क्षेत्रीय असंतुलन को हटाने में विफलता | Read this article in Hindi to learn about the reasons for failure in removing regional imbalances along with suggestions.
निम्नलिखित दुर्बलताओं के कारण भारत में क्षेत्रीय आयोजन वांछित सफलता उपलब्ध नहीं कर सका:
(क) समृद्ध राज्यों ने अपने अतिरेक साधनों में से कुछ अतिरेक को निर्धन प्रान्तों की ओर स्थानान्तरित करने से मना कर दिया ।
(ख) निर्धन राज्यों में आत्म-निर्भरता का अभाव तथा इस प्रकार समृद्ध प्रान्तों पर साधन स्थानान्तरण के लिये अत्याधिक निर्भरता ।
ADVERTISEMENTS:
(ग) पिछड़े क्षेत्रों के लिये क्षेत्र विकास कार्यक्रमों में सुबद्धता का अभाव ।
(घ) पिछडे क्षेत्रों में स्थित महान केन्द्रीय परियोजनाएं उन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाओं को सुधारने में असफल रहीं ।
(ङ) सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं से रियायती वित्त प्राप्त करने में उद्यमियों की प्रवृति न होना ।
(च) विशेष पिछड़े क्षेत्रों के लिये केन्द्रीय अत्याधिक केन्द्रीकरण तथा ऐसी निवेश कम अवसरों की रचना होती है ।
ADVERTISEMENTS:
(छ) संरचनात्मक सुविधाओं जैसे ऊर्जा, परिवहन, संचार आदि का अभाव और राज्य सरकारों से पर्याप्त राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहनों के अभाव के कारण राज्य सरकारें सहायक उद्योगों को प्रमुख केन्द्रीय औद्योगिक उद्यमों में और आस-पास विकसित करने में असफल रहे ।
(ज) राज्य सरकारों द्वारा पिछड़े क्षेत्रों तथा अन्य विशेष समस्या क्षेत्रों के विकास के लिये निर्धारित कोष की अपर्याप्तता ।
(झ) प्रान्त में अन्त: प्रान्त असन्तुलनों की समस्या से सुलझने के लिये सरकार द्वारा उचित प्रोत्साहनों का अभाव ।
(ञ) पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिये योजना व्ययों, ऋणों, प्रान्तों को दी गई अग्रिम राशि का उपयोग न करना ।
ADVERTISEMENTS:
सुझाव (Suggestions):
क्षेत्रीय असन्तुलनों तथा पिछड़ेपन की समस्या से निपटने के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं:
1. एक समान व्यवहार (Similar Outlook for All):
केन्द्र द्वारा सौतेली मां जैसे व्यवहार करने जैसी शिकायतों को दूर करने के लिये क्षेत्रीय असमानताओं का अनुमान लगाने के लिये पिछड़े क्षेत्रों की पहचान के लिये एक जैसी मापदण्ड का प्रयोग किया जाना चाहिये ।
2. पृथक विकास कार्यक्रम (Separate Strategies for Development):
प्रत्येक क्षेत्र के लिये अलग-अलग विकास कार्यक्रम होने चाहिये । यू. पी. एवं बिहार के मैदानों में जहां अत्याधिक जनसंख्या है परन्तु कृषि स्थिर है तथा खनिज पदार्थों के साधन नहीं हैं, विलास कार्यक्रम कृषि एवं जल के तकनीकी सुधारों और परिवहन एवं संचार तथा सामाजिक एवं संस्थानिक सुधारों से आने चाहियें । जबकि राजस्थान जैसे क्षेत्रों में कार्यक्रमों को चाहिये कि स्थानीय युवकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ करके युवकों को इस योग्य बनाये कि वे बेहतर आर्थिक अवसरों वाले समीप के क्षेत्रों में जाकर प्राकृतिक साधनों के विकास के लिये योजनाएं आरम्भ कर सके ।
3. पर्याप्त राजकीय कोष (Adequate Fiscal Funds):
केन्द्र को चाहिये कि पिछड़े क्षेत्रों के लिये उनकी आवश्यकता और महत्व अनुसार प्रान्तों को पर्याप्त कोष उपलब्ध करे । क्षेत्रों के विकास का दायित्व बड़ी परियोजनाओं को छोड़ कर जहां भारी निवेश की आवश्यकता है पूर्णतया प्रान्त पर छोड़ना चाहिये ।
4. विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों के लिए अलग रणनीतियां (Separate Plans for Different Backward Regions):
पिछड़े क्षेत्रों में ग्रामीण एवं लघु क्षेत्रों के विकास के समायोजित कार्यक्रम होने चाहियें । प्रान्तों को चाहिये कि सभी मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, जल पूर्ति, परिवहन और संचार, प्रशिक्षण संस्थाएं वित्त आदि उपलब्ध करें ।
5. राजकृष्ण के सुझाव (Rajkrishan’s Suggestions):
राजकृष्ण का कहना है कि पिछड़े क्षेत्रों को संरचनात्मक सुविधाएं उपलब्ध करने के लिये बड़ी मात्रा में सार्वजनिक निवेश उपलब्ध किया जाना चाहिये ताकि वह निर्धन लोगों के लिये रोजगार एवं आय के अधिक साधन उपलब्ध कर सकें ।
सक्रिय संरचनात्मक नीति के अतिरिक्त अन्तर्क्षेत्रीय असन्तुलनों को कम करने के लिये नीति मिश्रण की आवश्यकता है जिसमें सम्मिलित हैं:
(क) राज्य, जिला तथा नीचे के स्तरों पर कुशल आयोजन और कार्यान्वयन प्रणाली की आवश्यकता जहां शक्तियों का पर्याप्त विकेन्द्रीकरण हो और
(ख) केन्द्र से राज्यों, जिलों/ब्लॉकों को अत्याधिक वित्तीय साधनों का अवमूल्यन ।
6. औद्योगिक विकास पर बल (Stress on Industrial Development):
औद्योगिक स्थानों और औद्योगिक विकास की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया जाये । बिजली, पानी, यातायात, संचार आदि मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध की जायें तथा पिछड़े क्षेत्रों में विभिन्न उद्योग स्थापित करने की इच्छा रखने वाले उद्यमियों को ऋण रियायतें और आर्थिक सहायता दी जानी चाहिये ।
NCDBA अपनी रिपोर्ट में दर्शाता है कि:
(क) केन्द्रीय निवेश वित्तीय सहायता और रियायती वित्त ने वर्तमान औद्योगिक परिक्षेपण नीति ने विकसित औद्योगिक केन्द्रों के समीप थोड़े से जिलों को लाभ पहुंचाया है ।
(ख) कुछ एक को छोड़ कर औद्योगिक क्षेत्र कार्यक्रम ने विकसित क्षेत्रों से दूर उद्योगों की स्थापना में सहायता नहीं की है ।
(ग) लाइसैंस नीति केवल एक नकारात्मक उदाहरण है और यह पिछड़े क्षेत्रों में अपने आप औद्योगिक विकास का संवर्धन नहीं कर सकती ।
(घ) रियायती वित्त की उपलब्धता और वित्तीय सहायता एक महत्वपूर्ण प्रेरक कारक है जो उद्यमियों को पिछड़े क्षेत्रों में अपनी इकाइयां स्थापित करने के लिये प्रेरित करता है । समिति ने उद्योग को उचित विकास केन्द्रों में, औद्योगिक रूप में पिछड़े स्थानों पर स्थापित करने की नीति की सिफारिश की है ।
7. अन्य सुझाव (Other Suggestions):
(i) पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा से पधार पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।
(ii) पिछड़े क्षेत्रों में के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए । इसके लिए इन क्षेत्रों में अच्छी किस्म के बीज खादें रियायती दर पर उपलब्ध करवाई जानी चाहिए ।
(iii) पिछड़े क्षेत्रों में निवेश करने के वित्तीय संस्था व बैंकों द्वारा रियायती दर पर ऋण उपलब्ध करवाए जाने चाहिए ।
(iv) पिछड़े क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण किया जाना चाहिये ।
निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि कुछ राज्य तो बहुत अधिक विकसित हैं, जबकि कुछ अन्य राज्य बहुत ही पिछड़े हुए हैं । देश में विभिन्न क्षेत्रों के संतुलित विकास के लिए सरकार व सामाजिक-संगठनों को मिलकर इस दिशा में प्रयास करने चाहिए ।