हैरोड-डोमर का विकास मॉडल | Harrod-Domar’s Growth Model in Hindi!
Read this article in Hindi to learn about:- 1. हैरोड-डोमर मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Harrod-Domar Model) 2. हैरोड-डोमर मॉडल के सतत् या अविरत वृद्धि (Steady Growth of Harrod-Domar Model) and Other Details.
Contents:
- हैरोड-डोमर मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Harrod-Domar Model)
- हैरोड-डोमर मॉडल के सतत् या अविरत वृद्धि (Steady Growth of Harrod-Domar Model)
- हैरोड-डोमर मॉडल के मान्यताएँ (Assumptions of Harrod-Domar Model)
- हैरोड-डोमर मॉडल की तुलना (Comparison of Harrod-Domar Model)
- हैरोड-डोमर मॉडल के आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of Harrod-Domar Model)
1. हैरोड-डोमर मॉडल की प्रस्तावना (Introduction to Harrod-Domar Model):
प्रतिष्ठित विश्लेषण इस संकल्पना पर आधारित है कि आर्थिक प्रणाली पूर्ण रोजगार पर संतुलन की प्राप्ति करती है । कींज ने स्पष्ट किया कि पूर्ण रोजगार स्वचालित रूप से प्राप्त नहीं होता । कींज का विश्लेषण मुख्यत: अल्पकालिक विश्लेषण था । कींजोपरान्त अर्थशास्त्रियों ने सतत् या अविरत विकास की दशाओं का अध्ययन किया ।
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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी दशाएँ कौन सी होंगी जिसमें सतत् या अविरत वृद्धि की स्थितियाँ मुद्रा मसारिक अथवा मुद्राविस्फीतिक दशाओं से प्रमाणित हुए बिना प्राप्त की जा सकती हैं । कींजोपरान्त विश्लेषण आय वृद्धि की संभावनाओं का अध्ययन एक ऐसी दर पर करने का प्रयास था जिससे सुदीर्धकालिक जड़ता या सुदीर्घकालिक मुद्रा प्रसार को रोका जाना संभव बने ।
पूर्ण रोजगार की स्थिति में कार्य करती विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह प्रवृति देखी जाती है कि शुद्ध बचतें शुद्ध विनियोग की अपेक्षा अधिक होती हैं । इससे अर्थव्यवस्था अर्द्धरोजगार संतुलन की ओर जाने का संकट अनुभव करती है । प्राय: आय वृद्धि की दर उत्पादन क्षमता की दर से कम होने लगती है ।
इससे अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त क्षमता उत्पन्न होने लगती है जो सुदीर्घकालिक जड़ता की परिचायक है । दूसरी ओर, यह संभावना होती है कि उत्पादक क्षमता की दर से अधिक आय में वृद्धि की दर रहे । ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में पूँजी स्टाक की कमी होती है और अर्थव्यवस्था मुद्राप्रसारिक अंतराल या सुदीर्घकालिक मुद्रा प्रसार का अनुभव करने लगती है ।
2. हैरोड-डोमर मॉडल के
सतत् या अविरत वृद्धि (Steady Growth of Harrod-Domar Model):
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विकसित अर्थव्यवस्था द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं के संदर्भ में हैरोड-डोमर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया जो सतत् या अविरत वृद्धि के अनुरक्षण को आधारभूत मानता था । हैरोड-डोमर मॉडल ऐसी दर को निर्धारित करने का प्रयास है जिससे राष्ट्रीय उत्पादन में अविरत व बाधा रहित वृद्धि की दशाएं उत्पन्न हो सकें तथा साथ ही दीर्घकाल तक पूर्ण बेरोजगार स्तर को बनाए रखा जाना संभव हो अर्थात् संतुलित वृद्धि प्राप्त हो सके ।
सतत् या अविरत वृद्धि की धारणा को आधार मान आर.एफ. हैरोड एवं ई.डी. डोमर ने वृद्धि सिद्धांत प्रस्तुत किया । हैरोड ने अपना मॉडल डोमर से पहले प्रस्तुत किया । विस्तार में जाने पर उनके मॉडल में भिन्नता दिखाई देती है लेकिन अन्तनिर्हित आधारभूत विचार एक ही है ।
आर्थिक वृद्धि की समस्याओं का विश्लेषण करते हुए पूर्ववर्त्ती अर्थशास्त्रियों की भाँति हैरोड-डोमर ने पूंजी संचय को महत्वपूर्ण माना । प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने मात्र पूँजी संचय के पूर्ति पक्ष पर ध्यान केन्द्रित किया तथा माँग पक्ष की समस्याओं पर विचार नहीं किया । तदुपरान्त कींज ने (1930) की महामंदी की विकराल समस्या के संदर्भ में माँग पक्ष को अपनी व्याख्या का आधार बनाया तथा क्षमता या पूर्ति की समस्या पर विचार नहीं किया ।
हैरोड-डोमर ने माँग एवम पूर्ति दोनों पक्षों को ध्यान में रखा । उन्होनें पूंजी संचय के दोहरे प्रभाव की महत्ता को रेखांकित किया । हैरोड-डोमर के अनुसार- शुद्ध विनियोग एक तरफ आय का सृजन करता है । इस प्रकार उत्पादन की माँग का सृजन करता है । दूसरी ओर यह अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता को अपने पूँजी स्टाक में वृद्धि कर बढ़ाता है ।
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इस प्रकार किसी समय अवधि में अर्थव्यवस्था में शुद्ध विनियोग एक माँग प्रभाव के साथ ही एक क्षमता प्रभाव भी उत्पन्न करता है । वृद्धि की इस प्रक्रिया में समग्र माँग एवं समग्र उत्पादन बराबर होता है तथा आय एवं उत्पादन को वास्तविक स्तर संतुलन में रहता है ।
विनियोग की महत्वपूर्ण भूमिका : हैरोड-डोमर ने अपने वृद्धि मॉडल में विनियोग की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है । उनके अनुसार विनियोग से आय का सृजन होता है जिसे विनियोग का माँग प्रभाव कहा जाता है । दूसरी तरफ यह अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है जिसे विनियोग का पूर्ति पक्ष कहा जाता है ।
जब तक शुद्ध विनियोग किया जाता रहेगा, वास्तविक आय एवं उत्पादन में वृद्धि होती रहेगी । आय के पूर्ण रोजगार संतुलन स्तर को बनाए रखने के लिए शुद्ध आय एवम् उत्पादन एक समान दर पर बढ़ते हैं । इसके परिणामस्वरूप पूँजी स्टाक की उत्पादक क्षमता में विस्तार होता है । यदि मांग एवं पूर्ति पक्ष में कोई भिन्नता देखी जाती है तो इससे अतिरिक्त क्षमता उत्पन्न होती है तथा उपक्रमी अपने विनियोग व्यय को सीमित करने के लिए बाध्य होता है ।
अत: आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के आय व रोजगार स्तर में कमी आती है तथा अर्थव्यवस्था सतत् या अविरत वृद्धि के पथ से हटने लगती है । स्पष्ट है कि यदि दीर्घकाल में पूर्ण रोजगार की दशा को बनाए रखना है तब शुद्ध विनियोग को नियमित रूप से बढ़ाना आवश्यक होगा । आय में वृद्धि की आवश्यक दर को पूर्ण क्षमता वृद्धि दर कहा गया ।
3. हैरोड-डोमर मॉडल के
मान्यताएँ (Assumptions of Harrod-Domar Model):
हैरोड-डोमर मॉडल की मान्यताएँ निम्न हैं:
i. अर्थव्यवस्था आय के पूर्ण रोजगार संतुलन की अवस्था में है ।
ii. सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता ।
iii. बंद अर्थव्यवस्था की परिकल्पना की गई है- जिससे अभिप्राय यह है कि विदेशी व्यापार का प्रभाव अनुपस्थित है ।
iv. बचत की औसत एवं सीमांत प्रवृतियाँ स्थिर हैं अर्थात् दीर्घकाल में बचत फलन रेखीय है तथा मूल बिंदु से होकर गुजरता है ।
v. समायोजन में कोई अंतराल विद्यमान नहीं है अर्थात् विनियोग एवं उत्पादन क्षमता के उत्पन्न होने के समय समायोजन शीघ्र हो जाता है ।
vi. पूँजी गुणांक स्थिर है अर्थात् पूँजी स्टाक का उत्पादन से अनुपात स्थिर है ।
vii. केवल एक प्रकार के उत्पाद का उत्पादन किया जाता है ।
viii. उत्पादन की प्रक्रिया में पूँजी व श्रम के स्थिर अनुपात हैं । उत्पादन स्थिर साधन अनुपातों की दशा के अधीन होता है । इससे अभिप्राय है कि उत्पादन में पूँजी के बदले श्रम को प्रतिस्थापित करने की कोई संभावना विद्यमान नहीं है ।
ix. कीमत स्तर स्थिर है अर्थात् राष्ट्रीय उत्पाद को स्थिर कीमतों पर उत्पादित किया जाता है ।
x. पूँजी स्टाक पर कोई ह्रास नहीं है ।
xi. ब्याज की दरों को स्थिर माना गया ।
उपर्युक्त मान्यताओं को विश्लेषण की सरलता हेतु ध्यान में रखा गया है । इनसे मुक्त होकर या इनमें कुछ संशोधन करते हुए भी हैरोड-डोमर विश्लेषण व्याख्या प्रभावित नहीं होती ।
4. हैरोड-डोमर मॉडल की तुलना (
Comparison of Harrod-Domar Model):
विकसित अर्थव्यवस्था के संदर्भ में हैरोड-डोमर मॉडल सतत् व अविरत वृद्धि की आवश्यकताओं का विवेचन करते है । दोनों के मॉडल में पूँजी की महत्वपूर्ण भूमिका है । पूंजी-उत्पादन अनुपात में दिए होने पर जब तक बचत की औसत प्रवृति (APS) बचत की सीमांत प्रवृत्ति MPS के बराबर होती है । बचत व विनियोग की समानता वृद्धि की साम्य दर की दशा को संतुष्ट करती है ।
यह स्पष्ट किया जा सकता है कि हैरोड का आधारभूत समीकरण GC = S डोमर के समीकरण ∆I/I = α σ के समान है ।
हैरोड का समीकरण GC = s
स्पष्ट है कि दोनों मॉडलों में सतत् या अविरत वृद्धि की दशाएँ एक समान हैं । यह भी प्रदर्शित किया जा सकता है कि हैरोड द्वारा वर्णित वृद्धि की आवश्यक दर Gw, डोमर द्वारा वर्णित वृद्धि की स्थायी दर α σ के समान है ।
इसे निम्न अकार स्पष्ट किया जा सकता है:
चूँकि डोमर का α, हैरोड के s के समान है तथा डोमर का σ हैरोड के Cr का व्युत्क्रम है अत: डोमर की दशाएँ ठीक हैरोड की भाँति हैं ।
5. हैरोड-डोमर मॉडल के
आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of Harrod-Domar Model):
आर्थिक प्रावैगिकी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए हैरोड-डोमर ने तत्कालीन परिस्थितियों के प्रसंग में वृद्धि विश्लेषण प्रस्तुत किया । यह एक ऐसा समय था जब एक ओर विश्व महामंदी और दूसरी तरफ सोवियत क्रांति की घटनाओं ने अर्थशास्त्रियों का ध्यान आकृष्ट किया ।
सोवियत नियोजन के अधीन अविरल आर्थिक वृद्धि एवम बढ़ते हुए रोजगार की संभावनाएँ दिख रही थीं तो वहीं पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में आय गिर रही थी व बेरोजगारी बढ़ रही थी । इस परिपेक्ष्य में हैरोड-डोमर ने वृद्धि की उस अविरल दर को पूर्ण रोजगार स्तर पर बनाए रखने पर जोर दिया जिसमें मुद्रा या मुद्रा संकुचन के खतरे न होते । इसके साथ ही उन्होंनें उन परिस्थितियों को समझाना चाहा जिनके अधीन राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि की दर ऐसी होती जिसमें अर्थव्यवस्था सुदीर्घकालिक जड़ता या सुदीर्घक्सलक मुद्रा-प्रसार से बची रह सके ।
उन्होंने अपने वृद्धि मॉडल दारा स्पष्ट किया कि सतत् वृद्धि हेतु विनियोग एक ओर आय के सृजन व दूसरी ओर उत्पादन क्षमता में वृद्धि करते हुए दोहरी भूमिका का निर्वाह करता है । बड़ी हुई क्षमता के द्वारा अधिक उत्पादन प्राप्त होता है जो आय की वृद्धि पर निर्भर करता है ।
यदि आप एक विशिष्ट दर पर इस प्रकार बढ़े कि वह पूर्ण रोजगार बचतों का पूर्ण अवशोषण करें तथा पूँजी स्टाक का उपयोग करें तो पूर्ण रोजगार को बनाए रखना संभव होता है । हैरेज-डोमर मॉडल के निष्कर्ष कुछ विशिष्ट मान्यताओं पर आधारित थे जिनके कारण यह मॉडल व्यावहारिक दृष्टि से सीमित उपभोग रखता है ।
मॉडल की मुख्य सीमाएँ निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट की जा सकती हैं:
i. श्रम एवम पूंजी में निश्चित की मान्यता दोषपूर्ण:
श्रम एवम् पूँजी को निश्चित अनुपातों में प्रयोग किए जाने की मान्यता दोषपूर्ण है । इसका कारण यह कि उत्पादन के विभिन्न साधनों को किसी सीमा तक प्रतिस्थापित किया जा सकता है । नवप्रतिष्ठित मॉडलों में उत्पादन के दो साधनों के मध्य उचित प्रतिस्थापन करते हुए अर्थव्यवस्था के सतत या अविरत वृद्धि के मार्ग पर चलने की संभावना व्यक्त की गयी ।
ii. हैरोड-डोमर मॉडल में बचत प्रवृति (α या S) एवम् पूंजी उत्पाद अनुपात σ को स्थिर माना गया है । वस्तुत: दीर्घकाल में बचत प्रकृति एवम् पूँजी उत्पादन अनुपात में परिवर्तन होना स्वाभाविक है । सतत् या अविरत वृद्धि की आवश्यकताओं हेतु भी इनमें परिवर्तन होता है । स्वयं डोमर यह मान कर चलते हैं कि यह मान्यता आवश्यक नहीं है तथा इस समस्या को चर α एवम σ के द्वारा सुलझाया जा सकता है ।
iii. हैरोड-डोमर मॉडल में कीमत स्तर को स्थिर माना जा सकता है जबकि व्यावहारिक रूप से सापेक्षिक कीमतें समय के साथ बदलती हैं । मेयर एवं बाल्डविन के अनुसार यदि कीमत परिवर्तन एवम उत्पादन में परिवर्ती अनुपातों को सम्भव माना जाए तो प्रणाली में हैरोड से कहीं अधिक सुदृढ़ स्थायित्व को बनाए रखना संभव हो सकता है ।
iv. यह मान्यता कि ब्याज की दरों में कोई परिवर्तन नहीं होता अवास्तविक एवं अनावश्यक है । ब्याज की दर विनियोग निर्णयों में एक प्रमुख घटक नहीं है लेकिन अति उत्पादन अवधि में ब्याज दर में होने वाली एक कमी पूँजी की माँग में वृद्धि करती है एवम् इस प्रकार वस्तुओं की सीमित पूर्ति को कम करना संभव बनता है ।
v. हैरोड-डोमर विश्लेषण में आर्थिक वृद्धि पर सरकारी कार्यक्रमों के प्रभाव का विश्लेषण नहीं किया गया है, जबकि वर्तमान समय में नियोजन के द्वारा वृद्धि की उच्च दरों को संयोजित किया जाता है ।
vi. इस मॉडल में उपकमी के व्यवहार को थान में नहीं रखा गया है जो कि अर्थव्यवस्था में विकास की आवश्यक दर को प्राप्त करने हेतु आवश्यक है ।
vii. हैरोड-डोमर मॉडलों की प्रवृति सामूहिकीकरण पर आधारित है । उन्होंने विभिन्न समूहों को उनके घटकों में विभक्त करते हुए विकास की संरचनात्मक विशिष्टताओं को ध्यान में नहीं रखा ।
viii. हैरोड-डोमर मॉडल में उपभोक्ता वस्तुओं एवत् पूँजीगत वस्तुओं में भेद को स्पष्ट नहीं किया गया है ।
ix. ब्रूस हैरिक एवं चार्ल्स किडले बर्जर के अनुसार यह मॉडल अनुभव सिद्ध अवलोकन पर खरा नहीं उतरता ।
उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद हैरोड-डोमर विश्लेषण इस कारण महत्वपूर्ण है कि यह आर्थिक बुद्धि की समस्या से संबंधित आधारभूत समस्याओं को खोजने का प्रयास करता है । केनिध के. कुरिहारा के अनुसार हैरोड-डोमर वृद्धि मॉडल पूर्ण रूप से अबंध नीति पर आधारित है जो वित्तीय तटस्थता की मान्यता को ध्यान में रखता है । इसके साथ ही एक उन्नत अर्थव्यवस्था में प्रगतिशील साम्य की दशाओं को सूचित करने के लिए बनाया गया है ।
यह इस कारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कींज के स्थैतिक अल्पकालीन बचत व विनियोग सिद्धांत का प्रावैगिक विवेचन प्रस्तुत करता है ।