गरीबी का दुष्चक्र (समाधान के साथ) | Read this article in Hindi to learn about the vicious circle of poverty with its solution.
(i) पूर्तिपक्ष (Supply Side):
पूंजी की पूर्ति बचतों पर निर्भर करती है जो क्रमश: बचत क्षमता और लोगों की इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है । निर्धन देशों में पूंजी का अभाव होता है । इसलिये उत्पादकता कम होती है जिस कारण वास्तविक आय भी कम होती है । जब वास्तविक आय कम होगी तो बचत की क्षमता भी कम होगी ।
पूंजी निर्माण के लिये निवेश को बचतों की आवश्यकता होती है । परन्तु वास्तविक बचतों के कम होने के कारण निवेश भी कम होती है तथा पूंजी निर्माण भी कम होता है तथा देश में पूंजी का अभाव हो जाता है । पूंजी के अभाव के कारण पुन: उत्पादकता कम होती है और कुचक्र पुन: विकसित हो जाता है ।
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(ii) मांग पक्ष (Demand Side):
पूंजी के लिये मांग पक्ष निवेश के लिये प्रोत्साहनों पर निर्भर करता है जो बदले में लोगों निर्धन देश में लोगों के उपभोग के स्तर पर निर्भर करता है । किसी निर्धन देश में, पूंजी के लिये मांग नीची होती है क्योंकि निवेश के लिये प्रोत्साहन नीचे होते हैं जो लोगों के निम्न उपभोग स्तर का परिणाम होता है, जो पुन: उनकी कम वास्तविक आय के कारण होता है जो कम उत्पादकता के कारण होती है ।
निम्न उत्पादकता पूंजी के कम प्रयोग के फलस्वरूप होती है जो निवेश के कम प्रोत्साहन के कारण होता है इत्यादि । अत: कुचक्र निम्नलिखित अनुसार विकसित होता है ।
वास्तविक आय का निम्न स्तर कम उत्पादकता को दर्शाता है जो या तो बचतों के निम्न सार या निवेश के निम्न स्तर के कारण होती है । दोनों चक्रों में एक जैसे लक्षण होते हैं । अत: हिक्स ने ठीक ही कहा है कि ”सांप अपनी दुम को खाता है ।”
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बाजार की अपूर्णताओं के कारण कुचक्र (Vicious Circle Caused by Market Imperfections):
मायर और बाल्डविन ने एक तीसरे कुचक्र का वर्णन किया है जो बाजार अपूर्णताओं के कारण पूंजी के अभाव पर आधारित है । अल्प विकसित देशों में साधन अल्प विकसित होते हैं तथा लोग आर्थिक रूप में पिछड़े हुए होते हैं ।
बाजार की अपूर्णताओं का अस्तित्व प्राकृतिक साधनों के अनुकूलतम आवंटन और उपयोग को रोकता है, जिसके फलस्वरूप अल्प विकास होता है जिसके कारण आर्थिक पिछड़ेपन जन्म लेता है ।
प्राकृतिक साधनों का विकास मानवीय साधनों के स्वरूप पर निर्भर करता है लेकिन निपुणता के अभाव और ज्ञान के निम्न स्तर के कारण प्राकृतिक साधन अप्रयुक्त, अल्प प्रयुक्त और दुरुप्रयुक्त रहेंगे ।
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“इसलिये अल्प विकसित साधन, पिछड़े लोगों का परिणाम और कारण दोनों हैं… । आर्थिक रूप में लोग जितने पिछड़े हुए होंगे, प्राकृतिक साधन भी उतने ही कम विकसित होंगे, प्राकृतिक साधनों का विकास जितना कम होगा, लोग आर्थिक रूप में उतने ही पिछड़े हुये होंगे ।” -मायर और बाल्डविन
बाजार अपूर्णताओं द्वारा उत्पन्न कुचक्र को निम्नलिखित अनुसार दर्शाया गया है:
निर्धनता का कुचक्र विभिन्न कुचक्रों का परिणाम है जो पूंजी की पूर्ति और इसकी मांग की ओर से थे । फलत: पूंजी निर्माण नीचा रहता है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता और वास्तविक आय नीचे रहती है । इस प्रकार देश निर्धनता के कुचक्रों में जकड़ा जाता है जो परस्पर बदतर होते रहते हैं और उन्हें तोड़ना बहुत कठिन है ।
कुचक्र को कैसे तोड़ा जाये (How to Break Vicious Circle ?):
समस्या असाध्य नहीं है । निम्न स्तर सन्तुलन फन्दे के चक्र को तोड़ा जा सकता है ।
“स्थिर व्यवस्था का वृतीय समूह पर्याप्त यथार्थ है, परन्तु सौभाग्य से, वृत अटूट नहीं है, और एक बार इसके किसी बिन्दु पर टूट जाने पर, सम्बन्ध के वृतीय होने का तथ्य संचयी अग्रता (Advance) को उत्पन्न करता है ।” -नर्कस
समाधान (Solution):
(i) वृद्धि के आकार को बढ़ाकर गतिरोध को तोड़ा जाना चाहिये । प्रो. नर्कसे ऐसा करने के लिये ”सन्तुलित वृद्धि” का समर्थन करते हैं । मांग की अविभाज्यताओं और अनुपूरकताओं के कारण निवेश प्रोत्साहन जोखिमपूर्ण है, परन्तु विभिन्न उद्योगों की विस्तृत श्रेणी में पूंजी का समकालिक प्रयोग, बाजार के आकार को बड़ा कर देगा, निवेश को आवश्यक प्रेरणा देगा तथा इस प्रकार मांग पक्ष पर कुचक्र को तोड़ेगा ।
(ii) पूर्ति पक्ष में बचतों के दर को बढ़ा कर वृत्त को तोड़ा जा सकता है । हर प्रकार की व्यर्थता और फिजूल-खर्ची को दबाया जाना चाहिये । अनिवार्य बचत योजनाएं स्वैच्छिक बचतों को प्रोत्साहित करने के लिये विस्तृत प्रचार और बैंकों की विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापना भी बचतों की राशि को बढ़ा सकती हैं ।
परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि लोग भूखे मरें । दक्षता के लिये उपभोग और उत्पादक निवेश के लिये बचतों को बढ़ाने का लक्ष्य होना चाहिये । अल्प विकसित देश अपनी छुपी हुई बचत सम्भावनाओं के उपयोग द्वारा भी पूंजी निर्माण में वृद्धि कर सकते हैं, यह सम्भावनाएं पर्याप्त मात्रा में, अर्थव्यवस्था में विद्यमान अदृश्य बेरोजगारी में छुपी होती हैं ।
(iii) कम वास्तविक आय पूर्ति और मांग दोनों ओर सामान्य होती है । इसलिये, निर्धन जन समूहों की वास्तविक प्रति-व्यक्ति आय बढ़ाने के लिये किसी अल्प विकसित देश को अपना उत्पादन प्रतिरूप बदलना होगा । केवल विलासितापूर्ण और सुरक्षात्मक उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि अधिक सहायता नहीं कर सकती ।
आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि, अधिकांश निम्न वर्ग के लोगों की वास्तविक प्रति व्यक्ति आय को बढ़ायेगी । इससे उनके हाथों में अधिक क्रय शक्ति आ जायेगी तथा बाजार का आकार बढ़ेगा ।
(iv) निर्धनता के कुचक्र को तोड़ने के लिये एक प्रत्यक्ष और सीधे आक्रमण की आवश्यकता है । पूंजी की पूर्ति और मांग पक्षों में निरोधक शक्तियों से प्रभावी ढंग से लड़ना होगा और इसके लिये राज्य की सक्रिय भागीदारी और निर्देशन की आवश्यकता होगी ।
इसलिये अल्प-विकसित देशों के लोगों और सरकारों को एक बड़े, उत्साही और समझदारी पूर्ण कार्य का आयोजन और कार्यान्वयन करना होगा ताकि निर्धनता के कुचक्र को तोड़ा जा सके यह केवल स्व-सुधारक ही नहीं-अपितु स्व-स्थायी भी ।
संक्षेप में, विवेकपूर्ण उत्पादन तथा उचित जनसंख्या नीतियों के साथ गतिशील निवेश नीति कुचक्रों की कमर तोड़ने में सहायक हो सकती है । इन नीतियों के बीच संश्लेषण और सुबद्धता की तुरन्त आवश्यकता है यदि यह प्राप्त कर ली जाती है तो निर्धनता के कुचक्र के न टूटने की कोई वजह नहीं बचती ।