उत्पादन के लिए तकनीक का विकल्प | Read this article in Hindi to learn about the difficulties faced in choosing the technique for production in underdeveloped countries with suggestions to improve it.
प्रौद्योगिकी के चुनाव में कठिनाइयों (Difficulties Faced in the Choice of Technique):
अल्पविकसित देश उचित प्रौद्योगिकी के चुनाव में कठिनाइयों का सामना करते हैं ।
इन कठिनाइयों को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया गया है:
1. पूँजी की दुर्लभता (Scarcity of Capital):
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आधुनिक प्रौद्योगिकी बहुत महंगी तकनीक है । इसके लिये भारी पूँजी की और प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता होती है । अल्पविकसित देशों में पूँजी एवं प्रशिक्षित श्रम शक्ति दोनों का अभाव होता है । इसलिये नई प्रौद्योगिकी को अपनाना कठिन हो जाता है ।
2. उपयोग की समस्या (Problem of Utilization):
विकसित देशों में प्रौद्योगिक विकास की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है । तदानुसार उनकी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं द्वारा देश में प्रौद्योगिकी के परिवर्तन के परिदृश्य को अपनाना कठिन होता है । यद्यपि अल्पविकसित देशों में, परम्पराओं और रीति रिवाजों का संस्थात्मक व्यवस्थाओं में दृढ़ प्रभाव होता है ।
इसलिये नई प्रौद्योगिकी को अपनाना एक निर्विघ्न प्रक्रिया नहीं है । लोग अपने रीति रिवाजों से इस प्रकार जुड़े होते है कि वह सरलता परिवर्तित स्थितियों को नहीं अपनाते तथा उत्पादन की परम्परागत विधियों के साथ जुड़ा रहना पसन्द करते हैं । जिससे अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं ।
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3. निरक्षरता (Illiteracy):
अल्पविकसित देशों में अधिकांश जनसंख्या निरक्षर होती है उन्हें नई प्रौद्योगिकी से परिचित करवाना कठिन होता है । अत: अल्पविकसित देशों की सरकारों का प्रथम कार्य है- सामान्य लोगों में कार्य करने की नई विधियों के प्रति उत्साह उत्पन्न करना । विशेषतया कृषि क्षेत्र में ऐसा करना आवश्यक है ।
4. विभिन्न स्थितियां (Different Conditions):
प्रौद्योगिकी का विकास विकसित देशों में उनकी आवश्यकताओं और साधनों के अनुरूप किया गया है । परन्तु अल्पविकसित देशों की आवश्यकताएं और साधन विकसित देशों से भिन्न होते हैं ।
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तदानुसार, उन्नत राष्ट्रों द्वारा विकसित की गई अनेक प्रकार की प्रौद्योगिकी अल्पविकसित जगत के लिये अनुकूल नहीं भी हो सकती । अत: दोनों प्रकार के देशों में विद्यमान भिन्न-भिन्न प्रकार की स्थितियां नई प्रौद्योगिकी को अपनाने में बाधाएं खड़ी कर सकती हैं ।
5. अप्रचलन की समस्या (Problem of Obsolescence):
देखा गया है कि विकसित देशों में प्रौद्योगिकी का विकास इतनी तीव्रता से होता है कि वर्तमान तकनीकें शीघ्र ही अप्रचलित हो जाती हैं । जब नई प्रौद्योगिकी अल्पविकसित जगत में पहुंचती है, तो विकसित देशों में इसे ‘पुरानी किस्म’ घोषित कर दिया जाता है इसका परिणाम यह होता है कि अल्पविकसित देश तथा-कथित नई तकनीक का लाभ कभी नहीं प्राप्त कर पाते । अत: अल्पविकसित देशों को चाहिये कि नई प्रौद्योगिकी को आयात करने के स्थान पर अपनी प्रौद्योगिकी विकसित करें ।
6. योग्य नवप्रवर्तकों का अभाव (Lack of able Innovators):
नई प्रौद्योगिकी की खोज और उसको अपनाना योग्य नवप्रवर्तकों की उपस्थिति की पूर्व-कल्पना करता है । उन्हें अपने क्रार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन के लिये बहुत सी पूँजी की आवश्यकता होती है । परन्तु, अल्पविकसित देशों में न केवल पूँजी का अभाव होता बल्कि योग्य नवप्रवर्तकों और उद्यमियों की भी कमी होती है ।
7. पूँजी गहन (Capital Intensive):
विकसित देशों में प्रौद्योगिकी अति पूँजी गहन होती है । इन देशों में श्रम के अभाव के कारण मजदूरी दर ऊंची होती है । इसके विपरीत अल्पविकसित देशों में, श्रम की बहुलता के कारण श्रम-गहन प्रौद्योगिकी आवश्यकता होगी । पूँजी गहन प्रौद्योगिकी उनके लिये अधिक प्रासंगिक नहीं होगी ।
सुझाव (Suggestions):
नई प्रौद्योगिकी को आपनाने के सम्बन्ध में विभिन्न कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुये निम्नलिखित सुझाव दिये गये हैं:
1. श्रम गहन तकनीकों का प्रयोग (Use of Labour Intensive Techniques):
विकास के आरम्भिक सोपानों पर अल्पविकसित देशों को श्रम गहन तकनीकों को वरीयता देनी चाहिये । जहां तक सम्भव हो यह तकनीकें स्थानीय रूप में विकसित की जानी चाहिये । अल्पविकसित देशों में प्रौद्योगिकी का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसरों का अधिकतमीकरण होना चाहिये ।
2. विभिन्न तकनीकों का समन्वयन (Coordination of Different Techniques):
कोई भी विशेष तकनीक अल्पविकसित देशों में अकेले में सफल नहीं हो सकती । नई तकनीकें विकसित करते समय देश में प्रचलित संस्कृति और सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखना चाहिये । विभिन्न तकनीकों के समन्वय द्वारा ऐसी तकनीक अपनाई जाये जिससे वृद्धि की प्रक्रिया तीव्र हो । इसके अतिरिक्त नई प्रौद्योगिकी वर्तमान प्रौद्योगिकी के अनुकूल होनी चाहिये ।
3. शोध (Research):
अल्पविकसित देशों में विकसित देशों की प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिये उचित संशोधन करने चाहिये । नई जानकारी को अपनाने के लिये विभिन्न स्तरों पर शोध की आवश्यकता है ।
अत: उन्नत देशों की सहायता से अल्पविकसित देशों की सरकारों को प्रशिक्षित कर्मचारियों सहित शोध केन्द्र खोलने चाहिये जो नई प्रौद्योगिकी को अपनाने के कार्य को सरल करेंगे । विशेष शोध के लिये प्रोत्साहन दिये जा सकते हैं ।
4. प्रशिक्षण सुविधाएं (Training Facilities):
अल्पविकसित देशों को चाहिये कि अपने श्रमिकों को अधिकतम प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराये । इससे नई प्रौद्योगिकी को अपनाना सरल होगा । देश में बड़ी संख्या में इन्जीनियरिंग संस्थाएं खोली जायें ।
5. न्यूनतम लागतें (Minimum Costs):
अल्पविकसित देशों को उत्पादन की ऐसी तकनीकों का चुनाव करना चाहिये कि कारकों के वैकल्पिक प्रयोगों में उनकी सीमान्त उत्पादकता बराबर हो । ऐसी स्थिति में उत्पादन की लागते-न्यूनतम होगी ।
6. तकनीक का आयात (Import of Technique):
विदेशी से प्रौद्योगिकी आयात करने के प्रयत्न करने चाहिये परन्तु केवल उन्हीं देशों से जो मशीनरी और साज-समान का निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखना सुनिश्चित करते हैं ।
7. अधिकतम अतिरेक (Maximum Surplus):
अल्पविकसित देशों को ऐसी प्रौद्योगिकी अपनानी चाहिये जो अधिकतम सम्भव अतिरेक उत्पन्न करती है । इससे पूँजी निर्माण एवं वृद्धि की दर उत्साहित होगी ।
8. उचित सयन्त्र (Appropriate Plants):
अल्पविकसित देशों को ऐसी सयन्त्रों में निवेश करना चाहिये जो उनके सीमित साधनों के भीतर हो । उन्हें अपनी क्षमता से अधिक बड़े प्लांटों में निवेश करने का जोश नहीं दिखाना चाहिये । यह प्लांट नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनायेंगें जिससे उत्पादन बढ़ेगा और अधिकतम प्रशिक्षित लोग व्यस्त होंगे ।
नर्कस ने तक प्रस्तुत किया है वृद्धि के आरम्भिक स्तरों पर अल्पविकसित देशों को चाहिये कि आधुनिक उपकरणों स्थान पर सरल उपकरणों और औज़ारों पर अधिक निर्भर करें ।