आर्थिक योजना में मूल्य तंत्र की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about:- 1. आर्थिक नियोजन एवं कीमत तन्त्र-एक परस्पर विरोधी दृश्य (Economic Planning and Price Mechanism-A Contradictory View) 2. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत यन्त्र (Price Mechanism in Planned Economy) and Other Details.

आर्थिक नियोजन एवं कीमत तन्त्र-एक परस्पर विरोधी दृश्य (Economic Planning and Price Mechanism-A Contradictory View):

यह ज्वलन्त प्रश्न है कि कीमत तन्त्र आर्थिक आयोजन के अधीन कार्य करता है या नहीं । इस विषय पर भिन्न-भिन्न मत हैं जिनमें परस्पर विविधता है । लुडविंग वॉन मिसेन (Ludwing Von Misen), मैक्स वेबर (Max Waber) और बोरिस बेन्टजकुस (Boris Bentzkus) जैसे अर्थशास्त्री प्रतियोगितापूर्ण कीमत तन्त्र और नियोजित अर्थव्यवस्था को परस्पर विरोधी विचार मानते हैं ।

एच.डी. डिक्कनसन, ओस्कार लॉग, ए.सी. पिगू, एफ. एम. टेयलर और आर. एल. हाल (H.D. Dickinson, Oskar Lange, A.C. Pigou, F.M. Taylor and R.L. Hall), जैसे अर्थशास्त्री नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत तन्त्र की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं । किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत तर्कों का अध्ययन आवश्यक है ।

(i) एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियां केन्द्रीय सत्ता द्वारा नियन्त्रित होती हैं फिर भी व्यक्तिगत लाभों एवं लाभों का कोई मूल्य नहीं होता । अत: कीमत तन्त्र का स्वतन्त्र रूप में कार्य करना सम्भव नहीं ।

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(ii) नियोजित अर्थव्यवस्था में, माँग और पूर्ति की पारस्परिक शक्तियां भी नियन्त्रित होती हैं ताकि कीमत निर्धारण स्वतन्त्रता पूर्वक सम्भव न हो ।

(iii) नियोजित अर्थव्यवस्था में, स्वतन्त्र प्रतियोगिता नहीं होती । उत्पादकों और उपभोगताओं को आर्थिक लाभों का पूर्ण ज्ञान नहीं होता । अत: स्वतन्त्र कीमत आवंटन असम्भव है ।

नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत यन्त्र (Price Mechanism in Planned Economy):

विभिन्न अर्थशास्त्रियों की उपरोक्त राय के विरुद्ध यह तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत कीमत तन्त्र की प्रेरणा होती है । आस्कर लाँगे के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण प्रतियोगिता की अनुपस्थिति होती है तथा एकाधिकारिक प्रतियोगिता दिखाई देती है ।

यह आर्थिक आयोजन के तर्क को अधिक शक्तिशाली बनाता है । मुक्त कीमत प्रणाली के स्थान पर, स्वैच्छिक विशिष्ट कीमत प्रणाली नियोजित अर्थव्यवस्था में देखी जाती है ।

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स्वतन्त्र क्रेताओं और विक्रेताओं द्वारा कीमतें निर्धारित की जाती हैं अथवा वे उन शर्तों को महत्व देते हैं जहां विकल्प हैं । कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि नियोजित अर्थव्यवस्था में, कीमत तन्त्र को बनाये रखने के लिये वैकल्पिक संगठनों का निर्माण किया जा सकता है ।

पी.एच. डिक्कनसन (P.H. Dickenson), आस्कर लाँगे (Oscar Lange), ए. सी. पिगू (A.C. Pigou), एफ. एम. टेयलर (F.M. Taylor) और आर. एल. हॉल (R.L. Hall) जैसे कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्री इस मत के समर्थक हैं । उन्होंने ऐसे समाजवादी संगठन की रूपरेखा तैयार की है जहां प्रतियोगितापूर्ण कीमत यन्त्र कार्य करेगा परन्तु वास्तव में, यह संगठन केवल सैद्धान्तिक रूप में विद्यमान है तथा इन्हें व्यवहार में लाना कठिन है ।

प्रतियोगी कीमत तन्त्र बनाम नियन्त्रित कीमत तन्त्र (Competitive Price Mechanism Vs. Controlled Price Mechanism):

अब यह तर्क पूर्ण प्रश्न उठता है कि प्रतियोगी तथा नियन्त्रित कीमत तन्त्र में कौन सा सर्वोत्तम है । अधिकांश अर्थशास्त्रियों का विचार है कि बाजार यन्त्र के सफल संचालन के लिये जिन प्रतियोगी शर्तों की आवश्यकता है, समाजवादी अथवा नियोजित अर्थव्यवस्था, किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बिना उनकी रचना नहीं कर सकती ।

कीमत यन्त्र के पक्ष और विरुद्ध में तर्क (Arguments in Favour and Against Price Mechanism):

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कीमत यन्त्र के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Price Mechanism)

(i) पूर्ति एवं मांग में समानता की स्थापना होती है ।

(ii) इस प्रणाली में स्व-संचालन का गुण होने के कारण यह भ्रष्टाचार और अनैतिकता से मुक्त है ।

(iii) मुक्त कीमत प्रणाली अधिक आर्थिक विकास पर बल देती है ।

(iv) राष्ट्रीय साधनों का सर्वोत्तम समावेशन और वितरण सम्भव है ।

कीमत यन्त्र के विरुद्ध तर्क (Arguments against Price Mechanism):

(i) उद्यमों और व्यापारियों पर आर्थिक गतिविधियों द्वारा उचित नियन्त्रण के अभाव में, राष्ट्रीय साधनों का दुरुपयोग होता है तथा उचित सम्भाल नहीं होती जिससे देश के आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है ।

(ii) प्रतियोगी कीमत प्रणाली अन्त में एकाधिकारी प्रवृत्तियों को जन्म देती है जो सामाजिक हितों के विरुद्ध है ।

(iii) उत्पादक का उद्देश्य अधिक लाभ अर्जित करना है तथा वह मांग और पूर्ति का अनुमान लगाये बिना अधिक उत्पादन करता है । इससे बाजार में उत्पादन का अधिक्य हो जाता है जिसकी अपनी समस्याएं हैं ।

(iv) प्रतियोगी कीमत तन्त्र आय के उचित वितरण में भी असफल है । फलत: आर्थिक असमानता बढ़ती है और सामाजिक न्याय उपलब्ध नहीं किया जा सकता ।

(v) यह प्रणाली सामान्य समय में उतनी ही उचित है जितनी की आर्थिक स्फीति अथवा मन्दी में, इसलिये सरलता से नियन्त्रित करना कठिन हो जाता है ।

साधनों की गतिशीलता और कीमत तन्त्र (Mobilisation of Resources and Price Mechanism):

अल्पविकसित देश पूँजी निर्माण के लिये अतिरिक्त साधनों की गतिशीलता की समस्या का सामना करते हैं । वास्तव में इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं में पूँजी का अभाव होता है तथा पूँजी निर्माण के दर को तीव्र करना उनकी तात्कालिक समस्या होती हैं जिससे तीव्र आर्थिक विकास सम्भव हो सके ।

अल्पविकसित देशों के प्रकरण में वास्तविक आय का स्तर इतना नीचा होता है कि स्वैच्छिक बचतें विकास निवेश के वित्तीय प्रबन्ध के लिये अपर्याप्त होती हैं । इसके अतिरिक्त, राजकोषीय उपकरण इतने दक्ष नहीं होते कि वांछित राशि प्राप्त हो सके ।

स्वैच्छिक बचतों का अभाव पूँजी निर्माण के दर को बढ़ाने के मार्ग में एक अन्य बाधा है । पुन: निवेश के लिये प्रोत्साहन का अभाव विद्यमान बचतों को गलत दिशाओं की ओर मोड़ देता है । एक उचित कीमत नीति इन उद्देश्यों को पर्याप्त मात्रा में पूर्ण कर सकती है । इसलिये कीमत तन्त्र का उपयोग आर्थिक विकास के साधनों की गतिशीलता के लिये भी किया जा सकता है ।

निम्नलिखित प्रकार से इसका प्रयोग अतिरिक्त साधन जुटाने के लिये किया जा सकता है:

1. उपभोग को प्रतिबन्धित करना (Restricting Consumption):

पहले तो, कीमत तन्त्र लोगों के उपभोग स्तर को नीचे रख कर बचतों की मात्रा को बढ़ाने में सहायता करता है । यह बलात बचतों का एक शक्तिशाली उपकरण है । उच्च कीमतें लोगों के उपभोग पर महत्वपूर्ण प्रतिबन्धा लगा सकती हैं जिससे पूँजी निर्माण के लिये साधन उपलब्ध होंगे ।

एक चयनात्मक कीमत वृद्धि अनावश्यक उपभोग वृद्धि पर प्रभावी प्रतिबन्ध लगा सकती है । ऊँची कीमतें लोगों का अपनी उपभोग वस्तुओं की मांग को नीचे रखने के लिये विवश करती है तथा साधनों को पूँजी निर्माण के लिये मुक्त करती है ।

अत: बढ़ती हुई कीमतें आय को लाभ अर्जित करने वाले लोगों के पक्ष में पुन: वितरित करती है जिनकी बचत प्रवणता ऊँची होती है । इससे आय का स्थानान्तरण वेतनभोगी लोगों जिनकी बचत प्रवणता कम होती है, की ओर से उद्यमियों की ओर होता है जिनकी बचत प्रवणता अधिक होती है ।

अत: इससे पूँजी निर्माण की प्रक्रिया बढ़ती रहती है । इस प्रकार उचित कीमत नीति का प्रयोग, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में उपभोग को प्रतिबन्धित करके अनिवार्य बचतों के साधन के रूप में किया जा सकता है ।

2. निवेश के लिये प्रेरणा (Inducement for Investment):

धीमी गति से बढ़ता हुआ कीमत स्तर आर्थिक गतिविधियों के लिये प्रेरक का कार्य करता है, यह निवेश के लिये उचित परिस्थितियों की रचना करता है । बढ़ती कीमतों के समय को व्यापारिक अनुकूलता का समय कहा जाता है ।

कीमतों के बढ़ने से लाभ भी बढ़ते हैं और इससे उद्यमी अधिक निवेश करने के लिये प्रेरित होते हैं । एक बढ़ता हुआ कीमत स्तर निवेश को ऐसे समय पर प्रोत्साहित करता है जब निवेश के लिये प्रेरणा बहुत कम होती है ।

तीव्रतापूर्वक बढ़ता हुआ कीमत स्तर अनिश्चितता की रचना करता है और निवेश को हतोत्साहित करता है । जबकि दूसरी ओर संयमी कीमत वृद्धि दर अधिक निवेश की स्थितियां उपलब्ध करता है ।

3. नये मौद्रिक साधनों का सृजन (Generation of New Monetary Resources):

एक विकासशील अर्थव्यवस्था में, विकास निवेश के वित्तीय प्रबन्ध के लिये साधन नई मुद्रा की रचना द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं । इस प्रकार की स्फीतिकारी वितव्यवस्था के परिणामस्वरूप नये मौद्रिक साधनों की रचना होती है जिनका उपभोग आर्थिक विकास के लिये साधनों और श्रम शक्ति को गतिशील करने के लिये किया जा सकता है ।

संक्षेप में, मुद्रा स्फीति की एक नियमित खुराक पूँजी निर्माण की दर को बढ़ाने में सहायक होती है ।