व्यापार संरक्षण: 5 तरीके| Read this article in Hindi to learn about the five methods used for protection of trade. The methods are:- 1. वैधानिक निषेध (Legal Prohibition) 2. प्रशुल्क (Tariff) 3. आर्थिक सहायता (Economic Help) 4. परिमाणात्मक प्रतिबन्ध (Quantitative Restriction) 5. व्यापार नियन्त्रण की विधियाँ (Business Control Methods).
किसी देश की सरकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के स्वतन्त्र प्रवाह पर कई प्रकार से बाधा उत्पन्न कर सकती है जिसका उद्देश्य देश के उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना होता है ।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर लगाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्ध कई विधियों के द्वारा लगाए जाते है जिनमें मुख्य निम्न हैं:
(1) वैधानिक निषेध (Legal Prohibition):
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जिसमें सरकार कानून बनाकर किसी वस्तु के आयात-निर्यात पर रोक लगाती है ।
(2) प्रशुल्क (Tariff):
जिसमें आयात एवं निर्यात पर लगने वाला कर शामिल है ।
(3) आर्थिक सहायता (Economic Help):
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जिसके अधीन अनुदान विशेष छूट और क्या इत्यादि सम्मिलित है जिन्हें सरकार उद्योग विशेष को आर्थिक सहायता के रूप में देता है ।
(4) परिमाणात्मक प्रतिबन्ध (Quantitative Restriction):
जिनमें आयात की जाने वाली वस्तुओं के कोटे निश्चित किए जाते है ।
(5) व्यापार नियन्त्रण की विधियाँ (Business Control Methods):
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संरक्षण का सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि किसी प्रकार राज्य के हस्तक्षेप द्वारा घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से मुक्त रखा जाता है ।
(i) वैधानिक निषेध:
धानिक रूप से सरकार कानून बनाकर किसी वस्तु के आयात एवं निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाती है । यह प्रतिबन्ध व्यापार के प्रवाह पर कर लगा कर लागू किया जा सकता है जिसे आयात-निर्यात कर कहते हैं ।
(ii) प्रशुल्क:
प्रशुल्क के विभिन्न रूप सम्भव हैं जैसे समान कर प्रणाली को लागू किया जा सकता है जिसके अनुरूप एक देश सभी देशों की एक जैसी वस्तु पर कर की समान मात्रा लगाता है अर्थात भेदभाव की कोई नीति नहीं अपनाता ।
दूसरी तरफ परम्परागत प्रशुल्क प्रणाली के अधीन एक देश प्रशुल्क लगाते हुए उन देशों के प्रति भेदभाव की नीति अपनाता है जिनके साथ विविध प्रकार की सन्धियाँ की गई हैं । प्रशुल्क की दरें अधिकतम या न्यूनतम हो सकती है ।
जिन देशों के साथ विशेष सन्धियाँ की गई है उन्हें न्यूनतम प्रशुल्क एवं विश्व के अन्य देशों के साथ अधिकतम प्रशुल्क देना होता है । प्रशुल्क प्रणाली विशेषाधिकार युक्त भी हो सकती है जिसके अन्तर्गत उन देशों को व्यापार सम्बन्धी छूट प्रदान की जाती है जो राजनीतिक या क्षेत्रीय आधार पर परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं ।
प्रशुल्क के कई उद्देश्य होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विदेशी वस्तु की कीमत को उच्च कर, उसका आयात घटाने का प्रयास किया जाता है ताकि स्वदेशी उद्योगों का तीव्र गति से विकास होने लगे एवं देश के रोजगार में वृद्धि हो । देश आत्मनिर्भरता एवं स्वावलम्बन की दिशा में अग्रसर हो सके ।
(iii) आर्थिक सहायता:
आर्थिक सहायता के अधीन एक देश की सरकार आयातों व निर्यातों पर कोई कर न लगाकर अपने उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष सहायता देती है । यह सहायता ऋण अनुदान आदि के रूप में भी दी जाती है ।
आर्थिक सहायता प्रदान करने की नीति इसलिए अच्छी समझी जाती है कि जब आयात कर लगाए जाते हैं तो इसके परिणामस्वरूप विदेशी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है व उनका आयात कम हो जाता है ।
ऐसी स्थिति में यदि विदेशों द्वारा भी कर लगाए जाते हैं तो निर्यात वस्तुओं के परिमाण पर प्रभाव पडता है । आपसी प्रतिस्पर्द्धा में आयात करों के लगाए जाने पर पारस्परिक सम्बन्धों में कटुता आती है पर आर्थिक सहायता के अधीन ऐसा कोई संकट उपस्थित नहीं होता ।
इसी प्रकार आयात कर आरोपित करने से उपभोक्ता विदेशी वस्तुओं का उपभोग कम कर पाएँगे । विदेशी आयात वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होने से तथा इनकी मात्रा सीमित किये जाने से स्वदेशी वस्तुओं का मूल्य भी घरेलू बाजार में अधिक माँगे जा सकते है ।
इस प्रकार घरेलू उपभोक्ताओं को कठिनाई का सामना करना पड सकता है । आर्थिक सहायता प्रदान किए जाने पर उपभोक्ता को इस प्रकार की कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ता तथा उपभोक्ता एवं उत्पादक दोनों को ही लाभ की प्राप्ति होती है ।
(iv) परिमाणात्मक नियन्त्रण:
परिमाणात्मक नियन्त्रणों के अधीन सरकार द्वारा एक निश्चित समय के लिए अनेक वस्तुओं के आयातों तथा निर्यातों की मात्रा कोटे अथवा अभ्यंश द्वारा निर्धारित की जाती है । किसी वस्तु का आयात किस मात्रा में किया जाना चाहिए इसका निर्णय सरकार द्वारा देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है ।
कोटा या अभ्यंश सामान्यत: दो प्रकार का होता है, पहला आयात कोटा तथा दूसरा तटकर कोटा । आयात कोटे में वस्तुओं के आयात के लिए एक निश्चित मात्रा तय कर ली जाती है ।
तटकर कोटे में वस्तुओं की एक निश्चित मात्रा पर कर लगाया जाता है । कोटा प्रणाली, परिमाणात्मक प्रतिबन्ध के नाम से भी जानी जाती है । इस प्रकार के प्रतिबंध के कई रूप होते हैं ।
(i) लाइसेन्स कोटा प्रणाली जिसके अधीन सरकार द्वारा कुछ चुने हुए व्यापारियों को आयात करने की अनुमति दी जाती है । आयात एवं निर्यात करने के लिए सरकार से लाइसेन्स लेना अनिवार्य होता है । सरकार अपने देश की आवश्यकताओं के अनुरूप आयात कोटा निश्चित करती है ।
(ii) एक पक्षीय कोटा प्रणाली के अनुसार एक देश केवल अपने आयातों पर ही प्रतिबन्ध लगाता है । इस प्रतिबन्ध के दो रूप हैं- सांसारिक कोटा एवं आवंटित कोटा । सांसारिक कोटे के अधीन सरकार प्रत्येक वस्तु की अधिकतम मात्रा निश्चित कर देती है । आवण्टित कोटे के अधीन सरकार यह निश्चित करती. है कि किस देश से कितनी मात्रा में वस्तु मँगाई जाएँ ।
कोटा प्रणाली का एक अन्य रूप द्विपक्षीय कोटा प्रणाली है जिसके अनुसार सरकार द्वारा एक देश से निश्चित मात्रा में आयात करने की अनुमति दी जाती है ।
कोटा प्रणाली के मुख्य गुण निम्न है:
(I) कोटा प्रणाली के अन्तर्गत अनेक देशों के साथ लाभष्ठ सौदे किये जा सकते है ।
(II) कोटे की प्रणाली लोचशील होती है और इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है । इसमें पक्षपात की सम्भावना कम होती है ।
(III) प्रायः आयात कर का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध होता है, परन्तु कोटा प्रणाली इस आक्षेप से प्रायः मुक्त होती है । इसके अधीन वस्तुओं के आयात की मात्रा निश्चित हो जाती है और स्वदेशी व्यापारी को यह सुविधा रहती है कि वह आसानी से अपने उत्पादन को नियोजित कर सके ।
कोटा प्रणाली जा दोष यह है कि इससे सरकार की आय कम होती है । कोटा प्रणाली प्रायः लालफीताशाही के दुष्चक्र में फँसती है जिससे भ्रष्टाचार को अधिक अवसर मिलता है ।
कोटा प्रणाली को प्रायः विनिमय नियंत्रण की नीति के अनुपूरक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है और इस स्थिति में यह अधिक प्रभावशाली बनती है । विनिमय नियन्त्रण के अधीन सरकार आयात व निर्यात हेतु विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय को नियमित रखती है । जब विदेशी विनिमय की मात्रा निश्चित हो जाती है तो सीमित आयात किए जाने सम्भव होंगे ।
इस नीति पर चलते हुए सरकार विनिमय की दर को निर्धारित करती है । विनिमय नियन्त्रण की प्रणालियों द्वारा आयातों को प्रतिबन्धित किया जा सकता है । संरक्षण के तरीकों में भेदभावपूर्ण व्यवहार भी किया जाता है । ऐसा करते हुए कुछ देशों के सन्दर्भ में कर की दरें कम एवं अन्य के सन्दर्भ में अधिक की जाती हैं ।
(v) व्यापार नियन्त्रण के उपायों का वर्गीकरण:
व्यापार नियन्त्रण के उपायों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है:
(i) व्यापार नियन्त्रण के ऐसे उपाय जो मात्राओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं । जैसे अभ्यंश एवं विनिमय नियन्त्रण ।
(ii) विनिमय नियन्त्रण के ऐसे उपाय जो कीमत को प्रत्यक्षतः प्रभावित करते हैं; जैसे कि कर एवं अनुदान ।
कोटे की तरह कर एवं अनुदान आयात एवं निर्यातों पर लगाए जाते है । इस प्रकार व्यापार पर नियन्त्रण करने के चार उपाय ऐसे है जो कीमत के माध्यम से और दो उपाय मात्रा के माध्यम से व्यापार का नियन्त्रण करते है ।
सामान्य रूप से कर (भले ही वह आयातों पर लगाया जाये या निर्यातों पर) निम्न तीन रूपों में से किसी प्रकार से लगाया जाना सम्भव है:
(1) यथामूल्य आधार पर- यह कर या ड्यूटी वैधानिक रूप से आयात या निर्यात होने वाली वस्तु के मूल्य पर प्रतिशत के रूप में लगाया जाता है । यातायात लागतों को इसके अधीन सम्मिलित किया भी जा सकता है और नहीं भी ।
(2) विशिष्ट आधार पर- कर का निर्धारण आयात या निर्यात की गई घरेलू करेन्सी का निरपेक्ष मात्रा पर वैधानिक रूप से तय कर दिया जाता है ।
(3) संयुक्त आधार पर- यह यथामूल्य कर एवं विशिष्ट कर का संयोग होता है ।