एक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय और व्यय | Read this article in Hindi to learn about:- 1. खुली एवं बन्द अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय एवं व्यय (National Income and Expenditure in Open and Closed Economy) 2. निर्यातों में स्वायत्त वृद्धि के साध साम्य आय एवं विदेशी व्यापार गुणक (Equilibrium Income and the Foreign Trade Multiplier with an Autonomous Change in Exports) and Other Details.
खुली एवं बन्द अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय एवं व्यय (National Income and Expenditure in Open and Closed Economy):
भुगतान सन्तुलन की आय विधि में सर्वप्रथम यह स्पष्ट किया जाता है कि एक देश के राष्ट्रीय आय खाते में विदेश व्यापार को किस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है ।
एक देश की राष्ट्रीय आय से अभिप्राय है उत्पादन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त आय जो उन वस्तु व सेवाओं के उत्पादन से प्राप्त होती है जिन्हें इन साधनों द्वारा उत्पादित किया जाता है ।
इस प्रकार राष्ट्रीय आय को साधन लागतों द्वारा मापा जाता है जो उत्पादक साधनों की प्राप्तियों हैं । वैकल्पिक रूप से इसे उन बाजार कीमतों की प्राप्तियाँ है । वैकल्पिक रूप से इसे उन बाजार कीमतों द्वारा मापा जा सकता है जो विभिन्न साधनों द्वारा उत्पादित वस्तु व सेवाओं पर व्यय की जाती है ।
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एक बन्द अर्थव्यवस्था में एक दिए हुए समय पर कुल राष्ट्रीय आय एवं व्यय समान होंगे यदि ह्रास अप्रत्यक्ष कर तथा छूट व रियायतों को भी ध्यान में रखा जाये । यदि एक बन्द अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय Y, निजी उपभोग व्यय C, निजी विनियोग व्यय I तथा वस्तु व सेवाओं पर किया गया सरकारी व्यय G हो तो-
Y = C + I + G …(1)
यदि समग्र निजी बचत S तथा कुल कर व सरकारी स्वामित्व वाले साधनों की आय र हो, तब निजी आय का प्रबन्ध उपयोग, बचत व सरकार को दिए जाने वाले कर के भुगतान से सम्बन्धित होगा, अतः
Y = C + S + T …(2)
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समीकरण (1) व (2) से
I = S + (T – G) …(3)
यदि कोई सरकारी क्रिया न हो रही हो अर्थात् T = G तब
I = S …(4)
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खुली अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय व व्यय की समानता के लिए देश के कुल व्यय में देश द्वारा किए गए निर्यातों को जोडना होगा व आयातों पर किये गए व्यय को कुल व्यय से घटाना होगा ।
यदि किसी देश के निर्यात X, उसके आयातों M से अधिक, कम या बराबर रहें तो शुद्ध राष्ट्रीय आय घरेलू अर्न्तलयन या अवशोषण A से अधिक कम या समान होंगी, अर्थात्-
Y – M = Y – A
चूंकि किसी खुली अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय एवं व्यय बराबर होते हैं ।
अंत: Y = C + I + G + X – M ..(5)
समीकरण (5) में C, I एवं G क्रमश: घरेलू रूप से उत्पादित व आयातित वस्तु व सेवाओं पर किया व्यय है । X तथा M वस्तु व सेवाओं के निर्यात व आयात हैं ।
यदि विदेशी व्यापार के अतिरिक्त एकपक्षीय हस्तान्तरण को भी सम्मिलित किया जाये जो विभिन्न देशों के मध्य निजी भुगतान व अनुदानों के रूप में हों तो निजी आय का सम्बन्ध निम्न प्रकार प्रदर्शित होगा ।
Y = C + S + T + U …(6)
जहाँ S बचत, T कर तथा U विदेशियों को किए गए एकपक्षीय हस्तान्तरणों की शुद्ध मात्रा है । समीकरण (5) व (6) से,
I + (X – M – U) = S + T – G
दृष्टव्य है कि (X – M – U) चालू खाते के सन्तुलन एवं शुद्ध एक पक्षीय हस्तान्तरणों के बराबर होगा । यदि विदेशी ऋण If हो, तब-
(X – M – U) = If
समीकरण (7) में (X – M – U) की जगह If लिखने पर,
1 + If = ST (T – G) …(8)
समीकरण (8) एक खुली अर्थव्यवस्था की सन्तुलन दशा को प्रदर्शित करता है ।
आय व व्यय के मध्य साम्य का भुगतान सन्तुलन से सम्बन्ध स्पष्ट करता है कि आय पर भुगतान सन्तुलन का प्रभाव चालू खाते व शुद्ध एकपक्षीय हस्तान्तरण द्वारा पडता है जो समीकरण (8) के अनुसार पूँजी खाते के भुगतान के बराबर होता है ।
चूंकि भुगतान संतुलन सदैव संतुलित रहता है अतः राष्ट्रीय आय के उद्देश्य के लिए हमें चालू खाते के संतुलन के साथ शुद्ध एक पक्षीय हस्तांतरण के योग को ध्यान में रखते है ।
माना कोई सरकारी क्रिया न हो तथा एकपक्षीय हस्तांतरण को ध्यान में न रखा जाए तो समीकरण (7) की सहायता से खुली अर्थव्यवस्था में संतुलन दशा
I + X = S – M …(9)
चूंकि बन्द अर्थव्यवस्था में सन्तुलन दशा I = S होती है अत: खुली अर्थव्यवस्था में व्यापार की क्रियाएँ अर्थात् निर्यात S व आयात M की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है ।
जब हम यह मान कर चलते है कि सरकारी क्रियाएँ नहीं हो रही है तो यह कहा जा सकता है कि समीकरण (4) से (9) में निहित सम्बन्ध राष्ट्रीय आय के विस्तार व संकुचन को प्रभावित करने वाली शक्तियों को प्रदर्शित करते हैं ।
उदाहरण हेतु यदि हम विनियोग व निर्यातों को स्वायत्त रूप से एवं बचत एवं आयातों को राष्ट्रीय आय से निर्धारित हुआ मानें तो राष्ट्रीय आय के विस्तार व संकुचन को प्रभावित करने वाली शक्तियों को संक्षेप में निम्न प्रकार प्रस्तुत कर सकते है-
स्पष्ट है कि विदेश व्यापार की अनुपस्थिति एवं यह मानने पर कि कोई सरकारी क्रिया नहीं हो रही है, अर्थव्यवस्था तब विस्तार करेगी, सन्तुलन में रहेगी या संकुचन में रहेगी, जबकि स्वायत्त विनियोग बचत की अपेक्षा, अधिक बराबर या कम होगा ।
खुली अर्थव्यवस्था में तीन स्थितियाँ सम्भव हैं- विस्तार, स्थायित्व या सन्तुलन एवं संकुचन यह तीनों स्थितियाँ इस बात पर निर्भर करेंगी कि स्वायत्त विनियोग एवं निर्यात का योग (I + X) बचत और आयात (S+M) से अधिक है, बराबर है या कम है ।
निर्यातों में स्वायत्त वृद्धि के साध साम्य आय एवं विदेशी व्यापार गुणक (Equilibrium Income and the Foreign Trade Multiplier with an Autonomous Change in Exports):
अब हम यह स्पष्ट करेंगे कि यदि निर्गतों में स्वायत्त वृद्धि हो तो साम्य या संतुलित आय व विदेशी व्यापार गुणक पर इसका क्या प्रभाव पडेगा ? माना घरेलू विनियोग एवं निर्यात स्वायत्त है तथा आय के स्रोत सभी स्तरों पर समान है । व्याख्या को सरल करने हेतु माना कि देश का आकार इतना छोटा है कि उसकी आय में होने वाले परिवर्तनों का शेष विश्व की आय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् विदेशी प्रत्यावर्तन का कोई प्रभाव नहीं पडता ।
एक खुली अर्थव्यवस्था हेतु सन्तुलन दशा समीकरण (10) व समीकरण (5) द्वारा ज्ञात हो सकती है अत: समीकरण (10) को समीकरण (5) में प्रतिस्थापित करने पर,
यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि उपभोग फलन Cy + Ca घरेलू वस्तु व सेवाओं के साथ आयातों के योग को सूचित करता है । चूंकि आयातों पर किया गया व्यय विदेश में आय उत्पन्न करता है अतः आयात फलन को ऋणात्मक चिह्न के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । पद C कुल सीमान्त उपभोग प्रवृति को सूचित करता है । अत: C = Cd + m ।
यह भी स्पष्ट है कि 1 – C बराबर होगा बचत की सीमान्त प्रवृति S के । अब हम आय स्तर के निर्धारण का परीक्षण इस मान्यता के आधार पर करते हैं कि बचत और घरेलू विनियोग शून्य के बराबर होते है । इस दशा में प्राप्त होने वाली आय घरेलू वस्तु व सेवाओं के आयात पर व्यय की जाएगी । अतः इकाई के बराबर होगी । इस प्रकार राष्ट्रीय आय का सन्तुलन Y = X/M के होगा ।
विदेशी प्रत्यावर्तन के साथ विदेशी व्यापार गुणक (The Foreign Trade Multiplier with Foreign Repercussion):
अब हम विदेशी प्रत्यावर्तन प्रभाव एवं विदेशी व्यापार गुणक से सम्बन्धित प्रक्रिया को स्पष्ट करते है । एक खुली अर्थव्यवस्था में घरेलू विनियोग व निर्यात की स्वायत्त प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सन्तुलन दशा
चूंकि व्याख्या दो देशों के सन्दर्भ में प्रस्तुत की जा रही है अत: विदेशी प्रत्यावर्तन प्रभाव को ध्यान में रखते हुए दूसरे देश की आय Y2 होने पर सन्तुलन दशा निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित की जाएगी ।
जब दो देशों के सन्दर्भ में व्याख्या की जाती है तो एक देश के निर्यात दूसरे देश के आयात के बराबर होंगे, अर्थात्-
निर्यात व आयात के सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए समीकरण (12) व (13) को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
इस प्रकार प्रत्येक देश की आय को दूसरे देश के आय प्रेरित व स्वायत्त आयातों के रूप में देखा जा सकता है ।
यदि समीकरण (16) में y2 के मान को प्रतिस्थापित किया जाये तथा इसे Y के लिए हल किया जाये तो-
समीकरण (17) के मान को y के लिए प्रतिस्थापित किए पर का मान इसी प्रकार ज्ञात किया जाना सम्भव होता है ।
यदि स्वायत्त निर्यातों में परिवर्तन हो तथा गुणक की क्रियाएं ध्यान में रखी जाएँ तो इसके मात्रात्मक परिवर्तन ज्ञात किए जा सकते हैं, जबकि समीकरण (18) में प्रदर्शित Y के मान को M2 के सापेक्ष समाकलित किया जाए । इस क्रिया में समीकरण स्वायत्त पर तदनुरूप हटते जाएँगे व निम्न मान ज्ञात होगा-
दूसरे देश के लिए भी गुणक राशि का आकलन समीकरण (20) की भाँति किया जा सकता है । गुणक राशियाँ दोनों देशों में केवल तब समान होंगी, जब दोनों देशों में बचत की सीमान्त प्रवृतियाँ अनुरूप हों, परन्तु ऐसा होना असम्भव है ।
समीकरण (18) में वर्णित कथन को निर्यातों के साथ-साथ अन्य स्वायत्त घटकों में परिवर्तन हेतु गुणक निर्धारित करने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है । उदाहरण हेतु हम पहले देश के स्वायत्त विनियोग में परिवर्तन हेतु समीकरण (18) को I के सापेक्ष अवकलित करते हैं, अर्थात्-
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह गुणक, स्वायत्त निर्यातों में परिवर्तन की दशा से अधिक होगा, क्योंकि हर में अधिक पदों को सम्मिलित किया गया है । विदेशी प्रत्यावर्तन प्रभाव अब आय की वृद्धि को प्रेषित करने में सहायक होंगे, न कि यह पहले की तरह आय की कमी को प्रदर्शित करेंगे ।
इससे स्पष्ट है कि पहले देश के विनियोग में होने वाली वृद्धि पहले देश की आय को बढ़ाने में गुणक प्रभाव सयोजित करेगी जिससे पहले देश के आयातों में वृद्धि होगी । अत: दूसरे देश के आय स्तर में भी वृद्धि होगी व पहले देश से होने वाले आयात बढ़ेंगे ।
पहले देश के निर्यातों में होने वाली वृद्धि उनकी आय में तत्सम्बन्धित वृद्धि करेगी । यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक दोनों देशों में आय के उच्च स्तरों पर सन्तुलन की प्राप्ति न हो जाये ।
सन्तुलन की प्रारम्भिक अवस्था से अन्तिम अवस्था तक चलने वाली प्रक्रिया यह स्पष्ट करती है कि पहले देश के विनियोग में होने वाली वृद्धि सामान्यतः पहले देश के व्यापार घाटे व दूसरे देश के लाभ को अभिव्यक्त करती है ।
आय में होने वाले उच्चावचनों का अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण (The International Transmission of Fluctuations in Income):
खुली अर्थव्यवस्था में आय निर्धारण का सिद्धान्त ऐसा खाका प्रदान करता है जिसकी सहायता से आर्थिक क्रियाओं में होने वाले उच्चावचनों के अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण एवं व्यापार सन्तुलन में समायोजन की प्रक्रिया को स्पष्ट किया जा सकता है ।
जब किसी एक देश में स्वायत्त व्यय में विस्तार या संकुचन होता है तो इसका प्रसारण दूसरे देशों में भी होता है । दूसरे देशों में यह प्रभाव आय में होने वाले उन परिवर्तनों के माध्यम से पडता है जो आयातों को प्रभावित करते हैं । यदि एक देश के घरेलू विनियोग में वृद्धि हो तो इससे देश की आय में वृद्धि होगी ।
यदि वह देश जिसके घरेलू विनियोग में वृद्धि हो रही हो शेष विश्व के सापेक्ष काफी छोटा हो तो घरेलू विनियोग में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप होने वाली तेजी का शेष विश्व पर तुलनात्मक रूप से सीमित प्रभाव पडेगा ।
दूसरी तरफ यदि वह देश काफी बडा है तो घरेलू तेजी शीघ्रता से दूसरे देशों को प्रवाहित होगी । इस प्रवाह की सापोक्षिक शक्ति दिए हुए देश की आयात की सीमान्त प्रवृति पर निर्भर करेगी ।
यहाँ यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि देश के आयात की सीमान्त प्रवृति दूसरे देश की तुलना में अधिक है या कम है । यदि आयात की सीमान्त प्रवृत्ति कम है तो प्रवाह प्रभाव महत्वपूर्ण भी हो सकते हैं, परन्तु मात्र उस स्थिति में, जबकि आय में होने वाले निरपेक्ष परिवर्तन काफी अधिक महत्वपूर्ण हों तथा ऐसा होना एक बड़े देश में ही सम्भव होगा ।
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि स्वदेशी प्रत्यावर्तनों का देश में क्या प्रभाव पड़ेगा ? विदेशी प्रत्यावर्तनों का प्रभाव दूसरे देशों में होने वाली आय की वृद्धि एवं आयात की सीमान्त प्रवृति के आकार पर निर्भर करेगा ।
प्रसारण की यह प्रवृति तब देखी जा सकती है जब एक दिए हुए देश में होने वाली तेजी या मन्दी की दशाएँ दूसरे देशों की ओर प्रवाहित होती है । ऐसे प्रवाह को Propagation Effect कहा जाता है । एक देश में घरेलू तेजी व मन्दी द्वारा प्रसारित इन प्रभावों के अतिरिक्त ऐसे भी कुछ स्वायत्त परिवर्तन सम्भव हो सकते है जिनका एक देश में लाभप्रद प्रभाव पडे तथा शेष विश्व में विपरीत प्रभाव पड़े ।
उदाहरण के लिए ऐसी सम्भावना तब उत्पन्न हो सकती है जब एक दिए हुए देश की करेन्सी का अवमूल्यन किया जाता है व विदेश में प्रशुल्क में कमी कर दी जाती है ।
उपर्युक्त विवेचन की सहायता से उन स्थितियों को समझा जा सकता है जिसका लक्ष्य देश में आन्तरिक एवं बाह्य सन्तुलन की प्राप्ति हो । एक देश में आय वृद्धि मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों द्वारा सम्भव होती है । आय वृद्धि उन उपायों द्वारा भी हो सकती है जो निर्यातों में विस्तार व आयातों में संकुचन करें ।