क्षेत्रीय असंतुलन को हटाने के लिए विकास नीतियां | Read this article in Hindi to learn about the three main development policies adopted for removing regional imbalances. The policies are:- 1. साधनों का पिछड़े क्षेत्रों में स्थानान्तरण (Transfer of Resources of Backward Areas) 2. विशेष क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Special Area Development Programmes) 3. पिछड़े क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन (Incentives for Promoting Investment in Backward Areas).
क्षेत्रीय असन्तुलनों और पिछड़ेपन की समस्या के समाधान के लिये निम्नलिखित प्रकार की नीति का अनुसरण किया जा सकता है:
Policy # 1. साधनों का पिछड़े क्षेत्रों में स्थानान्तरण (Transfer of Resources of Backward Areas):
संघीय कोष स्थानान्तरण के अन्तर्गत, केन्द्र से प्रान्तों की ओर स्थानान्तरण निम्नलिखित साधन में सम्मिलित हैं- राज्य योजनाओं के लिये केन्द्रीय सहायता, वित्त आयोग की सिफारिशों अनुसार गैर-योजनागत स्थानान्तरण, अस्थायी स्थानान्तरण, केन्द्र समर्थित योजनाओं के लिए कृषि निर्धारण, वित्तीय संस्थाओं आदि की ओर से दोनों लघु कालिक और दीर्घकालिक साख ।
तदानुसार, कुल योजना व्यय में इन प्रान्तों का साधन भाग जो पहली योजना में 46 प्रतिशत था तीसरी योजना में 51 प्रतिशत हो गया तथा फिर 5वीं योजना में 54 प्रतिशत । पुन: इन पिछड़े प्रान्तों का भाग तथा विशेष श्रेणी के प्रान्तों का केन्द्रीय सहायता में भाग पहली योजना में 48 प्रतिशत से बढ़ कर तीसरी योजना में 57 प्रतिशत हो गया तथा फिर चौथी योजना में 68 प्रतिशत तक पहुंच गया तथा अन्त में पांचवीं योजना में यह 69 प्रतिशत हो गया ।
Policy # 2. विशेष क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Special Area Development Programmes):
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पर्वतीय क्षेत्रों, जन-जातीय क्षेत्रों तथा सूखा प्रवण क्षेत्रों के विकास के लिये पूर्ण केन्द्रीय सहायता के साथ विशेष योजनाएं निर्मित की गई हैं । इसके अतिरिक्त, विशेष वर्गों की स्थिति में सुधार के लिये जैसे सीमान्त किसान और पिछड़े क्षेत्रों के कृषि श्रमिकों आदि के लिये ग्रामीण विकास की अन्य योजनाएं तैयार की गई ।
एक क्षेत्र आधारित योजना जिसे ‘ट्राइबल सब-प्लमज’ (TSPS) कहते हैं को अब पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित अनुसूचित जनजातियों के लिये कार्यान्वित किया जा रहा है । टी. एम. पीज का कार्यान्यवन 194 ‘इन्टैग्रेटिड ट्राइबल डिवैल्पमैंट प्रोजैक्टस’ (ITDP) द्वारा और 250 ‘माडीफाइड एरिया डिवैल्पमैंट प्रॉजैक्टस’ (MADP) द्वारा किया जा रहा है । इन सभी कार्यक्रमों में SFDA, MFAI, DPAP (ड्रॉट प्रोन एरिया प्रोग्राम), कैश स्कीम फार रूरल एम्पलायमैंट (CSRE) आदि सम्मिलित हैं ।
Policy # 3. पिछड़े क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन (Incentives for Promoting Investment in Backward Areas):
पिछड़े इलाकों में निजी निवेश बढ़ाने के लिये विभिन्न राजकोषीय एवं अन्य प्रोत्साहन केन्द्र, राज्यों और सार्वजनिक क्षेत्रों की अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिये गये हैं ।
ये प्रोत्साहन इस प्रकार हैं:
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(i) आय कर की रियायतें (Income Tax Concessions):
इस योजना के अन्तर्गत पिछड़े क्षेत्रों में नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई और जनवरी 1971 तक स्थापित इकाइयों को उनके लाभों में से कर देने योग्य आय की गणना में 20 प्रतिशत की छूट दी गई । यह छूट अप्रैल 1974 में औद्योगिक इकाइयों को दस वर्षों की अवधि के लिये दी गई ।
(ii) कर अवकाश (Tax Holiday):
वर्ष 1993-94 में बजट ने पिछड़े क्षेत्रों में नई औद्योगिक इकाइयों को कर अवकाश दिया गया । पिछड़े क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सभी प्रान्त, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा और अण्डेमान और निकोबार द्वीपो के केन्द्र शासित प्रदेश, दादरा और नगर हवेली, दमन और दियु सम्मिलित थे ।
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(iii) केन्द्रीय निवेश अनुदान योजना (Central Investment Subsidy Scheme):
सरकार ने अविकसित क्षेत्रों के विकास के लिए निवेश अनुदान योजना बनाई है । इसके अंतर्गत सरकार ऐसी औद्योगिक इकाइयों को अनुदान देती है, जिन्हें पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है । इसका उद्देश्य क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना है ।
इसी योजना आधीन पिछडे क्षेत्रों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है:
(a) श्रेणी-A (Category A):
इस श्रेणी में सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों को रखा गया है । इसके अन्तर्गत 25 प्रतिशत निवेश अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई है, पर किसी एक इकाई को दिए जाने वाले अनुदान की राशि 25 लाख से अधिक नहीं होगी ।
(b) श्रेणी-B (Category B):
इस श्रेणी में, श्रेणी, से कम पिछड़े क्षेत्रों को रखा गया है । इसके अन्तर्गत 15 प्रतिशत निवेश अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई है, पर किसी एक इकाई को दिए जाने वाले अनुदान की राशि 15 लाख से अधिक नहीं होगी ।
(c) श्रेणी-C (Category C):
इस श्रेणी में, श्रेणी A तथा श्रेणी B से कम पिछड़े क्षेत्रों को शामिल किया गया है । इसके अन्तर्गत 10 प्रतिशत निवेश अनुदान दिये जाने की घोषणा की गई । लेकिन किसी एक इकाई को दिए जाने वाले अनुदान की राशि 10 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
(iv) यातायात वित्तीय सहायता योजना (Transport Subsidy Scheme):
जुलाई, वर्ष 1971 में उन औद्योगिक इकाइयों के लिये यह यातायात वित्तीय सहायता योजना आरम्भ की गई जो पर्वतीय, अगम्य एवं दूरस्थ स्थानों पर स्थित हैं । उपरोक्त औद्योगिक इकाइयों को 50 प्रतिशत परिवहन सबसिडी दी गई । यह सबसिडी कच्चे माल और तैयार वस्तुओं को कुछ चुने हुये रेलू शीर्षों से औद्योगिक इकाई के स्थान तक लाने तथा ले जाने में हुये व्यय पर होगी । यह योजना दूरस्थ एवं अगम्य क्षेत्रों जैसे जम्मू एवं कश्मीर और उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों में उपलब्ध होगी ।
(v) पिछड़े क्षेत्रों में नई वित्तीय संस्थाओं का संवर्धन (Promotion of New Financial Institutions in Backward Regions):
क्षेत्रों में औद्योगीकरण लाने के लिये भारत सरकार ने विशेषतया पिछड़े क्षेत्रों में वित्तीय संस्थाओं का संवर्धन किया । वर्ष 1995-96 के बजट में सरकार ने ‘रिजनल रूरल डिवैल्पमैंट बैंक’ (RRDB) की उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थापना की घोषणा की । इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने एक नये ‘रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चरल डिवल्पमैंट फण्ड’ (RIDF) की नाबार्ड (NABARD) के अधीन अप्रैल, 1995 से स्थापना की जो ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में संरचनात्मक विकास करेगा ।
(vi) प्रान्तीय सरकारों के प्रोत्साहन (State Government Incentive):
पिछड़े क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के संवर्धन के लिये प्रान्तीय सरकारों ने भी अनेक प्रकार के प्रोत्साहन दिये । इन प्रोत्साहनों में सम्मिलित हैं बिजली और पानी के कनैक्शन सहित न कोई हानि न कोई लाभ के आधार पर विकसित भूमि के प्लाट उपलब्ध करना, कुछ वर्षों के लिये जल शुल्क से मुक्ति, बिक्री कर की छूट, ब्याज रहित ऋण, चुंगी शुल्कों से छूट, आरम्भिक वर्षों के लिये सम्पत्ति कर से छूट, औद्योगिक गृह-निवास योजना के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध करना, छोटे उद्योगों की स्थापना के लिये औद्योगिक भू-सम्पत्ति तैयार करना । SFC, SIDCO और SHCs जैसी संस्थाओं ने रियायती वित्त योजना के अधीन पिछडे क्षेत्रों में ऋण दिये हैं ।
(vii) विविध उपाय (Miscellaneous Measures):
इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार पिछड़े इलाकों के विस्तार के लिये कुछ फुटकर उपाय करती रही है । वर्ष 1972 से केन्द्रीय सरकार औद्योगिक लाइसैंस देने के लिये पिछड़े क्षेत्रों को प्राथमिकता देती रही है । इसके अतिरिक्त प्रान्तीय सरकारों की सहायता के लिये पहचाने हुये ‘नोइन्डस्ट्री डिस्ट्रक्टस’ में संरचनात्मक विकास के लिये केन्द्रीय सरकार के पास एक योजना थी जिसके अनुसार ऐसी विकास परियोजनाओं की कुल लागत का 1/3 भाग, अधिकतम 2 करोड़ रुपयों की सीमा तक दिया जायेगा ।
प्रमुख वित्तीय संस्थाओं से रियायती वित्त उपलब्ध (Concessional Finance Available from Major Financial Institutions):
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाएं देश के पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये रियायती वित्त उपलब्ध करवा रही हैं । इन संस्थाओं में सम्मिलित हैं ‘भारत का औद्योगिक विकास बैंक’ (IDBI) इण्डस्ट्रीयल फाइनैंस कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया (IFCI) और इण्डस्ट्रीयल क्रैडिट एण्ड इनवेस्टमेंट कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया (ICICI) ।
ये संस्थाएं ब्याज के रियायती दरों पर ऋण दे रही हैं तथा ऋण वापिसी के लिये लम्बे समय की सुविधाएँ भी दे रही हैं, जोखिम पूंजी अथवा ऋण पत्र जारी करने में भाग लेते हैं तथा वचनबद्धता शुल्कों आदि की समाप्ति की जा रही है ।