एचडब्ल्यू सिंगर का आर्थिक विकास का मॉडल | Read this article in Hindi to learn about:- 1. सिंगर के मॉडल का संख्यात्मक उदाहरण (Numerical Illustration of Singer’s Model) 2. सिंगर के मॉडल योजना (Singer’s Model Scheme) and Other Details.

प्रो. एच. डब्ल्यू. सिंगर ने अपने शोध लेख The Mechanics of Economic Development (1952) में अर्द्धविकसित देशों में विकास नियोजन के कुछ महत्वपूर्ण सम्बन्धों को व्याख्यायित किया ।

प्रो. सिंगर ने एक संख्यात्मक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए हैरोड डोमर एवं हिक्स की भाँति एक सामान्य मॉडल की व्याख्या की जिसकी सहायता से विकास नियोजन की कुछ समस्याओं एवं उनके आपसी अर्न्तसम्बन्ध की व्याख्या की गई ।

सिंगर के मॉडल का संख्यात्मक उदाहरण (Numerical Illustration of Singer’s Model):

सिंगर के मॉडल का महत्वपूर्ण भाग अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की विशिष्ट संरचना को प्रकट करता है । इसे उन्होंने मॉडल योजना के द्वारा स्पष्ट किया ।

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जिसकी निम्न मान्यताएँ हैं:

(1) कुल जनसंख्या का 70 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र में है ।

(2) कुल राष्ट्रीय आय में कृषि का क्षेत्र 40 प्रतिशत है ।

(3) औसत प्रति व्यक्ति आय के साथ कृषि से प्राप्त प्रति व्यक्ति आय का अनुपात 57 प्रतिशत है ।

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(4) अल्पविकसित समुदाय में 1000 व्यक्तियों की जनसंख्या की परिकल्पना की गई है । इस समुदाय के लिए प्रचलित कीमतों के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति की आय 100 डालर निश्चित की गयी है । इस प्रकार समुदाय की कुल राष्ट्रीय आय 1,00,000 डालर होगी ।

यह कल्पना की गई है कि आय का अनुमान लगाने की एक उचित विधि उपलब्ध कर ली गई है । ऐसा निर्णय नहीं किया गया है कि राष्ट्रीय आय का अनुमान आर्थिक कल्याण, भौतिक साधनों अथवा केवल बाजार अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध साधनों का निरूपण करता है ।

(5) अल्पविकसित समुदाय को एक कृषि क्षेत्र एवं गैर कृषि क्षेत्र में बाँटा गया है । अल्पविकसित समुदाय की यह विशेषता है कि उनकी 60 से 80 प्रतिशत तक जनसंख्या कृषि में संलग्न रहती है । यह परिकल्पना की गई है कि 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में तथा शेष 30 प्रतिशत अन्य क्षेत्रों में कार्यरत है ।

(6) मॉडल में कृषि क्षेत्र में लगे 1000 व्यक्तियों में कृषि क्षेत्र के 700 व्यक्तियों की प्रति व्यक्ति आय 57 डालर निश्चित की गई है तथा गैर कृषि क्षेत्र के 300 व्यक्तियों की प्रति व्यक्ति आय 200 डालर है ।

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यह माना गया है कि अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में कृषि क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय कुल औसत प्रति व्यक्ति आय का 55-60 प्रतिशत होती है । चूँकि गैर कृषि क्षेत्र का आकार छोटा होता है ।

अत: कृषि क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय कुल औसत प्रति व्यक्ति आय के 57 प्रतिशत के बराबर निश्चित करने का अर्थ होगा कि गैर कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से दुगनी होगी । राष्ट्रीय औसत की तुलना में गैर कृषि क्षेत्र की औसत आय का उच्च अनुपात अवलोकित तथ्यों एवं सामान्य धारणा के अनुरूप है ।

(7) कृषि क्षेत्र एवं गैर-कृषि क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय स्तरों की मान्यता को ध्यान में रखते हुए भी आय को दोनों क्षेत्रों में सापेक्षिक कल्याण के माप के रूप में प्रयुक्त नहीं किया गया है ।

(8) कृषि क्षेत्र में उत्पादित आय कुल राष्ट्रीय आय का केवल 40 प्रतिशत भाग है, जबकि अधिकांश जनसंख्या कृषि क्षेत्र में लगी हुई है ।

(9) आर्थिक विकास की गति या दर उस गति के बराबर कही जा सकती है जिसके अनुसार आर्थिक संरचना सम्बन्धी 70:30 का अनुपात 20:80 के अनुपात के समीप आता है । यह विकास के उच्च स्तर पर सन्तुलन को अभिव्यक्त करता है ।

(10) ऐसी अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में जहाँ तीव्र गति से आर्थिक विकास की प्रक्रिया चल रही हो, एक सुविधापूर्ण पूर्व धारणा यह है कि इसकी कृमि में लगे व्यक्तियों की निरपेक्ष संख्या स्थिर रहेगी ।

संरचना में होने वाला परिवर्तन जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि के अकृषि क्षेत्र में केन्द्रित होने का परिणाम होता है । कुछ देशों में जहाँ निश्चित जनसंख्या वाले क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया हो रही हो, यह पूर्वधारणा उचित रूप से सत्य सिद्ध हुई है ।

(11) माना गया है कि जनसंख्या में 1.25 प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि होती है अर्थात् मॉडल में 1000 जनसंख्या में पहले वर्ष में 12.5 की वृद्धि होगी । पूर्व मान्यता के अनुरूप कृषि पर निर्भर जनसंख्या 700 ही की रहती है, अत: जनसंख्या में होने वाले 12.5 व्यक्तियों की वृद्धि गैर कृषि क्षेत्र के 300 व्यक्तियों के साथ जुड़ेगी ।

इस पूर्व धारणा के आधार पर संरचना सम्बन्धी अनुपात 70:30 से लगभग 69.1:30.9 हो जाता है । यदि आर्थिक विकास की अवधि में जनसंख्या वृद्धि की दर कम हो जाये तो इसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष संरचना सम्बन्धी परिवर्तन की मात्रा तदनुरूप कम हो जाएगी ।

(12) गैर कृषि क्षेत्र में 12.5 व्यक्तियों की वृद्धि में से 3.75 व्यक्ति गैर कृषि-क्षेत्र में जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि के कारण बढ़ते हैं और 8.75 व्यक्ति कृषि क्षेत्र की जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि से वहाँ के गैर कृषि क्षेत्र के स्थानान्तरण के कारण बढ़ते हैं ।

सिंगर के मॉडल योजना (Singer’s Model Scheme):

विकास की रूपरेखा:

सिंगर के विकास कार्यक्रमों की समग्र लागत एवं लाभ (Aggregate Costs and Benefits of the Development Programme of Singer):

प्रो. सिंगर के अनुसार:

विकास कार्यक्रम की कुल लागत = 21,800 डालर

इसमें औद्योगीकरण की लागत = 14,4000 डालर

कृषि विकास की लागत = 4,800 डालर

एवं गैर कृषि क्षेत्र में जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि के लिए पूँजी उपकरणों की व्यवस्था करने की लागत = 3,000 डालर

विनियोग से प्राप्त लाभ राष्ट्रीय आय में 4,283 डालर वार्षिक वृद्धि करता है अर्थात् कुल राष्ट्रीय आय में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि होती है । जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में मात्र 3 प्रतिशत वृद्धि होती है ।

इसे वृद्धि की काफी तीव्र दर कहा जा सकता है जिसका कारण यह है कि अंशत: संरचनात्मक परिवर्तन की तीव्र दर की परिकल्पना की गई है, इसके साथ ही अंशत: यह परिकल्पित संरचनात्मक परिवर्तन के साथ-साथ उपभोग में होने वाले अनिवार्य परिवर्तन से सम्बन्धित संकल्पना का परिमाण है ।

यदि इनसे दुर्बल संकल्पनाएँ ध्यान में रखी जाएँ तो प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में 3 प्रतिशत से कम वृद्धि होगी । सिंगर के अनुसार 21,800 डालर की कुल लागत मानी गयी राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत है ।

यह काफी अधिक विनियोग दर है जो निम्न आय स्तरों पर प्रायः प्राप्त नहीं हो पाती । यदि यह मान कर चलें कि प्रति व्यक्ति 100 डालर आय स्तर से सम्बद्ध नए विनियोग के लिए उपलब्ध शुद्ध बचतें 6 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकतीं ।

अत: इस विकास रूपरेखा के लिए वित्त जुटाने के प्रयास में मात्र 6,000 डालर ही उपलब्ध हो पाएंगे न कि 21,800 डालर । अत: अल्पविकसित समुदाय के विकास कार्यक्रम की वित्त व्यवस्था में 15,800 डालर का घाटा होगा । उपर्युक्त से स्पष्ट है कि पूंजी विनियोग के द्वारा एक अल्पविकसित समुदाय तीव्र आर्थिक विकास के कार्यक्रम को वित्त प्रदान करने हेतु मात्र घरेलू उपलब्ध संसाधनों के द्वारा सफल नही हो सकता ।

अत: स्थिति को सुधारने के लिए चार सम्भावित विकल्प हैं:

(1) पूँजी आय अनुपात को कम करके अथवा प्रति इकाई रोजगार में लगी पूंजी की उपज में वृद्धि करके विकास कार्यक्रम की लागत कम करना । इसके लिए श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग एवं अल्पविकसित समुदाय के बेरोजगार तथा अर्द्धबेकार श्रम के विनियोग पर आधारित विवाद रहित प्रकार का विनियोग किया जाये ।

(2) वर्तमान आय वितरण की परिस्थिति में स्वेच्छा से स्वीकृत प्रति व्यक्ति 94 डालर के प्रारम्भिक उपभोग को घटाकर शुद्ध बचत में वृद्धि की जाये ।

(3) जनसंख्या में वृद्धि की दर को कम किया जाये ।

इस मॉडल में इसके फलस्वरूप तीन कारणों से आवश्यक पूँजी की मात्रा कम होगी:

(अ) कृषि जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए कम व्यक्तियों को कृषि-क्षेत्र से स्थानान्तरित करना पड़ेगा ।

(ब) इसके परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन में कम वृद्धि की आवश्यकता पड़ेगी और इस कारण कृषि विनियोग सम्बन्धी कार्यक्रम में कमी की जा सकती है ।

(स) गैर कृषि क्षेत्र की जनसंख्या में कम प्राकृतिक वृद्धि होगी अत: इस मॉडल में विकास कार्यक्रम की कुल लागत उसी अनुपात में कम होगी जिस अनुपात से जनसंख्या की वृद्धि की दर कम होगी ।

(4) अन्त में यदि समुदाय के घरेलू संसाधनों की बाह्य संसाधनों द्वारा पूर्ति की जाये तब भी विकास कार्यक्रमों को पूर्ण किया जा सकता है ।

उपर्युक्त में से पहले तीन उपायों को संक्षेप में एक मात्रात्मक मॉडल के बजाय हैरौड-डोमर जैसे प्रावैगिक समीकरण द्वारा अच्छी तरह अभिव्यक्त किया जा सकता है, इसे सामान्यतः मॉडल के रूप में आगे प्रस्तुत किया गया है । इससे पूर्व मॉडल योजना को चौथे उपाय की सहायता से स्पष्ट करते हैं ।

विदेशी पूँजी की सहायता से विकास कार्यक्रमों को संचालित करना:

सिंगर यह मानकर चलते हैं कि प्रारम्भिक वर्ष में 15,800 डालर का कुल घाटा होता है जिससे विदेशी पूंजी के अर्न्तप्रवाह द्वारा समायोजित किया जाता है ।

इसके फलस्वरूप निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होंगी जो आपस में सम्बन्धित हैं:

1. विदेशी पूँजी के अर्न्तप्रवाह देश में कितनी लम्बी समय अवधि तक चलते रहेंगे जिससे विकास हेतु आवश्यक आन्तरिक संसाधनों द्वारा वित्त जुटाया जा सके ।

2. उपर्युक्त के परिणामस्वरूप अन्ततः पूंजीगत ऋण कितना होगा ?

3. विदेशी पूँजी उधार लेने वाले देश के भुगतान सन्तुलन में कितना अतिरेक होना चाहिए ताकि वह लिए गए ऋण को वापस कर सके ।

इन प्रश्नों के उत्तर इस बात पर निर्भर करते हैं कि आर्थिक विकास कार्यक्रमों के फलस्वरूप होने वाली वृद्धि का किस ढंग से प्रयोग किया जाता है । यदि सारी वृद्धि का उपभोग कर लिया जाता है तथा शुद्ध बचत 6,000 डालर वार्षिक ही रहता है तो समस्या का समाधान किया जाना सम्भव न होगा ।

चूँकि कुल जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ आवश्यकताएँ बढ़ती जाती हैं अत: घाटा बढ़ता जाएगा, विदेशी पूंजी पर निर्भरता की अवधि अनन्त होगी एवं कुल ऋण की मात्रा असीमित होगी ।

सिंगर ने अपने मॉडल में आय में होने वाली प्रति व्यक्ति वृद्धि के प्रबन्धन को तीन मान्यताओं के अधीन रखा:

(1) बचतों की एक उच्च सीमान्त दर का 50 प्रतिशत होना ।

(2) बचतों की कुछ अधिक सीमान्त दर का 20 प्रतिशत होना ।

(3) बचतों की सीमान्त दर का बचतों की औसत दर (6 प्रतिशत) से अधिक न होना ।

मॉडल योजना से स्पष्ट है कि पहली परिस्थिति में विकास 13 वर्षों में स्वावलम्बी हो जाता है; दूसरी परिस्थिति में इसके लिये 55 वर्ष लगते हैं । तीसरी परिस्थिति में विकास कभी स्वावलम्बी नहीं हो सकता ।

अन्तिम निष्कर्ष विचारणीय है, चूँकि विकास कार्यक्रमों की लागत प्रति वर्ष 1¼ प्रतिशत बढ़ती है अत: पहले वर्ष में 197 डालर एवं उससे अगले वर्षों में संचयी रूप से और अधिक बढ़ेगी अत: स्वावलम्बी विकास की दृष्टि से बचत में 180 डालर की वृद्धि अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होगी ।

सिंगर के सामान्य मॉडल (Singer’s General Model):

सामान्य रूप से समस्या पर विचार करने के लिए प्रो. सिंगर ने निम्न प्रश्नों को महत्वपूर्ण माना:

 

(1) शुद्ध बचत, उत्पादकता एवं जनसंख्या वृद्धि की दर के दिए होने पर विकास की सम्भावित दर क्या होगी ?

(2) आर्थिक विकास की लक्ष्य दर के दिए होने एवं उत्पादकता व जनवृद्धि की दर के दिए होने पर विकास की नियत दर के समर्थन हेतु कितनी शुद्ध बचतें आवश्यक होंगी ?

(3) आर्थिक विकास की नियत दर के दिए होने एवं बचत व उत्पादकता की दर के लिए होने पर जनसंख्या वृद्धि की किस दर को समर्थन दिया जा सकता है ?

(4) आर्थिक विकास की नियत दर के दिए होने तथा बचत व जनसंख्या वृद्धि दर के दिए होने पर प्रति व्यक्ति पूँजी रोजगार हेतु नए विनियोग की उत्पादकता क्या होगी ?

सिंगर के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।

उपर्युक्त प्रश्नों के समाधान हेतु सिंगर ने हैरोड डोमर की भाँति निम्न समीकरण प्रस्तुत किया:

D = Sp – r

जहाँ, D = आर्थिक विकास की दर जिसे प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि द्वारा परिभाषित किया गया है तथा यह माना गया है कि यह प्रति व्यक्ति पूँजी की वृद्धि के अनुपाती होगा ।

S = शुद्ध बचतों की दर

P = प्रति इकाई पूंजी पर नए विनियोग की उत्पादकता

r = जनसंख्या वृद्धि की वार्षिक दर

समीकरण के सभी प्राचलों को निम्न मान प्रदान करने पर:

D = 2 प्रतिशत अथवा प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वार्षिक वृद्धि,

S = 6 प्रतिशत अर्थात् शुद्ध राष्ट्रीय आय में शुद्ध बचतों की दर,

P = 1:5 (सामान्य विनियोग हेतु पूँजी-आय अनुपात),

r = 1¼ प्रतिशत (जनसंख्या वृद्धि की वार्षिक दर) ।

इसकी सहायता से उपर्युक्त प्रश्नों का समाधान निम्न है:

(1) शुद्ध बचत उत्पादकता एवं जनसंख्या की वृद्धि दर के दिए होने पर विकास की दर का निर्धारण समीकरण D = sp – r में s = 6, प = 5/1 व r = 5/4 रखने पर

D = 6 × 5/1 – 5/4 = 1/20

अत: इस दशा में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में कोई सुधार नहीं होता तथा विनियोग के उपाय द्वारा आर्थिक विकास सम्भव नहीं होता । अत: अर्थव्यवस्था एक स्थिर अवस्था में रहेगी ।  चूँकि बचत, जनसंख्या वृद्धि एवं पूंजी आय अनुपात के प्राचल काफी अधिक वास्तविक माने गए हैं अत: यह समीकरण काफी न्यून आय स्तरों पर अर्द्धविकसित देशों में नियमित विकास की कमी को सूचित करता है ।

(2) पूंजी की उत्पादकता, जनसंख्या वृद्धि की दर एवं आर्थिक विकास की दर के दिए होने पर विकास की लक्ष दर प्राप्त करने के लिए शुद्ध बचतों की दर का आंकलन-

समीकरण:

D = Sp – r में D = 2, p = 1/5 तथा r = 5/4 रखने पर,

2 = s 1/5 -5/4

S = 16¼%

स्पष्ट है कि विकास की नियत दर को सम्भव करने के लिए शुद्ध बचतों की दर का 16¼ प्रतिशत होना आवश्यक है, बचत की यह दर अल्पविकसित देशों में वास्तविक रूप से पायी गयी बचत दर से तीन गुना अधिक है ।

(3) शुद्ध बचतों की दर, उत्पादकता एवं विकास की लक्ष्य दर के दिए होने पर जनसंख्या वृद्धि की दर का आंकलन- समीकरण में D = 2 S = 6, r = 5/4 के मान प्रतिस्थापित करने पर-

2 = 6p – 5/4

6p = 13/4 अत: p = 54%

स्पष्ट है कि प्रति इकाई पूँजी पर नए विनियोग की उत्पादकता 54% होगी । इससे अभिप्राय है कि पूँजी आय अनुपात 2:1 से कम होगा । यदि विनियोग की सामान्य उत्पादकता 20 प्रतिशत हो या पूँजी आय अनुपात 5:1 है तो इससे अभिप्राय है कि विकास की नियत दर केवल तब बनाए रखी जा सकती है जब ऐसी तकनीकों को खोजा जा सके जो वर्तमान पूँजी विनियोग के सापेक्ष एक-तिहाई विनियोगों द्वारा सम्भव बन सके ।

सिंगर के अनुसार यह अन्तिम परिणाम समस्या की जड़ तक पहुँचता है । यह मानते हुए कि पूँजी की उत्पादकता केवल 20 प्रतिशत है एवं तकनीक, पूँजी आय अनुपात (5:1) पर स्थिर है तो ऐसी दशा में विनियोग से कोई आर्थिक प्रगति सम्भव नहीं होगी जब तक उत्पादन को बेरोजगार एवं अर्द्धरोजगार मानव शक्ति एवं प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग द्वारा न बढ़ाया जा सके एवं ऐसा करते हुए पूँजी की अतिरिक्त मात्राओं का प्रयोग न किया जाये । वैकल्पिक उपाय यह है कि समस्त नए विनियोग की तकनीक को श्रम उत्पादकता की दिशा में मोड़ दिया जाये ।

संक्षेप में यह उपाय निम्न तीन हैं:

(1) छद्म रूप से बेकार मानव शक्ति का उपयोग करना ।

(2) नए विनियोग की तकनीक की श्रम गहनता में वृद्धि करना ।

(3) विद्यमान पूंजी की उत्पादकता में वृद्धि करना ।

सिंगर एक अन्य विधि भी स्पष्ट करते हैं- यदि प्रति इकाई पूँजी का चाहे जाने वाला उत्पादन 54 प्रतिशत है लेकिन वार्षिक उत्पादन केवल 20 प्रतिशत हो तब यह सम्भव है कि आर्थिक विकास की नियत दर को बनाए रखा जा सके ।

इसके लिए आवश्यक है कि उत्पादन में 1.7 गुना अधिक वृद्धि हो । यह एक नए विनियोग द्वारा प्राप्त हो सकती है जिसका होना इस बात पर निर्भर करता है कि विद्यमान पूँजी की उत्पादकता में वृद्धि हो ।

चूँकि उत्पादन में वार्षिक वृद्धि 3¼ प्रतिशत है (अर्थात् प्रति व्यक्ति आय में 2 प्रतिशत तथा जनसंख्या में 1¼ वृद्धि एवं यह भी माना गया है कि उत्पादन में होने वाली वृद्धि पूँजी की मात्रा में होने वाली वृद्धि से सम्बन्धित है अर्थात् यह 3¼ प्रतिशत वार्षिक बढ़ती है ।

अत: स्पष्ट है कि उत्पादन में 1.7 गुना अतिरिक्त वृद्धि करने के लिए विद्यमान पूँजी की उत्पादकता को 1.7 × 3.25 या 5.525 प्रतिशत बढ़ाना पड़ेगा । विकास की यह नियत दर केवल तब बनी रह सकती है यदि सामान्य विनियोग के साथ विद्यमान पूँजी की उत्पादकता ठीक इसी समय 5½ प्रतिशत से अधिक बढ़ायी जाये ।

अन्त में, सिंगर ने समीकरण D = sp – r में जनसंख्या वृद्धि की दर r के बारे में स्पष्ट किया कि समीकरण में r एक ऋणात्मक घटक है जिसमें ऋण चिन्ह है । इससे यह विचार सत्यापित नहीं होता कि जनसंख्या आर्थिक विकास में एक बाधा है ।

मूल्यांकन:

एच. डबल्यू. सिंगर ने अल्पविकसित समुदाय की विकास प्रक्रिया में मात्रात्मक रूप से कुछ महत्वपूर्ण सम्बन्धों को स्पष्ट किया । उनके अनुसार विकास संरचनात्मक परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिसके अधीन कृषि जनसंख्या में होने वाली शुद्ध वृद्धि गैर कृषि क्षेत्र की ओर हस्तान्तरित होती है ।

सिंगर ने अपने विश्लेषण में स्पष्ट किया कि प्रति व्यक्ति आय में 3 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए समग्र विनियोग में 22 प्रतिशत की वृद्धि आवश्यक है । ऐसा होने पर अर्द्धविकसित देशों पर जो वित्तीय भार पड़ता है, उसका स्पष्ट विवेचन सिंगर के द्वारा नहीं किया गया है ।

सिंगर का मॉडल अर्द्धविकसित देशों के आर्थिक विकास में जनसंख्या वृद्धि के विपरीत प्रभावों की व्याख्या नहीं करता । सिंगर ने छद्म रूप से बेकार श्रम शक्ति के उपयोग हेतु अधिक श्रम गहन तकनीक को अपनाने पर बल दिया ।

वस्तुत: सिंगर के मॉडल के सामान्यीकृत रूप में हैरोड-डोमर की भाँति के समीकरणों द्वारा विश्लेषण दिया गया जो विकास की प्रक्रिया में निहित विविध चरों के अर्न्तसम्बन्धों की जानकारी प्रदान करते हैं । आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने वाले घटकों में शुद्ध बचत, पूँजी निर्माण नए विनियोगों की उत्पादकता एवं जनसंख्या वृद्धि को महत्ता प्रदान की गई ।

सिंगर का मॉडल किसी सीमा तक व्यवहारिक मान्यताओं के आधार पर अल्पविकसित देश में वृद्धि की प्रक्रिया का विवेचना करता है ।

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