आर्थिक विकास का फेलमैन का मॉडल | Feldman’s Model of Economic Growth in Hindi!
Read this article in Hindi to learn about:- 1. आर्थिक वृद्धि के फेल्डमैन मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Feldman’s Model of Economic Growth) 2. फेल्डमैन की व्याख्या एवं सरल पुर्नउत्पादन की मार्क्सवादी स्कीम (Analysis of Feldman and Marxian Scheme of Simple Reproduction) and Other Details.
Contents:
- आर्थिक वृद्धि के फेल्डमैन मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Feldman’s Model of Economic Growth)
- फेल्डमैन की व्याख्या एवं सरल पुर्नउत्पादन की मार्क्सवादी स्कीम (Analysis of Feldman and Marxian Scheme of Simple Reproduction)
- फेल्डमैन के मॉडल की मान्यताएं (Assumptions of the Feldman’s Model)
- फेल्डमैन का मॉडल-गणितीय विश्लेषण (Mathematical Analysis of Feldman’s Model)
- फेल्डमैन के मॉडल का मूल्यांकन (Appraisal of Feldman Model)
1. आर्थिक वृद्धि के
फेल्डमैन मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Feldman’s Model of Economic Growth):
ADVERTISEMENTS:
सोवियत अर्थशास्त्री फेल्डमैन द्वारा मार्क्स की स्कीम में सुधार करते हुए प्रावैगिक प्रकृति के प्रारूप को प्रस्तुत किया जो वृद्धि एवं नियोजन की वास्तविक समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रदान करने का प्रयास करता था ।
फेल्डमेन मार्क्स की पुर्नउत्पादन स्कीम से आरम्भ कर वृद्धि के प्रक्रियात्मक मॉडल को विकसित करते है । मार्क्स की भाँति उनका मॉडल वृद्धि के साथ संक्रांति पर आधारित नहीं था बल्कि स्व-अस्तित्व वृद्धि की प्रक्रिया को प्रकट करता था, परन्तु मार्क्स की भांति उन्होंने भी वृद्धि की प्रेरणा शक्ति को प्रत्यक्ष रूप से धनात्मक अतिरेक अर्थात् बचतों के सृजन से संबंधित किया व यह माना कि दीर्घकाल में इस अतिरेक का अवशोषण की संभावना उपभोग के द्वारा संभव नहीं होती है बल्कि अतिरिक्त विनियोग के द्वारा होती है ।
फेल्डमैन का विश्लेषण विनियोग के आय सृजन पक्ष पर नहीं बल्कि विनियोग के क्षमता-सृजन पक्ष पर आधारित है । यदि यह क्षमता बिना रुके लगातार चलती रहे तो बढ़ता हुआ अतिरेक नियमित रूप से अवशोषित होगा तथा पुर्नउत्पादन की प्रक्रिया चलती रहेगी । ऐसी दशा अविरत वृद्धि की ओर ले जाएगी ।
विनियोग की दर के दिए होने पर, विनियोग का एक उच्च अनुपात उत्पादक वस्तु उद्योग में आवंटित करने पर दीर्घकाल में राष्ट्रीय आय की वृद्धि की उच्च दर के रूप में फल देगा । दूसरी तरफ विनियोग का एक उच्च अनुपात उपभोक्ता-वस्तु उद्योगों की ओर आवंटित किए जाने से अल्पकाल में राष्ट्रीय आय की वृद्धि की उच्च दर के रूप में प्रतिफलित होगा । फेल्डमैन के वृद्धि मॉडल का यही सार है ।
ADVERTISEMENTS:
2. फेल्डमैन की व्याख्या एवं सरल पुर्नउत्पादन की मार्क्सवादी स्कीम (
Analysis of Feldman and Marxian Scheme of Simple Reproduction):
फेल्डमैन ने अपनी व्याख्या मार्क्स की सरल पुर्नउत्पादन स्कीम पर आधारित की ।
मार्क्सवादी स्कीम में एक अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन (W) दो वर्गो में विभाजित होता हैं:
(i) वर्ग I जिसमें उत्पादक वस्तुएँ हैं तथा
ADVERTISEMENTS:
(ii) वर्ग II जिसमें उपभोक्ता वस्तुएँ है ।
इस स्कीम में प्रत्येक क्षेत्र के उत्पादन को तीन तत्त्वों के योग द्वारा प्रकट किया जाता है । यह तथ्य है- स्थिर पूँजी C, परिवर्ती पूँजी या V तथा अतिरेक मूल्य S अर्थात् मार्क्सवादी प्रणाली ।
मार्क्सवादी स्कीम में पुनरुत्पादन नियमित रूप से तब तक होता रहेगा जब तक:
(i) वर्ग I की उत्पादक वस्तुएँ दोनों वर्गों की आवश्यकताओं को पूर्ण करेंगी ।
(ii) वर्ग II की उपभोक्ता वस्तुएँ परिवर्ती पूंजी रूप अतिरेक मूल्य की आवश्यकताओं को अर्थव्यवस्था के दोनों क्षेत्रों के लिए पूरित करेंगी ।
इस प्रकार यह प्रणाली अर्थव्यवस्था में कुल राष्ट्रीय आय का वितरण सुचारु रूप से करते हुए सरल पुनरुत्पादन की प्रक्रिया को नियमित रखेंगी । फेल्डमैन कुल राष्ट्रीय आय के वितरण से संबंधित नहीं रहे । उन्होंने दो वर्गों के मध्य विनियोग के वितरण पर ध्यान केन्द्रित किया ।
वह मार्क्सवादी स्कीम में सुधार करना चाहते थे । इसलिए उन्होंने अपने मॉडल में विनियोग की क्रिया पर जोर दिया । विनियोग की क्रिया वस्तुतः क्षमता सृजन एवं आय सूजन परिणाम देती हैं । फेल्डमैन ने विनियोग के क्षमता-सृजन पक्ष पर जोर दिया । फेल्डमैन अपने मॉडल में पूंजी-वस्तुओं के विभाग को सम्मिलित करते है तथा क्षमता सृजन का परिणाम देती क्रियाओं पर मुख्यतः विचार करते हैं ।
3. फेल्डमैन के मॉडल की मान्यताएं (
Assumptions of the Feldman’s Model):
फेल्डमैन के विश्लेषण का आधार निम्न मान्यताएँ है:
i. बंद अर्थव्यवस्था की कल्पना की गई है अतः विदेशी व्यापार व विदेशी पूंजी की गतिविधियाँ सम्पन्न नहीं होतीं । इस मान्यता के आधार पर आर्थिक वृद्धि को मुख्यतः उत्पादक क्षमता में होने वाली वृद्धि द्वारा निरुपित किया गया है ।
ii. उत्पादन पैमाने के स्थिर प्रतिफलों के अन्तर्गत होता है ।
iii. अर्थव्यवस्था दो विभागों में वर्गीकृत है । यह विभाजन अर्थव्यवस्था को दो क्षेत्रों में बाँट देती है । एक क्षेत्र से दूसरी ओर पूंजी स्टाक स्थानान्तरित नहीं किए जा सकते अर्थात् बचतों की अन्तर्क्षेत्रीय गतिशीलता पूर्णत: अनुपस्थित है ।
iv. आर्थिक वृद्धि में कोई बाधाएँ या अवरोध नहीं आते । यह मान्यता मुख्य चर पूँजी निर्माण या उत्पादन क्षमता पर ही ध्यान केन्द्रित करती है ।
v. सरकारी व्यय हेतु कोई पृथक् वर्ग नहीं है ।
vi. उत्पादन स्वतंत्र है उपभोग से ।
vii. पूंजी को एकमात्र परिसीमा घटक माना गया है अर्थात् उत्पादन की संरचना एवं अर्थव्यवस्था की वृद्धि को निर्धारित करने वाला चर केवल पूंजी स्टाक है । कोई भी अन्य घटक; जैसे तकनीक एवं जनसंख्या अर्थव्यवस्था की वृद्धि दशाओं पर प्रभाव नहीं डालते ।
viii. आर्थिक वृद्धि की समायोजन प्रक्रिया में कोई समय अवधि-अंतराल विद्यमान नहीं है ।
ix. दोनों विभागों के उत्पादन केवल पूंजी के आरंभिक स्टाक व तत्संबधित पूँजी गुणांकों से प्रभावित होते हैं ।
x. विभाग 1 का उत्पादन 0 व 1 के मध्य पूर्णत: विभाज्य है अर्थात् विभाग 1 के उत्पादन का कोई भाग दोनों विभागों के मध्य आवंटित किया जा सकता है । यह मॉडल का मुख्य चर है ।
4. फेल्डमैन का मॉडल-गणितीय विश्लेषण (Mathematical Analysis of
Feldman’s Model):
फेल्डमैन के मॉडल में प्रयुक्त संकेत – symbols निम्न हैं:
γ = विभाग I की ओर आवंटित कुल विनियोग का भाग
I = शुद्ध विनियोग की वार्षिक दर अर्थात् यह विभाग I द्वारा किए गए उत्पादन को सूचित करता है ।
I1 = विभाग I को आवंटित शुद्ध विनियोग की वार्षिक दर ।
I2 = विभाग II को आवंटित शुद्ध विनियोग की वार्षिक दर ।
इस प्रकार I1 + I2 = I
t = समय जिसे वर्षों में मापा गया है
V = समूची अर्थव्यवस्था हेतु सीमांत पूंजी गुणांक
V1 = विभाग I का सीमांत पूंजी गुणांक
V2 = विभाग II का सीमांत पूँजी गुणांक
Y = समूची अर्थव्यवस्था में उत्पादन की वार्षिक दर ।
C = उपभोक्ता वस्तुओं या विभाग II में उत्पादन की वार्षिक दर ।
I0, C0, Y0 = तत्संबंचित चरों के आरंभिक मूल्य, समय t = 0
α = बचत की औसत प्रवृत्ति
α ‘ = बचत की सीमांत प्रवृत्ति
फेल्डमैन के मॉडल को निम्नांकित समीकरणों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:
समीकरण 1:
समूची अर्थव्यवस्था में शुद्ध विनियोग की वार्षिक दर I को Y से गुणा कर पूँजी वस्तु क्षेत्र में हुए विनियोग आवंटन की वार्षिक दर I1 को ज्ञात किया जाता अर्थात-
समीकरण 2:
पूंजी वस्तु क्षेत्र में उत्पादक क्षमता में वृद्धि का उत्तरदायी I1 है अतः पूंजी वस्तुओं के स्टाक में होने वाली वृद्धि I1 को इसके पूंजी उत्पाद अनुपात V1 से भाग देकर प्राप्त किया जाता है, अर्थात्-
समीकरण 1 में समीकरण 2 को प्रतिस्थापित कर हम प्राप्त करते हैं:
यह वृद्धिमान विनियोग या बचत की सीमांत प्रवृति की कुल विनियोग के एक स्थिर भाग को पूंजी उत्पाद अनुपात से भाग देकर विभाग की समस्या को प्रदर्शित करता है ।
उपर्युक्त समीकरण के दोनों पक्षों को Integrate करने पर-
समीकरण 8 यह प्रदर्शित करता है कि कुल उपभोग बराबर होता है प्रारंभिक समय में किए गए उपभोग धन (+) विभाग I व II में विनियोग के अंश की घातांक वृद्धि दर गुणा (X) दोनों विभागों के पूंजी गुणांकों के अनुपात ऋण (-) इकाई (1) के । पुन: समूची अर्थव्यवस्था में उत्पादन की वार्षिक शुद्ध दर, पूँजी वस्तुओं एवं उपभोक्ता वस्तु क्षेत्रों के उत्पादन की वार्षिक दर के योग के बराबर होती है ।
5. फेल्डमैन के मॉडल का मूल्यांकन (
Appraisal of Feldman Model):
फेल्डमैन का मॉडल मार्क्स की पुर्नउत्पादन स्कीम के प्रावैगिक विश्लेषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रयास है । इस मॉडल की मात्र सैद्धान्तिक महत्ता ही नहीं है बल्कि यह व्यावहारिक प्रयोग की दृष्टि से भी अनुकरणीय है ।
प्रो॰ प्रशांत चन्द्र महालनोबीस ने अपने लेख ‘Some Observations of the Process of National Income’ में स्पष्ट किया कि दो विभागों में आय-व्यय अनुपातों के दिए होने पर, बचत की सीमांत दर उच्च होगी और उतना ही अधिक पूंजी वस्तु क्षेत्र के लिए किया जाने वाला विनियोग आवंटन होगा ।
इससे दीर्घकाल में आर्थिक वृद्धि की एक उच्च दर प्राप्त होनी संभव होगी । कम विकसित देशों में मुख्य समस्या उत्पादक क्षमता में वृद्धि करने की होती है । उत्पादन क्षमता को सृजित करके अतिरिक्त आय का सृजन संभव होता है । इस प्रसंग में फेल्डमैन का मॉडल इन देशों की समस्या हेतु उचित विकल्प प्रस्तुत करता है ।
फेल्डमैन के मॉडल की सीमा इसकी कुछ गम्भीर सैद्धांतिक व व्यावहारिक कमियां हैं । मॉडल में अर्थव्यवस्था को दो विभागों में विभक्त किया गया है । फेल्डमैन ने क्षमता-सृजन एवं क्षमता को बनाए रखने या अनुरक्षण के मापदण्डों द्वारा दोनों विभागों की भूमिका को समझाया है ।
पूंजी वस्तु क्षेत्र उन क्रियाओं में संलग्न रहता है जो क्षमता सृजन करती है जैसे कि पूंजी वस्तुओं को बढ़ाना व तकनीकी प्रगति संभव बनाना । दूसरी तरफ उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र में क्रियाओं का ऐसा समुच्चय क्रियाशील रहता है जो उत्पादन को वर्तमान चालू स्तर पर बनाए रखता है भले ही उत्पादन की किसी भी अवस्था को ध्यान में रखा जा रहा हो ।
परन्तु दो विभागों में वगीकृत करने की यह दशा सैद्धांतिक रूप से पुष्ट नहीं होती साथ ही इसमें कई व्यावहारिक परेशानियाँ भी उठ खडी होती है । उदाहरण के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी क्रियाएँ क्षमता सृजन भी करती है व क्षमता का अनुरक्षण भी । सरल रूप में यह भी संभव ही नहीं कि क्रियाओं को क्षमता सृजन व क्षमता के अनुरक्षण के विभाजन में बाँट दिया जाय ।
फेल्डमैन के मॉडल की एक व्यावहारिक समस्या यह भी है कि पूंजी वस्तु क्षेत्र का एक भाग, विशेष रूप से क्षमता अनुरक्षण उपकरणों का हिस्सा कालान्तर में उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र की ओर प्रवाहमान होने लगता है । ऐसा रूपान्तरण स्वतः ही उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र की वृद्धि दर व इसके क्षेत्र को बढ़ाता है ।
परन्तु उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र की एक उच्च दर अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप उपभोग में वृद्धि की उच्च दर को प्रदर्शित करने लगती है । इससे बचत की सीमांत दर में वृद्धि पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है जो फेल्डमैन के निष्कर्षों से विरोधाभास प्रकट करता है ।
फेल्डमैन का मॉडल उन देशों के लिए अधिक व्यावहारिक होता है जो अभी औद्योगीकरण की शुरूआत ही कर रहे है । अर्द्धविकास की दशा में सुविकसित मशीनरी, भारी उद्योग से संबंधित आदाओं का अभाव होता है ।
औद्योगिक विकास हेतु क्षमता सृजन की आवश्यकता प्राथमिक स्तर पर होती है, जबकि शेष क्रियाएं अविकसित अन्तर्संरचना के कारण अपूर्णताओं की शिकार होती हैं । ऐसी दशा में फेल्डमैन द्वारा अर्थव्यवस्था को दो भागों में विभाजन का आधार क्षमता सृजन व क्षमता का अनुरक्षण इन देशों हेतु व्यावहारिक व प्रासंगिक बन जाता है ।