनुपातिक सीमान्त उत्पाद को प्रदर्शित करती है । रेखा GIE, OCD के समानान्तर एवं मूल बिन्दु से Ql + r दूरी पर खींची गयी जो कि राष्ट्रीय आय में कुल वृद्धि दर को प्रदर्शित करती है । 45० रेखा k पूँजी स्टॉक की वृद्धि दर को प्रदर्शित करती है ।
माना प्रारम्भ में पूँजी स्टॉक की वास्तविक वृद्धि दर OA है, इसमें राष्ट्रीय आय की सम्बन्धित वृद्धि दर AI या AC + CI के समकक्ष होगी । चित्र 2 से स्पष्ट है कि इसका AC भाग राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर का वह भाग है जो जनसंख्या वृद्धि एवं तकनीकी प्रगति द्वारा सम्भव होता है । चित्र से स्पष्ट है कि CI = DE = Ql + r.
चित्र में बिन्दु I पर IA > IC, अर्थात् राष्ट्रीय आय में वृद्धि दर पूँजी के स्टॉक से अधिक है, अर्थात् Y > k । चित्र से स्पष्ट है कि Y एवं k के मध्य की समानता 45० रेखा पर बिंदु E पर प्राप्त होती है । यह सतत् या अविरत वृद्धि की स्थिति को प्रदर्शित करता है ।
उपर्युक्त चित्र से वृद्धि की क्रांतिक दर का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है ।
यह वही मूल्य है जो y व K दोनों सतत् या अविरत आर्थिक वृद्धि के अधीन समाहित करते हैं ।