निकोलस कलदर का आय वितरण का मॉडल | Read this article in Hindi to learn about:- 1. कालडोर का आय वितरण मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Kaldor’s Model of Income Distribution) 2. कालडोर का आय वितरण मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Kaldor’s Model of Income Distribution) and Other Details.

Contents:

  1. कालडोर का आय वितरण मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Kaldor’s Model of Income Distribution)
  2. कालडोर का आय वितरण मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Kaldor’s Model of Income Distribution)
  3. कालडोर का आय वितरण मॉडल की व्याख्या (Explanation of Kaldor’s Model of Income Distribution)
  4. कालडोर के आय वितरण मॉडल की विशेषताएँ (Merits of Kaldor’s Model of Income Distribution)
  5. कालडोर के आय वितरण मॉडल की सीमाएँ (Limitations of of Kaldor’s Model of Income Distribution)

1. कालडोर का आय वितरण मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Kaldor’s Model of Income Distribution):

प्रो. निकोलस कालडोर ने अपने शोध लेख Alternative Theories of Distribution (1955-56) में वितरण के एक व्यापक मॉडल को प्रस्तुत किया जिसके आधार पर उन्होंने 1957 में आर्थिक वृद्धि के एक मॉडल का विवेचन किया । प्रो. कालडोर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

यह विचारधारा कींजियन प्रवृतियों का प्रदर्शन करती है । इनके विकास मॉडलों में विनियोग का निर्धारण उपक्रमी द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों से सम्बन्धित किया गया तथा बचतों को निष्क्रिय रूप से विनियोग से संमजित होता हुआ माना गया ।

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कैम्ब्रिज विचारधारा यह मान कर चलती थी कि आय के वितरण में होने वाले परिवर्तनों के द्वारा बचत व विनियोग में समानता स्थापित की जानी सम्भव है । कैम्ब्रिज वृद्धि मॉडलों को इस कारण प्रावैगिक माना गया कि इनमें आय के वितरण सम्बन्धी पक्षों पर अधिक ध्यान दिया गया ।

कालडोर ने स्पष्ट किया कि विकसित देश स्थायित्व के साथ विकास करने में जिस अवरोध का अनुभव करते हैं वह बचतों की अधिकता की समस्या है । हैरोड ने अतिरिक्त बचतों की समस्या के लिए जिस व्याख्या को प्रस्तुत किया वह अपर्याप्त है । कालडोर के अनुसार बचतों के आधिक्य की समस्या को अतिरिक्त बचतों के प्रयोग की क्षमता में वृद्धि कर नहीं सुलझाया जा सकता बल्कि इसके लिए अर्थव्यवस्था में बचत गुणाकों को कम करना आवश्यक होगा ।


2. कालडोर का आय वितरण मॉडल की मान्यताएँ (Assumptions of Kaldor’s Model of Income Distribution):

प्रो. कालडोर का आय वितरण मॉडल निम्न मान्यताओं पर आधारित है:

i. पूर्ण रोजगार की बर्हिजात प्रकृति: कालडोर के मॉडल में पूर्ण रोजगार को बर्हिजात प्रकृति का माना गया है ।

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ii. अपूर्ण प्रतियोगिता विद्यमान है ।

iii. आय का वितरण मजदूरी एवं लाभ की ओर होता है ।

iv. लाभ अर्जकों की सीमान्त बचत क्षमता मजदूरी अर्जकों के सापेक्ष अधिक है ।

v. विनियोग आय अनुपात एक स्वतन्त्र चर है ।


3. कालडोर का आय वितरण मॉडल की व्याख्या (Explanation of Kaldor’s Model of Income Distribution):

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वास्तविक आय Y को दो मुख्य वर्गों मजदूरी (W) एवं लाभ (P) में विभक्त किया गया है अत-

पूँजीपतियों की बचत की प्रवृत्ति Sp एवं मजदूरी अर्जकों की बचत प्रवृति Sw के दिए होने पर समीकरण (6) स्पष्ट करता है कि आय में लाभों के सन्तुलन सापेक्ष शेयर (P/Y) में सन्तुलन विनियोग उत्पादन अनुपात (I/Y) के परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । अत: पूँजीपतियों एवं श्रमिकों की बचत प्रवृतियों के दिये होने पर आय में लाभ का माँग मात्र विनियोग एवं उत्पादन के अनुपात पर निर्भर रहता है ।

कालडोर ने विनियोग एवं उत्पादन के मध्य अनुपात को स्वतन्त्र चर माना जो दोनों बचत प्रवृतियों SP एवं SW में होने वाले परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता । पूर्ण रोजगार की मान्यता को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट किया जा सकता है कि मौद्रिक मजदूरी के स्तर के सम्बन्ध में कीमत स्तर का निर्धारण माँग द्वारा होता है ।

जब विनियोग में वृद्धि होने से कुल माँग बढ़ती है तब यह कीमत व लाभ में भी वृद्धि करती है जिससे वास्तविक उपभोग न्यून हो जाता है । इसके विपरीत यदि विनियोग से कमी होने से कुल माँग घटती है तब यह कीमत एवं लाभ में भी कमी करती है जिससे वास्तविक उपभोग बढ़ जाता है । लोचशील कीमतों की मान्यता लेने पर प्रणाली पूर्ण रोजगार पर स्थायित्व प्राप्त करती है ।

कालडोर के मॉडल की कार्यशीलता तब सम्भव होती है जब बचत की दोनों प्रवृतियों (Sp तथा Sw) में भिन्नता विद्यमान हो अर्थात् Sp ≠ Sw अत: स्थायित्व की दशा को Sp > Sw के द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है । स्पष्ट है कि Sp के Sw से कम होने की दशा में कीमतों में होने वाली एक कमी माँग में कमी का कारण बनती है जिससे कीमतों में संचयी कमी होती है ।

प्रणाली में स्थायित्व का अंश बचत की सीमान्त प्रवृतियों के मध्य अन्तर-

यदि पहला प्रतिबन्ध सन्तुष्ट नहीं होता तब प्रणाली तीव्र अर्द्धविकास की अवस्था में आ जाएगी । यदि दूसरा प्रतिबन्ध सन्तुष्ट नहीं होता तब प्रणाली तीव्र मुद्रा प्रसार का अनुभव करेगी । उपर्युक्त दोनों सीमाओं के अधीन ही कालडोर का मॉडल क्रियाशील होता है तथा यह प्रदर्शित करता है कि आय का वितरण एवं लाभ की दर किस प्रकार प्रणाली को सन्तुलन में बनाए रखते हैं ।


4. कालडोर के आय वितरण मॉडल की विशेषताएँ (Merits of Kaldor’s Model of Income Distribution):

कालडोर के आय वितरण मॉडल की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:

i. बचत एवं विनियोग संयुक्त रूप से आय वितरण को निर्धारित करते हैं । आय का वितरण कैसे किया गया है इसके द्वारा राष्ट्रीय आय के आकार का निर्धारण होता है ।

ii. बचत एवं विनियोग के मध्य समायोजन आय के स्तरों में परिवर्तन द्वारा नहीं वरन् आय के वितरण में होने वाले परिवर्तन द्वारा सम्भव बनते है ।


5. कालडोर के आय वितरण मॉडल की सीमाएँ (Limitations of of Kaldor’s Model of Income Distribution):

कालडोर का मॉडल यह प्रदर्शित करता है कि आय में लाभों का अंश P/Y, विनियोग पर लाभ की दर एवं वास्तविक मजदूरी की दर 1/Y का फलन होती हैं जो P/Y या शुद्ध मजदूरी दर W/L से स्वतन्त्र रूप से निर्धारित होती है ।

यह तब ही सत्य है जब कुछ निश्चित दशाएँ विद्यमान हों:

 

कालडोर के विश्लेषण की सीमाएँ निम्नांकित हैं:

i. कालडोर का मॉडल आय के वितरण पर तकनीकी प्रगति के प्रभाव की व्याख्या नहीं करता ।

ii. यह माना गया है कि समस्त लाभ पूंजीपतियों को प्राप्त होते हैं ।

iii. जै.ई. मीड के अनुसार कालडोर का वितरण सिद्धान्त दीर्घकालीन वृद्धि के बजाय अल्पकालीन मुद्रा प्रसार के विश्लेषण हेतु उपयुक्त है ।

iv. ऐसे उत्पादन फलन की मान्यता ली गई है जो साधनों के मध्य प्रतिस्थापन को ध्यान में नहीं रखता ।

v. कालडोर के मॉडल में मानवीय पूँजी पर ध्यान नहीं दिया गया है जो राष्ट्रीय आय के वितरण शेयर को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करता है ।

vi. कालडोर के मॉडल में लाभों के शेयर तथा सीमान्त उत्पादों, प्रतिस्थापन की लोच एवं पूँजी के जीवन के मध्य सम्बन्धों को ध्यान में नहीं रखा गया है ।


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