अविकसित देशों की विशेषताएं | Read this article in Hindi to learn about the fourteen main characteristics of underdeveloped countries. The characteristics are:- 1. कृषि पर निर्भरता एवं अनुत्पादक कृषि (Dependence on Agriculture and Unproductive Agriculture) 2. धीमी एवं असंतुलित औद्योगिक वृद्धि (Slow and Unbalanced Industrial Growth) and a Few Others.

विकास अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अर्द्धविकसित देश ऐसे विषम चक्रों में घिरे रहते हैं जो इन देशों में विकास हेतु बाधा उत्पन्न करते हैं ।

इन चक्रों को निम्न प्रकार अभिव्यक्त किया जा सकता है:

निम्न आय निम्न बचतें → निम्न पूँजी निर्माण → निम्न उत्पादकता → निम्न आय,

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निम्न आय → बाजार का लघु आकार → विनियोग की प्रेरणा का अभाव → वृद्धि की न्यूनता → निम्न आय,

निम्न आय → निम्न उपभोग → निम्न स्वास्थ्य स्तर → निम्न उत्पादकता → निम्न आय,

निम्न आय → सरकार का कम आगम → शिक्षा एवं सामाजिक सेवाओं पर कम व्यय → निम्न उत्पादकता → निम्न आय ।

उपर्युक्त वर्णित कुछ विषम चक्रों में विभिन्न चर आपस में इस प्रकार अर्न्तक्रिया करते हैं कि अर्थव्यवस्था पिछड़े स्तर पर ही बनी रहती है इसे निम्न स्तर संतुलन पाश के द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है ।

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इन स्थितियों में अर्द्धविकसित देशों की मुख्य विशेषताओं को निम्नांकित लक्षणों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है जो इन देशों के विकास में बाधा का कार्य करते हैं:

Characteristic # 1. कृषि पर निर्भरता एवं अनुत्पादक कृषि (Dependence on Agriculture and Unproductive Agriculture):

मेयर एवं बाल्डविन के अनुसार- अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था मुख्यत: प्राथमिक या कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होती है अर्थात् आर्थिक व उत्पादक क्रियाओं में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । इन देशों में जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग कृषि क्षेत्र पर निर्भर है । कृषि जीवन निर्वाह का साधन मात्र है । कृषि पर निर्भरता का कारण यह है कि अर्थव्यवस्था के द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्र पूँजी, तकनीक, साहसवृति व उपक्रम प्रवृति के अभाव के कारण अविकसित ही बने रहते हैं ।

कृषि में कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत उच्च होने के बावजूद कुल राष्ट्रीय आय में इसका योगदान अल्प ही बना रहता है । अर्द्धविकसित देशों में कृषि क्षेत्र में उत्पादकता वृद्धि से संबंधित सुधारों का लाभ भी वस्तुत: बड़े व समृद्ध किसान या कुलक वर्ग ही उठा पाता है, क्योंकि वह आवश्यक आदाओं; जैसे- खाद, बीज, सिंचाई सुविधा, साख व विपणन सुविधाओं को अपनी सामर्थ्यानुसार जुटाने में सफल होते हैं । निर्धन कृषक इन सुविधाओं से सचित ही रहते हैं । यह भी देखा गया है कि कृषि जोतों के निर्माण विकास एवं सुधार में ही अधिकांश राष्ट्रीय साधन गतिशील कर दिये जाते हैं ।

Characteristic # 2. धीमी एवं असंतुलित औद्योगिक वृद्धि (Slow and Unbalanced Industrial Growth):

अर्द्धविकसित देशों में औद्योगिक क्षेत्र में धीमी व असंतुलित वृद्धि होती है इसका कारण है पूँजी, साहसवृति व नवप्रवर्तन योग्यता का अभाव, बेहतर व कारगर तकनीक का प्रयोग सम्भव न होना, औद्योगिक सुरक्षा का अभाव, प्रबंधकों व श्रमिक वर्ग के मध्य अच्छे संबंध विद्यमान न होना । इसके साथ ही औद्योगिक नेतृत्व की कमी होती है ।

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अर्द्धविकसित देशों के निवासी आधुनिक क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक नहीं रहते, कारण यह है कि वह एक बंधे बंधाए जीवन के आदी होते हैं, उनकी इच्छाएँ सीमित होते हैं वह गाँव से बाहर जाकर जोखिम नहीं लेना चाहते । इसके साथ ही वह उद्योग की गतिविधियों से अपरिचित व अप्रशिक्षित होते हैं । विकास की आरंभिक अवस्थाओं में औद्योगिक क्षेत्र में जाने के प्रति ग्रामीण जन उत्सुक नहीं होते ।

Characteristic # 3. निम्न श्रम उत्पादकता (Low Labour Productivity):

निम्न श्रम उत्पादकता अर्द्धविकास का लक्षण एवं कारक है । अर्द्धविकसित देशों में कृषि व गैर कृषि क्षेत्र में श्रम उत्पादकता का स्तर अल्प होता है । इन देशों में जनसंख्या की वृद्धि के साथ भूमि पर दबाव बढ़ता चला जाता है । यद्यपि इसे सुधरी तकनीक, खादों के बेहतर प्रयोग, सिंचाई की बेहतर सुविधाओं के द्वारा बढ़ाया जा सकता है ।

श्रम उत्पादकता के न्यून होने का मुख्य कारण श्रमिकों का जीवन-स्तर निम्न होना है, इससे उन्हें समुचित पोषण नहीं प्राप्त होता उनके आवास, स्वास्थ्य, साफ-सफाई की दशा हीन होती है । कार्य करने की प्रेरणाओं के अभाव कुशलता निर्माण के सीमित अवसर, पूँजी की न्यूनता व संस्थागत प्रबंधों की दुर्बल दशा से अल्प उत्पादन की प्रवृतियाँ दिखायी देती है ।

Characteristic # 4. पूँजी निर्माण की निम्न दरें (Low Rates of Capital Formation):

प्रो. रागनर नर्क्से ने Problems of Capital Formation in Underdeveloped Countries में लिखा है कि एक अर्द्धविकसित देश वह है जहाँ जनसंख्या व प्राकृतिक संसाधनों के सापेक्ष पूँजी की कमी विद्यमान होती है । नव। के अनुसार, अर्द्धविकास एवं धीमा औद्योगीकरण किसी सीमा तक पूँजी के अभाव से संबंधित है फिर भी पूंजी विकास के लिए आवश्यक लेकिन समर्थ दशा नहीं होती ।

डा. आस्कर लांगे के अनुसार अर्द्धविकसित देशों में पूँजीगत वस्तुओं का स्टाक कुल उपलब्ध श्रम शकित को उत्पादन की आधुनिक तकनीक के आधार पर रोजगार प्रदान करने में समर्थ नहीं होता । स्पष्ट है कि इन देशों के विकास की मुख्य बाधा विनियोग हेतु बचतों की न्यूनता है ।

अर्द्धविकसित देशों में उत्पादक क्रियाओं में विनियोग करने की प्रवृति न्यून होती है । नर्क्से के अनुसार इन देशों में उच्च वर्ग के द्वारा भी स्वर्ण, विलासिता व वास्तविक सम्पत्ति के क्रय व सट्‌टेबाजी में बचतों का अनुत्पादक उपभोग किया जाता है ।

जोखिम एवं अनिश्चितता वाले क्षेत्रों में पूँजी गतिशील नहीं हो पाती मुद्रा एवं पूँजी बाजार के अविकसित होने के कारण बचतों को विनियोग हेतु वित्तीय रूप से गतिशील करना संभव नहीं बन पाता । इसी कारण बेंजामिन हिगिन्स लिखते है कि विकास बिना पूँजी संचय के संभव नहीं बन पाता ।

Characteristic # 5. आय व सम्पत्ति वितरण में असमानताएँ (Inequalities in Income and Wealth Distribution):

अर्द्धविकसित देशों में आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ विद्यमान होती है अर्थात् समाज के एक छोटे वर्ग के पास देश की सम्पत्ति व संसाधनों का अधिकांश भाग विद्यमान होता है तथा समाज का अधिकांश भाग जीवन निर्वाह स्तर पर गुजारा करता है ।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई भी देश आय के वितरण में पूर्ण समानता के करीब नहीं आ सकता लेकिन विकसित देशों में सरकार करों के द्वारा तथा सुदृढ़ श्रम संघों की कार्यवाहियों से आय के स्तर अधिक समान रखने के लिए प्रयासरत रहती हैं । कम विकसित देशों में कर एवं श्रम संघों की गतिविधियाँ इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं कर पातीं ।

विभिन्न आर्थिक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि जिनकी आय उच्च है वहीं समाज में अधिक बचत करते है ऐसे में निर्धन वर्ग की बचतें नहीं के बराबर होती है तथा मध्य वर्ग की बचतें अति अल्प होती हैं । स्पष्ट है कि अर्द्धविकसित देशों में आय वितरण उच्च विषमता युक्त होता है ।

Characteristic # 6. अर्न्तसंरचना का अभाव (Lack of Infrastructure):

अर्द्धविकसित देशों में सामाजिक उपरिमदों तथा विद्युत यातायात संवाद वहन के साधनों जिन्हें अग्रिम शृंखला कहा जाता है का अभाव होता है । अरचना के निर्माण हेतु भारी विनियोग की आवश्यकता होती है लेकिन इन देशों में पूँजी का अभाव इसके निर्माण हेतु अवरोध उत्पन्न करता है । अर्न्तसंरचना विकास हेतु निजी विनियोगी इच्छुक नहीं होता, क्योंकि इससे प्राप्त लाभ अपरोक्ष होते है तथा इनकी प्रवृत्ति अनिश्चित होती है । समस्या तो यह है कि इन देशों में सरकार राजनीतिक अस्थायित्व से ग्रस्त होती है व उनमें विकास की प्रतिबद्धता न्यून होती है ।

Characteristic # 7. बाजार की अपूर्णताएँ (Market Imperfections):

अर्द्धविकसित देशों में बाजार की अपूर्णताएँ विद्यमान होने से अभिप्राय यह है कि उत्पादन के साधनों में गतिशीलता का अभाव होता है, श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण का अदा निम्न होने के कारण उत्पादन के साधनों का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण माँग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पाता कीमतों में तीव उच्चावचन की प्रवृत्ति पायी जाती है । उत्पादन में प्राय: एकाबिकार की स्थिति दिखायी देती है । वस्तु की गुणवत्ता पर नियंत्रण नहीं होता । इस प्रकार संसाधनों का अल्प शोषण बाजार की अपूर्णताओं के कारण होता है जिससे अर्द्धविकसित देश सीमित उत्पादन ही कर पाते है ।

Characteristic # 8. द्वेत अर्थव्यवस्था (Dual Economy):

अर्द्धविकसित देशों की द्वैत प्रकृति से अभिप्राय है कि इन देशों में एक और सापेक्षिक रूप से बड़ा घरेलू क्षेत्र विद्यमान होता है और दूसरी ओर आधुनिक क्षेत्र संकुचित होता है । प्रो.जे.एच. बूके के अनुसार- अर्थव्यवस्था का धरेलू क्षेत्र सीमित

आवश्यकताओं से एवं पूँजीवादी या आधुनिक क्षेत्र असीमित आवश्यकताओं की प्रवृति का प्रदर्शन करता है । इन दोनों क्षेत्रों की सामाजिक संरचना व संस्कृति में भिन्नता विद्यमान होती है । बूके इसे सामाजिक द्वैतता के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं ।

प्रो. बेंजामिन हिंगिन्स ने अर्द्धविकसित देशों में साधन अनुपातों की समस्या को ध्यान में रखते हुए तकनीकी द्वेतता का विश्लेषण प्रस्तुत किया उनके अनुसार- अर्द्धविकसित देशों में रोजगार अवसरों की सीमितता अल्प समर्थ माँग के कारण नहीं बल्कि इन अर्थव्यवस्थाओं की द्वैत प्रवृत्ति के कारण होती है अर्थात् समृद्ध व निर्धन क्षेत्रों में उत्पादन फलन भिन्न होते है तथा साधन बहुलताओं में अंतर विद्यमान होता है । अर्द्धविकसित देशों में द्वैतता की प्रवृत्तियों की व्याख्या प्रो. आर्थर लेविस व एच. डब्ल्यू सिंगर द्वारा की गयी ।

Characteristic # 9. समर्थ व कुशल प्रशासन व संगठनात्मक ढांचे का अभाव (Lack of Efficient Administration and Organizational Set Up):

अर्द्धविकसित देशों में सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता का अभाव होता है । मिचेल पी टोडारो के अनुसार- इन देशों का एक मुख्य लक्षण सापेक्षिक रूप से दुर्बल प्रशासनिक मशीनरी है ।

वस्तुत: इन देशों में प्रबन्ध व संगठनात्मक कुशलताओं की कमी होती है । कार्य से संबंधित नियम कानून व उनका निष्पादन अस्पष्ट व ढीले-ढाले होते हैं । तुरन्त निर्णय नहीं लिये जाते । नौकरशाही के प्रबंध जटिल होते हैं जिससे भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है । इन्हीं कारणों से गुन्नार मिर्डल इन देशों को नरम राज्य की संज्ञा देते हैं ।

Characteristic # 10. अनार्थिक संस्कृति (Uneconomic Culture):

सामान्यत: अर्द्धविकसित देशों में भौतिक समृद्धि को अधिक महत्व नहीं दिया जाता । इसी कारण अधिक आय प्राप्त करने की इच्छा व मनोवृत्ति विद्यमान नहीं होती । अनावश्यक उपभोग उचित नहीं माना जाता । व्यक्ति भाग्य व नियति को महत्वपूर्ण मानते हैं जिसका प्रभाव कार्य करने की स्थितियों पर पड़ता है ।

Characteristic # 11. मध्य वर्ग का कम या अस्तित्व हीन होना (Weak or Non-Existent Middle Class):

अर्द्धविकसित देशों में प्राय: मध्य वर्ग की अनुपस्थिति दिखायी देती है । इसका मुख्य कारण यह है कि आय का मुख्य स्रोत कृषि क्षेत्र होता है । सामान्यत: कृषि भूमि धनी वर्ग के नियंत्रण व स्वामित्व में होती है व सामान्य कृषक के पास इतनी अल्प भूमि होती है कि उससे जीवन निर्वाह ही कठिनाई से हो पाता है । इन देशों में होने वाले औद्योगिक विकास समस्या को और अधिक जटिल करता है । उद्योग अपनी शैशव अवस्था में होते है ।

अत: इनके द्वारा अधिक रोजगार का सृजन नहीं किया जाता । अत: जनसंख्या का बहुल भाग भूमि के असमान वितरण व सहायक उद्योग धंधों व संकुचित औद्योगिक क्षेत्र में समुचित अवसरों की कमी का अनुभव करता है । ऐसे में निर्धन वर्ग का बाहुल्य रहता है । मध्य वर्ग तब अस्तित्व में आता है जब लघुभूमि जोत विद्यमान होती है तथा सहायक उद्योगों व उद्योग व सेवा क्षेत्र का विस्तार होने लगता है ।

Characteristic # 12. आर्थिक निर्भरता (Economic Dependence):

अधिकांश अर्द्धविकसित देश लंबे समय तक गुलामी व औपनिवेशिक उत्पीड़न के शिकार रहे हैं । राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के उपरान्त भी यह आर्थिक रूप से विकसित देशों पर निर्भर रहे हैं । अल्पविकसित देशों द्वारा विकसित देशों का दृष्टिकोण एवं मूल्यों को अपनाया गया है । प्राय: इन देशों ने विकसित देशों के विकास मॉडलों का ही अनुसरण किया है । यद्यपि कम विकसित देशों द्वारा विकसित देशों की शिक्षा व्यवस्था स्वास्थ्य प्रणाली व प्रशासनिक संरचना को अपनाया जा रहा है लेकिन गुणवत्ता व क्षमता उपयोग की दृष्टि से वह अभी बहुत पीछे है ।

Characteristic # 13. विदेशी व्यापार उन्मुखता (Foreign Trade Orientation):

अर्द्धविकसित देश सामान्यत: विदेश व्यापार उन्मुख होते हैं । प्राय: इनके द्वारा कच्चे माल व प्राथमिक वस्तुओं का निर्यात एवं उपभोक्ता वस्तुओं व पूँजीगत वस्तुओं व मशीनरी का आयात किया जाता है । निर्यातों पर निर्भर होने के कारण अर्द्धविकसित देशों को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है । निर्यात क्षेत्र हेतु अधिक उत्पादन करने पर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों का समुचित विकास नहीं हो पाता ।

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात में व्याप्त प्रतिद्वन्दिता के कारण अर्द्धविकासत देशों को अधिक निर्यात मूल्य भी प्राप्त नहीं हो पाता । वहीं इन्हें विनिर्मित वस्तुओं, पूँजीगत यन्त्र उपकरण व विनिर्मित वस्तुओं के आयात का उच्च मूल्य चुकाना पड़ता है । अर्द्धविकसित देशों की व्यापार शर्त प्राय: विपरीत रहती है तथा इन्हें भुगतान संतुलन के असाम्य से पीड़ित रहना पड़ता है ।

अर्द्धविकसित देशों में जनसंख्या की शुद्धि दर उच्च रही है । अत: आर्थिक विकास की संभावनाओं के बावजूद जीवन-स्तर में परिवर्तन नहीं हो पाया । सामान्यत: इन देशों में जन्म व मृत्यु दरें ऊँची रहती हैं तथा मृत्यु दर के सापेक्ष जन्म दर अधिक होती है । अत: जनसंख्या विस्फोट की समस्या उत्पन्न होती है ।

अर्द्धविकसित देशों में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात विकसित देशों के सापेक्ष अल्प रहा है । इससे आर्थिक विकास की गति अवरूद्ध होती है । इन देशों में भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ा है लेकिन विभिन्न देशों में इसकी प्रवृतियों भिन्न रही है । उदाहरण के लिए- हांगकांग व सिंगापुर में जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग कि.मी. क्रमश: 3981 प्रति वर्ग कि.मी. है तो जाम्बिया व माली में केवल 6 व 4, मात्र इन प्रवृतियों के आधार पर इन देशों में उत्पादन हेतु उपयोग में लायी गयी भूमि के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।

यूनाइटेड नेशन्स के प्रकाशन Economic Development of Underdeveloped Countries में अर्द्धविकसित देशों की मुख्य प्रवृत्तियों को सार रूप में निम्न तीन पक्षों से संबंधित किया गया है:

i. जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि ।

ii. कृषि पर निर्भरता अर्थात् यह देश प्राथमिक उत्पादक क्षेत्र है ।

iii. पूँजी की कमी जिससे बेरोजगारी व अर्द्धरोजगार की प्रवृतियाँ उत्पन्न होती हैं ।