रैमसे का इष्टतम विकास का मॉडल | Read this article in Hindi to learn about Ramsey’s model of optimal growth.
प्रावैगिक अर्थशास्त्र में नीति निर्धारण करते हुए एक समय अवधि में उपयोगिताओं के समग्र को अधिकतम करने का प्रयास विचारणीय बन जाता है । रामजे ने इसके सैद्धान्तिक पक्षों पर चिन्तन किया ।
यद्यपि उनका मॉडल अमूर्त था परन्तु इसमें निहित विचार अनुकूलता वृद्धि के सिद्धांत हेतु महत्वपूर्ण दिशा निर्देश बना । अनुकूलता वृद्धि पर जितने भी लेखन किए गए वह रामजे के योगदान से प्रभावित रहे ।
एक अर्थव्यवस्था में यह प्रयास किया जाता है कि वह समस्य समय अवधियों में उपयोगिता को अधिकतक करे । रामजे ने उपयोगिता स्तर में एक उच्च सीमा को उन्मुख ‘चरमसुख’ की संकल्पना पर विचार किया, अत: समस्या को इस प्रकार देखा गया कि एक अनन्त समय में वास्तविक उपयोगिता एवं चरमसुख के मध्य के अन्तर के योग को किस प्रकार न्यूनतम किया जाए ।
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एक बेहतर व्यवहार से सम्बन्धित उत्पादन सम्बन्ध के आधार पर रामजे ने आवप्टन के नियम बताए जो सरल एवं आकर्षक है । पूंजी एवं श्रम के एक द्वि-साधन मॉडल में प्रत्येक समय बिन्दु हेतु यह निम्न दो दशाओं से सम्बन्धित है ।
(1) श्रम की सीमांत अनुपयोगिता अवश्य ही बराबर होती है उपयोगिता के रूप में श्रम के सीमांत उत्पाद
(2) उपभोग की सीमान्त उपयोगिता में ह्रास की आनुपातिक दर अवश्य ही पूँजी के सीमान्त उत्पाद के बराबर होना चाहिए ।
यदि इस वर्ष व 1 अगले वर्ष उपभोग की सीमान्त उपयोगिता (1 + i) हो, तब i सीमान्त उपयोगिता में ह्रास की आनुपातिक दर होगी । लेकिन इससे यह आशय भी निकलता है कि (1 + i) इकाइयों जो अगले वर्ष का उपभोग है का उपयोगिता मूल्य, इस वर्ष की 1 इकाई के ठीक बराबर होगा तथा 1 वह दर है जिस पर हम 1 वर्ष के उपभोग की छूट देने को तत्पर रहते हैं, अर्थात् यह इस वर्ष का उपभोग है ।
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इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित दूसरा नियम पूंजी के सीमान्त उत्पाद को उपभोग की छूट या बट्टे की सीमान्त दर से समानता या बराबरी करने की बात स्पष्ट करता है । रामजे ने इस नियम को चरम सुख के मूल्य के रूप में प्रकट किया । यह कल्याण मूल्य की उच्च सीमा है ।
यह बचतों की दर को उपभोग की सीमान्त उपयोगिता से गुणा कर, चरम सुख बिन्दु एवं उपयोगिता के वास्तविक स्तर जिसका आनन्द लिया जा रहा है के मध्य अन्तर की समानता से ज्ञात होता है । यह एक महत्वपूर्ण परिणाम है जो अनुकूलता बचतों को उत्पादन फलन से स्वतंत्र करता है ।
रामजे का महत्वपूर्ण शोध पत्र एक नवीन विधि का ऐसा परम्परागत प्रस्तुतीकरण करता है जिसका विस्तार वर्तमान समय में कई आर्थिक विधाओं में किया गया । यद्यपि व्यावहारिक नीतियों की दृष्टि से यह बहुत सार्थक नहीं है, क्योंकि अनुकूलता वृद्धि के विचार-विमर्श की प्रक्रिया में बहुत सारे नीतिगत मुद्दे या पक्ष शामिल रहते है ।
ऐसे विचार-विमर्श समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं में विशेष रूप से क्रियान्वित होने की सम्भावना रखते है लेकिन संस्थागत दृष्टिकोण से उभर रही समस्याओं के निदान के बारे में यहाँ समुचित ध्यान नहीं दिया गया ।
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तदन्तर समाजवादी अर्थव्यवस्पाओं की वृद्धि समस्याओं में संस्थागत घटकों की उपस्थिति पर काफी अधिक शोध किया गया जिससे ऐसा साहित्य उपलब्ध हुआ जो समस्या का सुस्पष्ट विवेचन करता था ।
रामजे की विधि में समाज के लिए सरलतम रूप से एक कल्याण फलन समाहित है जिसके द्वारा वृद्धि की नीतियों को निर्धारित करने का प्रयास किया गया । इसका एक विकल्प व्यक्तिगत अधिमानों के आधार पर सामाजिक चुनावों तक पहुँचने का प्रयास है ।
इसे एक सुपरिचित प्रमेय, प्रतिस्पर्द्धी बाजार आवण्टन जो पैरिटो अनुकूलता की कुछ संकल्पनाओं के प्रति झुकाव से सम्बन्धित है एवं समय को ध्यान रख प्रस्तुत किया गया ।
इस प्रसंग में एक प्रश्न उठता है कि सरकार आखिर क्यों सावधानीपूर्वक किए गए विचार-विमर्श के उपरान्त वृद्धि पथ में परिवर्तन करना चाहती है जो बाजार आवप्टन से उभरता एवं विकसित होता है ? इस तरह के प्रश्न कई प्रकार की समस्याओं से जुड़े है; जैसे- बाहयताएँ, वितरण, अनिश्चितताएँ एवं अन्तनिर्भरताएं ।
मान्यताएँ (Assumption):
रामजे के अनुसार बचतों की दर जो मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता से गुणा होती है हमेशा उस मात्रा के बराबर होगी जिसके द्वारा उपयोगिता के आनन्द की कुल विशुद्ध दर, आनन्द की अधिकतम सम्भावित दर से हमेशा पीछे या कम रह जाती ।
इस नियम को स्पष्ट करने के लिए विविध सरलीकृत मान्यताओं पर आश्रित रहा गया:
(1) माना हमारा समाज हमेशा इस प्रकार संचालित हो रहा है जहां न तो संख्याओं में कोई परिवर्तन हो रहा है व न ही आनन्द एवं सन्तुष्टि की क्षमता में और न ही इसकी श्रम के प्रति विमुखता में । यह माना गया कि आनन्द, सन्तुष्टि एवं त्याग की विभिन्न समयों में स्वतन्त्र रूप से गणना की जा सकती है तथा इनका योग किया जा सकता है तथा साथ ही कोई नई खोज या संगठन में सुधार की प्रस्तावना नहीं रखी जाती जो सम्पत्ति के संचय से पूरी तरह प्रभावित माने जा सकें ।
(2) यह माना गया कि कोई पूर्व के आनन्द व सन्तुष्टि की तुलना में बाद के आनन्द या सन्तुष्टि को कम करके अनुभव करें, यह एक ऐसी क्रिया है जो नैतिक रूप से अमान्य होगी तथा कल्पनाशक्ति की कमी से उपजेगी ।
(3) रामजे ने वितरणात्मक पक्षों की पूरी तरह उपेक्षा की । वस्तुतः यह माना गया कि समुदाय के सदस्यों के मध्य जिस प्रकार उपभोग एवं श्रम का वितरण होता है वह इनकी कुल मात्रा पर पूर्णत: निर्भर करता है, इस प्रकार कुल सन्तुष्टि इनकी सम्पूर्णता की मात्रा का केवल एक फलन होती है ।
(4) रामजे ने विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के साथ-साथ श्रम की विभिन्न किस्मों के मध्य अन्तरों की उपेक्षा की तथा यह माना कि इन्हें स्थिर मानकों के रूप में अभिव्यक्त किया जाये जिससे कोई सरल रूप में पूंजी उपभोग व श्रम की मात्राओं के बारे में बात कर सके न कि इनके विशिष्ट रूपों के बारे में वाद-विवाद करें ।
(5) व्याख्या में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, ऋण एवं उधार को सम्मिलित करना जरूरी है, जबकि यह माना जाए कि अन्य देश भी स्थायित्व की दशा में है, इस प्रकार उनसे लेन-देन की सम्भावनाएँ उत्पादन की स्थिर दशाओं के अधीन मानी जा सकें । यह मान्यता विदेशियों से बढ़ती हुई ऋणग्रस्तता की दशा को नकार देती है ।
(6) अन्तिम मान्यता यह है कि संचय के सम्बन्ध में समाज हमेशा समान उद्देश्यों से निदेशित होता है जिससे आने वाली पीढी में बचतों में होने वाला कोई भी परिवर्तन उत्तराधिकारी को अपने स्वार्थ के उपभोग की ओर नहीं ले जाता तथा भविष्य में संचय को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने की सम्भावना नहीं होगी ।
मॉडल का गणितीय विश्लेषण (Mathematical Exposition of the Model):
रामजे के मॉडल का गणितीय निर्वचन निम्न सम्बन्धों के द्वारा स्पष्ट किया गया:
माना दी गई पूंजी C है जिसमें न तो बढ़ने की और न ही गिरने की प्रवृत्ति विद्यमान है, अतः उपभोग X की एक दर की उपयोगिता की कुल दर एवं श्रम a की एक दर की अनुपयोगिता की कुल दर के मध्य का अन्तर ठीक बराबर होगा प्रति इकाई समय प्राप्त हुए, शुद्ध आनन्द या सन्तुष्टि के । अर्थात्-
शुद्ध आनन्द प्रति इकाई समय = U(x) – V(a),
इसे एक अधिकतम तक ले जाने के लिए यह दशा ध्यान में रखी जाती है कि व्यय X बराबर होगा उसके जिसे श्रम a व पूँजी C के द्वारा कोई उत्पादित कर सकता है ।
प्रति इकाई समय शुद्ध आनन्द अर्थात् U(x) – V(a), C का फलन है अत: प्राप्त होने वाले आनन्द की दर तब बढेगी जब C बढेगा ।
आनन्द की दर में होने वाली वृद्धि पूंजी की मात्रा के साथ तब रुक जाएगी जब निम्न में से कोई कारण मौजूद हो:
(i) पूंजी में होने वाली भावी वृद्धि समुदाय को इस योग्य नहीं बनाती कि इससे उनकी आय या उनके आराम में वृद्धि हो सके । या
(ii) कोई आनन्द की अधिकतम प्राप्त दर तक पहुँच जाए कि उसके लिए अधिक आय या आराम का कोई उपयोग न रहे ।
यहाँ विचारणीय है कि इनमें से किसी भी दशा में एक निश्चित पूंजी द्वारा आनन्द या सन्तोष की अधिकतम दर आर्थिक रूप से प्राप्त होती है, भले ही यह प्राप्त होने वाली दर अधिकतम हो अथवा नहीं । विपरीत रूप से, आनन्द की दर में होने वाली वृद्धि की दर रुकती नहीं है, जबकि पूंजी में वृद्धि हो रही हो ।
ऐसे में दो सम्भावनाएँ उत्पन्न होती हैं:
(a) या तो आनन्द की दर अनन्त तक बड़े, या
(b) यह एक निश्चित सीमित सीमा तक पहुँचे ।
इनमें पहले के बारे में यह खण्डन किया जाता है कि आर्थिक कारण अकेले ही आनन्द की एक निश्चित सीमित सीमा से अधिक की सन्तुष्टि प्रदान नहीं कर सकते । आनन्द की एक निश्चित दर ही अधिकतम कल्पनीय दर है ।
दूसरा आनन्द की दर एक निश्चित सीमा को छूती है जो अधिकतम कल्पनीय दर के बराबर हो भी सकती है और नहीं भी । इस सीमा को आनन्द की अधिकतम प्राप्त दर कहा जाता है जो किसी भी रूप में प्राप्त होनी सम्भव नहीं होती ।
रामजे के अनुसार आनन्द की अधिकतम प्राप्त दर या उपयोगिता की अधिकतम प्राप्त दर को चरम सुख या B कहा जाता है । उन्होंने कहा कि सभी दशाओं में समुदाय इतनी बचत अवश्य करें जिससे वह एक निश्चित समय के बाद चरमसुख की अवस्था की प्राप्त कर सके । यह सम्भव है कि प्रत्येक वर्ष एक छोटी राशि अलग रखी जाए और ऐसा करते हुए कोई पूंजी को किसी भी चाही जाने वाली सीमा तक बढ़ा सकता है ।
रामजे की परिकल्पना थी कि किसी समय चरमसुख तक पहुँचने या इसे प्राप्त करने के लिए काफी अधिक बचत सम्भव है । लेकिन इससे आशय यह नहीं है कि समुदाय की सारी आय बचत का रूप ले लें ।
रामजे ने किसी एक समय में श्रम की सीमान्त अनुपयोगिता की समानता उस समय श्रम की सीमान्त कुशलता के उपभोग की सीमान्त उपयोगिता के गुणनफल द्वारा प्रदर्शित की अर्थात् श्रम की सीमान्त अनुपयोगिता = श्रम की सीमान्त कुशलता x उपभोग की सीमान्त उपयोगिता;
समीकरण (3) सूचित करता है कि u(x) जो उपभोग की सीमान्त उपयोगिता है, एक आनुपातिक दर से गिरती है जो व्याज की दर के द्वारा दी हुई होती है ।
इसके परिणामस्वरूप, x निरन्तर रूप से बढता है तब तक जब या तो ∂f/∂c या फिर u(X) लुप्त न हो जाए । इस दशा में यह देखा जाता है कि ‘चरमसुख’ की प्राप्ति अवश्य होती ।
उपर्युक्त विवेचन में, समीकरण (1), (2) व (3) समस्या के हल हेतु पर्याप्त है, जबकि t = 0 के बारे में जानकारी हो । यह वह पूंजी है जिससे t = 0 पर देश आरम्भ करता है । दूसरी प्रारम्भिक दशा t → ∞ होने पर फलन के व्यवहार से सम्बन्धित विचार योग्य बातों से पूर्ति होती है ।
यह ध्यान में रखते हुए कि x, a तथा c एक स्वतन्त्र चर, समय के फलन है ।
हम निम्न सम्बन्धों को प्रकट करते हैं:
अब द्र को निर्दिष्ट करते हैं उसके साथ, जिसे रामजे ने चरमसुख या B कहा है-
यह Integral उस मात्रा को प्रदर्शित करता है जिसके द्वारा आनन्द या सन्तोष गिरकर चरमसुख से कम हो जाता है यह सीमित है तथा समस्या इसे न्यूनतम करने की है । अब स्वतन्त्र चर को बदलते हुए c करने पर, काफी अधिक सरलीकरण प्राप्त किया जा सकता है ।
यह ध्यान देना आवश्यक है कि इस Integral में x व a पूरी तरह से c के स्वैच्छिक फलन हैं तथा Integral को न्यूनतम करने के लिए इसके Integrand को न्यूनतम करते है अर्थात् इसके Partial Derivatives को शून्य के बराबर करते हैं । अत: x के प्रति इसके Derivatives को लेने पर-
अतः बचत की दर को उपभोग की सीमान्त उपयोगिता से गुणा कर अवश्य ही चरमसुख ऋण उपयोगिता प्राप्ति की वास्तविक दर से समानता स्थापित होती है । यह वह आधारभूत नियम है जिसे रामजे ने अपने विचारवर्द्धक शोध-पत्र में प्रस्तुत किया ।
इस नियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह पूरी तरह से उत्पादन फलन f(a,c) से स्वतंत्र है, सिवाय उस दशा के जब यह चरमसुख या प्राप्त होने वाली उपयोगिता की अधिकतम दर को निर्धारित करता है । विशिष्ट रूप से एक दी हुई आय पर जो मात्रा एक के द्वारा बचत की जाती है वह पूर्णतः ब्याज की वर्तमान दर से स्वतन्त्र होती है ।
यदि नहीं, तो यह वास्तव में शून्य होती है । यह परिणाम या निष्कर्ष विरोधाभासी प्रकृति का है और किसी सीमा तक इसे कम किया जा सकता है-उदाहरण के लिए जब कोई यह पाता है कि भविष्य एक स्थिर दर P पर कटौती या डिस्काउंट में है तथा ब्याज की दर स्थिर है व r के बराबर है तब बचाई गई आय का अनुपात फलन होता है दर P/r का । यदि P = 0 हो तब यह दर भी शून्य होगी तथा बचत किया गया अनुपात इसके परिणामस्वरूप r से स्वतन्त्र होगा ।
सार संक्षेप:
रामजे अपने मॉडल के सार में यह मत व्यक्त करते है कि किस सीमा तक उनके द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष कुछ कारकों से प्रभावित हो जाते है तथा उनकी व्याख्या में ऐसी कौन-सी सरलीकृत मान्यताएँ हैं जिन्हें उपेक्षित कर देना चाहिए । रामजे के निष्कर्षों पर प्रभाव डालने में समर्थ कारकों में जनसंख्या की सम्भाविद वृद्धि ऐसा घटक है जो कुछ अधिक बचत करने का कारण बन सकती है ।
इसके साथ ही यह सम्भावना भी होती है कि भविष्य में होने वाली खोज तथा एक संगठन में होने वाले सुधार जो वर्तमान की तुलना में कम त्याग के लोगों को आप प्रदान करने में सक्षम हों, भी कम बचत का कारण हो सकता है ।
इस प्रकार खोज के प्रभाव दो विपरीत दशाओं में काम करते है- वह नई आवश्यकताओं को जन्म देते हैं जिनसे कोई बेहतर सन्तुष्ट हो सकता है, जबकि उसने पहले से ही बचत की हो । साथ ही यह उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि करते हैं तथा आरम्भिक बचतों को कम फलों या परिणाम से सम्बन्धित कर देते हैं ।
रामजे ने यह भी स्पष्ट किया कि महत्वपूर्ण कारकों के साथ कुछ गम्भीर घटक भी है, जैसे भविष्य में होने वाली युद्ध की घटनाएँ तथा भूकम्प जो संचय को बरबाद कर सकते हैं ।
इन्हें मात्र इस बात हेतु ध्यान में नहीं रखा जा सकता कि वह दीर्घ समय अवधियों में ब्याज की बहुत कम दर देंगे परन्तु वास्तव में यह तो ऐसी दशाएँ है जो ब्याज की दर को वस्तुत: ऋणात्मक कर देते है जिनके अधीन न केवल ब्याज डूबता है बल्कि साथ ही मूलधन भी ।