व्यापार की शर्तों पर आर्थिक विकास के प्रभाव | Read this article in Hindi to learn about the effects of growth on the terms of trade. The effects are:- 1. वृद्धि के प्रकार (Types of Growth) 2. व्यापार की शर्तों का वृद्धि पर प्रभाव: एक बड़े देश का उदाहरण (Effect of Growth on the Terms of Trade in the Context of Big Country) and a Few Others.
आर्थिक वृद्धि के तीन मुख्य स्रोत हैं- 1. श्रम वृद्धि, 2. पूँजी संचय एवं 3. तकनीकी प्रगति ।
तुलनात्मक स्थैतिक विश्लेषण के अन्तर्गत श्रम वृद्धि एवं पूंजी संचय के प्रभावों को एक तरफ रखते हुए तथा दूसरी ओर तकनीकी प्रगति के प्रभावों को वृद्धि कर रहे देश के उपभोग, उत्पादन, आयात माँग, निजी पूंजी, व्यापार शर्त, साधन कीमतों व सामाजिक कल्याण पर देखा जाता है ।
इस व्यवस्था के मुख्य शिल्पी जॉनसन थे हालाँकि Export and Import Biased Growth का विचार हिक्स ने दिया । इसके अतिरिक्त भगवती, कार्डन, फिंडल एवं गुबर्ट एवं रायबजिंसकी ने इसकी व्याख्या की ।
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व्यापार की शर्तों पर आर्थिक वृद्धि के प्रभाव का आंकलन हम निम्न बिन्दुओं के आधार पर करेंगे:
(1) वृद्धि के प्रकार ।
(2) एक बड़े देश के प्रसंग में व्यापार शती पर वृद्धि के प्रभाव की व्याख्या ।
(3) अपूर्ण विशिष्टीकरण की दशा पर विचार ।
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(4) निर्यातों एवं आयातों के परिमाण पर वृद्धि का प्रभाव ।
(1) वृद्धि के प्रकार (Types of Growth):
सर्वप्रथम यह स्पष्ट करना आवश्यक कि वृद्धि कर रहे देश की व्यापार पर सापेक्षिक निर्भरता किस प्रकार आर्थिक वृद्धि द्वारा प्रभावित होते हैं । दूसरे शब्दों में क्या आर्थिक वृद्धि व्यापार की औसत प्रवृति को बढ़ाने या घटाने की प्रवृति रखता है ।
जब वृद्धि व्यापार की औसत प्रवृति को प्रभावित नहीं करती अर्थात् जब व्यापार की औसत प्रवृति स्थिर रहती है तो वृद्धि को निष्क्रिय कहा जाता है । जब व्यापार की औसत प्रवृति वृद्धि के साथ गिरती है तो आर्थिक वृद्धि कही जाती है ।
वृद्धि की दो अतिरंजित दशाओं को भी स्पष्ट किया जा सकता है:
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(1) Ultra-Pro-trade Biased Growth.
(2) Ultra-Antitrade Biased Growth.
वृद्धि से पूर्व सन्तुलन दशा बिन्दु E पर है । व्यापार की सीमान्त प्रवृति OE रेखा के डाल से प्रदर्शित है । माना अर्थव्यवस्था वृद्धि करती है व इसकी राष्ट्रीय आय Q0 से बढ़कर Q1 हो जाती है । यदि E1 बिन्दु रेखा ON के समकक्ष गति करे तब वृद्धि निष्क्रिय (N) होती है ।
यदि E क्षेत्र GD की ओर गति करता है जहां रेखा ED, OR के समानान्तर है तो वृद्धि Pro-trade biased (P) होती है । यदि E क्षेत्र DR की ओर गति करे तो वृद्धि Ultra-Pro-trade biased (UP) होती है ।
यदि E क्षेत्र FG की ओर गति करे तब वृद्धि Anti-trade biased तथा यदि,
E क्षेत्र Q1F की ओर गति करे तब वृद्धि Ultra Anti-trade (UA) कहलाती है ।
चित्र 49.6 में वृद्धि के पाँच प्रकार उपभोक्ता सम्भावना परिसीमा के द्वारा प्रदर्शित हैं ।
X-अक्ष में निर्यात वस्तुओं तथा Y-अक्ष में आयात वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है । आर्थिक वृद्धि से पूर्व अर्थव्यवस्था P1 बिन्दु पर उत्पादन तथा बिन्दु C पर उपभोग करती है । वृद्धि उपरान्त P2 बिन्दु पर उत्पादन तथा उपभोग नई उत्पादन परिसीमा P2K2 में किसी बिन्दु पर संभव है ।
2. व्यापार की शर्तों का वृद्धि पर प्रभाव: एक बड़े देश का उदाहरण (Effect of Growth on the Terms of Trade in the Context of Big Country):
चैकोलियाडस ने आर्थिक वृद्धि के व्यापार की शती पर पडे प्रभावों का विवेचन किया है । सैद्धान्तिक विवेचन में दो देश A और B दो वस्तुओं X और Y का उत्पादन करते हैं । मूल सन्तुलन दशा पर माना कि A देश द्वारा निर्यात होने वाली वस्तु X है तथा B देश द्वारा निर्यात होने वाली वस्तु Y है ।
सामान्य सन्तुलन दशा की प्रस्ताव वक्रों के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है । यदि हम यह मान कर चलें कि केवल A देश ही विकास करता है तब केवल A देश का प्रस्ताव वक्र ही परिवर्तित होगा एवं B देश का प्रस्ताव वक्र यथावत रहेगा । यद्यपि बी देश के प्रस्ताव वक्र में सन्तुलन स्थिति बदलती है, क्योंकि A का प्रस्ताव वक्र परिवर्तित होता है ।
अब हम यह स्पष्ट करेंगे कि A देश में होने वाली वृद्धि किस प्रकार व्यापार की शर्त को प्रभावित करती है ।
प्रतिष्ठित सिद्धान्त की उस सरल दशा को ध्यान में रखा जा सकता है जहाँ उत्पादन सम्भावना रेखा रेखीय है तथा दो देशों में कम-से-कम एक देश एक वस्तु के उत्पादन में पूर्ण विशिष्टीकरण प्राप्त करता है ।
चित्र 49.7 में उत्पादन स्थल B0, K1, B1, B देश की रेखीय उत्पादन सीमा को प्रदर्शित करता है जिसे लगातार स्थिर माना गया है । उत्पादन स्थल A0, A1, K, A देश की वृद्धि से पूर्व उत्पादन सीमा है । वृद्धि से पूर्व विश्व की उत्पादन सीमा A1KB1 द्वारा प्रदर्शित है ।
आस्वाद एवं रुचियां एक विश्व तटस्थता मानचित्र द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं जिन्हें चित्र में तटस्थता वक्र I1‘I1‘ तथा I2‘I2‘ द्वारा दिखाया गया है । सन्तुलन बिन्दु प्रारम्भ में K है जहाँ सन्तुलन कीमत PX/PY तटस्थता वक्र I1‘I1‘ के निरपेक्ष ढाल द्वारा प्रदर्शित है ।
माना A देश की उत्पादन सीमा बाहर की ओर समानान्तर गति करते हुए बढ़ती है जिससे A0A2K2 द्वारा प्रदर्शित किया गया है । A देश की उत्पादन सम्भावना सीमा में होने वाला परिवर्तन या तो श्रम वृद्धि (चूंकि श्रम ही उत्पादन का एक साधन माना गया है) या निष्क्रिय तकनीकी प्रगति द्वारा सम्भव होती है ।
प्रश्न उठता है कि किस प्रकार A की उत्पादन सम्भावना सीमा में होने वाला विवर्तन- (i) विश्व की उत्पादन सम्भावना सीमा एवं (ii) देश की व्यापार शर्तों को प्रभावित करता है ।
चूँकि विश्व की उत्पादन सम्भावना सीमा परिवर्तित होकर A2K2B3 हो जाती है अत: वृद्धि के पश्चात् सन्तुलन A2K2B3 के अधीन कहीं प्राप्त होता है । निश्चित सन्तुलन बिन्दु का निर्धारण आस्वाद एवं रुचियों पर निर्भर करेगा ।
चित्र 49.7 में सन्तुलन बिन्दु ह पर निर्धारित होता है । वृद्धि के पश्चात सन्तुलन कीमत दर A की घरेलू कीमत दर के द्वारा दी गई है । अतः A की व्यापार शर्तें आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ गिरती हैं अर्थात् कीमत PX/PY गिरती है, किन्तु यह आवश्यक दशा नहीं है ।
यदि रुचियों तथा आस्वादों पर निर्भर रहा जाये तो वृद्धि के उपरान्त सन्तुलन K2 या K2B2 क्षेत्र में भी सम्भव बन सकता है । इस दशा में A की व्यापार शर्तें निश्चित रूप से सुधरेंगी ।
प्रश्न यह है कि किन दशाओं में A की व्यापार शर्तें वृद्धि के साथ विपरीत होंगी । वह कौन-सी दशाएँ होंगी जिनके अधीन इनमें सुधार होगा ? यह स्पष्ट करने के लिए हम वृद्धि के व्यापार शती पर पडे प्रभाव का अध्ययन करते हैं ।
चित्र 49.7 की सहायता से हम यह सिद्ध कर सकते हैं कि यदि वस्तु निष्क्रिय है (अर्थात् यदि Y का उपभोग आय के परिवर्तित होने पर स्थिर रहता है) तो Y की सापेक्षिक कीमत भी स्थिर रहेगी ।
यदि Y वस्तु श्रेष्ठ या सामान्य है (अर्थात् यदि Y वस्तु का उपयोग आय के बढ़ने से बढ़ता है) तो PX/PY गिरेगा तथा यदि Y वस्तु घटिया (अर्थात् यदि Y वस्तु का उपभोग आय के बढ़ने के साथ बढ़ता है) तो PX/PY की वृद्धि के साथ-साथ बढ़ेगा ।
इसे सिद्ध करने के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब Y निष्क्रिय है तब आय उपभोग वक्र ऊर्ध्वाधर होता है जिसे A0K1K2 रेखा के द्वारा दिखाया गया है । अतः K2 पर सभी वक्र उसी समान ढाल का प्रदर्शन करते है जो मूलत: K बिन्दु पर हैं । सन्तुलन बिन्दु K1 से K2 की ओर विवर्तित होता है तथा Y के लिए X की सीमान्त प्रतिस्थापन दर (व इसी प्रकार X की सापेक्षिक कीमत) स्थिर रहती है ।
दूसरी तरफ जब Y एक श्रेष्ठ वस्तु है तो आय उपभोग वक्र जो कि K1 बिन्दु से होकर जाता है एक ऊर्ध्वमुखी ढाल को प्रदर्शित करता है जिसे K1S से दिखाया गया है । उदासीनता वक्र I3I3‘ जो बिन्दु S से गुजरता है ।
विश्व उत्पादन सम्भावना परिसीमा को ऊपर की ओर से बिन्दु S पर काटता है सन्तुलन क्षेत्र SK2 में कहीं पर स्थापित होता है जो X के लिए एक निम्न सापेक्षिक कीमत दिखाता है ।
जब वस्तु Y एक निम्न कोटि की वस्तु होती है तो आय उपभोग वक्र जो कि K1 से होकर जा रहा है ऋणात्मक ढाल लिए होता है । जैसा कि वक्र K1F से प्रदर्शित है । इसी प्रकार उदासीनता रेखा I4I4‘ जो F बिन्दु से होकर गुजरती है विश्व उत्पादन परिसीमा को F बिन्दु पर बायीं से दायीं ओर काटती है । यह क्षेत्र FK2 में किसी बिन्दु पर सन्तुलन की प्राप्ति करता है तथा X के लिए एक उच्च सापेक्षिक कीमत को अभिव्यक्त करता है ।
सक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि A की व्यापार शर्त, A देश में आर्थिक वृद्धि होने पर किसी दिशा की ओर मुड सकती है तब भी जब प्रत्येक देश की रुचि व आस्वाद को पृथक् रूप से एक सामाजिक तटस्थता मानचित्र के द्वारा प्रदर्शित किया गया हो ।
अतः A देश की वृद्धि के प्रभावों को A देश की व्यापार शती के सन्दर्भ में स्पष्ट किया जाना तभी सम्भव है, जबकि यह निर्धारित हो सके कि A देश में होने वाली वृद्धि किस प्रकार की है ? इस उदाहरण में जहाँ पूर्ण विशिष्टीकरण की दशा को ध्यान में रखा गया है, A के उपभोग प्रभावों में समरूपता दिखती है ।
यदि A के उपभोग प्रभाव व परिणामस्वरूप A की वृद्धि अति व्यापार विरुद्ध हो तो A की आयातों के लिए माँग अथवा (निर्यातों की पूर्ति) वृद्धि से पूर्व व्यापार की शती से निरपेक्ष रूप में अधिक होगी । यदि अन्तर्राष्ट्रीय सन्तुलन वृद्धि से पूर्व या वृद्धि के पश्चात् स्थायित्व लिए हुए हो तो A की व्यापार शर्तें PX/PY वृद्धि के साथ ह्रासित या विपरीत होंगी ।
यदि A का उपभोग प्रभाव अति व्यापार विरूद्ध हो तो A की वृद्धि निश्चित रूप से अति व्यापार विरूद्ध होंगी व इसकी व्यापार शर्तें PX/PY वृद्धि के साथ-साथ सुधरेंगी अर्थात् PX/PY में वृद्धि होगी ।
A देश में होने वाली व्यापार की वृद्धि, A की व्यापार शर्त को अनुकूल या प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है । यह सम्भव नहीं है कुछ निश्चित प्रकार के उपभोग प्रभावों का निवारण किया जाए व इस प्रकार सम्भावित फलों की सीमा को न्यून किया जाए ।
प्रश्न यह है कि क्या हम इस सम्भावना को दूर नहीं कर सकते कि A का उपभोग प्रभाव अति व्यापार विरूद्ध प्रवृति रखे ? यदि A की वृद्धि तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप होती है तो अति व्यापार विरूद्ध प्रवृति पर आधारित उपभोग प्रभाव को ध्यान से नहीं हटाया जा सकता ।
परन्तु जब A की वृद्धि जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप हो रही हो तो अति व्यापार विरुद्ध प्रवृति पर आधारित प्रभावों का दिखायी देना अनिवार्य होगा । इसे स्पष्ट करने के लिए माना कि A देश के निवासियों की रुचि, आस्वाद एवं साधन बहुलताएँ समरूपी है ।
जब A देश के श्रम व उत्पादन मात्रा के साथ बढ़ेगी । तात्पर्य यह है कि A देश के उपभोग प्रभाव निष्क्रिय है । A देश के निवासी वृद्धि से पूर्व व वृद्धि के पश्चात् एक जैसे स्तर पर नहीं हैं । उपभोग प्रभाव भी निष्क्रिय नहीं है । उपभोग प्रभाव भी निष्क्रिय होगा, जबकि न देश के निवासियों के आस्वाद व रुचियाँ समरूप हों ।
प्रश्न यह है कि तब क्या होगा जब इनमें से कोई मान्यता न मानी जाये ? यहाँ पुन: एक अति व्यापार विरूद्ध प्रवृति पर आधारित प्रभाव को हटाना आवश्यक होगा । जैसे-जैसे A देश में श्रमिक एवं उपभोक्ता बढते है, यह सम्भव है कि A देश की माँग किसी वस्तु के लिए वृद्धि से पूर्व व्यापार शर्तों पर कम हो ।
A देश के पुराने उपभोक्ता वस्तुओं की समान मात्रा का उपभोग करते रहेंगे । इसके साथ ही A देश के नए उपभोक्ता किसी वस्तु के लिए ऋणात्मक माँग नहीं रख सकते । इस प्रकार आस्वादों के किसी विवर्तन के अभाव में एवं श्रम की वृद्धि के साथ A का उपभोग प्रभाव अति व्यापार विरुद्ध प्रवृति का होना सम्भव नहीं । इस प्रकार A की व्यापार शर्तें निश्चित रूप से विपरीत होंगी ।
(3) अपूर्ण विशिष्टीकरण (Incomplete Specialization):
अपूर्ण विशिष्टीकरण की दशा पर विचार करते हुए अब हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि व्यापार की शती, निर्यातों एवं आयातों के परिणामों पर आर्थिक वृद्धि का क्या प्रभाव होता है ? जब अन्तर्राष्ट्रीय सन्तुलन स्थायित्त्व लिए होता है तो ऐसी दशा में आर्थिक वृद्धि द्वारा व्यापार की शती पर पडने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान किया जा सकता है ।
विशिष्ट स्थिति में केवल अतिविपरीत व्यापार आधारित वृद्धि विकास कर रहे देश की व्यापार शती में सुधार लाती हैं तथा सभी प्रकार की वृद्धि व्यापार शती को विपरीत करने की प्रवृति रखती है । मूल साध्य व्यापार की शर्त पर भी सभी प्रकार की वृद्धि केवल अति विपरीत व्यापार वृद्धि को छोड़ कर यह प्रवृति रखती है कि विकास कर रहे देश की आयात हेतु निरपेक्ष माँग एवं निर्यात पूर्ति बड़े ।
चूंकि दूसरे देश (अर्थात् शेष विश्व) की आयातों हेतु माँग एवं निर्यात हेतु पूर्ति यथावत रहती है तो इसका अभिप्राय है कि वृद्धि से पूर्व साम्यावस्था की व्यापार शर्त पर A को Y वस्तु के लिए एक धनात्मक अतिरिक्त माँग तथा A की X वस्तु के निर्यात की अतिरिक्त पूर्ति, A देश द्वारा निर्यात की जा रही X वस्तु की सापेक्षिक कीमतों (PX/PY) को गिराती है ।
दूसरी ओर यदि वृद्धि, अति विपरीत वृद्धि प्रेरित है तो विकास कर रहे देश की आयातों के लिए मांग व निर्यातों के लिए पूर्ति वृद्धि से पूर्व साम्यावस्था की व्यापार शर्त पर, वृद्धि के साथ निरपेक्ष रूप से गिरती है । इस प्रकार A देश के निर्यात को X के लिए एक धनात्मक मांग व A के आयात को Y के लिए धनात्मक अतिरिक्त पूर्ति उत्पन्न होती है जिससे A की व्यापार शर्त आर्थिक वृद्धि के साथ सुधरती है अर्थात् वस्तु कीमत दर PX/PY में वृद्धि का कारण बनती है ।
(4) निर्यातों एवं आयातों के परिमाण पर वृद्धि का प्रभाव (Effects of the Growth on the Volume of Imports and Exports):
जब A की वृद्धि अति विपरीत व्यापार प्रेरित नहीं है तथा B की आयात माँग लोचदार है अर्थात् A का प्रस्ताव वक्र ऊर्ध्वमुखी ढाल रखता है तो A द्वारा X वस्तु के निर्यात एवं Y वस्तु के आयात का भौतिक परिणाम वृद्धि के साथ-साथ बढ़ेगा । परन्तु जब A देश की वृद्धि अति विपरीत व्यापार प्रेरित तथा X वस्तु के निर्यात गिरेंगे ।
दूसरी तरफ जब B देश की आयात माँग लोचदार है तो A देश द्वारा आयात की गई Y वस्तु की भौतिक मात्रा गिरेगी तथा निर्यात X की मात्रा अति विपरीत व्यापार प्रेरित वृद्धि को छोड़कर, सभी प्रकार की वृद्धियों हेतु बढ़ेगी । जब A की वृद्धि अति विपरीत व्यापार प्रेरित हो तो A के आयात बढेंगे, जबकि इसके निर्यातों में कमी होगी ।
उपर्युक्त निष्कर्षों को हम चित्र 49.8 में प्रदर्शित कर रहे हैं । चित्र में A देश के प्रस्ताव वक्र को OA वक्र द्वारा एवं B देश के प्रस्ताव वक्र को B वक्र से प्रदर्शित किया गया है । वृद्धि से पूर्व सन्तुलन बिन्दु E पर स्थापित होता है ।
A की अति विपरीत व्यापार प्रेरित वृद्धि के साथ A का प्रस्ताव वक्र विवर्तित होकर OFG हो जाता है । B देश की आयात माँग लोचदार होने पर साम्य बिन्दु F पर स्थापित होगा जहाँ A देश का प्रस्ताव वक्र OG तथा B देश का प्रस्ताव वक्र BB एक-दूसरे को स्पर्श करते है ।
अति विपरीत व्यापार प्रेरित वृद्धि को छोडकर किसी अन्य प्रकार की वृद्धि के लिए A देश का प्रस्ताव वक्र दायीं ओर प्रवर्तित होता है जिसे वक्र OCD द्वारा दिखाया गया है । यह सन्तुलन बिन्दु D पर स्थापित होगा, जबकि B देशों की आयातों के लिए माँग लोचदार हो । यदि B देश की आयातों के लिए माँग बेलोच हो तब सन्तुलन बिन्दु C पर स्थापित होगा ।